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गोलोक. गोलोक परम पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्णा का निवास स्थान है। जहाँ पर भगवान कृष्ण श्री राधा रानी संग निवास करते हैं। वैष्णव मत के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ही परंब्रह्म हैं और उनका निवास स्थान गोलोक धाम है, जोकि नित्य है, अर्थात सनातन है। इसी लोक को परमधाम कहा गया है। कई भगवद्भक्तों ने इस लोक की परिकल्पना की है। गर्ग संहिता व ब्रह्म संहिता मे इसका बड़ा ही सुंदर वर्णन हुआ है। बैकुंठ लोकों मे ये लोक सर्वश्रेष्ठ है, और इस लोक का स्वामित्व स्वयं भगवान श्री कृष्ण ही करते हैं। इस लोक मे भगवान अन्य गोपियों सहित निवास तो करते ही हैं, साथ ही नित्य रास इत्यादि क्रीड़ाएँ एवं महोत्सव निरंतर होते रहते हैं। इस लोक मे, भगवान कृष्ण तक पहुँचना ही हर मनुष्यात्मा का परंलक्ष्य माना जाता है।
श्री गर्ग-संहिता मे कहा गया है:
अर्थात- जो सर्वात्मा होकर भी आनंदचिन्मयरसप्रतिभावित अपनी ही स्वरूपभूता उन प्रसिद्ध कलाओं (गोप, गोपी एवं गौओं) के साथ गोलोक मे ही निवास करते हैं, उन आदिपुरुष गोविंद की मै शरण ग्रहण करता हूँ।
गोलोक धाम को वृन्दावन,साकेत, परंस्थान, सनातन आकाश, परंलोक, या वैकुंठ भी कहा जाता है। संसारिक मोह-माया से परे वह लोक अनिर्वचनीय है अर्थात उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती; उसकी परिकल्पना भी वही कर सकता है जिसके हृदय मे भगवद्भक्ति व प्रेम हो। इस धाम को ही प्रेम और भक्ति का धाम भी कहा जाता है। वह लोक स्वयं कृष्ण की भांति ही अनंत है। जिस प्रकार संसार को चलाने वाले तीनों गुणो- सतोगुण, रजोगुण, एवं तमोगुण से भी परे श्री कृष्ण है, उसी प्रकार यह धाम भी इन तीनों गुणो से परे है ।
"भगवद्गीता" में (15.6) भगवान श्री कृष्ण के धाम का वर्णन इस प्रकार हुआ है-
इसमे श्री कृष्ण कहतें हैं- "मेरा परमधाम न तो सूर्य या चंद्रमा द्वारा, न ही अग्नि द्वारा प्रकाशित होता है। जो लोग वहाँ पहुँच जाते हैं वें इस भौतिक जगत मे फिर कभी नहीं लौटते।"
यह श्लोक उस परम धाम का वर्णन करता है। हम यह जानते हैं की भौतिक जगत (पृथ्वी लोक) के आकाश मे प्रकाश का स्तोत्र सूर्य, चन्द्र, तारे इत्यादि ही हैं। किन्तु इस श्लोक मे भगवान बताते हैं कि नित्य आकाश मे किसी सूर्य, चन्द्र, अग्नि की कोई भी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह परमेश्वर से निकालने वाली ब्रह्मज्योति से प्रकाशित है।
ब्रह्मसंहिता (5.37) मे भी इसका अति सुंदर वर्णन मिलता है- गोलोक एव निवसत्यखिलात्मभूतः
गोलोक से गायो का काशी आगमन.
गोलोक से भगवान शंकर की एक कथा बहुत ही प्रचलित है कि भगवान शंकर ने गऊ को काशी जाने का आदेश दिया, जब वे भोलेनाथ की आज्ञा से काशी पहुंचे तो भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर मां गौरी सहित दर्शन दिए, गायो को भगवान शंकर ने लिंग स्वरूप में और मां गौरी ने मूर्ति स्वरूप में एक ही विग्रह में साथ-साथ साक्षात दर्शन दिए, गौओ के इस प्रकार शंकर और मा गौरी के प्रत्यक्ष दर्शन से गोप्रेक्ष नाम हुआ। और भगवान ने आशीर्वाद दिया कि जो कलयुग में जो मनुष्य गोप्रेक्ष का दर्शन करेगा उसको अनंत गौदान का फल प्राप्त होगा, और क्लेश का नाश होगा ।
स्कंद पुराण में लिखा है -
महादेवस्य पूर्वेण गोप्रेक्षं लिंगमुत्तमम् ।। ९ ।।
तद्दर्शनाद्भवेत्सम्यग्गोदानजनितं फलम् ।।
गोलोकात्प्रेषिता गावः पूर्वं यच्छंभुना स्वयम् ।। १० ।।
वाराणसीं समायाता गोप्रेक्षं तत्ततः स्मृतम् ।।
गोप्रेक्षाद्दक्षिणेभागे दधीचीश्वरसंज्ञितम् ||११||
महादेव जी का पूर्व दिशा में एक बहुत ही अध्भुत लिंग है जिसे गोप्रेक्ष नाम से जाना जाता है, यह अर्धनारीश्वर का ऐसा स्वरूप जिसमें शिव स्वयं लिंग रूप में और मां गौरी स्वयं मूर्ति रूप में एक ही विग्रह में साथ-साथ विराजते हैं भगवान शंकर ने गायो को स्वयं गोलोक से काशी जाने का आदेश दिया, जब वे भोलेनाथ की आज्ञा से काशी पहुंचे तो भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर मां गौरी सहित दर्शन दिए, गायो को दर्शन देने के कारण गोप्रेक्ष नाम हुआ, और यहां दर्शन करने से अनंत गौ दान का फल प्राप्त होता है और दम्पत्य क्लेश नाश होता है
वियुत्पत्ति.
गोलोक (गो + लोक) शब्द का अर्थ है "गायों का लोक" या "कृष्ण का लोक"। ऐसा इसलिए क्योंकि कृष्ण एक ग्वाले हैं और उन्हे गायों से अत्यधिक स्नेह है, यही कारण है उस लोक को गायों का लोक अर्थात गोलोक कहा जाता है। संस्कृत का शब्द "गो" यहाँ "गाय" के लिए और "लोक" यहाँ "क्षेत्र" के लिए उपयोग हुआ है।
भगवान कृष्ण को गोलोकविहारी भी कहते हैं क्योंकि वें गोलोक मे रहते हैं और राधा को राधिका कहा जाता है।
विवरण.
ब्रह्म संहिता मे (5.29) इसका अतीव सुंदर वर्णन मिलता है।
अनुवाद- "जहां लक्ष लक्ष कल्पवृक्ष तथा मणिमय भवनसमूह विद्यमान हैं, जहां असंख्य कामधेनु गौएँ विद्यमान हैं, शत-सहस्त्र अर्थात हज़ारों- हज़ारों लक्ष्मियाँ-गोपियाँ प्रीतिपूर्वक जिस परम पुरुष की सेवा कर रहीं हैं, ऐसे आदिपुरुष गोविंद का मै भजन करता हूँ।
सम्पूर्ण 18 पुराणों मे, ब्रह्म वैवर्त मे स्पष्ट रूप से लिखा है कि गोलोक वृन्दावन, वैकुंठ लोक से 50 करोड़ योजन ऊपर स्थित है और 3 करोड़ योजन मे फैला हुआ है। गोलोक ब्रह्मांड से बाहर तीनों लोकों से ऊपर ब्रह्म ज्योति मे विद्यमान है। गोलोक के वामभाग मे शिवलोक है, जहां परमात्मा अपने शिव स्वरूप मे विद्यमान हैं। वैकुंठ और शिवलोक भी गोलोक कि भांति नित्य हैं। ये सभी कृत्रिम या भौतिक सृष्टि से परे हैं।
सनातन गोस्वामी, जोकि गौड़ीय वैष्णववाद की भक्ति परंपरा में कई महत्वपूर्ण कार्यों के लेखक रहे हैं, ने कहा है,- "श्री गोलोक को आध्यात्मिक प्रयास का अंतिम गंतव्य माना जाता है।" गौड़ीय वैष्णववाद के आचार्य इसे असीम बताते हैं। वैकुंठ और गोलोक दोनों को नित्य धाम (अस्तित्व का शाश्वत क्षेत्र) माना जाता है, जिसका ब्रह्मांडीय विघटन के बाद भी सर्वनाश नहीं होता। भगवान कृष्ण अपने अनादि दो-भुज (श्री कृष्ण) रूप में गोलोक मे और अपने चतुर्भुज भगवान विष्णु के रूप में वे वैकुंठ लोक में सदा निवास करते हैं। सभी वैकुण्ठ और गोलोक का उल्लेख वैष्णव विद्यालयों जैसे गौड़ीय वैष्णववाद, स्वामीनारायण सम्प्रदाय, प्रणामी, वल्लभाचार्य, निम्बार्क सम्प्रदाय और शास्त्रों जैसे पंचरात्र, गर्ग संहिता, ब्रह्म संहिता, ब्रह्म वैवर्त में मिलता है। देवी भगवत पुराण (नौवीं पुस्तक) जिसमें श्री कृष्ण को परम ब्रह्म के रूप में दर्शाया गया है, जो देवी का पुरुष स्वरूप है और गोलोक के स्वामी हैं।
गोलोक संरचना.
सभी वैकुंठ लोक कमल की पंखुड़ियों के समान हैं और उस कमल का प्रमुख भाग ही गोलोक है। यह सभी वैकुंठों का केंद्र है। इसी प्रकार अपने विभिन्न रूपों मे श्री कृष्ण इन वैकुंठ धामों मे निवास करते हैं। गोलोक को तीन अलग-अलग भागो मे विभाजित किया गया है- गोकुल, मथुरा और द्वारका। जैसा कि ब्रह्म-संहिता (५.४३) में कहा गया है, आध्यात्मिक आकाश के सभी वैकुंठ लोक (विष्णुलोक के रूप में जाने जाते हैं), गोलोक के भगवान श्री कृष्ण से प्रकट होते हैं।
चित्रण.
गर्ग संहिता के गोलोक खंड मे गोलोक का अत्यंत सुंदर चित्रण किया गया है। इस खंड की एक कथा के अनुसार जब पृथ्वी दानव, दैत्य व असुर स्वभाव के मनुष्य और दृष्ट राजाओं के दुराचार के भारी भार से दुखी होकर गौ का रूप धारण करके ब्रह्म देव के पास गई तो ब्रह्म देव ने पृथ्वी की समस्या के निवारण के लिए सभी देवताओं सहित विष्णुलोक (वैकुंठ) जाने का निर्णय किया। जब वे सब भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होने उन्हे भगवान कृष्ण के पास चलने का अनुग्रह किया। यह सुनकर की भगवान विष्णु से बड़ी भी कोई शक्ति है, सभी बहुत आश्चर्यचकित हुए, उन्होने तो आजतक येही जाना कि एक ब्रह्मांड है और उसमे त्रिमूर्ति ही परंब्रह्म भगवान हैं।वे सब ब्रह्मांड के शिरोभाग की ओर चले जिसका वामन के बाएँ पैर के अंगूठे से भेदन हो गया था, उसमे ब्रह्मद्रव्य भरा हुआ था। वे सभी जलयान से, उससे बाहर निकले। बाहर निकलने पर उन्होने देखा की ब्रह्मांड कलिंगबिम्ब (तूंबे) की भांति प्रतीत हो रहा है और इन्द्रायन फल के जैसे अनेक ब्रह्मांड इधर-उधर लुढ़क रहे हैं। वें जब करोड़ों योजन ऊपर की ओर बढ़े तो उन्होने वहाँ अत्यंत सुंदर आठ नगर देखे और विरजा नदी का सुंदर तट भी देखा। वहीं ऊपर उन्हे करोड़ों सूर्यों की ज्योति का पुंज दिखाई पड़ा, जिससे देवताओं की आँखें चौंधिया गयीं। देवताओं ने उस ज्योतिर्पुंज की, भगवान विष्णु के कहने पर, प्रार्थना की जिससे वह ज्योतिर्पुंज परम शांतिमय धाम प्रतीत होने लगा। उसमे प्रवेश करने पर उन्हे सर्वप्रथम हज़ार मुख वाले शेषनाग के दर्शन हुए। उन सभी ने शेषनाग को प्रणाम किया और आगे धाम मे प्रवेश किया। उन सबने देखा की वह स्थान अपने अंदर असीम सुख, शांति व समृद्धि अपने अंदर समेटे था, उन्हे उस धाम का कही अंत ही नहीं दिखता था। समय से परे, माया से परे, तीनों गुणो से परे, मन, चित्त, बुद्धि, अहंकार व समस्त 16 विकारों से भी परे उस सनातन गोलोक धाम के दर्शन करके सभी देवता मुग्ध हो गए। उन्होने ऐसा आलोकिक व अद्भुत धाम पहले कभी भी नहीं देखा था। धाम के मुख्य द्वार पर कामदेव के समान मनोहर रूप, लावण्य, शलिनी श्यामसुंदर विग्रहा, श्री कृष्ण पार्षदा द्वारपाल का काम करती थी। देवताओं ने अपना परिचय देकर उन्हे अंदर जाने की अनुमति मांगने का निवेदन किया। उन सखियों ने अंदर जाकर देवताओं के आने की बात कही तो अंदर से एक सखी, जिसका नाम शतचंद्रानना था, हाथ मे बेंतकी छड़ी लिए आयी, और देवताओं से बोली कि आप सभी किस ब्रह्मांड के निवासी हैं? तभी वो कृष्ण को सूचित करेगी। यह देखकर सभी एक दूसरे का मुख ताकने लगे और पूछा कि क्या और भी ब्रह्मांड हैं? शतचंद्रानना बोली कि क्या उन्हे नहीं पता कि विरजा नदी मे असंख्य ब्रह्मांड तैर रहे है और वो तो ऐसे बोल रहें कि उन्हे अपने ब्रह्मांड के अलावा किसी दूसरे का पता ही नहीं, ठीक गुलर के फल मे रहने वाले कीड़े कि तरह, जैसे उन्हे अपने फल के अलावा किसी दूसरे का पता ही नहीं होता। तब विष्णु ने कहा कि वे उस ब्रह्मांड से हैं जिसमे वामन के पग के अंगूठे से भेदन हो गया है और जिसमे भगवान का पृश्निगर्भ सनातन अवतार हुआ है। तब शतचंद्रानना अंदर गयी और उन्हे अंदर बुला लिया। वहाँ उन्हे गोवर्धन के दर्शन हुए जहां गोपियों द्वारा वसंत के उत्सव कि तैयारियाँ चल रही थी। कल्पवृक्ष व कल्पलताओं से सुशोभित रासमंडल अलंकृत हो रहा था । श्याम वर्ण यमुना नदी चारों और अपनी आभा बिखेर रही थी। विभिन्न पक्षियों का कलरव, भ्रमरों का भ्रमर गीत, वातावरण मे फैला सौन्दर्य, मंद-मंद बहती शीतल वायु उन सबका मन मोह रही थी। बत्तीस वनों से घिरा निज निकुंज चारदीवारी व खाइयों से अत्यंत सुंदर लग रहा था, आँगन का भाग लाल रंग वाले वटों से अलंकृत था। सात प्रकार की मणियों से बनी दीवारें तथा आँगन का फर्श शोभा पा रहा था। करोड़ों चंद्रमाओं के मण्डल की छवि जैसे चंदोवे चमक रहे थे, दिव्य पताकाएँ, खिले हुए फूल, मत्त-मयूर और कोयल का कलरव चारों दिशाओं को आनंदित कर रहा था। ये सब देख देवता आश्चर्य व आनंद से भरे जा रहे थे।
गोपियों का दर्शन.
वहाँ पर निवास करने वाली गोपियाँ बालसूर्य की भांति कांतिमान हैं व अरुण पीत कुंडल धारण करने वाली सखियाँ सौ-सौ चंद्रमाओं के समान गौरवर्ण से उद्भासित होती हैं। स्वछंद गति से चलने वाली वे सुंदरियाँ दर्पण मे अपना मुख निहारती हुई, या जल कुंड मे अपना शृंगार निहारती हुई आँगन मे भागी फिरती हैं। उनके गले मे हार व बाहों मे केयूर शोभा दे रहे हैं। नूपुर व चूड़ियों की मधुर झंकार वहाँ गूँजती रहती है। वे गोपांगनाएं मस्तक पर चूड़ामनी धारण करती हैं। उनकी खिलखिलाती हँसी वातावरण को परिशुद्ध कर रही है। उनकी कांति उस स्थान को आनंदित कर रही है।
गायों का दर्शन.
वहाँ द्वार-द्वार पर विभिन्न प्रकार की गायों का दर्शन होता है। वे गौएँ विभिन्न प्रकार के दिव्य आभूषणो से सज्ज हैं, और सफ़ेद पर्वत के समान प्रतीत होती हैं। सब की सब दूध देने वाली व नयी अवस्था की हैं। सभी की पूँछ का रंग पीला है। उनके घंटों व मंजीरों से सब ओर ध्वनि गुंजितमान होती रहती है। वें सब किंकिणिजालों से विभूषित हैं। वें विभिन्न रत्नो से बनी हार व मालाएँ पहने हुए हैं। उनके सींगों पर सोना मढ़ा गया है। सभी सुशीला, सुरुचा व सद्गुणवती हैं। ऐसी सुंदर व भव्य गायें वहाँ सब और विचर रही हैं। वहाँ पर विभिन्न रंगों की गायें हर और दिखाई पड़ती हैं। दूध देने मे समुद्र की तुलना करने वाली उन गायों के शरीर पर युवतियों के करचिन्ह (हाथों के रंगीन छापे) सुशोभित हैं। हिरण के समान छलांग भरने वाले बछड़े भी दिखाई पड़ते हैं। गायों के झुंड मे कुछ बैल भी हैं, जिनकी लंबी गर्दन व लंबे सींग हैं। गायों की रक्षा करने वाले ग्वाले या चरवाहे भी वहाँ हैं जो अपने हाथों मे बेंतकी छड़ी लिए हुए हैं। वो मनोरम दृश्य देखते ही बनता है।
श्री राधा कृष्ण का दर्शन.
गोलोक पर हज़ार दल वाला भव्य व दिव्य कमल सुशोभित है, ऐसा लगता है मानो वह कोई दिव्य ज्योतिर्पुंज हो। उसके ऊपर सोलह दल का कमल है व उसके भी ऊपर एक आठ दल का कमल सुशोभित है। उसके ऊपर चमचमाता हुआ दिव्य सिंहासन है। तीन सीढ़ियों वाला वह सिंहासन अनमोल व आलोकिक दिव्य रत्नों व मणियों से अलंकृत होता है। उसी पर श्री भगवान कृष्णचंद्र श्री राधिका जी के साथ विराजमान हैं। वे युगलरूप भगवान मोहिनी आदि आठ सखियों व श्रीदामा सहित आठ गोपालकों द्वारा सेवित हैं। उनके ऊपर हंस के समान सफ़ेद रंग के पंखे झले जा रहे हैं और हीरों से जड़ित चँवर डुलाए जा रहे हैं। भगवान की सेवा मे ऐसे करोड़ों छत्र प्रस्तुत हैं जो कोटी चंद्रमाओं के समान उज्ज्वल हैं। भगवान कृष्ण के वामभाग मे श्री राधिका जी से उनकी बायीं भुजा सुशोभित है। भगवान ने स्वेच्छा से अपने दायें पैर को टेढ़ा करके रखा है। वें हाथों मे बाँसुरी धारण किए हैं। उन्होने अपने मुस्कान भरे मुखमंडल व अपने दिव्य स्वरूप से अनेकों कामदेवों को मोहित कर रखा है। उन श्री हरि की मेघों के समान श्यामल कांति है। भगवान गले मे सुंदर वनमाला धारण किए हुए हैं। अति सुंदर मुस्कान मन को मोहित कर रही है। श्री वत्स का चिह्न बहुमूल्य रत्नो से बने हुए किरीट, कुंडल, बाजूबंद और हार यथास्थान भगवान की शोभा बढ़ा रहे हैं। वहाँ पहुँचकर सभी देवताओं ने उनके इस प्रकार दर्शन किए।
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क्रैंक (फ़िल्म). क्रैंक 2006 की अमेरिकी एक्शन फिल्म है, जिसे मार्क नेवेल्डिन और ब्रायन टेलर (उनके निर्देशकीय डेब्यू में) ने लिखा और निर्देशित किया है और इसमें जेसन स्टैथम, एमी स्मार्ट और जोस पाब्लो कैंटिलो ने अभिनय किया है। लॉस एंजिल्स में एक ब्रिटिश हिटमैन पर कथानक केंद्र का नाम चेव चेलियोस है जो जहर है और खुद को जीवित रखने के लिए अपने एड्रेनालाईन को लगातार बहते रहना चाहिए। वह ड्रग्स लेने और झगड़े में शामिल होने सहित विभिन्न तरीकों से ऐसा करता है, जबकि वह उस व्यक्ति को ट्रैक करने की कोशिश करता है जिसने उसे जहर दिया था। फिल्म का शीर्षक मैथम्फेटामाइन के लिए स्लैंग शब्द से आया है।
2009 में "क्रैंक: हाई वोल्टेज" नामक एक सीक्वल के बाद फिल्म का प्रदर्शन किया गया।
संक्षेप.
पेशेवर हत्यारे चेव को पता है कि उसके प्रतिद्वंद्वी ने उसे एक जहर के साथ इंजेक्ट किया है जो उसकी हृदय गति को गिरा देगा।
उत्पादन.
यह फिल्म 2003 में निकोलस केज के साथ मुख्य भूमिका को ध्यान में रखकर लिखी गई थी।
6फिल्म की शूटिंग लॉस एंजिल्स में लोकेशन पर की गई थी। सह-निर्देशक मार्क नेवेल्डिन और ब्रायन टेलर ने "ए" और "बी" दोनों कैमरों का संचालन किया, जहां एक को एक व्यापक शॉट मिलेगा और दूसरे को क्लोज-अप शॉट मिलेगा। जेसन स्टैथम ने अपनी लड़ाई और कार स्टंट सभी किए, जिसमें लॉस एंजिल्स के 3,000 फीट ऊपर एक हेलीकॉप्टर में वेरोना के साथ लड़ाई भी शामिल थी।
संगीत.
फिल्म के लिए साउंडट्रैक 22 अगस्त 2006 को जारी किया गया था। ऑलम्यूजिक ने पांच में से तीन एल्बम दिए, "क्या यहाँ है कल्पनाशील, रचनात्मक, और सिर-खरोंच शांत।" हालांकि यह वास्तव में जेफरसन स्टारशिप की धुन " मिरेकल्स " के साथ समाप्त होने के लिए एक बहुत ही कठिन और अधिक स्पष्ट बात है (क्यों न केवल अंत को समाप्त कर दिया जाए, हुह?), यह सेट बहुत अधिक उपलब्ध नहीं है। "
विपणन.
निर्देशक नेवेल्डिन और टेलर, अभिनेता स्टेथम और रामिरेज़ के साथ , कैलिफोर्निया के सैन डिएगो में 2006 के कॉमिक-कॉन कन्वेंशन में दिखाई दिए। पैनल ने एक छोटी क्लिप दिखाई और फिल्म का प्रचार किया, जिसमें उल्लेख किया गया कि यह एचडी में शूट किया गया था और स्टंट दृश्यों के लिए कोई तार या सीजीआई का उपयोग नहीं किया गया था।
फिल्म निर्माताओं ने फिल्म को बढ़ावा देने के लिए वेब विज्ञापन का व्यापक उपयोग किया। लायंसगेट ने YouTube के मुख पृष्ठ पर एक चित्रित स्थान खरीदा और अपने कई प्रसिद्ध सदस्यों को विज्ञापन देने के लिए भुगतान किया।
रिलीज़.
बॉक्स ऑफिस.
1 सितंबर, 2006 को उत्तरी अमेरिका में 2,515 सिनेमाघरों में "क्रैंक" खोला गया। इसने अपने शुरुआती सप्ताहांत में $ 10,457,367 की कमाई की और "अजेय के" पीछे बॉक्स ऑफिस पर नंबर 2 पर रहा। फिल्म ने $ 12 मिलियन के उत्पादन बजट पर, $ 42,831,041 की कुल मिलाकर $ 27,838,408 घरेलू और $ 15,092,633 की कमाई की।
अहमियतभरा जवाब.
सड़े हुए टमाटर फिल्म को 61 में से 61% का स्कोर देते हैं, जिसकी औसत रेटिंग 10 में से 5.92 है, जो कि आलोचकों के 94 समीक्षाओं के आधार पर है। फिल्म के लिए वेबसाइट की "क्रिटिक्स सर्वसम्मति" में लिखा है, " "क्रैंक" ' हमला करने की शैली और उल्लासपूर्ण अवसाद, आकस्मिक एक्शन प्रशंसकों को बंद कर सकता है, लेकिन एड्रेनालाईन की एक मजबूत खुराक की मांग करने वाले दर्शकों को जेसनहम की मृत्यु के खिलाफ कर्कश दौड़ से रोमांचित होगा"। मेटाक्रिटिक पर फिल्म को 19 आलोचकों की समीक्षाओं के आधार पर 100 में से 57 का भारित औसत स्कोर मिला है, जो "मिश्रित या औसत समीक्षा" दर्शाता है। CinemaScore द्वारा सर्वेक्षण की गई ऑडियंस ने फिल्म को एक ग्रेड सी + दिया। लायंसगेट ने अपनी रिलीज़ के समय आलोचकों या प्रेस के लिए फिल्म की स्क्रीनिंग नहीं करने का विकल्प चुना।
कुछ फिल्म निर्माताओं और अभिनेताओं ने जेसन स्टेथम की पसंदीदा फिल्मों के रूप में "क्रैंक" (और इसके सीक्वल) को गाया, जिसमें सेठ रोजन, रूपर्ट ग्रिंट, साइमन पेग, जेम्स मैकएवॉय, एडगर राइट और गर्थ इवांस शामिल हैं ।
होम मीडिया.
26 दिसंबर 2006 को डीवीडी का रीजन 2 संस्करण जारी किया गया था, लेकिन शुरू में इसकी कोई खासियत नहीं थी। रीजन 1 डीवीडी को लायंसगेट ने 9 जनवरी, 2007 को जारी किया था। यह डीवीडी अलग वाइडस्क्रीन और फुलस्क्रीन संस्करणों में उपलब्ध है, प्रत्येक में डॉल्बी डिजिटल 5.1 और 2.0 ट्रैक हैं। बोनस सामग्री में रनिंग कास्ट और क्रू ऑडियो कमेंट्री, पीछे के दृश्य फुटेज, गैग्स, मैप्स, इनसाइट्स का मेक-अप और कलाकारों के साथ साक्षात्कार शामिल हैं। ये विशेषताएं "क्रैंकली आउट मोड" के माध्यम से सभी सुलभ हैं - एक पॉप-अप विंडो सुविधा जो एक्स्ट्रा कलाकार को कभी भी फिल्म छोड़ने के बिना एक्सेस करने की अनुमति देती है। डीवीडी में एक "परिवार के अनुकूल" ऑडियो प्रतिस्थापन भी शामिल है, जिसमें फिल्म को टीवी प्रसारण पर दिखाई देने के साथ-साथ डब किया जाता है। हालाँकि, हिंसा, भाषा उपशीर्षक और नग्नता अभी भी समान हैं।
वीडियो गेम.
एक J2ME गेम सिल्वरबर्ड स्टूडियो द्वारा विकसित किया गया था।
सीक्वल.
"क्रैंक: हाई वोल्टेज" 2009 "क्रैंक की" अगली कड़ी है। पहली फिल्म के छूटने के बाद यह कुछ सेकंड तक चलती है। ऐसा लगता है कि चेलियो के शरीर में जहर घुल गया है, लेकिन पहली किस्त की नौटंकी को बरकरार रखता है; उसके पास अब एक कृत्रिम दिल है जिसे जीवित रहने के लिए उसे बिजली से चार्ज रखना चाहिए।
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स्मिता माधव. स्मिता माधव कर्नाटक शास्त्रीय गायिका और भरतनाट्यम नृत्यांगना हैं। कर्नाटक संगीत आमतौर पर भारत के दक्षिणी भाग से जुड़ा हुआ है और भारतीय शास्त्रीय संगीत के दो मुख्य वर्गीकरणों में से एक है (दूसरा हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत है)।
संगीत करियर.
स्मिता को भरतनाट्यम में श्रुति लया केंद्र नटराजालय के निदेशक द्वारा प्रशिक्षित किया गया है। इस संस्थान की स्थापना मृदंगम उस्ताद कराइकुडी मणि द्वारा की गई थी। उन्हें हैदराबाद सिस्टर्स के नाम से जानी जाने वाली ललिता और हरिप्रिया से कर्नाटक शास्त्रीय संगीत में उन्नत प्रशिक्षण प्राप्त करना जारी है। स्मिता ने तेलुगु विश्वविद्यालय से संगीत और नृत्य में डिप्लोमा किया है। वह फिलहाल इंदिराकला संगीत विद्यालय से नृत्य में परास्नातक और मद्रास विश्वविद्यालय से संगीत में परास्नातक कर रहीं हैं। वह भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की एक प्रतिष्ठित कलाकार हैं।
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आनंदा शंकर जयंत. आनंदा शंकर जयंत भारतीय शास्त्रीय नर्तक, कोरियोग्राफर और विद्वान हैं जिन्हें भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी जैसे शास्त्रीय नृत्य रूपों में उनकी दक्षता के लिए जाना जाता है। वह दक्षिण मध्य रेलवे में भारतीय रेलवे यातायात सेवा में पहली महिला अधिकारी हैं। उनका 2009 का कैंसर पे दिया गया टेड विख्यान काफी प्रतिष्ठित है। वह संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, तमिलनाडु सरकार का कलाममानी पुरस्कार और आंध्र प्रदेश सरकार का कला रत्न पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं। भारत सरकार ने उन्हें कला में उनके योगदान के लिए 2007 में पद्म श्री नागरिक सम्मान से सम्मानित किया।
जीवनी.
आनंदा शंकर तमिलनाडु के तिरूनेलवेली जिले के तमिल ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई। उनके पिता जी॰ एस॰ शंकर भारतीय रेलवे के अधिकारी थे और उनकी माता सुभाषिनी स्कूल शिक्षिका और संगीतकारा थीं। वह हैदराबाद में पली-बढ़ी, जहाँ उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सिकंदराबाद के सेंट एन्स हाई स्कूल में की थी। उन्होंने 4 साल की उम्र में शारदा केशव राव और बाद में के॰ एन॰ पकीर्किस्वामी पिल्लई से शास्त्रीय नृत्य सीखना शुरू किया। 1972 में 11 साल की उम्र में, उन्होंने रुक्मिणी देवी अरुंडेल के संस्थान में प्रवेश लिया जहां उन्होंने पद्म बालगोपाल, शारदा हॉफमैन और कृष्णवेनी लक्ष्मण जैसे शिक्षकों के तहत भरतनाट्यम में प्रशिक्षण लिया। छह साल के अध्ययन के बाद उन्होंने भरतनाट्यम, कर्नाटक संगीत, वीणा, नृत्य सिद्धांत और दर्शन के विषयों में अपना डिप्लोमा और स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया।
वह 17 साल की उम्र में हैदराबाद लौट आईं और शंकरानंद कलाक्षेत्र की स्थापना की। यह आठ छात्रों के साथ एक डांस स्कूल था जो तब से डांस एकेडमी बन गया है जिसमें पार्थ घोस, मृणालिनी चुंदुरी, शतीराजू वेणुमाधव और डोलन बनर्जी जैसे कलाकार शामिल हैं। हैदराबाद में, उन्होंने पसुमर्थी रामलिंग शास्त्री के तहत कुचिपुड़ी भी सीखा। समवर्ती रूप से, उन्होंने अपनी अकादमिक पढ़ाई पूरी की और उस्मानिया विश्वविद्यालय से भारतीय इतिहास और संस्कृति में अपनी मास्टर डिग्री पूरी की। उन्होंने भारतीय रेलवे यातायात सेवा (आईआरटीएस) में शामिल होने के लिए सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की। इस प्रकार वह दक्षिण में इस सेवा की पहली महिला अधिकारी बन गईं। आईआरटीएस की सेवा करते हुए, उन्होंने पर्यटन में डॉक्टरेट की उपाधि (पीएचडी) और कला इतिहास में एमफिल करने के लिए अपनी पढ़ाई जारी रखी। उनकी थीसिस "प्रमोशन ऑफ़ टूरिज्म इन इण्डिया - रोल ऑफ़ रेलवेज" थी।
जून 2008 में, अमेरिका में कुचिपुड़ी सम्मेलन से लौटने के बाद, उन्हें पता चला की उन्हें स्तन कैंसर है। जिसका बाद में इलाज किया गया। नवंबर 2009 में, उन्हें टेड पर अपने अनुभव साझा करने के लिए आमंत्रित किया गया और उन्होंने अपने व्याख्यान में बीच-बीच में नृत्य किया। उन्होंने दो साल तक चले अपने कैंसर के दिनों के बाद अपना नृत्य करियर फिर से शुरू किया। आनंदा शकर की शादी जयंत द्वारकानाथ से हुई है और वह सिकंदराबाद के रेलवे सूचना प्रणाली केंद्र में एक अधिकारी के रूप में काम करती हैं।
पुरस्कार.
तमिलनाडु सरकार ने 2002 में आनंदा शंकर को कलाममानी पुरस्कार से सम्मानित किया। भारत सरकार ने उन्हें 2007 में पद्म श्री से सम्मानित किया। आंध्र प्रदेश सरकार ने उन्हें 2008 में कला रत्न सम्मान से सम्मानित किया। भरतनाट्यम में उनके योगदान के लिए उन्हें 2009 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला।
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स्टोलन. स्टोलन जिसे पूर्व में मेडेलियन के रूप में जाना जाता था, एक 2012 की अमेरिकी एक्शन थ्रिलर फिल्म है, जो साइमन वेस्ट द्वारा निर्देशित है और इसमें निकोलस केज, डैनी हस्टन, मालिन ऑकर्मन, एमसी गेनी, सामी गेल, मार्क वैली और जोश लुकास ने अभिनय किया है।
संक्षेप.
एक पूर्व चोर अपनी लापता बेटी को खोजता है, जिसे एक टैक्सी के ट्रंक में अपहरण कर लिया गया है।
उत्पादन.
मार्च 2012 में न्यू ऑरलियन्स, लुइसियाना में फिल्मांकन शुरू हुआ। यह 14 सितंबर, 2012 को अमेरिकी सिनेमाघरों में और 22 मार्च 2013 को यूके में लायंसगेट द्वारा जारी किया गया था।
रिसेप्शन.
फिल्म को रॉटेन टमेटोज़ पर आलोचकों के बीच खराब समीक्षा मिली, जिसमें उन्नीस समीक्षाओं के आधार पर 16% "रॉटन" का स्कोर था। "चोरी" एक था बॉक्स ऑफिस बम संयुक्त राज्य अमेरिका में, छोटे से प्रचार प्राप्त करने और अपने उद्घाटन सप्ताहांत पर 141 स्क्रीनों में सिर्फ $ 183,125 की कमाई की। फिल्म को दो सप्ताह के बाद सिनेमाघरों से खींच लिया गया, जिससे कुल $ 304,318 की कमाई हुई। फिल्म ने दुनिया भर में $ 17,967,746 की कमाई की।
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उमलिंगका. उमलिंगका ("Umlingka") के पूर्वी राज्य मेघालय के खासी हिल्स जिले में मायलीम ब्लॉक में एक गाँव है। यह जिला मुख्यालय शिलांग से पश्चिम की ओर ६ किमी दूर स्थित है। यह मायलीम से ५ कि.मी. दूर है।
उमलिंग्का का पिन कोड ७९३००५ है और डाक प्रधान कार्यालय अपर शिलांग है।
निकटवर्ती.
इसके निकटवर्ती ग्राम हैं ८वें माइल (१ किमी), उमलिंग्का (१ किमी), नोंगपाथव (१ किमी), नोंगुलोंग (२ किमी), नोंग केशे रिम (२ किमी)। उमलिंग्का शिलॉन्ग ब्लॉक से पूर्व की ओर, माव्रींग्कनेंग ब्लॉक से पूर्व की ओर, मावफलांग ब्लॉक से दक्षिण की ओर, खड़शेनोंग-लिट्रोख ब्लॉक से दक्षिण की ओर घिरा हुआ है।
शिलॉन्ग, जोवाई, नोंगस्टोइन, दिसपुर, इसके निकटवर्त्ती शहर हैं।
जनसांख्यिकी.
उमलिंग्का जनगणना की जनसंख्या 7,381 है, जिसमें 3,600 पुरुष हैं, जबकि 3,781 महिलाएं हैं, जो कि २०११ भारतीय जनगणना द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार हैं। 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों की जनसंख्या 1310 है जो कि उमलिंग्का (सीटी) की कुल जनसंख्या का 17.75% है। उमलिंग्का जनगणना टाउन में, महिला लिंग अनुपात 989 के राज्य औसत के मुकाबले 1050 का है। इसके अलावा उम्म्लंगेका में बाल लिंग अनुपात 970 के मेघालय राज्य औसत की तुलना में 976 के आसपास है। उमींगका शहर की साक्षरता दर 74.43% के राज्य औसत से 83.20% अधिक है। उमलिंग्का में पुरुष साक्षरता लगभग 83.55% है जबकि महिला साक्षरता दर 82.87% है।
उमलिंग्का सेंसस टाउन में 1,450 से अधिक घरों के लिए कुल प्रशासन है, जो पानी और सीवरेज जैसी बुनियादी सुविधाओं की आपूर्ति करता है। यह जनगणना टाउन सीमा के भीतर सड़कों का निर्माण करने और इसके अधिकार क्षेत्र में आने वाली संपत्तियों पर कर लगाने के लिए भी अधिकृत है।
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उम्प्लिंग. उम्प्लिंग ("Lawsohtun") भारत के मेघालय राज्य के पूर्व खासी हिल्स ज़िले में स्थित एक इलाका है। उमलिंग पिन कोड 793006 है और डाक प्रधान कार्यालय रिन्जाह है। रिन्जा, पोह्क्से, नोंग्रिम्बा, मावश्बुइत, इत्शिर्वात उम्प्लिंग आसपास के इलाके हैं। शिलांग, जोवाई, नोंगस्टोइन, दिसपुर शिलांग के निकटवर्त्ती ्शहर हैं।
अंग्रेजी यहां की स्थानीय भाषा है।
जनसांख्यिकी.
उमलिंग सेंसस टाउन की जनसंख्या 8,529 है, जिनमें 4,302 पुरुष हैं जबकि 4,227 महिलाएं हैं जो कि जनगणना इंडिया 2011 द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार हैं।
0-6 वर्ष की आयु के बच्चों की जनसंख्या 1147 है, जो कि उम्मलिंग (सीटी) की कुल जनसंख्या का 13.45% है। उमलिंग सेंसस टाउन में, महिला लिंग अनुपात 989 के राज्य औसत के मुकाबले 983 का है। इसके अलावा, उमलिंग में बाल लिंगानुपात 970 के मेघालय राज्य की तुलना में 938 के आसपास है। उमंग शहर की साक्षरता दर 74.43% के राज्य औसत से 91.72% अधिक है। उमलिंग में, पुरुष साक्षरता लगभग 93.58% है जबकि महिला साक्षरता दर 89.84% है।
उमलिंग सेंसस टाउन में 1,814 घरों पर कुल प्रशासन है, जो पानी और सीवरेज जैसी बुनियादी सुविधाओं की आपूर्ति करता है। यह जनगणना टाउन सीमा के भीतर सड़कों का निर्माण करने और इसके अधिकार क्षेत्र में आने वाली संपत्तियों पर कर लगाने के लिए भी अधिकृत है।
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माया राव. माया राव (2 मई 1928 - 1 सितंबर 2014) कथक नृत्य में भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना, कोरियोग्राफर और शिक्षिका थीं। वह कथक कोरियोग्राफी में अपने अग्रणी काम के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने 1987 में मल्लेश्वरम, बैंगलोर में अपना डांस स्कूल, नाट्य इंस्टीट्यूट ऑफ कथक और कोरियोग्राफी (NIKC) खोला। इसलिए उन्हें उत्तर भारतीय-नृत्य शैली कथक को दक्षिण भारत में लाने का श्रेय दिया जाता है। वह अपनी डांस कंपनी, "नाट्य और स्टेम डांस कम्पनी" की संस्थापक भी थीं। जयपुर घराने के गुरु सोहनलाल के तहत अपने शुरुआती प्रशिक्षण के बाद उन्होंने जयपुर घराने के ही गुरु सुंदर प्रसाद का अनुसरण किया। बाद में उन्होंने दिल्ली में राष्ट्रीय संस्थान कथक नृत्य में लखनऊ घराने के गुरु शंभू महाराज के तहत प्रशिक्षण प्राप्त किया।
1989 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। 2011 में, अकादमी ने उन्हें भारत भर के 100 कलाकारों को दिए गए संगीत नाटक टैगोर रत्न से सम्मानित किया। यह पुरस्कार रवींद्रनाथ टैगोर की 150 वीं जयंती पर उनके प्रदर्शन कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए दिया गया।
प्रारंभिक जीवन.
उनका जन्म मल्लेश्वरम, बैंगलोर में रूढ़िवादी कोंकणी सारस्वत ब्राह्मण परिवार में शहर के प्रसिद्ध वास्तुकार हट्टंगड़ी संजीव राव और सुभद्रा बाई के घर में हुआ था। उनके तीन भाई और तीन बहनें थीं। कम उम्र में ही उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और वाद्य यंत्र दिलरुबा सीखा। वह रूढ़िवादी परिवार से थीं जहाँ लड़कियों का नृत्य सीखना वर्जित माना जाता है। हालाँकि यह तब बदल गया जब 12 साल की उम्र में उनके वास्तुकार पिता ने बैंगलोर में BRV टॉकीज़ सभागार में नर्तक उदय शंकर की मंडली का प्रदर्शन देखा। प्रदर्शन से प्रेरित होकर उनके पिता चाहते थे कि उनकी बेटियां नृत्य सीखें।
उनके गुरु पंडित रामाराव नाइक, उस्ताद फैयाज खान के शिष्य और आगरा घराने के गायक थे। उन्होंने बेंसन टाउन, बैंगलोर में संगीत और नृत्य विद्यालय चलाया जहाँ विभिन्न नृत्य और संगीत शैलियों को सिखाया जाता था। यहां जयपुर घराने के सोहन लाल कथक अनुभाग के प्रभारी थे। जल्द ही, उनकी छोटी बहनें, उमा और चित्रा ने छह साल और चार साल की उम्र में, गुरु सोहनलाल के अधीन कथक सीखना शुरू कर दिया। जबकि बारह साल की उम्र में उन्हें कथक सीखने के लिए बहुत उम्रदराज माना जाता था। अंत में, उनके पिता ने उन्हें 1942 में कथक प्रशिक्षण शुरू करने की अनुमति दी।
स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद 1945 में सेंट्रल कॉलेज, बैंगलोर में अंग्रेजी साहित्य में बी.ए. किया। बाद में उन्होंने बैंगलोर में महारानी कॉलेज में अध्ययन किया। यहाँ, उन्होंने नृत्य करने के लिए एक क्लब का गठन किया और नृत्य-नाटक प्रस्तुत किए। इस बीच, उनके पिता की मृत्यु 1946 में हुई। उनके परिवार के घर को एक साल के भीतर नीलाम कर दिया गया और परिवार एक कमरे वाले घर में चला गया। जल्द ही उन्होंने अपने भाई मनोहर के साथ घर का कामकाज संभाला और अपने परिवार को सहारा देने के लिए 17 साल की उम्र में नृत्य सिखाना शुरू कर दिया।
करियर.
वह 1951 में कथक की तलाश में जयपुर चली गईं। उन्होंने अगले दो वर्षों के लिए महारानी गायत्री देवी गर्ल्स पब्लिक स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाना शुरू कर दिया। इसके बाद वह श्रीलंका चली गईं और उन्होंने प्रसिद्ध नृत्यांगना, चित्रसेना के साथ कैंडियन नृत्य का अध्ययन किया। इसके बाद, 1955 में उन्होंने भारत सरकार की छात्रवृत्ति प्राप्त की और नई दिल्ली के भारतीय कला केंद्र में लखनऊ घराने के प्रख्यात गुरु शंभू महाराज के अधीन प्रशिक्षण प्राप्त किया। 1960 में, उन्हें कोरियोग्राफी में यूएसएसआर कल्चरल स्कॉलरशिप के लिए कोरियोग्राफी में मास्टर की पढ़ाई के लिए चुना गया था। 1964 में रूस से लौटने पर, संगीत नाटक अकादमी के तत्कालीन उपाध्यक्ष कमलादेवी चट्टोपाध्याय की मदद से उन्होंने भारतीय नाट्य संघ के तत्वावधान में दिल्ली में नाट्य इंस्टिट्यूट ऑफ़ कोरियोग्राफी शुरू किया।
तत्पश्चात वह तत्कालीन मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगडे के निमंत्रण पर NIKC को बैंगलोर स्थानांतरित करने से पहले कई वर्षों तक दिल्ली में रहीं। इन वर्षों में, उन्होंने 3,000 से अधिक छात्रों को प्रशिक्षित किया है जिनमें विशेष रूप से, निरुपमा राजेन्द्र, सैयद सल्लउद्दीन पाशा, सत्य नारायण चक्का, शंभू हेगड़े, शिवानंद हेगड़े का नाम उल्लेखनीय हैं। उनकी बेटी मधु नटराज प्रशंसित नर्तक और कोरियोग्राफर है। 1 सितंबर 2014 की मध्यरात्रि के तुरंत बाद उनकी हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई।
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किरण सेठी. किरण सेठी दिल्ली कि एक जानीमानी पुलिस अधिकारी हैं। उन्हे पूरे भारत में महिलाओं की आत्मरक्षा और पुलिस सेवा प्रशिक्षण शिविरों के आयोजन के लिए जाना जाता है, जिसके लिए उन्हें 2015 में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा सम्मानित किया गया था।
जीवनी.
किरण सेठी का जन्म दिल्ली में हुआ था। उन्होंने 1987 में पुलिस में भर्ती होने से पहले भारतीय जनसंचार संस्थान में पत्रकारिता का अध्ययन किया। वह सहायक पुलिस उप-निरीक्षक (ASI) का पद संभालती, और अक्सर यौन शोषण और बाल यौन शोषण के मामलों की जांच करती हैं। वह आत्मरक्षा पाठ्यक्रम 'प्रहार' में एक मुख्य प्रशिक्षक हैं, उन्होंने 2015 तक 5000 से अधिक स्कूल और विश्वविद्यालय के छात्रों को प्रशिक्षित किया था। उन्होंने 200 से अधिक बहरे और दृष्टि बाधित छात्रों को आत्मरक्षा में प्रशिक्षित किया है। स्कूली छात्रों द्वारा आत्म-रक्षा का सबसे बड़ा प्रदर्शन आयोजित करने के परिणामस्वरूप उनका नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में दर्ज किया गया। 2014 में, काम पर ना होने के दौरान भी, सेठी ने एक नेत्रहीन लड़की को एक शराबी व्यक्ति द्वारा अपहरण और हमला करने से बचाया।
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इब्राहिमपट्टी. इब्राहिमपट्टी (Ibrahimpatti) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बलिया ज़िले में स्थित एक गाँव है।
विवरण.
यह बलिया से दूर स्थित है। भारत के एक पूर्व प्रधान मंत्री, चन्द्रशेखर, इब्राहिमपट्टी के मूल निवासी थे। निकटतम रेलवे स्टेशन किरिहरापुर है।
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बॉडी ऑफ़ लाइज़. बॉडी ऑफ़ लाइज़ 2008 की एक अमेरिकन एक्शन थ्रिलर फिल्म है जिसका निर्देशन और निर्माण रिडले स्कॉट ने किया है और विलियम मोनाहन ने लिखा है। इसमें लियोनार्डो डिकैप्रियो, रसेल क्रो और मार्क स्ट्रॉन्ग प्रमुख भूमिका में हैं। मध्य पूर्व में स्थापित, यह सीआईए और जॉर्डन के खुफिया के प्रयासों का अनुसरण करता है ताकि आतंकवादी "अल-सलीम" को पकड़ा जा सके। उनके लक्ष्य की माया से निराश, उनके दृष्टिकोणों में अंतर सीआईए ऑपरेटिव, उनके श्रेष्ठ और जॉर्डन के खुफिया के प्रमुख के बीच संबंधों में तनाव है।
डेविड इग्नाटियस द्वारा एक ही नाम के उपन्यास पर आधारित पटकथा, पश्चिमी और अरब समाजों के बीच समकालीन तनाव और तकनीकी और मानव प्रति-बौद्धिक तरीकों की तुलनात्मक प्रभावशीलता की जांच करती है। फिल्म की शूटिंग मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और मोरक्को में स्थान पर की गई थी, दुबई में अधिकारियों ने स्क्रिप्ट के राजनीतिक विषयों के कारण वहां फिल्म की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।
स्कॉट की दिशा और दृश्य शैली की आलोचकों द्वारा प्रशंसा की गई थी, लेकिन उन्होंने जासूस शैली से कहानी की परंपराओं के उपयोग और उच्च ऊंचाई वाले जासूसी विमानों से निगरानी शॉट्स जैसे उनके उपयोग की आलोचना की। यह फिल्म संयुक्त राज्य अमेरिका में 10 अक्टूबर 2008 को रिलीज हुई थी।
संक्षेप.
जॉर्डन में जमीन पर एक सीआईए एजेंट अपने अमेरिकी पर्यवेक्षकों और जॉर्डन इंटेलिजेंस के अस्पष्ट इरादों के बीच पकड़े जाने के दौरान एक शक्तिशाली आतंकवादी नेता का शिकार करता है।
कास्ट.
कैसर वैन हाउटन को रोजर की पत्नी ग्रेटेन फेरिस के रूप में लिया गया था, लेकिन उनके सभी दृश्यों को हटा दिया गया था और वह अंतिम कट में नहीं दिखीं।
विषय-वस्तु.
रिडले स्कॉट ने क्रॉस्टेड के दौरान सेट की गई पश्चिमी और अरब सभ्यताओं के "साम्राज्य", "किंगडम ऑफ़ हेवन" (2005) के बीच संघर्ष के बारे में एक पिछली फिल्म बनाई है। "बॉडी ऑफ लाइज़" आधुनिक खुफिया संचालन और आतंकवाद के संदर्भ में इस विषय को फिर से शुरू करता है।
फिल्म एक ही तरफ दो विपरीत चरित्र डालती है। जमीन पर सीआईए का आदमी फेरिस, भाषा में एक समर्पित अरबवादी धाराप्रवाह है; वह विश्वास, स्थानीय ज्ञान और HUMINT पर निर्भर है। हॉफमैन, उनके श्रेष्ठ, जिन्हें वाशिंगटन, डीसी और वर्जीनिया में सीआईए में घर पर रखा गया है, अधिक मैकियावेलियन है: वह धोखा, डबल-क्रॉसिंग, और टेलीफोन द्वारा और बिना जांच के हिंसा को अधिकृत करता है। "न्यू यॉर्कर" ने उन्हें "एक लालची, अमेरिकी घरेलू जानवर- एक उन्नत-मीडिया सनकी, हमेशा खाने" के रूप में व्याख्या की।
फिल्म की शुरुआत में, हॉफमैन अपने वरिष्ठों को समझाता है कि आतंकवादियों के पूर्व-तकनीकी युग के तरीकों से पीछे हटने से सीआईए द्वारा उपयोग किए जाने वाले उच्च विनिर्देशन उपकरण बेकार हो जाते हैं, जिससे फेरिस के मानव खुफिया तरीकों का मूल्य बढ़ जाता है। आतंकवादी मोबाइल टेलीफोन और कंप्यूटर से बचते हैं, आमने-सामने संचार को प्राथमिकता देते हैं और लिखित संदेशों को इनकोड करते हैं। इसके विपरीत, अमेरिकी परिष्कृत संचार का उपयोग करते हैं (हॉफमैन और फेरिस नियमित रूप से फोन पर बात करते हैं) और निगरानी (उच्च ऊंचाई वाले जासूसी विमान पूरी तकनीक में एक अलग दृष्टिकोण प्रदान करते हैं)। "द न्यू यॉर्कर के" डेविड डेन्बी ने कहा कि यह स्कॉट का सुझाव था कि सीआईए के पास मध्य पूर्व में आतंकवाद का ठीक से मुकाबला करने के लिए मानव बुद्धि नहीं बल्कि तकनीक है। हॉफमैन की दूरी के बावजूद, उनकी योजनाओं के बल और अनपेक्षित परिणाम अक्सर फेरिस द्वारा वहन किए जाते हैं। यह अंतर तब रेखांकित किया गया जब फेरिस ने कमजोर विश्वसनीयता, घायल सहयोगियों और व्यक्तिगत जोखिम को झेलते हुए हॉफमैन को याद दिलाया कि "हम एक परिणाम-संचालित संगठन हैं"।
उत्पादन.
विकास.
मार्च 2006 में, वार्नर ब्रदर्स ने डेविड इग्नाटियस द्वारा उपन्यास "पेनेट्रेशन" को एक फीचर फिल्म में रूपांतरित करने के लिए पटकथा लेखक विलियम मोनाहन को काम पर रखा, जिसे रिडले स्कॉट द्वारा निर्देशित किया जाएगा। अप्रैल 2007 में, उपन्यास का शीर्षक "बॉडी ऑफ लाइज के साथ था" और फिल्म को इसी तरह फिर से शीर्षक दिया गया, अभिनेता लियोनार्डो डिकैप्रियो को मुख्य भूमिका में लिया गया। डिकैप्रियो ने इस भूमिका को आगे बढ़ाने के लिए चुना क्योंकि उन्होंने इसे 1970 के दशक में "द पारलेक्स व्यू" (1974) और "थ्री डेज़ ऑफ द कंडक्टर" (1975) जैसी राजनीतिक फिल्मों में वापसी माना। डिकैप्रियो ने अपने बालों को भूरे रंग में रंगा, और भूमिका के लिए भूरे रंग के संपर्क पहने। डिकैप्रियो को कास्ट करने के बाद, रसेल क्रो को सहायक भूमिका के लिए चुना गया था, जिसके बाद उन्होंने औपचारिक रूप से मोना की पटकथा को स्टीव ज़िलियन द्वारा संशोधित किया, जिन्होंने स्कॉट और क्रो के "अमेरिकी गैंगस्टर" लिखा था। क्रो ने अपनी भूमिका के अनुरूप 63 पाउंड प्राप्त किए। अभिनेता ने फिल्म की अमेरिकी सरकार और विदेश नीति की खोज के परिणामस्वरूप कहा, "मुझे नहीं लगता कि यह बहुत लोकप्रिय होगा, लेकिन यह कभी भी मेरी परियोजना पसंद प्रक्रिया का हिस्सा नहीं रहा है।" मार्क स्ट्रॉन्ग, जो जॉर्डन के जनरल इंटेलिजेंस डायरेक्टोरेट (GID) के प्रमुख हानी सलाम की भूमिका निभा रहे हैं, ने 2005 की फिल्मों "सीरियाना" और "ओलिवर ट्विस्ट" में अपने अभिनय के लिए अपनी कास्टिंग की। चरित्र हानी सलाम को 2000-2005 के GID प्रमुख साद खेहर (1953-2009) के बाद मॉडलिंग किया गया था, जिनकी भागीदारी, मूल लेखक डेविड इग्नाटियस के अनुसार, अत्याचार के उपयोग के बिना गहन पूछताछ में, अपनी माँ के साथ एक जिहादी के साथ हुई मुठभेड़। फोन पर और 'नखराली बॉस' कहे जाने वाले फिल्म में सटीक रूप से चित्रित किए गए थे।
स्थान और डिज़ाइन.
स्कॉट ने संयुक्त अरब अमीरात में दुबई में फिल्म करने की मांग की, लेकिन महासंघ के राष्ट्रीय मीडिया परिषद ने स्क्रिप्ट की राजनीतिक संवेदनशील प्रकृति के कारण निर्देशक की अनुमति से इनकार कर दिया। परिणामस्वरूप, जॉर्डन में स्थापित दृश्यों को मोरक्को में फिल्माया गया था । यह शूटिंग सितंबर से दिसंबर 2007 तक पैंसठ दिनों से अधिक समय तक चली। यह संयुक्त राज्य अमेरिका और मोरक्को में फिल्माया गया था, जहां दस अलग-अलग देशों में सेट दृश्य फिल्माए गए थे। 5 सितंबर, 2007 को ईस्टर्न मार्केट, वाशिंगटन, डीसी में फिल्मांकन शुरू हुआ प्रैक्टिकल स्थानों का उपयोग पूरे भर में किया गया; कैपिटल हिल पड़ोस का एक हिस्सा एक दस-पंद्रह-सेकंड के कार बम विस्फोट के लिए फिल्म बनाने के लिए एक विंट्री एम्स्टर्डम से मिलता-जुलता था। लैंगले, वर्जीनिया में सीआईए मुख्यालय में सेट दृश्य को गेथर्सबर्ग, मैरीलैंड में "नेशनल जियोग्राफिक" कार्यालयों में फिल्माया गया; दोनों इमारतों को वुडलैंड में स्थापित किया गया था और "यह स्थापत्य शैली के मामले में समान था ...", आर्थर मैक्स, उत्पादन डिजाइनर ने कहा, "हमें कई खाली फर्श दिए गए थे।" बाल्टीमोर में स्थान मैनचेस्टर, इंग्लैंड और म्यूनिख, जर्मनी के लिए भी खड़े थे, हालांकि फिल्म के अंतिम कट में म्यूनिख में कोई दृश्य नहीं था।
उत्पादन मोरक्को चला गया, जहां स्कॉट, मैक्स और अलेक्जेंडर विट, सिनेमैटोग्राफर ने पहले कई बार फिल्माया था। उनके पिछले अनुभव का मतलब था कि वे "रेगिस्तान में हर पत्थर को जानते हैं" और उन्हें कई स्थानों तक पहुंच की अनुमति दी गई थी, जिसमें वित्त मंत्रालय भी शामिल था, जिसे जॉर्डन के गुप्त सेवा मुख्यालय, कैसाब्लांका हवाई अड्डे और एक सैन्य हवाई क्षेत्र के रूप में तैयार किया गया था। रबात में बास्केटबॉल स्टेडियम को जॉर्डन में अमेरिकी दूतावास के रूप में इस्तेमाल किया गया था: स्टेडियम के अंदर एक सीआईए कार्यालय सेट बनाया गया था, जो कि पसंदीदा था क्योंकि इसके डिजाइन ने कैमरों को आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार के शूट करने की अनुमति दी थी, इस प्रकार पात्रों को लोगों और टैंक से गुजरते हुए दिखाया गया था सड़कों में। नौ सप्ताह की शूटिंग सीएलए स्टूडियोज और ऑउरज़ाज़ेट शहर के आसपास के रेगिस्तान में भी हुई।
संगीत.
फिल्म स्कोर मार्क स्ट्रेटेनफेल्ड द्वारा रचा गया था, जिसने अब तीन विशेषताओं के लिए रिडले स्कॉट के लिए संगीत तैयार किया है। उन्होंने वार्नर ब्रदर्स स्टूडियो में ईस्टवुड स्कोरिंग स्टेज में अपने स्कोर के ऑर्केस्ट्रा भाग को रिकॉर्ड किया। नोट ऑफ गन्स में फिल्म "इफ द वर्ल्ड" में एक गीत की उपस्थिति है, जो गन्स एन 'रोजेज द्वारा किया गया है, और उनके लंबे समय से विलंबित "चीनी डेमोक्रेसी" एल्बम से लिया गया है। ट्रैक अंत क्रेडिट की शुरुआत में खेलता है, लेकिन आधिकारिक फिल्म साउंडट्रैक में शामिल नहीं है। स्ट्रेइटेनफेल्ड ने "बर्ड्स आई" गीत पर माइक पैटन और सर्ज टैंकीयन के साथ सहयोग किया, जो विशेष रूप से फिल्म के संगीत स्कोर के लिए लिखा गया था। इसे साउंडट्रैक एल्बम में शामिल नहीं किया गया था, लेकिन एकल के रूप में अलग से जारी किया गया था।
रिलीज़.
यह फिल्म संयुक्त राज्य अमेरिका में 10 अक्टूबर 2008 को व्यावसायिक रूप से रिलीज़ हुई थी। टेलीविजन नेटवर्क TBS और टर्नर नेटवर्क टेलीविजन पर स्क्रीन करने के लिए फिल्म को टर्नर ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम द्वारा भी खरीदा गया है।
फिल्म को 30 सितंबर, 2008 को मिशिगन टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, और 2 अक्टूबर, 2008 को ड्यूक यूनिवर्सिटी, न्यूयॉर्क फिल्म अकादमी, यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड और यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया में प्रदर्शित किया गया था। इसे 3 अक्टूबर को वॉर्सेस्टर पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट, मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी, मिशिगन विश्वविद्यालय में, यूनिवर्सिटी ऑफ कैनसस, ईस्ट कैरोलिना यूनिवर्सिटी और शिकागो विश्वविद्यालय में 7 अक्टूबर को और कार्नेगी मेल्विन यूनिवर्सिटी, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में प्री-स्क्रीन किया गया था।, Rensselaer पॉलिटेक्निक संस्थान, बफ़ेलो विश्वविद्यालय, कोलंबिया विश्वविद्यालय, जेम्स मैडिसन विश्वविद्यालय, सिरैक्यूज़ विश्वविद्यालय, कोलोराडो विश्वविद्यालय, वाशिंगटन विश्वविद्यालय, और जॉर्जिया दक्षिणी विश्वविद्यालय 9 अक्टूबर को।
वार्नर होम वीडियो ने 17 फरवरी, 2009 को डीवीडी पर "बॉडी ऑफ लाइज़" जारी किया। एकल-डिस्क क्षेत्र एक रिलीज में अंग्रेजी, फ्रेंच और स्पेनिश में सराउंड साउंड और उपशीर्षक शामिल थे; दो-डिस्क विशेष संस्करण में निर्देशक, पटकथा लेखक और मूल उपन्यास लेखक द्वारा टिप्पणियां, और पर्दे के वृत्तचित्र के पीछे शामिल थे; ब्लू-रे संस्करण में फिल्म के विषयों पर अतिरिक्त टिप्पणी भी शामिल थी।
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अस्पताल जहाज. एक अस्पताल जहाज एक अस्थायी चिकित्सा उपचार सुविधा या अस्पताल के रूप में प्राथमिक कार्य के लिए नामित एक जहाज है । यह अधिकांश विभिन्न देशों के सैन्य बलों (ज्यादातर नौसेनाओं ) द्वारा संचालित होते हैं, क्योंकि उनका इरादा युद्ध क्षेत्रों में या उसके निकट उपयोग करने का होता है। उन्नीसवीं शताब्दी में निरर्थक युद्धपोतों को नाविकों के लिए मूर्ड अस्पतालों के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
द्वितीय जिनेवा कन्वेंशन अस्पताल के जहाजों पर सैन्य हमलों को प्रतिबंधित करता है, हालांकि जुझारू बलों के पास निरीक्षण के अधिकार हैं और वे घायल दुश्मन रोगियों को युद्ध बंदी के रूप में ले सकते हैं।
इतिहास.
अस्पताल के जहाज संभवतः प्राचीन काल से मौजूद है। एथेनियन नेवी में "थेरेपिया" नाम का एक जहाज था, और रोमन नेवी के पास "अस्कुलेपियस" नाम का एक जहाज था, उनके नाम से संकेत मिलता है कि वे अस्पताल के जहाज रहे होंगे।
सबसे पहला ब्रिटिश अस्पताल जहाज "गुडविल" हो सकता है, जो 1608 में भूमध्यसागर में एक रॉयल नेवी स्क्वाड्रन के साथ था और अन्य जहाजों से भेजे गए बीमार लोगों को घर पर रखने के लिए इस्तेमाल किया गया था। हालांकि चिकित्सा देखभाल में यह प्रयोग अल्पकालिक था, जिसके साथ "सद्भावना" को एक वर्ष के भीतर अन्य कार्यों के लिए सौंपा गया था और उसके पास केवल पोर्टल्स को पीछे छोड़ दिया गया था। यह सत्रहवीं शताब्दी के मध्य तक नहीं था कि किसी भी रॉयल नेवी जहाजों को औपचारिक रूप से अस्पताल के जहाजों के रूप में नामित किया गया था, और फिर पूरे बेड़े में केवल दो ऐसे जहाज थे। इन्हें या तो मर्चेंट शिप या बुजुर्गों को छठी दर पर किराए पर लिया गया था, जिसमें आंतरिक बल्कहेड को अधिक कमरे बनाने के लिए हटा दिया गया था, और आंतरिक वेंटिलेशन को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त बंदरगाहों को डेक और पतवार के माध्यम से काट दिया गया था।
अपने चालक दल के अलावा, इन सत्रहवीं शताब्दी के अस्पताल जहाजों में एक सर्जन और चार सर्जन के सहायक को नियुक्त किया गया था। चिकित्सा आपूर्ति का मानक मुद्दा पट्टियाँ, साबुन, सूई और बेडपैन थे । मरीजों को आराम करने के लिए एक बिस्तर या गलीचा, और एक साफ जोड़ी चादर की दी गईं। ये शुरुआती अस्पताल जहाज घायलों के बजाय बीमारों की देखभाल के लिए थे, रोगियों को उनके लक्षणों के अनुसार और संक्रामक मामलों को कैनवस की शीट के पीछे सामान्य आबादी से अलग किए गए। भोजन की गुणवत्ता बहुत खराब थी। 1690 के दशक में "सियाम" के सर्जन ने शिकायत की कि मांस सड़ा हुआ था, बिस्कुट में घुन लगा हुआ और कड़वा था, और रोटी इतनी सख्त थी कि उससे मरीजों के मुंह से त्वचा अलग हो जाती थी।
ज़मीन पर लड़ रहे घायल सैनिकों के इलाज के लिए अस्पताल के जहाजों का भी इस्तेमाल किया गया। इसका एक प्रारंभिक उदाहरण 1683 में इंग्लिश टैंगियर को खाली करने के लिए एक अंग्रेजी ऑपरेशन के दौरान हुआ था। इस निकासी का एक लेखा, एक प्रत्यक्षदर्शी सैमुएल पेप्सिस द्वारा लिखा गया था। मुख्य चिंताओं में से एक था बीमार सैनिकों की निकासी "और कई परिवारों और उनके प्रभावों को बंद किया जाना था"। अस्पताल के जहाज "यूनिटी" और "वेलकम" ने इंग्लैंड के लिए 18 अक्टूबर 1683 को 114 अमान्य सैनिकों और 104 महिलाओं और बच्चों के साथ रवाना हुआ, जो 14 दिसंबर 1683 को डाउन पहुंचा था।
रॉयल नेवी अस्पताल के जहाजों पर सवार चिकित्सा कर्मियों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ाई गई थी, 1703 में जारी किए गए नियमों के अनुसार, प्रत्येक पोत को सर्जिकल असिस्टेंट और चार वॉशरोमेन काम करने के लिए छह भूस्वामियों की आवश्यकता होती थी। 1705 के संशोधन में अतिरिक्त पांच पुरुष नर्सों को प्रदान किया गया था, और उस समय के अपेक्षित सुझाव देते हैं कि प्रति मरीज चादरें की संख्या एक से दो जोड़े तक बढ़ाई गई थी। 8 दिसंबर 1798 को, एक युद्धपोत के रूप में सेवा के लिए अयोग्य, HMS " जीत" को घायल फ्रांसीसी और युद्ध के स्पेनिश कैदियों को पकड़ने के लिए एक अस्पताल जहाज में परिवर्तित करने का आदेश दिया गया था। 1798 में एडवर्ड होस्टेड के अनुसार, दो बड़े अस्पताल के जहाजों (जिसे लाज़रेटोस भी कहा जाता है), (जो कि चालीस-चालीस बंदूक जहाजों के बचे हुए पतवार थे) को केंट के हैल्स्टो क्रीक में मूर किया गया था । क्रीक नदी मेडवे और टेम्स नदी से एक इनलेट है। इन जहाजों के चालक दल ने इंग्लैंड आने वाले जहाजों को देखा, जिन्हें देश को प्लेग सहित संक्रामक रोगों से बचाने के लिए संगरोध के तहत क्रीक में रहने के लिए मजबूर किया गया।
1821 से 1870 तक नाविक के अस्पताल सोसायटी प्रदान की एचएमएस ग्रेम्पस, एचएमएस ड्रेडनॉट और एचएमएस "कैलेडोनिया" लगातार अस्पताल में बंधा हुआ जहाजों के रूप में (बाद "ड्रेडनॉट)" डेपटफॉरड लंदन में। 1866 में एचएमएस हमादरीड को कार्डिफ में एक सीमेन अस्पताल के रूप में मौर किया गया था, जिसे 1905 में रॉयल हमाद्रीड सीमेन अस्पताल द्वारा बदल दिया गया था। अन्य निरर्थक युद्धपोतों को युद्ध के दोषियों और कैदियों के लिए अस्पतालों के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
आधुनिक अस्पताल के जहाज.
शाही नौसेना द्वारा अस्पताल के जहाजों के उपयोग का संस्थागतकरण उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के दौरान हुआ। स्वास्थ्य सैनिकों के लिए समय पर उपलब्ध चिकित्सा प्रावधान के मानक से, अस्पताल के जहाजों आम तौर पर सेवा और स्वच्छता के अपने मानक में बेहतर थे । यह 1850 के दशक में क्रीमियन युद्ध के दौरान था कि आधुनिक अस्पताल जहाज उभरने लगे । क्रिमियन प्रायद्वीप पर लड़ रही ब्रिटिश सेनाओं के लिए उपलब्ध एकमात्र सैन्य अस्पताल डार्डानेल्स के पास स्कूटरी में था । सेवस्तोपोल की घेराबंदी के दौरान, लगभग 15,000 घायल सैनिकों को अस्पताल के परिवर्तित जहाजों की एक स्क्वाड्रन द्वारा बालाक्लाव में बंदरगाह से वहां ले जाया गया था।
वास्तविक चिकित्सा सुविधाओं से लैस होने वाले पहले जहाज स्टीमरशिप hms "मेलबर्न" और एचएमएस "मॉरीशस" थे। इन अस्पतालों में मेडिकल स्टाफ कोर की चौकीदारी की गई थी और 1860 में चीन में ब्रिटिश अभियान को सेवाएं प्रदान की थीं। जहाजों रोगियों के लिए अपेक्षाकृत विशाल आवास प्रदान की है और एक ऑपरेटिंग थिएटर से सुसज्जित थे । एक अस्पताल जहाज का एक और प्रारंभिक उदाहरण 1860 के दशक में यूएसएस " रेड रोवर" था, जिसने अमेरिकी गृह युद्ध के दौरान दोनों पक्षों के घायल सैनिकों को सहायता प्रदान की।
रूसी-तुर्की युद्ध (1877-1878) के दौरान, ब्रिटिश रेड क्रॉस ने एक स्टील-हल्लेदार जहाज की आपूर्ति की, जो एंटीसेप्सिसके लिए क्लोरोफॉर्म और अन्य निश्चेतक और कार्बोलिक एसिड सहित आधुनिक सर्जरी उपकरणों से लैस था। इसी तरह के जहाजों ने स्पेनिश और अमेरिकी युद्ध के दौरान मिस्र और सहायता प्राप्त अमेरिकी कर्मियों के 1882 आक्रमण के साथ।
रुसो-जापानी युद्ध (1904–05) में दोनों पक्षों द्वारा अस्पताल के जहाजों का उपयोग किया गया था। यह रूसी अस्पताल के जहाज "Orel" के जापानी द्वारा देखा गया था, नियमों के अनुसार सही ढंग से प्रकाशित किया गया था, जिससे त्सुशिमा की निर्णायक नौसेना लड़ाई हुई थी । लड़ाई के बाद जापानियों द्वारा युद्ध के पुरस्कार के रूप में "Orel" को बरकरार रखा गया था।
विश्व युद्ध.
प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, अस्पताल के जहाजों का पहली बार बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया था। कई यात्री जहाजों को अस्पताल के जहाजों के रूप में उपयोग करने के लिए परिवर्तित किया गया था। RMS Aquitania और HMHS ब्रिटानिक इस क्षमता में सेवा करने वाले जहाजों के दो प्रसिद्ध उदाहरण थे। प्रथम विश्व युद्ध के अंत तक, ब्रिटिश रॉयल नेवी के पास सेवा में 77 ऐसे जहाज थे। गैलीपोली अभियान के दौरान, मिस्र में 100,000 से अधिक घायल कर्मियों को निकालने के लिए अस्पताल के जहाजों का उपयोग किया गया था ।
कनाडा ने दोनों विश्व युद्धों में अस्पताल के जहाजों का संचालन किया। प्रथम विश्व युद्ध में इन एसएस "Letitia" (प्रथम) और शामिल HMHS "Llandovery Castle", एक जर्मन यू-बोट द्वारा जान-बूझकर डुबाने वाले के रूप से चिह्नित किया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध में, कनाडा ने अस्पताल के जहाज RMS लेडी नेल्सन और एसएस लेटिटिया (II) संचालन किया।
अमेरिकी नौसेना में पहला जानबूझकर निर्मित अस्पताल जहाज USS Relief था जो ९ २१ में कमीशन की गई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका की नौसेना और सेना दोनों ने अलग-अलग उद्देश्यों के साथ अस्पताल के जहाजों का संचालन किया। नौसेना अस्पताल के जहाज पूरी तरह से सुसज्जित अस्पताल थे जिन्हें युद्ध के मैदान से सीधे हताहत होने के लिए डिज़ाइन किया गया था और फ्रंट लाइन मेडिकल टीमों के लिए उपस्कर सहायता प्रदान करने के लिए आपूर्ति की गई थी। सेना के अस्पताल के जहाज अनिवार्य रूप से अस्पताल परिवहन थे और मरीजों को आगे के क्षेत्र से निकालने के लिए सुसज्जित थे। सेना के अस्पतालों को पीछे के क्षेत्र के अस्पतालों या उन लोगों से संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थानांतरित किया गया था और बड़ी संख्या में प्रत्यक्ष युद्ध हताहतों को संभालने के लिए सुसज्जित या कर्मचारी नहीं थे। नौसेना अस्पताल के जहाजों में से तीन, USS आराम, USS होप, और USS दया, अन्य नौसेना अस्पताल के जहाजों से कम विस्तृत रूप से सुसज्जित थे, जो चिकित्सकीय रूप से सेना के चिकित्सा कर्मियों द्वारा नियुक्त किए गए थे और सेना के मॉडल के उद्देश्य से समान थे।
अंतिम ब्रिटिश शाही नौका, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद HMY ब्रिटानिया, इस रूप से एक तरह से निर्माण किया गया था, ताकि युद्ध के समय में जहाज को आसानी से अस्पताल के जहाज में परिवर्तित किया जा सके। अपनी सेवा से निर्वित होने के बाद, पीटर हेनेसी ने पाया कि यह एक कवर स्टोरी थी: उसकी वास्तविक भूमिका परमाणु हथियारों से क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय की शरणस्थल के रूप में रही होगी, जो पश्चिमी स्कॉटलैंड के लोच ( फेजर्ड ) के बीच छिपी हुई थी।
लुन-क्लास एकक्रानोप्लान के विकास को 297नॉट (550 किमी/घंटा, 341.8 मील प्रति घंटे) की गति से किसी भी महासागर या तटीय स्थान पर तेजी से तैनाती के लिए मोबाइल फील्ड अस्पताल के रूप में उपयोग के लिए नियोजित किया गया था । इस मॉडल, "स्पाटेल"पर काम 90% पूरा होगया था, लेकिन सोवियत सैन्य वित्तपोषण बंद हो गया और यह कभी पूरा नहीं हुआ।
कुछ अस्पताल के जहाज, जैसे SS "होप" और "एराफांज़ा डेल मार", नागरिक एजेंसियों से संबंधित हैं, किसी भी नौसेना का हिस्सा नहीं हैं।
अंतरराष्ट्रीय कानून.
अस्पताल के जहाजों को 1907 के हेग कन्वेंशन एक्स के तहत कवर किया गया था । हेग कन्वेंशन एक्स के अनुच्छेद चार ने एक अस्पताल जहाज के लिए प्रतिबंधों की रूपरेखा प्रस्तुत की:
समुद्र में सशस्त्र संघर्ष के लिए लागू अंतर्राष्ट्रीय कानून पर सैन रेमो मैनुअल के अनुसार, कानूनी प्रतिबंधों का उल्लंघन करने वाले अस्पताल जहाज को विधिवत चेतावनी दी जानी चाहिए और उसका पालन करने के लिए उचित समय सीमा दी जानी चाहिए। यदि अस्पताल का जहाज प्रतिबंधों का उल्लंघन करता रहता है, तो एक जुझारू व्यक्ति कानूनी रूप से इसे पकड़ने या अनुपालन को लागू करने के लिए अन्य साधन लेने का हकदार है। एक गैर-अनुपालन अस्पताल के जहाज को केवल निम्नलिखित शर्तों के तहत निकाल दिया जा सकता है:
अन्य सभी परिस्थितियों में, अस्पताल के जहाज पर हमला करना युद्ध अपराध है ।
आधुनिक अस्पताल जहाजों में बड़े प्रदर्शित लाल क्रॉस या रेड अर्द्धचंद्र होते हैं यह दर्शाते है कि जिनेवा कन्वेंशन के तहत इन जहाजों को युद्ध के कानूनों के अनुसार संरक्षण मिला है। फिर भी, चिह्नित पोत हमले से पूरी तरह से मुक्त नहीं हुए हैं। अस्पताल जहाजों जानबूझ कर युद्ध के समय के दौरान हमला किया के उल्लेखनीय उदाहरण हैं HMHS "Lladovery castle" 1915 में, सोविएत अस्पताल जहाज 941 में, और AHS "centaur" 1943 में।
अन्य जलपोत अस्पताल.
नौसेना जहाजों, विशेष रूप से बड़े जहाजों जैसे कि विमान वाहक और उभयचर हमला जहाजों के लिए ऑन-बोर्ड अस्पताल होना आम है। हालांकि, वे पोत की समग्र क्षमता का केवल एक छोटा सा हिस्सा हैं, और मुख्य रूप से जहाज के चालक दल और इसकी उभयचर बलों (और कभी-कभी राहत मिशन के लिए) के लिए उपयोग किया जाता है। वे "अस्पताल के जहाज" के रूप में योग्य नहीं हैं, क्योंकि वे चिह्नित नहीं हैं और इस तरह के रूप में नामित हैं, और सशस्त्र जहाजों के रूप में वे अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अस्पताल के जहाज के रूप में सुरक्षा से अयोग्य हैं। विभिन्न नौसेनाओं के इन जहाजों के उदाहरणों में शामिल हैं;
अमेरिकी नौसेना के जहाजों के कई वर्ग ऑन-बोर्ड अस्पतालों से सुसज्जित हैं;
संदर्भ.
इस लेख में अमेरिकी नौसैनिक लड़ जहाजों के सार्वजनिक डोमेन शब्दकोश से पाठ को शामिल किया गया है । यहां एंट्री मिल सकती है। .
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सर्जियो लोबेरा. सर्जियो लोबेरा रोड्रिग्ज (जन्म 16 जनवरी 1977) एक स्पेनिश फ़ुटबॉल प्रबंधक है।
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मियाँ असग़र हुसैन देबन्दी. " मियां सैय्यद असग़र हुसैन " (16 अक्टूबर 1877 - 8 जनवरी 1945)एक समकालीन भारतीय सुन्नी इस्लाम इस्लामिक विद्वान जो देवबन्द इस्लामी विचार के स्कूल से थे | वह हाजी इमदादुल्लाह मुहाजिर मक्की और शायखुल हिंद मौलाना महमूद-उल-हसन के शिष्य थे।
पारिवारिक पृष्ठभूमि.
मियां असगर हुसैन के पूर्वज बगदाद से भारत आए थे। उन्हें अब्दुल कादिर जिलानी से उतारा गया है। शाहजहाँ के काल में, सैय्यद गुलाम रसूल अपने परिवार के साथ भारत चले गए थे। उन्हें देवबंद की शाही मस्जिद में इमामत और ख़िताब सौंपा गया था। उनके दो बेटे थे, सैय्यद गुलाम नबी और सैय्यद गुलाम अली। दोनों भाइयों की शादी सैय्यद शाह अमीरुल्लाह की बेटियों के साथ हुई थी। सैय्यद गुलाम अली की तीन बेटियाँ और दो बेटे थे। उनके बड़े बेटे सैय्यद आलम मीर मियाँ असगर हुसैन के दादा बनते हैं। सैय्यद आलम मीर की शादी सय्यद शाह हाफ़िज़ुल्लाह की बेटी 'अज़ीमुन निसा' के साथ हुई थी। उनकी एक बेटी " वजीह-उन-निसा " और बेटा " शाह सैय्यद मुहम्मद हसन " है जो मियां असगर हुसैन के पिता बनते हैं। सैय्यद मुहम्मद हसन ने दो बार शादी की, पहले 'मरियम-उन-निसा' के साथ, जिन्होंने उन्हें एक बेटा " सैय्यद खुर्शीद " और एक बेटी " मासूम-उन-निसा " से बोर किया; " मरियम-उन-निसा " के निधन के बाद, मुहम्मद हसन ने अपनी बहन की शादी " नसीब-अन-निसा "से की जिसने उन्हें एक बेटा दिया, " असगर हुसैन "..
जन्म और शिक्षा.
जन्म.
मियाँ असग़र हुसैन का जन्म 16 अक्टूबर 1877 को देवबंद में सैय्यद मुहम्मद हसन और नसीबुन निसा बिन सैय्यद मंसूब अली से हुआ था।
नाम और वंश.
उनका इस्मत (दिया गया नाम) है: सैय्यद असग़र हुसैन इब्न सय्यद शाह मुहम्मद हसन इब्न सय्यद शाह आलम मीर इबाद सय्यद ग़ुलाम अली इब्न सय्यद ग़ुलाम रसूल बग़दादी इब्न सय्यद शाह फ़ाक़ुल शाह अज़म सानी इब्न सय्यद नाज़ मुहम्मद इब्न सय्यद सुल्तान मुहम्मद इब्न सय्यद अज़म मुहम्मद इब्न सय्यद अबू मुहम्मद इब्न सय्यद कुतबुद्दीन इब्न सय्यद बहाउद्दीन इब्न सय्यद जमालुद्दीन इब्न सय्यद कुतुबुद्दीन इब्न सय्यद दाऊद इब्न मुहीउद्दीन अबू अब्दुल्ला इब्न सय्यद अबू सालेह नस्र इब्न सय्यद अब्दुर रज़्ज़ाक इब्न अब्दुल कादिर जिलानी।
शिक्षा.
जब वह 8 वर्ष का हो गया, तो उसने अपने सैय्यद मुहम्मद अब्दुल्ला उर्फ मियांजी मुन्ने शाह और अपने पिता से कुरान का अध्ययन किया और फिर उससे फारसी का अध्ययन शुरू किया। बाद में उन्हें दारुल उलूम देवबंद में दाखिला दिया गया। उन्होंने फारसी वर्ग के साथ जारी रखा और मुहम्मद शफी देवबंदी के पिता मौलाना मुहम्मद यासीन से फारसी का अध्ययन किया। उन्होंने मौलाना मंजूर अहमद से गणित का अध्ययन किया। उन्होंने फ़ारसी की कक्षा प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की और जल्द ही मुवत्ता इमाम मलिक को एक मानद उपहार के रूप में प्राप्त किया। जैसा कि मियां असगर 17 या 18 साल के हो गए और दारुल उलूम देवबंद में अरबी कक्षाओं में पहुँचे, 20 सितंबर 1894 को उनके पिता का निधन हो गया। उन्होंने लगभग एक वर्ष के लिए अपनी पढ़ाई बंद कर दी और अपने पैतृक मदरसे में पढ़ाने लगे। शायखुल हिंद के अनुरोध पर, मियां असगर ने दारुल उलूम देवबंद में 1 अप्रैल 1896 को फिर से प्रवेश किया और अरबी कक्षाओं के साथ जारी रखा। उन्होंने शायखुल हिंद से साहेब बुखारी, साहेह मुस्लिम, जामी तिर्मिदी और सुनन अबू दाऊद का अध्ययन किया। उनके अन्य शिक्षकों में मुफ़्ती अज़ीज़ुर रहमान और मौलाना ग़ुलाम रसूल बाग़वी शामिल हैं। उन्होंने 1320 एएच में स्नातक किया और शायखुल हिंद और मौलाना मुहम्मद अहमद नानोटवी से प्रमाण पत्र के साथ सम्मानित किया गया।
व्यवसाय.
दारुल उलूम देवबंद से स्नातक होने के बाद, उन्होंने दारुल उलूम के कार्यालय विभाग में एक वर्ष से अधिक समय तक काम किया। फिर उनके शिक्षकों शेखुल हिंद और मुहम्मद अहमद नैनोटवी ने उन्हें अटाला मस्जिद, जौनपुर के मदरसे में हेड-टीचर के पद पर भेजा और उन्होंने वहाँ 7 वर्षों तक सेवा की। इस बीच, 1327 AH में, उन्होंने 1908 में सराय मीर, आज़मगढ़ में " मदरसतुल इस्लाह 'की आधारशिला रखी। उन्हें बुलाया गया दारुल उलूम देवबंद और दारुल उलूम के 'अल-कासिम' पत्रिका के सह-संपादकीय के साथ सौंपा गया था, जबकि संपादक मौलाना हबीबुर रहमान थे। उन्हें दारुल उलूम देवबंद में सुनन अबू दाऊद का शिक्षण सौंपा गया और उन्होंने जलालीन और दुर-ए-मुख्तार की तरह तफ़सीर और फ़िक़ह की किताबें भी सिखाईं। उनके उल्लेखनीय छात्रों में शामिल हैं मुहम्मद शफी देवबंदी , मनज़िर अहसान गिलानी। और मुफ्ती नसीम अहमद फरीदी। उन्होंने अपने पैतृक मदरसे को फिर से शुरू किया जो उनके पिता की मृत्यु के बाद से बंद हो गया था। मदरसा बाद में उनके बेटे " हाजी सैय्यद बिलाल हुसैन मियां " (9 फरवरी 1990) की देखरेख में आया और अब उन्हें 'मदरसा असग़रिया नदीम' के रूप में जाना जाता है, जबकि उनका ऐतिहासिक नाम " दारुल मुसाफिरें, मदरसा तलेमुल कुरान है। "।
साहित्यिक कार्य.
मौलाना असगर हुसैन ने उर्दू भाषा में लगभग तीस बड़ी और छोटी किताबें लिखी हैं। उनकी कुछ उल्लेखनीय किताबें हैं:
शादी और पारिवारिक जीवन.
दारुल उलूम देवबंद के छात्र दिनों के दौरान मियां असगर हुसैन ने सैय्यद मुश्ताक हुसैन की बेटी से शादी की। उन्होंने अपने दो बेटों " सैय्यद मियां अख्तर हुसैन ", " सैय्यद मियां बिलाल हुसैन " और एक बेटी " फहमीदा " को जन्म दिया।
मौत.
मियां असगर हुसैन का निधन 8 जनवरी 1945 (इस्लामिक तारीख 22 मुहर्रम, 1364 AH) को कार्डियक अरेस्ट के कारण हुआ था। उन्हें रैंडर, सूरत में दफनाया जाता है।
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दिव्या उन्नी. दिव्या उन्नी भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना हैं जो भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी और मोहिनीअट्टम जैसे नृत्य के विभिन्न रूपों को सिखाती हैं। वह अभिनेत्री भी हैं, जो मुख्य रूप से मलयालम में 50 से अधिक फिल्मों में दिखाई दी हैं।
जीवनी.
दिव्या उन्नी का जन्म भारत के केरल के कोच्चि में हुआ था। उनकी माता उमा देवी संस्कृत की शिक्षिका हैं और भवन्स विद्या मंदिर, गिरिनगर में संस्कृत विभाग की प्रमुख हैं। उनकी एक बहन विद्या उन्नी हैं, जो दो मलयालम फिल्मों में मुख्य भूमिका में काम कर चुकी हैं। दिव्या ने अपनी स्कूली शिक्षा भवन के विद्या मंदिर, गिरिनगर में पूरी की।
दिव्या ने तीन साल की उम्र में भरतनाट्यम नृत्य प्रशिक्षण शुरू किया। उसके बाद उन्हें कुचीपुड़ी और मोहिनीअट्टम में प्रशिक्षित किया गया। भारत के प्रमुख टेलीविजन चैनल दूरदर्शन पर उन्होंने भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, मोहिनीअट्टम और भारतीय लोक नृत्य जैसे कई भारतीय नृत्य कला-रूपों को प्रस्तुत किया है। वह विभिन्न भारतीय नृत्य समारोहों और उत्तरी अमेरिका, यूरोप और फारस की खाड़ी के देशों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन करती हैं।
पश्चिम में भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने की खोज में, दिव्या संयुक्त राज्य अमेरिका में छोटे बच्चों की कलात्मक प्रतिभा विकसित कर रही है, जहां वह रहती है। इस लक्ष्य के साथ, वह वर्तमान में ह्यूस्टन, टेक्सास, संयुक्त राज्य अमेरिका में श्रीपादम स्कूल ऑफ आर्ट्स की निदेशक हैं।
दिव्या ने मलयालम, तमिल, तेलुगु और कन्नड़ में 50 से अधिक फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाई है। इसके बाद, उन्होंने अभिनेता मोहनलाल, ममूटी, सुरेश गोपी और जयराम के साथ काम किया।
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16 ब्लॉक्स. 16 ब्लॉक्स रिचर्ड डोनर द्वारा निर्देशित और ब्रूस विलिस, मोस डेफ और डेविड मोर्स द्वारा अभिनीत 2006 की अमेरिकी एक्शन थ्रिलर फिल्म है। फिल्म रियल टाइम नैरेशन विधि में सामने आती है। यह डोनर का अंतिम निर्देशन का प्रयास है, क्योंकि उसी वर्ष वह सेवानिवृत्त हो गए थे।
संक्षेप.
एक उम्र बढ़ने वाले शराबी पुलिस को 16 ब्लॉक दूर एक अदालत में एक गवाह को पुलिस हिरासत से भागने का काम सौंपा जाता है। हालांकि, काम पर अराजक ताकतें हैं जो उन्हें एक टुकड़े में बनाने से रोकती हैं।
बॉक्स ऑफिस.
वार्नर ब्रदर्स द्वारा रिलीज़ की गई फिल्म संयुक्त राज्य अमेरिका में 3 मार्च 2006 को खुली।
अपने शुरुआती सप्ताहांत में, फिल्म ने $ 12.7 मिलियन की कमाई की, जो सप्ताहांत की दूसरी सबसे अधिक कमाई वाली फिल्म थी। 15 मई, 2006 की समापन तिथि के अनुसार, फिल्म ने यूएस बॉक्स ऑफिस पर कुल $ 36.895 मिलियन की कमाई की। इसने दुनिया भर में $ 65.6 मिलियन कमाए। बॉक्स ऑफिस मोजो के अनुसार, उत्पादन लागत लगभग $ 55 मिलियन थी। इस फिल्म ने रेंटल पर $ 51.53 मिलियन कमाए, और लगातार 17 हफ्तों तक डीवीडी टॉप 50 चार्ट्स पर बनी रही।
रिसेप्शन.
रॉटन टोमाटो द्वारा एकत्र की गई 161 समीक्षाओं के आधार पर, फिल्म को आलोचकों से 56% अनुमोदन रेटिंग मिली, जिसका औसत स्कोर 5.9 / 10 है। साइट की सर्वसम्मति में लिखा है: "ब्रूस विलिस और मॉस डेफ के दमदार प्रदर्शन के बावजूद, "16 ब्लॉक" बमुश्किल एक्शन जॉनर में एक दुकानदार की प्रविष्टि से ऊपर उठते हैं।" मेटाक्रिटिक, जो मुख्य मुख्यधारा के आलोचकों से समीक्षा के आधार पर 0–100 की श्रेणी में रेटिंग प्रदान करता है, उसने 34 के आधार पर 63 के स्कोर की गणना की, जो "आम तौर पर अनुकूल समीक्षा" को इंगित करता है। CinemaScore द्वारा प्रदत्त ऑडियंस ने फिल्म को ए + से एफ पैमाने पर "बी +" का औसत ग्रेड दिया।
"द विलेज वॉयस के" माइकल एटकिंसन ने टिप्पणी की कि "क्लिच जमीन पर मोटी आती है" और इसे "महाकाव्य प्रतीत होने की कोशिश करने वाली एक छोटी फिल्म, या एक फूला हुआ राक्षस दुबला दिखने की कोशिश कर रहा है।" "रोलिंग स्टोन के" पीटर ट्रैवर्स ने फिल्म को चार में से ढाई स्टार दिए और विलिस एंड मॉस डेफ को "एक भयानक टीम" कहा, "यह निष्कर्ष निकाला कि" जब तक रिचर्ड वेन्क की स्क्रिप्ट पात्रों को पक्की धारणा की ईंट की दीवार में ले जाती है, तब तक यह है। एक जंगली सवारी। " "शिकागो सन-टाइम्स के" आलोचक रोजर एबर्ट ने इसे चार में से तीन स्टार दिए और मोस डेफ की सराहना की "अपने अभिनय के प्रदर्शन के लिए जो एक एक्शन फिल्म में पूरी तरह से अप्रत्याशित है," फिल्म को कॉल करते हुए "एक पीछा तस्वीर जो एक वेग से आयोजित की जाती है, जो कि लगभग सही है एक मध्यम आयु वर्ग के शराबी। " "द बोस्टन ग्लोब के" वेस्ले मॉरिस ने फिल्म को बेहद पुराने ढंग से बताया, उसके निर्देशन के लिए डोनर की प्रशंसा की, लेकिन मौलिकता की कमी के लिए फिल्म की आलोचना करते हुए कहा कि यह क्लिंट ईस्टवुड द्वारा निर्देशित "द गौंटलेट" की रीमेक की तरह लगता है।
पुनर्निर्माण.
मई 2013 में, ओरिजिनल एंटरटेनमेंट ने "रेम्बो के" बॉलीवुड रीमेक, "द एक्सपेंडेबल्स", "16 ब्लॉक्स", "88 मिनट्स" और "ब्रुकलिन के सबसे अच्छे" प्रोडक्शन के लिए मिलेनियम फिल्म्स के साथ पांच-पिक्चर डील को सील करने की पुष्टि "की", "रेम्बो" और "द एक्सपेंडेबल्स के" लिए प्रोडक्शंस की शुरुआत के साथ। उस वर्ष का अंत।
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नटर डेम कॉलेज, ढाका. नटर डेम कॉलेज, ढाका () एक कैथोलिक महाविद्यालय है और साथ ही एक डिग्री कॉलेज, ढाका में स्थित है। 1949 में कांग्रेसी ऑफ होली क्रॉस नामक पुजारियों के एक समाज ने इसकी स्थापना की। एचएससी परीक्षा के परिणाम के अनुसार, इसे बांग्लादेश के सर्वश्रेष्ठ कॉलेजों में से एक माना जाता है।
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केरला साइबर वारियर्स. केरला साइबर वारियर्स एक भारतीय हैकिंग संगठन है जिसे आमतौर पर के.सी.डब्ल्यू के रूप में संक्षिप्त किया जाता है। संगठन की स्थापना 23 अक्टूबर 2015 को GH057_R007 द्वारा की गई थी।
इस संगठन का कुछ खास हैकिंग कार्य जैसे 2017 में,कुलभूषण जाधव के पाकिस्तान में इलाज के लिए (जवाबी कार्रवाई में) पाकिस्तान के विभिन्न ग्रामीण सरकारी वेबसाइटों की हैकिंग, जैसे कि पाकिस्तान के एकेडमी फॉर रूरल डेवलपमेंट को 2017 में हैक करना शामिल है। 2016 में, बांग्लादेशी क्रिकेट प्रशंसकों द्वारा भारतीय क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की एक रूपांतरित छवि निकाले जाने के बाद, केरल साइबर वारियर्स ने बांग्लादेश में विभिन्न वेबसाइटों को हैक कर लिया। इन वेबसाइटों में सरकारी वेबसाइटें भी शामिल थीं।
संग़ठन को 24 जनवरी 2018 को बंद कर दिया गया लेकिन 17 सदस्यों और 2 प्रवेशकों के साथ 8 अगस्त 2018 को वापस वे वापस आ गए।
साइबर हमलों की सूची.
30 जनवरी 2019 को, हिंदू महासभा ने महात्मा गांधी की हत्या को फिर से दर्ज किया और उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडित किया। इसके जवाब में, हिंदू महासभा की आधिकारिक वेबसाइट केरल साइबर वारियर्स द्वारा हैक कर ली गई थी। तथा अभी तक हैक ही है। As of now, it is still hacked.
के.सी.डब्ल्यू ने अगस्त 2018 में अखिल भारतीय हिंदू महासभा की वेबसाइट को भी हैक कर लिया, उन्होंने उसमे 'मसालेदार गाय (बीफ) की कढ़ी' की रेसिपी को समलित कर दिया।
यह संग़ठन पाकिस्तानी वेबसाइटों को हैक करके तथा उनमें हैशटैग #OP_PAK_CYBER_CYBER_SPACE के और घृणास्पद भाषण के साथ भारतीय वेबसाइटों को हैक करने के लिए पाकिस्तान हैकर्स की प्रतिक्रिया के रूप में इस्तेमाल किया। यह पे बैक ऑपरेशन उनके मुख्य मिशन में से एक था। इसके अलावा, वे हमेशा पाकिस्तानी वेबसाइटों पर बड़े पैमाने नज़र रखते हैं।
26 जनवरी को भारतीय स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त को भारतीय स्वतंत्रता दिवस की शुभकामना देने के लिए टीम कई दोषपूर्ण वेबसाइटों के साथ आती है, तथा 26 नवंबर को शहीद वीरों को याद करती है जिन्होंने मुंबई हमले में अपने प्राणों की आहुति दी थी। समूह ने 2000 से अधिक पाकिस्तान की सरकारी संगठनों, शैक्षिक वेबसाइटों को हैक करने का दावा किया।
25 नवंबर 2015 को, केरल साइबर वारियर्स ने प्रकाश प्राप्त करने के लिए फर्जी समाचार और पोर्नोग्राफ़ी से संबंधित सुर्खियाँ प्रकाशित करने के लिए एक क्षेत्रीय मीडिया वेबसाइट को हैक कर लिया। टीम के सदस्य ने दावा किया, कि उन्होंने प्रकाशित किए गए लेखों को हटा दिया है और मीडिया को चेतावनी दी है कि वे ध्यान देने के लिए किसी भी अधिक नकली कहानियों और पोर्नो संबंधित सुर्खियों को प्रकाशित न करें। हमले की सूचना बाद में वन इंडिया के एक मीडिया कॉल ने दी।
4 जुलाई, 2017 को केरल के एक पूर्व साइबर वॉरियर्स समूह के सदस्य ने पीडोफिलिया द्वारा चलाए गए "सुंदरी कुटीकल" (सुंदर बच्चे) नामक एक फेसबुक पेज को हैक कर लिया। हैकर ने, फिर मिशन नाम #OP_IN_SEX_RACKETS के साथ एक संदेश पोस्ट किया और उस व्यक्ति को उजागर किया जो पेज बनाने के पीछे था और एक वीडियो में पेज से प्राप्त चैट को दिखाया।
बॉयकॉट या बहिष्कार केरल एक भ्रामक सूचना का परिणाम है जो कि भारत के पशु कल्याण बोर्ड द्वारा फैलाई गई थी। जंगली कुत्तों के हमलों के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए, राज्य सरकार लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए मजबूर थी और जो लोग इस अफवाह को फैला रहे थे उन्हें भी नहीं पता कि केरल में वास्तव में क्या हो रहा था, लोग इन आवारा कुत्तों से कितनी बुरी तरह पीड़ित थे। यहां तक कि छोटे बच्चे भी शामिल थे जो ट्यूशन के बाद घर लौटते थे। सबसे बुरी बात यह थी कि ये अफवाहें जंगल की आग की तरह फैलती चली जा रही थी और नस्लीय नफरत की भावना दक्षिण भारत के खिलाफ विकसित हो रही है और राज्य को दुख में छोड़ती जा रही थी।
केरल साइबर वारियर्स ने #OP_BOYCOTTKERALA मिशन शुरू किया और कई फेसबुक प्रोफाइलों को हैक किया, जिन्होंने केरल के बारे में फर्जी आरोप और अभद्र भाषा, समाचार फैलाई थी। हैकर ने उनके वीडियो को अपने आधिकारिक फेसबुक पेज पर पोस्ट भी किया था।
केरल साइबर वारियर्स के अंदर के लोगो ने अशिष्ट तस्वीर शेयर करने वाले 1000 से अधिक फेसबुक पेज को हैक कर लिया तथा पेज का अधिकार भी ले लिया। उन्होंने उन लोगो के छिपे हुए मकशद को उजागर किया जो फेसबुक पर वेश्यावृत्ति का विज्ञापन कर रहा थे।
केरल के साइबर वारियर्स ने बांग्लादेश के गेंदबाज तस्कीन अहमद के एक प्रशंसक के द्वारा महेंद्र सिंह धोनी के तस्वीर से छेड-छाड़ करके ट्रोल करने के बाद, बांग्लादेशी सरकारी डोमेन सहित 20 से अधिक बांग्लादेश स्थित वेबसाइटों को हैक कर लिया है। केरल साइबर वारियर्स के चालक दल के सदस्यों ने "बांग्लादेश के नागरिकों को संदेश के साथ वेबसाइटों पर पोस्ट कर लिखा,
इसकी जानकारी बीबीसी और डेली मेल में दी गयी।
केरल साइबर वारियर्स ने एक स्कूल वेबसाइट को हैक कर लिया जिसमें उनके छात्र के साथ असमान व्यवहार किया गया। हैकर्स ने अपनी वेबसाइट पर हैशटैग #OP_Iququality के साथ एक संदेश छोड़ा, जिसमें कहा गया है,
भेदभाव बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।
केरल साइबर वारियर्स ने बॉबी चेम्मनुर की वेबसाइट को हैक कर लिया जब उसका स्टिंग ऑपरेशन वायरल हो रहा था। ज्वैलर्स की वेबसाइट सहित हैकरों ने उसकी 3 अन्य वेबसाइटों को भी हैक किया,यह उस वक्त हुआ जब मुख्यधारा के मीडिया ने उसे अपने ज्वैलर्स के विज्ञापनों के लिए नजर अंदाज कर दिया। संग़ठन ने अपनी वेबसाइट में उजागर वीडियो के साथ एक संदेश छोड़ा।
केरल साइबर वारियर्स ने #OP_Boycottkererala के बाद इस मिशन की शुरुआत की। टीम ने 15 से अधिक सक्रिय एस्कॉर्ट एजेंसियों की वेबसाइटों को नष्ट कर दिया, जो सेक्स रैकेट सेवा को बढ़ावा दे रही थी। उन्होंने उसे धमकी भी दी कहा,
इसके बाद वेबसाइट ऑफ़लाइन हो गईं और फिर ऑनलाइन नहीं आईं थी।
10 जनवरी 2017 को केरल साइबर वारियर्स ने जस्टिस फॉर जिष्णु प्रणॉय को प्रदर्शित करने के लिए नेहरू कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड रिसर्च सेंटर की आधिकारिक वेबसाइट को हैक कर लिया,जिष्णु प्रणॉय जो प्रथम वर्ष के बी.टेक के छात्र थे, नेहरू कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड रिसर्च के छात्रावास में फाँसी पर लटके पाए गए थे। हैकर ने एक संदेश छोड़ा,
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डिघिया. यह गांव उत्तर प्रदेश के जिला हरदोई ब्लाक हरियावा में स्थित है। 5 गांव की ग्राम पंचायत में स्थित एक मुख्य ग्राम है। यह गांव की राजनीति में विशेष स्थान रखता है।
यातायात.
रेल मार्ग द्वारा.
दिल्ली लखनऊ रेल मार्ग से साढे 350 किलोमीटर आगे हरदोई रेलवे स्टेशन पर उतरकर वहां से 16 किलोमीटर सकाहा की बस पकड़ कर सकाहा पहुंच जाते हैं। यहां से फिर 5 किलोमीटर टेंपो से खेरिया पहुंचकर इस गांव में पहुंचा जा सकता हैं।
बस द्वारा.
दिल्ली आनंद विहार से हरदोई जाने के लिए वाली बस है आराम से मिल जाती है इन बसों से आप हरदोई पोस्ट सकते हैं। फिर उपरोक्त बताए मार्ग के द्वारा इस गांव में पहुंचा जा सकता है।
जातीय समुदाय.
यहां पर सामान्यत है हिंदू धर्म और मुसलमान धर्म की सभी जातियां निवास करती हैं इनमें से मुख्य थे जातियां हैं। जैसे राजपूत, ब्राह्मण, राठौर, जाटव, पासी, यादव, पाल, धनगर,बघेल गड़रिया, इत्यादि।
निकटवर्ती बाजार.
यहां से सबसे नजदीक खेरिया है जो की दूरी 1 किलोमीटर है। दूसरा बाजार यहां का विजगवां है जो किइस गांव से 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यहां से लोग आसानी से अपना दैनिक जीवन में उपयोगी वस्तुओं का बाजार करते हैं।
शैक्षणिक संस्थान.
इस गांव में शिक्षा का प्रसार उच्चस्तरीय है। गांव गांव में ही ग्रामोदय इंटर कॉलेज व ग्रामोदय महाविद्यालय स्थित है।
रोजगार.
रोजगार के मामले में यह गांव काफी पिछड़ा हुआ है।रोजगार के लिए यहां के नौजवानों को परदेश जाना पड़ता है कहने का तात्पर्य दूसरे राज्यों में नौकरी करने के लिए जाना पड़ता है।
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किरकी छावनी. किरकी छावनी (Kirkee Cantonment) या खड़की (Khadki) भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे ज़िले में स्थित एक छावनी नगर है। यहाँ बॉम्बे सैपर्स का रेजिमेंटल सेंटर स्थित है।
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क्रिश्चियन नोडल. क्रिश्चियन जेसुज गोंजालेज नोडल (n)। काबोरका, सोनोरा, 11 जनवरी, 1999) एक मैक्सिकन गायक और गीतकार हैं । रिकॉर्ड लेबल फोनोविसा के तहत 2017 में रिलीज़ हुए उनके पहले एकल "एडिओस एमोर" को यूट्यूब पर 880 मिलियन से अधिक बार देखा गया है, जिसके साथ उन्हें मैक्सिको और संयुक्त राज्य में विभिन्न मीडिया में प्रसिद्धि के लिए लॉन्च किया गया था।
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पटियाला एवं पूर्वी पंजाब राज्य संघ. पेप्सू (अंग्रेजी: PEPSU, "Patiala and East Punjab States Union") से आता है। इसका मतलब है पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ। यह अंग्रेजों के अधीन पंजाब प्रांत का एक हिस्सा था, जो 1948 से 1956 तक भारत का एक प्रांत रहा था। यह आठ जिलों पटियाला, जींद, नाभा, फरीदकोट, कलसिया, मलेरकोटला, कपूरथला और नालागढ़ से मिलकर बना था। इसका गठन 15 जुलाई, 1948 को किया गया था और 1950 में यह भारत का एक प्रांत बन गया। इसकी राजधानी पटियाला थी और क्षेत्रफल 26,208 वर्ग किलोमीटर था, और शिमला, कसौली, कंडाघाट, धरमपुर और चैल इसका हिस्सा थे।
जब 1947 में अंग्रेजों ने भारत छोड़ा, तो पंजाब में कई रियासतें थीं, जिनमें प्रमुख थीं पटियाला, कपूरथला, जींद, फरीदकोट, मालेरकोटला, नालागढ़। पंजाब में अब दो राज्य थे: पंजाब और पेप्सू। पंजाबी क्षेत्र की बोली पंजाबी (गुरुमुखी लिपि) में अपनाई गई थी। पेप्सू में पंजाबी और हिंदी भाषी क्षेत्र थे। 13 जनवरी 1949 को, ज्ञानी सिंह ररेवाला पेप्सू के पहले मुख्यमंत्री बने और कर्नल राघीर सिंह 23 मई 1951 को दूसरे मुख्यमंत्री बने।
1 नवंबर, 1956 को पेप्सू प्रांत लगभग पूरी तरह नव-गठित पंजाब राज्य में विलय कर दिया गया।
पेप्सू का एक हिस्सा, जिसमें जींद के आसपास का दक्षिण-पूर्वी हिस्सा और नारनौल एन्क्लेव शामिल है, वर्तमान में हरियाणा राज्य में स्थित है, जो 1 नवंबर 1966 को पंजाब से अलग हुआ था। कुछ अन्य क्षेत्र जो पेप्सू से संबंधित थे, विशेष रूप से सोलन और नालागढ़, वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में स्थित है।
सब-डिविज़न.
1948 की शुरुआत में, पेप्सु राज्य को आठ जिलों में विभाजित किया गया था। जो इस प्रकार थे:
लेकिन 1953 में, जिलों की संख्या घटाकर पाँच कर दी गई जिसमें बरनाला को संगरूर और सोलन और फतेहगढ़ को पटियाला में मिला दिया गया। पेप्सू में चार लोकसभा क्षेत्र थे।
जनसांख्यिकी.
1951 की जनगणना के अनुसार, प्रांत की जनसंख्या 34,93,685 थी, जिसमें 19% आबादी शहरी थी और जनसंख्या घनत्व 133 प्रति वर्ग किमी था।
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भोपाल राज्य (१९४९-५६). भोपाल भारत का एक राज्य था, जिसका अस्तित्व 1949 से 1956 तक रहा था। यह राज्य भोपाल की रियासत से विकसित हुआ, और 1956 में मध्य प्रदेश बनाने के लिए पड़ोसी राज्यों के साथ विलय कर दिया गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शंकर दयाल शर्मा ने 1952 से 1956 तक भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।
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कच्छ राज्य. कच्छ राज्य 1947 से 1956 तक भारत के भीतर एक राज्य था। इसकी राजधानी भुज थी। वर्तमान समय का गुजरात का कच्छ जिला, कच्छ राज्य के क्षेत्र से ही बना है।
कच्छ की रियासत अंग्रेज शासन काल मे बड़ी रियासतों मे गिनी जाती थी। ये गुजरात राज्य के आधुनिक कच्छ ज़िले के क्षेत्र मे थी। इस रियासत का क्षेत्र फल १७,६१६ वर्ग मील था और आबादी ४८८,०२२ (१९०१ जनगणना के अनुसार)। कच्छ के शासक जडेजा राजपूत थे। कच्छ के शासक को १७ तोपों की सलामी का अधिकार था। १९४८ मे ये रियासत भारतीय संघ मे शामिल हो गयी।
इतिहास.
कच्छ रियासत से पहले एक राज्य था और इस की स्थापना ११४७ ई मे हुई थी।
कच्छ के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले राजा थे। उनका शासन 23 अगस्त 1866 को शुरू हुआ और 15 जनवरी 1942 तक चला।
कच्छ के अंतिम शासक श्री मदनसिंहजी थे, जिन्होने 26 जनवरी १९४८ से शासन शुरू किया। उसी वर्ष ४ मई को यह रियासत भारत में शामिल हो गयी।
अर्थव्यवस्था.
कच्छ रियासत से पहले एक राज्य था और इस की स्थापना ११४७ ई मे हुई थी।
कृषि कच्छ की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख क्षेत्र था। कुल कृषि भूमि 14.5 लाख एकड़ थी, जिसमें से 6 लाख एकड़ शासक की थी, जबकि शेष अन्य प्रमुखों की थी। बाजरा, दाल और कपास खरीफ की प्रमुख फसलें थीं। गेहूं, जौ और चना महत्वपूर्ण रबी फसलें थीं।
मुद्रा.
कच्छ की मुद्रा कोरी थी। यह 4.6 ग्राम वजन का एक चांदी का सिक्का था। 15 वीं शताब्दी के मध्य से 1948 तक, सिक्के का वजन लगभग समान था। कुछ अन्य रियासतों, जैसे कि नवानगर, पोरबंदर और जूनागढ़ की मुद्रा को भी कोरी कहा जाता था।
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त्रावणकोर-कोचीन. त्रावणकोर-कोचीन या तिरु-कोच्चि भारत का एक अल्पकालिक राज्य (1949-1956) था। इसे मूल रूप से संयुक्त राज्य त्रावणकोर और कोचीन कहा जाता था तथा इसे 1 जुलाई 1949 को दो पूर्व राज्यों त्रावणकोर और कोचीन के विलय से बनाया गया था, और तिरुवनंतपुरम को इसकी राजधानी। जनवरी 1950 में इसका नाम बदलकर त्रावणकोर-कोचीन राज्य कर दिया गया था।
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द मैकेनिक. द मैकेनिक एक 2011 की अमेरिकी एक्शन थ्रिलर फिल्म है, जो साइमन वेस्ट द्वारा निर्देशित है, जिसमें जेसन स्टैथम और बेन फोस्टर ने अभिनय किया है। लुईस जॉन कार्लिनो और रिचर्ड वेनक द्वारा लिखित, यह उसी नाम की 1972 की फिल्म का रीमेक है। स्टेटहम बिशप के रूप में स्टैथम सितारे, एक पेशेवर हत्यारे, जो अपनी हिट को दुर्घटनाओं, आत्महत्या या क्षुद्र अपराधियों के कृत्यों की तरह बनाने में माहिर हैं। इसे अमेरिका और कनाडा में , 2011 को मिश्रित समीक्षाओं के लिए रिलीज़ किया गया था। एक सीक्वल, "मैकेनिक: पुनरुत्थान", 26 अगस्त 2016 को जारी किया गया था।
संक्षेप.
एक संभ्रांत हिटमैन अपने व्यापार को एक प्रशिक्षु को सिखाता है जिसका उसके पिछले पीड़ितों में से एक से संबंध होता है।
उत्पादन.
इरविन विंकलर और रॉबर्ट चार्टऑफ, 1972 मूल "मैकेनिक के" उत्पादकों ने एक अद्यतन बनाने की मांग की। रीमेक के पूर्व अधिकार फरवरी 2009 में बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में बेचे गए थे। ( "विविधता" ने बताया कि पटकथा कार्ल गजडूसेक ने लिखी थी। ) निर्देशक साइमन वेस्ट और जेसन स्टैथम को तीन महीने बाद परियोजना का हिस्सा घोषित किया गया। बेन फोस्टर और डोनाल्ड सदरलैंड अक्टूबर 2009 में स्टैथम के साथ आए थे। लुइसियाना के न्यू ऑरलियन्स में फिल्मांकन शुरू हुआ और नौ सप्ताह तक चला। फिल्मांकन के स्थानों में सेंट टामनी पैरिश, डाउनटाउन न्यू ऑरलियन्स में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और अल्जीयर्स सीफूड मार्केट शामिल थे।
रिलीज़.
नाटकीय रन.
"मैकेनिक" को संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में , 2011 को जारी किया गया था। मिलेनियम फिल्म्स ने रिलीज के लिए सीबीएस फिल्म्स को अमेरिकी वितरण अधिकार बेचे। सुपर बाउल एक्सएलवी से एक सप्ताह पहले रिलीज़ होने के साथ, पुरुष दर्शकों के साथ अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद थी।
फिल्म ने यूएस और कनाडा में अपने शुरुआती सप्ताहांत में कमाई की। यह दुनिया भर में $ 76.3 मिलियन के लिए अन्य क्षेत्रों में और उत्तरी अमेरिकी सकल के साथ समाप्त हुआ।
आलोचनात्मक स्वीकार्यता.
"मैकेनिक" को आलोचकों से मिश्रित समीक्षा मिली। रिव्यू एग्रीगेटर रॉटन टोमाटोज़ ने 156 समीक्षाओं के आधार पर फिल्म को 53% की स्वीकृति रेटिंग दी है, जिसकी रेटिंग 5.6 / 10 की औसत है। साइट की महत्वपूर्ण सर्वसम्मति में लिखा है, "जेसन स्टैथम और बेन फोस्टर सुखद प्रदर्शनों में बदल जाते हैं, लेकिन यह सतही रीमेक उन्हें दिमाग सुन्न करने वाली हिंसा और एक्शन थ्रिलर क्लिच के साथ धोखा देता है।" मेटाक्रिटिक पर, जो मुख्यधारा के आलोचकों से समीक्षा के लिए एक भारित औसत स्कोर प्रदान करता है, फिल्म ने 35 आलोचकों के आधार पर 100 में से 49 का औसत स्कोर प्राप्त किया, जो "मिश्रित या औसत समीक्षाओं" को दर्शाता है।
रोजर एबर्ट ने फिल्म को चार में से दो सितारों से सम्मानित किया और कहा, "ऑडियंस को शोर और आंदोलन को मनोरंजन के रूप में स्वीकार करने के लिए ड्रिल किया गया है। यह इतनी अच्छी तरह से किया जाता है कि यह पूछना लगभग भूल जाता है कि ऐसा क्यों किया गया है। "
टीवी विज्ञापन प्रतिबंध.
जून 2011 में ब्रिटेन के विज्ञापन मानक प्राधिकरण ने फिल्म के विज्ञापन को ब्रिटिश टेलीविजन पर प्रसारित करने से प्रतिबंधित कर दिया। किशोर शो "ग्ली के" दौरान विज्ञापन की स्क्रीनिंग के संबंध में प्रतिबंध ने 13 दर्शकों की शिकायतों का पालन किया। अपने निर्णय में, प्राधिकरण ने पाया कि यद्यपि विज्ञापन को पोस्ट- वाटरशेड दिखाया गया था, यह संभावना थी कि 16 वर्ष से कम आयु के दर्शक बड़ी संख्या में उस समय "उल्लास" को देख रहे होंगे, और "हिंसक कल्पना की धारा" की आलोचना करेंगे। विज्ञापन में।
परिणाम.
डेनिस गनसेल ने एक सीक्वल का निर्देशन किया, जिसमें जेसन स्टैथम ने आर्थर बिशप के रूप में वापसी की।
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पाण्डव पुराण. पाण्डव पुराण की रचना आचार्य शुभचन्द्र भट्टारक द्वारा की गयी थी। इस ग्रन्थ में महाभारत को जैन दर्शन से बताया गया है।
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दिल्ली की अर्थव्यवस्था. दिल्ली की अर्थव्यवस्था भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच 13 वीं सबसे बड़ी है। 2017-18 में जीडीपी वृद्धि दर ८.१ % दर्ज की गयी | २०१४-१५ में यह ९.२ % थी | दिल्ली उत्तरी भारत का सबसे बड़ा व्यावसायिक केंद्र है | 2016 तक, दिल्ली के शहरी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का हालिया अनुमान $ 167 से $ 369 बिलियन (PPP मेट्रो जीडीपी) है जो इसे भारत के सबसे या दूसरे सबसे अधिक उत्पादक मेट्रो क्षेत्र की श्रेणी में रखता है ।
विनिर्माण.
विनिर्माण में वृद्धि हुई क्योंकि उपभोक्ता वस्तुओं की कंपनियों ने शहर में विनिर्माण इकाइयों और मुख्यालय की स्थापना की है | बड़े बाजार के कारण दिल्ली ने विदेशी निवेशकों को आकर्षित किया है |
देश की कुल जीडीपी में दिल्ली का योगदान 4.94% है | 2001 में, विनिर्माण क्षेत्र में 1,440,000 श्रमिक कार्यरत थे और शहर में 129,000 औद्योगिक इकाइयाँ थीं।
सेवा.
प्रमुख सेवा उद्योग सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार, होटल, बैंकिंग, मीडिया और पर्यटन हैं । निर्माण, बिजली, स्वास्थ्य और सामुदायिक सेवाएं और रियल एस्टेट भी शहर की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं |
खुदरा.
दिल्ली में भारत का सबसे बड़ा और सबसे तेजी से बढ़ता खुदरा उद्योग है |
सूचान प्रौद्योगिकी.
दिल्ली में विभिन्न कंपनियों के मुख्यालय स्थित है | भारत के अन्य क्षेत्रों की तरह, दिल्ली में आईटी उद्योग का विस्तार हुआ है |
पर्यटन.
देश की राजधानी तथा इतिहास का महत्वपूर्ण स्थल होने के कारण विभिन्न पर्यटक दिल्ली की और आकर्षित होते हैं | लाल किला, कुतुब मीनार आदि प्रमुख पर्यटन स्थल है | दिल्ली का पर्यटन क्षेत्र अपने सकल घरेलू उत्पाद का 5.6% हिस्सा है और दिल्ली सरकार इसे "उच्च विकास उद्योग" मानती है । देश के ६२% पर्यटक दिल्ली आते हैं |
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अजमेर ग्रामीण. अजमेर ग्रामीण राजस्थान के अजमेर ज़िले में एक पंचायत समिति है। इसका निर्माण नवंबर 2019 में हुआ।
वर्तमान में इस पंचायत समीति के अन्तर्गत कुल 33 ग्राम पंचायते है। 25 श्रीनगर से 8 पीसांगन से हटा कर समिलित की गई है।
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तबीजी. यह गाँव जो कि ,अजमेर जिले मे शहर के दक्षिण मे स्थित है।
रा.राज मार्ग स.8 से 200 मीटर दूरी पर स्थीत है तथा अजमेर रेल्वे स्टेशन से 14 कि मी व रोडवेज बस स्टेड से 16 कि मी दूरी पर स्थीत है।
गाँव मे निम्न राजकीय संंस्था है:-
1- ग्राम पंचायत कार्याल्य
2- पटवार कार्याल्य
3- उप डाक घर 305206
4- उप स्वास्थ केन्द्र
5-रा.उ.मा.विधाल्य
6-सहकारी दुग्ध उत्पादक ड्येरी(सरस)
7-यहां पर देश के प्रथम बीजीय मशाला अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई ।
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राज्य महामार्ग २७५ (महाराष्ट्र). राज्य महामार्ग २७५ तथा प्रमुख राज्य महामार्ग ११ (महाराष्ट्र) यह भारत का प्रमुख मार्ग है| यह मार्ग महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश से जुडा हुवा है|
जंक्शन.
यह राज्य महामार्ग महाराष्ट्र राज्य का प्रमुख महामार्ग है तथा प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग से गुजरता है-
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राज्य महामार्ग ३५४ (महाराष्ट्र). राज्य महामार्ग ३५४ यह महाराष्ट्र राज्य का प्रमुख महामार्ग है|
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राज्य महामार्ग ३६६ (महाराष्ट्र).
राज्य महामार्ग ३६६ यह महाराष्ट्र राज्य का प्रमुख महामार्ग है|
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तमिल रॉकर्स. तमिल रॉकर्स एक टोरेंट वेबसाइट है जो कॉपीराइट सामग्री के अवैध वितरण की सुविधा देती है, जिसमें टेलीविज़न शो, फ़िल्में, संगीत और वीडियो शामिल हैं। साइट आगंतुकों को चुंबक लिंक और टोरेंट फाइलों की सहायता से कॉपीराइट की गई सामग्री को खोजने और डाउनलोड करने की अनुमति देती है, जो पीयर-टू-पीयर फ़ाइल साझा करने की सुविधा प्रदान करती है। भारत में आईएसपी को वेबसाइट तक पहुंच को अवरुद्ध करने का आदेश दिया गया है। वेबसाइट नए वेब पतों की एक श्रृंखला पर स्विच करके ऑपरेशन जारी रखती है। पायरेट साइटों, ऐप्स और होस्टिंग प्रदाताओं की अपनी पारंपरिक सूची के अलावा, फिल्म उद्योग समूह MPAA अब कुख्यात बाजारों में से एक के रूप में तमिल रॉकर्स को सूचीबद्ध करता है।
तमिल रॉकर्स एक पाइरेसी वेबसाइट है, जो अवैध रूप से फ़िल्में डाउनलोड के लिए पाइरेटेड लेटेस्ट तमिल, तेलुगु, मलयालम, और बॉलीवुड फिल्में ऑनलाइन उपलब्ध कराती है। तमिल रॉकर्स एक अवैध वेबसाइट है जो दक्षिण भारतीय फिल्म प्रशंसकों के बीच बेहद लोकप्रिय है। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुख्यात "पायरेट बे" का एक देसी संस्करण है जहां से एक टॉरेंट क्लाइंट के माध्यम से मुफ्त में ज्यादातर दक्षिण भारतीय फिल्में और अन्य सामग्री डाउनलोड कर सकते हैं। विभिन्न लोकप्रिय तमिल, तेलुगु, मलयालम और अन्य भाषा की फिल्में नियमित रूप से साइट पर अपलोड की जाती हैं। हालाँकि यह वेबसाइट स्वयं सरकार द्वारा अवरुद्ध है, लेकिन प्रॉक्सी सर्वर द्वारा आसानी से एक्सेस किया जा सकता है।
तमिलरॉकर्स की सूची में टोरेंट के लिए सनकी के शीर्ष 10 सबसे लोकप्रिय टोरेंट साइटों में दसवें सबसे लोकप्रिय टोरेंट साइट है।
इतिहास.
तमिल रॉकर्स एक बूटिग रिकॉर्डिंग नेटवर्क था जिसे 2011 में स्थापित किया गया था और बाद में यह एक सार्वजनिक टोरेंट वेबसाइट बन गया, जो मूल अंग्रेजी ऑडियो के साथ क्षेत्रीय भाषाओं में डब की गई हॉलीवुड फिल्मों के अलावा भारतीय फिल्मों की पायरेटेड प्रतियों के साथ लिंक करता है।
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एयर फ्रायर. एयर फ्रायर एक रसोई उपकरण है जो संवहन तंत्र (कन्वेक्शन मैकेनिज्म) का उपयोग करके भोजन के चारों ओर गर्म हवा को प्रसारित (सर्कुलेट) करके खाना बनाता है। यह संवहन ओवन (कन्वेक्शन ओवन) का एक छोटा संस्करण है। एक यांत्रिक पंखा उच्च गति पर भोजन के चारों ओर गर्म हवा प्रसारित (सर्कुलेट) करता है और भोजन को कुछ ही समय में सुपर क्रिस्पी बना देता है। एयर फ्रायर आमतौर पर बहुत जल्दी गर्म होते हैं और वे भोजन को जल्दी और समान रूप से पकाते हैं।
इसके अलावा, एयर फ्रायर खाना बनाते समय तेल की मात्रा को कम करने में भी मदद करता है, जिससे उपभोक्ता को स्वस्थ आहार का अनुभव होता है। इस उपकरण का उपयोग करके भोजन को एक स्वास्थ्यप्रद दिशा में बनाने का एक सरल तरीका है, क्योंकि यह भोजन को तेल के बिना स्वादिष्ट और रूचिकर बना देता है। इसके साथ ही, एयर फ्रायर विभिन्न पकवानों को एक साथ बनाने की सुविधा प्रदान करता है, जिससे खाना तेजी से और बिना किसी समस्या के तैयार हो जाता है। इस तरह, एयर फ्रायर एक उपयोगकर्ता फ्रेंडली और स्वास्थ्यकर रसोई उपकरण के रूप में प्रमुख हो रहा है।
एयर फ्रायर कैसे काम करता है?
रैपिड एयर टेक्नोलॉजी के रूप में जानी जाने वाली पेटेंट तकनीक एयर फ्रायर्स के काम का आधार बनाती है। गर्म हवा (2000C तक) उपकरण के अंदर घूमती है और यह गर्म हवा है जो एक ही समय में विभिन्न कोणों से उसके अंदर भोजन को गर्म करती है।
गर्म हवा के कारण एक रासायनिक प्रतिक्रिया उत्पन होती है जिसे माइलार्ड प्रभाव के रूप में जाना जाता है, जो भोजन के बाहरी परत को कुरकुरा बना देती है और अंदरूनी परत को नरम और रसदार बनाये रखती है। इस कारण हमें एक स्वास्थ्यवर्धक और स्वादिष्ट भोजन प्राप्त होता है। यह वास्तव में सुविधाजनक है क्योंकि यह तेज और आसान है और सबसे अच्छी बात यह है कि यह बहुत स्वस्थ है।
एयर फ्रायर सुरक्षित और उपयोग करने के लिए सुविधाजनक हैं। वे खाना पकाने के पारंपरिक तरीके की तुलना में बहुत जल्दी व्यंजन बनाते हैं। फ्रेंच फ्राइज़, फ्राइड चिकन विंग्स या फ्राइड फिश व अन्य पदार्थ समान स्वादिष्ट परिणाम के साथ 15-20 मिनट के औसत समय में तैयार किया जा सकता है। एयर फ्रायर से तैयार भोजन और पारंपरिक तरीके से तैयार भोजन की गुणवत्ता में कोई अंतर नहीं होता है।
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स्लो कुकर. स्लो कुकर खाना पकाने का एक काउन्टरटॉप विद्युत उपकरण है जो खाना पकाने के अन्य तरीकों की तुलना में कम तापमान पर खाना पकाने के लिए उपयोग किया जाता है। इसे 'क्ऱॊक पॉट' भी कहते हैं। आसान शब्दों में इसका वर्णन किया जाए तो; एक विद्युत खाना पकाने का पॉट जो विशेष रूप से लंबे समय तक अपेक्षाकृत कम तापमान पर खाद्य पदार्थ पकाने के लिए उपयोग किया जाता है ।
स्लो कुकर में एक चीनी मिट्टी का बर्तन (हालांकि अब कुछ धातु से बने भी आ रहे है) और एक बाहरी विद्युत बर्तन होता है। बाहरी बर्तन में हीटिंग कॉइल लगी होती है और जब बिजली से जोड़ा जाता है, तो यह गर्मी को आंतरिक चीनी मिट्टी के बर्तन में स्थानांतरित करता है जो गर्मी को अच्छी तरह से वितरित करता है जिस कारण भोजन समान रूप से पक जाता है।
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सत्यवती देवी. सत्यवती देवी (1904–1945) भारत की स्वतन्त्रता सेनानी एवं स्वामी श्रद्धानन्द की पौत्री थीं। वे 'भारत की ज़ोन ऑफ आर्क' के नाम से विख्यात हैं।
जीवनी.
सत्यवती देवी धनी राम और वेदकुमारी की पुत्री थीं। उन्होने दिल्ली क्लॉथ मिल के एक अधिकारी से विवाह किया था।
आन्दोलनों में सहभागिता.
दिल्ली की राष्ट्रवादी स्त्रियों में सत्यवती ने अग्रणी भूमिका निभायी और उनका नेतृत्व किया। गांधीजी उन्हें प्यार से 'तूफानी बहन' कहा करते थे। अरुणा आसफ अली मानती हैं कि सत्यवती की ही प्रेरणा से वे राष्ट्रीय आन्दोलन में उतरीं थी। उन्होने ग्वालियर और दिल्ली के कपड़ा मिलों के श्रमिकों के उत्थान के लिए कार्य किया। उन्होने कांग्रेस महिला समाज तथा कांग्रेस देशसेविका दल की स्थापना की। वे कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी की भी सह-संस्थापिका थीं। उन्होने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में सक्रिया भूमिका निभयी और इस आन्दोलन में दिल्ली कांग्रेस की महिला शाखा का नेतृत्व किया। दिल्ली में ही उन्होने नमक कानून को तोड़ने के लिए अन्दोलन का आयोजन किया और स्वयंसेवकों के साथ मिलकर नमक बनाकर लोगों में बांटा। १९३२ में उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें दो वर्ष के कारावास का दण्ड दिया। जेल में ही वे फुप्फुसावरणशोथ (pleurisy) और क्षय रोग की शिकार हो गयीं।
इतना होने के बावजूद उन्होने 'अच्छे व्यवहार' करने और राजनैतिक आन्दोलनों से दूर रहने के आश्वासन के बचनपत्र (बांड) पर हस्ताक्षर नहीं किया। इस तरह के बचनपत्र से उनको जेल से छुट्टी मिल सकती थी और वे अपनी चिकित्सा करा सकतीं थीं। सन १९४५ में ४१ वर्ष की अल्पायु में ही क्षयरोग के कारण उनका देहान्त हो गया।
सत्यवती देवी भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के गुमनाम नायिकाओं में से हैं। सन १९७२ में दिल्ली सरकार ने उनके नाम पर सत्यवती महाविद्यालय की स्थापना की जो दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है।
लेखन कार्य.
जेल में बन्द महिला स्वतंत्रता सेनानी कविताएँ रचा करते और चोरीछुपे उसे बाहर निकालकर उसका प्रकाशन करा दिया जाता था। 'बहिन सत्यवती का जेल सन्देश' नामक उनकी एक कविता बहुत प्रसिद्ध हुई थी।
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सत्यवती देवी (जालन्धर में जन्मी). सत्यवती देवी (28 फरवरी 1905 – 26 अक्टूबर 2010) भारत की एक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं गांधीवादी महिला थीं। २६ अक्टूबर २०१० को देहान्त से पूर्व वे भारत के जीवित स्वतन्त्रता सेनानियों में सबसे वृद्ध थीं।
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विजयवाड़ा जंक्शन रेलवे स्टेशन.
विजयवाड़ा जंक्शन (स्टेशन कोड: BZA) आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में स्थित एक भारतीय रेलवे स्टेशन है, जिसे विजयवाड़ा रेलवे मंडल के अन्तर्गत एक "गैर-उपनगरीय ग्रेड -2 (NSG-2)" स्टेशन के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यहहावड़ा-चेन्नई और नई दिल्ली-चेन्नई मुख्य रेलमार्ग में स्थित एक महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शन है। यह हावड़ा जंक्शन, कानपुर सेंट्रल और नई दिल्ली के बाद देश का चौथा सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशन है। यह स्टेशन लगभग 180 से अधिक एक्सप्रेस और 150 मालगाड़ियों के माध्यम से यात्रियों को सेवा प्रदान करता है। यह भारतीय रेलवे के शीर्ष सौ सबसे ज्यादा बुकिंग किये जाने वाले रेलवे स्टेशनों में से एक है, और राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण पड़ाव है।
इतिहास.
विजयवाड़ा सिटी जंक्शन रेलवे स्टेशन का निर्माण 1888 में किया गया था, जब दक्षिणी महाराटा रेलवे का मुख्य पूर्वी मार्ग विजयवाड़ा से होकर अन्य रेलमार्गों से जोड़ा गया। 1889 में, निजाम के गारंटीकृत राजकीय रेलवे ने सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन और विजयवाड़ा के बीच बेजाडा के लिए एक विस्तार रेलवे के रूप में एक रेलमार्ग का निर्माण किया; जिसके बाद स्टेशन विभिन्न दिशाओं से तीन लाइनों का जंक्शन बन गया।
1 नवंबर 1899 को, विजयवाड़ा और चेन्नई के बीच ब्रॉड गेज रेलमार्ग का निर्माण किया गया, जिससे चेन्नई, मुंबई, हावड़ा, नई दिल्ली और हैदराबाद के बीच रेल यात्रा संभव हुआ। बाद के दशकों में विजयवाड़ा रेलवे स्टेशन को एक जंक्शन के रूप में विकसित किया गया। जब तक कि भारत में सभी स्वतंत्र रेलवे का राष्ट्रीयकरण नहीं हुआ; राष्ट्रीयकरण के बाद, भारत सरकार द्वारा 1950 में भारतीय रेल मंत्रालय का गठन किया गया। विजयवाड़ा मंडल के मुख्यालय के रूप में विजयवाड़ा रेलवे स्टेशन, दक्षिणी रेलवे को सौंपा गया। 1966 में, एक नया ज़ोन, दक्षिण मध्य रेलवे, का गठन किया गया, जिसका मुख्यालय सिकंदराबाद था; विजयवाड़ा मंडल और विजयवाड़ा जंक्शन को इस नए रेलवे में मिला दिया गया।
1969 में, गोलकुंडा एक्सप्रेस को विजयवाड़ा और सिकंदराबाद के बीच देश में एक्सप्रेस भाप-ईंजन ट्रेन के रूप में पेश किया गया था, जिसकी औसत गति 58 किमी / घंटा थी। 2012 तक, विजयवाड़ा रेलवे स्टेशन भारत के सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशनों में से एक है।
अभिन्यास और बुनियादी ढाँचा.
विजयवाड़ा स्टेशन में स्टेशन के अंदर एक आदर्श कर्षण के साथ मानक स्टेशन अभिन्यास है। स्टेशन के सभी ट्रैक ब्रॉड गेज और विद्युतीकृत हैं। स्टेशन में 10 प्लेटफार्म हैं और सभी ट्रैक ब्रॉड गेज हैं। स्टेशन का सातवां प्लेटफॉर्म सबसे बड़ा है। विजयवाड़ा स्टेशन हावड़ा-चेन्नई और नई दिल्ली-चेन्नई मुख्य लाइनों की दो मुख्य रेलमार्गो के लिए एक जंक्शन स्टेशन है।
संचालन और कमाई.
यह स्टेशन प्रतिदिन औसतन और सालाना यात्रियों को सेवा प्रदान करता है। प्रतिदिन 250 से अधिक यात्री ट्रेनें और 150 मालगाड़ियां स्टेशन से होकर गुजरती है, प्रत्येक ट्रेन में कम से कम 15 से 20 मिनट तक स्टेशन में रुकती हैं।
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सद्धर्म प्रचारक. सद्धर्म प्रचारक स्वामी श्रद्धानन्द द्वारा १९०७ में आरम्भ किया गया एक धार्मिक हिन्दी पत्र था जो पहले उर्दू लिपि में छपता था किन्तु बाद में देवनागरी में छपने लगा।
इस पत्र की विषयवस्तु धार्मिक हुआ करती थी किन्तु तत्कालीन सामयिक राजनैतिक विषयों पर टिप्पणियाँ भी छपतीं थी। बाद में इस पत्र का सम्पादन उनके पुत्र एवं महान शिक्षाविद इन्द्र विद्यावाचस्पति ने किया।
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गीता रामजी. गीता रामजी (08 अप्रैल 1956 - 31 मार्च 2020) युगांडाई-दक्षिण अफ्रीकी वैज्ञानिक और एचआईवी की रोकथाम में शोधकर्ता थीं। 2018 में, उन्हें यूरोपियन एंड डेवलपिंग कंट्रीज़ क्लीनिकल ट्रायल्स पार्टनरशिप से 'उत्कृष्ट महिला वैज्ञानिक' पुरस्कार से सम्मानित किया गया। COVID-19 संबंधित जटिलताओं से दक्षिण अफ्रीका के डरबन के उमलंगा में उनकी मृत्यु हो गई।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा.
गीता पारेख का जन्म 8 अप्रैल 1956 में हुआ था। 1970 के दशक में इदी अमीन के तहत उनके परिवार को निर्वासित करने से पहले औपनिवेशिक युगांडा में पली-बढ़ीं। इन्होंने अपनी शिक्षा भारत के हाई स्कूल में आरंभ की। उसके बाद यें इंग्लैंड के सुंदरलैंड विश्वविद्यालय में दाख़िल हो गईं। उन्होंने 1980 में बीएससी (ऑनर्स) के साथ केमिस्ट्री और फिजियोलॉजी में स्नातक किया। उन्होंने एक दक्षिण अफ्रीकी-भारतीय साथी छात्र, प्रवीण रामजी से शादी की और डरबन चले गए जहाँ उन्होंने क्वाज़ुलु-नटाल विश्वविद्यालय के मेडिकल स्कूल में बाल चिकित्सा विभाग में काम करना शुरू किया। अपने दो बेटों के जन्म के बाद उन्होंने अपनी मास्टर्स पूरी की, और बाद में 1994 में पीएचडी की। [५]
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तुलनात्मक धर्मशास्त्र. तुलनात्मक धर्मशास्त्र या तुलनात्मक ईश्वरमीमांसा (Comparative theology), धर्मशास्त्र का एक उपविषय है।
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महाशय चिरंजीलाल 'प्रेम'. महाशय चिरंजीलाल 'प्रेम' (१८८० - जुलाई, १९५७) भारत के स्वतन्त्रता के पहले से समय के एक पत्रकार एवं आर्यसमाजी थे। वे लाला लाजपतराय के पत्र ‘दैनिक वन्देमातरम्’ तथा महाशय कृष्ण के दैनिक ‘प्रताप’ पत्रों के सहायक सम्पादक रहे। जब पंजाब की आर्य प्रतिनिधि सभा ने पं. लेखराम की स्मृति में ‘आर्य मुसाफिर’ नामक मासिक उर्दू पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया तो इसका आद्य सम्पादक महाशय ‘प्रेम’ जी को ही बनाया गया। यह ‘आर्य मुसाफिर’ पत्र का पुनर्प्रकाशन था।
'आर्य मुसाफिर' अपने समय का प्रमुख व सर्वश्रेष्ठ पत्र था। आर्यसमाज के उर्दू जानने वाले विद्वानों के लेख तो इस पत्र में प्रकाशित होते ही थे। पं. इन्द्र विद्यावाचस्पति, पं. भीमसेन विद्यालंकार तथा पं. बुद्धदेव विद्यालंकार आदि जैसे उर्दू न जानने वाले विद्वानों के लेख भी इसमें उर्दू रूपान्तर के साथ प्रकाशित होते थे।
महाशय जी अनेक भाषाओं के विद्वान थे जिनमें अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, अरबी व हिन्दी आदि सम्मिलित हैं। आपका उच्चारण बहुत शुद्ध था। देश विदेश के लेखकों व विद्वानों के साहित्य का आपका अध्ययन व स्वाध्याय भी गहन व गम्भीर था। आपके लेखों व व्याख्यानों में देशी व विदेशी लेखकों व विद्वानों के अनेक उद्धरण होते थे। इसका कारण यह था कि महाशय जी ने सभी महत्वपूर्ण प्रमाणों को अपनी तीव्र स्मरण शक्ति के कारण कण्ठस्थ किया हुआ था। अतः आपके लेखों व व्याख्यानों में कोई भी बात अप्रमाणिक व निराधार नहीं होती थी।
आपने सीमा प्रान्त, सिन्ध, पंजाब, राजस्थान व दिल्ली के साथ केरल तक में जाकर प्रचार किया था। आपने मुसलमानों के सभी पन्थ व सम्प्रदायों के मौलवियों से अनेक विषयों पर शास्त्रार्थ किये। मिर्जाई व ईसाई विद्वानों से भी आपने अनेक शास्त्रार्थ किये।
जीवनी.
महाशय चिरंजीलाल ‘प्रेम’ जी को महर्षि दयानन्द के गुरु दण्डी स्वामी विरजानन्द सरस्वती की जन्मभूमि ‘करतारपुर’ में जन्म लेने का गौरव प्राप्त है। आपका जन्म सन् 1880 में हुआ था। आपके पिता का नाम शंकरदास था जो रेलवे विभाग में स्टेशन मास्टर थे। महाशय जी की प्रारम्भिक शिक्षा अपने जन्म स्थान पर ही सम्पन्न हुई। जब वे विद्यार्थी थे तब आप इस्लाम से प्रभावित हुए परन्तु पं. लेखराम के धर्म प्रचार के सम्पर्क में आकर आप सनातन वैदिक धर्म का त्याग करने से बच गये।
महाशय जी एक अच्छे वक्ता थे। उनके स्वर व बोलचाल में मिठास थी। बोलते समय आप मन्द मन्द मुस्काते भी रहते थे जिससे श्रोताओं पर आपका कहीं अधिक प्रभाव होता था। व्याख्यान देते समय प्रसंगानुसार आप अपनी आंखें कभी बन्द कर लेते थे और कभी खोल लेते थे। व्याख्यान में अधिक रोचक प्रसंगों व चुटकलों आदि का प्रयोग करना अच्छा नहीं मानते थे परन्तु अपवाद स्वरूप ऐसा हो जाया करता था। अकबर का दाढ़ी खरीदने का प्रसंग आप प्रायः सुनाया करते थे जो काफी लम्बा हो जाया करता था। वर्णन शैली प्रभावशाली होने के कारण श्रोता उबते नहीं थे। आप वार्तालाप व व्याख्यान में चुटकियां लेकर अपनी बातें कहा करते थे जिससे अपने व बेगाने भी मुग्ध हो जाया करते थे।
महाशय जी अत्यन्त विनोदी स्वभाव के थे। शास्त्रार्थ करते हुए आप कभी उत्तेजित दिखाई नहीं दिए। बतातें हैं कि आप अपनी फुलझड़ियों से विपक्षी वक्ता की कटुता का प्रभाव नष्ट कर देते थे। आपने आर्य विद्वान प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी को उनके बचपन में बताया था कि एक सम्पादक, अध्यापक व मिशनरी को प्रत्येक विषय के बारे में कुछ-कुछ और कुछ विषयों के बारे में सब बातों का ज्ञान होना चाहिए।
कृतियाँ.
महाशय चिरंजीलाल ‘प्रेम’ जी ने उर्दू, फारसी व अंग्रेजी में उच्च कोटि की काव्य रचनायें की है। महाशय जी ने ‘मरने के बाद’, कविताओं का संग्रह ‘ऋषि दयानन्द के अहसानात्’ व ‘सूर्ख आंधी’ आदि कई पुस्तकें लिखी हैं। श्री राजेन्द्र जिज्ञासु जी ने आपकी पुस्तक ‘मरने के बाद’ को हिन्दी में अनूदित कर प्रकाशित किया है। आपने एक सर्वधर्म सम्मेलन में ‘वैदिक धर्म में स्त्रियों का स्थान’ विषयक एक व्याख्यान दिया था जो पुस्तकाकार प्रकाशित हुआ था। आपकी अंग्रेजी में लिखी एक पुस्तक है ’Do Something Be Something’। इसका उर्दू में अनुवाद ‘कुछ करके दिखा कुछ बनके दिखा’ नाम से प्रकाशित हुआ था।
‘आर्य मुसाफिर’ मासिक लाहौर के 1932 के अंकों में आपने 'स्वराज्य कौन दिलायगा' विषयक कुछ सम्पादकीय टिप्पणियां की थी। उन्होंने लिखा था कि श्री पं. लोकनाथ तर्कवाचस्पति, आर्योपदेशक ने गुरुकुल कांगड़ी के उत्सव पर सर्वथा उचित ही कहा था कि यदि भारतवर्ष को सच्चा स्वराज्य मिल सकता है तो केवल आर्यसमाज के द्वारा ही मिल सकता है।
नीचे महाशय चिरंजीलाल द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध भजन देखिए, जो स्वामी श्रद्धानन्द का प्रिय भजन था। पुराने समय में ‘प्रेम’ जी की यह रचना सभी आर्यसमाजों में गाई जाती थी। जिन दिनों हरिद्वार के निकट गंगा पार गुरुकुल कांगड़ी होता था, तब रात्रि समय में पहरा देते समय स्वामी श्रद्धानन्द जी झूम झूम कर इसे गाया करते थे।
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बुद्धदेव विद्यालंकार. बुद्धदेव विद्यालंकार या स्वामी समर्पणानन्द (1895-1969) संस्कृत के विद्वान एवं आर्यसमाजी लेखक थे। वे वेदों के अनन्य प्रचारक तथा शास्त्रार्थ महारथी थे। इन्होने अनेकों विषयों पर लेख लिखे और गीता , वेदों के मन्त्रों का भाष्य भी किया। इनका शतपथ ब्राह्मण का भाष्य विशेष महत्व का है। मेरठ स्थित 'गुरुकुल प्रभात आश्रम' उनके द्वारा ही स्थापित किया गया था।
बुद्धदेव विद्यालंकार का जन्म 1 अगस्त, 1895 को कौलागढ़ (देहरादून) के एक सम्भ्रान्त ब्राह्मण परिवार में पंडित रामचन्द्र जी के पुत्र के रूप में हुआ था। उनके पिता स्वामी दयानन्द सरस्वती तथा आर्य समाज के अनन्य भक्त थे। अत: उन्होंने पुत्र को 7 वर्ष की आयु में गुरुकुल कांगड़ी में प्रवेश दिलाकर स्वामी श्रद्धानन्द के चरणों में समर्पित कर दिया था।
वे मेधावी छात्र थे। संस्कृत के साथ-साथ अंग्रेजी का भी उन्होंने अध्ययन किया। वैदिक साहित्य का गहन अध्ययन करने के बाद सन् 1916 में उन्होंने गुरुकुल से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की और "विद्यालंकार' की उपाधि से अलंकृत हुए। इसके बाद इनका नाम पं. बुद्धदेव विद्यालंकार पड़ा। तत्पश्चात् उन्होंने अपना जीवन वैदिक धर्म तथा आर्यसमाज के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित करने का संकल्प लिया। वे जहां उच्च कोटि के गद्य लेखक थे, वहीं प्रभावी कवि भी थे। ओजस्वी वक्ता के रूप में युवावस्था में ही पूरे देश में उनकी ख्याति फैल गई थी।
पंडित बुद्धदेव विद्यालंकार, स्वामी आत्मानन्द जी से संन्यास दीक्षा ग्रहण करने के बाद 'स्वामी समर्पणानन्द सरस्वती' के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने वैदिक धर्म पर आक्षेप करने वाले अनेक ईसाई व मुस्लिम विद्वानों से शास्त्रार्थ कर उन्हें पराजित किया। जन्मना वर्ण-व्यवस्था तथा श्राद्ध आदि विषयों पर उन्होंने पौराणिक सनातनधर्मी विद्वानों से भी शास्त्रार्थ किए। स्वामी जी ने बागपत क्षेत्र में गंग नहर के किनारे "प्रभात आश्रम' की स्थापना कर संस्कृत के अध्ययन का मार्ग प्रशस्त किया।
14 जनवरी, 1968 को स्वामी समर्पणानन्द का देहान्त हुआ।
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महाशय कृष्ण. महाशय कृष्ण () भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी एवं पत्रकार थे जिन्होने 'प्रताप' नाम से एक पत्र का सम्पादन शुरू किया।
सन १९१९ में दरबार साहिब के पास जलियांवाला बाग में बैसाखी के दिन निहत्थे और निर्दोष पंजाबियों पर जनरल डायर ने गोलियाँ चलवा दीं थी। लाहौर में बैठे एक पत्रकार महाशय कृष्ण को यह घटना चैन लेने नहीं दे रही थी। उन्हीं दिनों इस खूनी खेल पर एक पुस्तक प्रकाशित हुई। ब्रिटिश सरकार ने उसे जब्त कर लिया। पंजाब का अंग्रेज गवर्नर खामोश रहा। यह बात भी उस पत्रकार को आंदोलित कर गई। उन्होंने ‘प्रताप’ नाम से अखबार शुरू कर दिया।
महाशय कृष्ण जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन अपने देश व पत्रकारिता के स्तर को शिखर पर पहुंचाने में लगा दिया। उन्होंने अपने कलम को माध्यम बनाते हुए पूरे भारत में आजादी की अलख जगाई। आर्य समाज के कट्टर समर्थक एवं अंग्रेजी हुकूमत में उर्दू एवं हिन्दी पत्रकारिता का झंडा बुलंद करने वाले महाशय कृष्ण ने अपनी कड़क लेखनी के बूते पर देशवासियों में आजादी का संचार पैदा किया। अंग्रेजों द्वारा उनके समाचार पत्र `डेली प्रताप' पर अनेक अत्याचार भी किए, लेकिन महाशय जी ने उस समय में भी हार नहीं मानी।
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गुरुकुल काँगड़ी फार्मेसी, हरिद्वार. गुरुकुल काँगड़ी फार्मेसी (गुरुकुल), भारत की एक अग्रणी उपभोक्ता सामग्री बनाने वाली कम्पनी है जिसकी विशेषज्ञता के क्षेत्र स्वास्थ्य-रक्षा, व्यक्तिगत-रक्षा और आयुर्वेदिक उत्पाद हैं। यह एक ISO-9001 प्रमाणित कम्पनी है। इसकी स्थापना १९१६ में हुई थी। यह गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार की एक उपसंस्था है।
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पंडित भगवद्दत्त. पण्डित भगवद्दत्त (27 अक्तूबर, 1893 - 22 नवम्बर, 1968) भारत के एक संस्कृत विद्वान, लेखक तथा स्त्री-शिक्षा के समर्थक थे।
अध्ययन, अनुसन्धान और लेखन के साथ ही वे आर्य समाज में सक्रिय रहते थे। आर्य समाज के उच्च संस्था ‘परोपकारिणी सभा’ के वे निर्वाचित सदस्य थे। वे उसकी ‘विद्वत् समिति’ के भी सदस्य थे। उनकी ख्याति एक श्रेष्ठ विद्वान व वक्ता की थी। आर्य समाज के कार्यक्रमों में वे देश भर में प्रवास भी करते थे। इसी कारण वे 'पंडित भगवद्दत्त' के नाम से प्रसिद्ध हुए।
जीवनी.
पंडित भगवद्दत्त का जन्म अमृतसर (पंजाब) में श्री कुंदनलाल तथा श्रीमती हरदेवी के घर में हुआ था। आर्य समाजी परिवार होने के कारण भगवद्दत्त जी का संस्कृत से बहुत प्रेम था। अतः कक्षा 12 तक विज्ञान के छात्र रहने के बाद उन्होंने 1915 में डी.ए.वी. कालिज, लाहौर से संस्कृत एवं दर्शनशास्त्र में बी.ए. किया।
इसके बाद भगवद्दत्त जी की इच्छा वेदों के अध्ययन की थी। अतः वे लाहौर के डी.ए.वी. कालिज के अनुसंधान विभाग में काम करने लगे। उनकी लगन देखकर विद्यालय के प्रबंधकों ने छह वर्ष बाद उन्हें वहीं विभागाध्यक्ष बना दिया। अगले 13 वर्ष में उन्होंने लगभग 7,000 हस्तलिखित ग्रंथों का संग्रह तथा अध्ययन कर उनमें से कई उपयोगी ग्रंथों का सम्पादन व पुनर्प्रकाशन किया; पर किसी सैद्धांतिक कारण से उनका तालमेल अनुसंधान विभाग में कार्यरत पंडित विश्वबन्धु से नहीं हो सका। अतः भगवद्दत्त जी डी.ए.वी कालिज की सेवा से मुक्त होकर स्वतन्त्र रूप से अध्ययन में लग गये।
नारी शिक्षा के समर्थक भगवद्दत्त जी ने अपनी पत्नी सत्यवती को पढ़ने के लिए प्रेरित किया और वह शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली पंजाब की प्रथम महिला बनीं। उनके पुत्र सत्यश्रवा भी संस्कृत विद्वान हैं, उन्होंने अपने पिताजी के अनेक ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद कर प्रकाशित किया है। देश विभाजन के बाद दिल्ली आते समय दुर्भाग्यवश वे अपने विशाल ग्रन्थ-संग्रह का कुछ ही भाग साथ ला सके। दिल्ली में भी वे सामाजिक जीवन में सक्रिय रहे।
अनेक भारतीय तथा विदेशी विद्वानों ने उनकी खोज व विद्वत्ता को सराहा है। उनका परस्पर पत्र-व्यवहार भी चलता था; पर उन्हें इस बात का दुख था कि कई विद्वानों ने अपनी पुस्तकों में बिना नामोल्लेख उन निष्कर्षों को लिखा है, जिनकी खोज भगवद्दत्त जी ने की थी। पंडित राहुल सांकृत्यायन ने लाहौर में उनके साथ रहकर अनेक वर्ष अनुसन्धान कार्य किया था। उन्होंने स्वीकार किया है कि ऐतिहासिक अनुसंधान की प्रेरणा उन्हें भगवद्दत्त जी से ही मिली।
भगवद्दत्त जी एक पंजाबी व्यापारी की तरह ढीला पाजामा, कमीज, सफेद पगड़ी, कानों में स्वर्ण कुंडल आदि पहनते थे; पर जब वे संस्कृत में तर्कपूर्ण ढंग से धाराप्रवाह बोलना आरम्भ करते थे, तो सब उनकी विद्वत्ता का लोहा मान जाते थे। 22 नवम्बर, 1968 को दिल्ली में ही उनका देहान्त हुआ।
कृतियाँ.
उनकी प्रमुख पुस्तकें निम्नलिखित हैं-
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सानगडी. सानगडी यह महाराष्ट्र राज्य के भंडारा जिले का एक प्रमुख गांव है|
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अर्जुनी मोरगाँव. अर्जुनी मोरगाँव "(Arjuni Morgaon)" भारत के महाराष्ट्र राज्य के गोंदिया ज़िले में स्थित एक नगरपालिका है। इस शहर से लगा हुआ एक प्रमुख स्टेशन अर्जुनी रेलवे स्टेशन स्थित है। राज्य महामार्ग २७५ (महाराष्ट्र) यहाँ से गुज़रता है। यहा गवर्मेंट ओद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, अर्जुनी मोरगाव एक सरकारी महाविद्यालय है|
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एकताल. एक ताल अथवा एकताल हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक ताल है। यह मुख्यतः तबले पर बजाया जाता है। यह एक ऐसा ताल है जिसे विविध लयों में बजाया जा सकता है; ख़याल गायकी के साथ यह अति-विलिम्बित, विलिम्बित लय से लेकर द्रुत ले तक में बजाया जाता है वहीँ तराना गायकी के साथ अथवा द्रुत गतें बजाते समय इसे द्रुत से अति-द्रुत लय तक में बजाया जाता है।
यह चार ताल, जिसे चौताल भी कहते हैं, से काफी मिलता-जुलता है क्योंकि दोनों में मात्राएँ, खंड और "ताली-खाली" का वितरण एक समान होता है, बस ठेके के बोल अलग होते हैं।
एकल तबला वादन (सोलो) में भी कलाकार इसे काफी पसंद करते हैं।
स्वरुप.
एकताल में ताल में कुल 12 मात्राएँ और छह खंड होते हैं। प्रत्येक खंड में दो मात्राएँ आती हैं। 1, 5, 9 और 11वीं मात्रा पर "ताली" होती है और खाली 3 और 7वीं मात्रा पर "'खाली" होती है।
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बोंडगावदेवी. बोंडगावदेवी यह गांव तथा महाराष्ट्र राज्य का प्रमुख जागृत देवस्थान है|यह मंदिर अर्जुनी मोरगाव शहर से लगबग दस किलोमीटर की दुरी पर है|
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कोहमारा. कोहमारा यह गांव है| तथा महाराष्ट्र राज्य के प्रमुख मार्ग पर स्थित है|
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प्रमुख राज्य महामार्ग ११ (महाराष्ट्र). प्रमुख राज्य महामार्ग ११ तथा राज्य महामार्ग २७५ (महाराष्ट्र) यह महाराष्ट्र राज्य का प्रमुख महामार्ग है|यह महामार्ग महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश से होकर जाता है|
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पंडित चमूपति. पंडित चमूपति (15 फरवरी, 1893 - 15 जून, 1937) आर्यसमाज के प्रसिद्ध विद्वान और प्रचारक थे। आप हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू, अरबी व फारसी आदि अनेक भाषाओं के विद्वान थे। आप अच्छे कवि एवं लेखक भी थे। आपने कई भाषाओं में अनेक प्रसिद्ध ग्रन्थों की रचना की है। उन्होने गुरुकुल में अध्यापन भी किया और आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के उपदेशक व प्रचारक भी रहे।
आचार्य पं0 चमूपति महर्षि दयानन्द के मिशन को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख महापुरुषों में से एक महापुरुष थे। वह अतीव प्रतिभासम्पन्न मनीषी, त्यागी, तपस्वी, विद्वान तथा वैदिक धर्म व संस्कृति के लिये समर्पित असाधारण मनुष्य थे। ईसाई मत, इस्लाम तथा आर्य सिद्धान्तों का उन्हें गम्भीर ज्ञान था।
जीवनी.
पण्डित चमूपति का जन्म १५ फरवरी १८९३ को बहावलपुर के खैरपुर रामेवाला में हुआ था। बहावलपुर अब पाकिस्तान में है। उनका मूल नाम चम्पत राय था। उनका उनके पिता का नाम बसन्दाराम मेहता था और माता का नाम उत्तमी देवी था। मैट्रिक तक की शिक्षा आपने अपने जन्म ग्राम खैरपुर में उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओं मे प्राप्त की। बहावलपुर के इजर्टन कालेज से आपने उर्दू, फारसी एवं अंग्रेजी में बी0ए0 किया। बी0ए0 तक आप देवनागरी अक्षरों से अनभिज्ञ थे। आर्यसमाज से प्रभावित होकर आपने संस्कृत में एम0ए0 करने का संकल्प लिया और परीक्षा में सफलता प्राप्त कर प्रशंसनीय उदाहरण प्रस्तुत किया।
विद्यार्थी जीवन में आप सिख मत की ओर आकर्षित हुए थे। आपने सिख मत की पुस्तक "जपुजी" का उर्दू में काव्यानुवाद किया। इस पुस्तक से निकटवर्ती क्षेत्रों में आपको प्रसिद्धि प्राप्त हुई। जन्म से दार्शनिक प्रवृत्ति के कारण पौराणिक विचारधारा से आपकी संस्तुष्टि नहीं हुई, जिसका परिणाम यह हुआ कि आप नास्तिक बन गए। इसके पश्चात आपने स्वामी विवेकानन्द के साहित्य का अध्ययन किया और कुछ समय पश्चात महर्षि दयानन्द के साहित्य का पारायण किया। इस साहित्यिक ऊहापोह से आप पुनः आस्तिक बन गए। अब आप प्राणपण से आर्यसमाज के कार्यों में रुचि लेने लगे। सन् 1919 में आपने स्वामी दयानन्द के पद्यमय उर्दू जीवन चरित्र ‘‘दयानन्द आनन्द सागर” का लेखन व प्रकाशन किया। इस ग्रन्थ में आपने स्वामी दयानन्द जी के लिये "सरवरे मखलूकात" अर्थात् 'मानव शिरोमणि' विशेषण का प्रयोग किया है।
गुरुकुल से उनका सम्बन्ध बहुत पुराना था। वे मुल्तान के गुरुकुल के मुख्य अधिष्ठाता बने थे और उस गुरुकुल का संचालन करने में उन्हें बड़ी सफलता मिली थी। आचार्य रामदेव उनके गुणों पर मुग्ध होकर उन्हें लाहौर ले आये थे और ‘दयाननद सेवासदन’ का आजीवन सदस्य बनने के लिये तैयार किया था। अनेक वर्षों तक पण्डित जी ने लाहौर में रहकर ‘आर्य’ का सम्पादन किया। वक्ता और लेखक के रूप में आर्यसमाज में उनकी खूब ख्याति हुई।
दयाननद सेवासदन के समाजोत्थान के कार्यों को करते हुए आपने आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी पत्र ‘‘वैदिक मैगजीन” एवं हिन्दी पत्र ‘‘आर्य” के सम्पादन का कार्य भी किया। आपकी विद्वता एवं निष्ठा के प्रभाव से इन पत्रों ने अपूर्व सफलता प्राप्त कीं और अविभाजित पंजाब सहित देशभर में दोनो पत्र लोकप्रिय हुए। सन् 1926 से आरम्भ कर आठ वर्षों तक आपने गुरुकुल कांगड़ी में उपाध्याय, अधिष्ठाता एवं आचार्य आदि पदों को सुशोभित किया।
आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब की ओर से सन् 1925 में आप वैदिक धर्म एवं संस्कृति के प्रचारार्थ अफ्रीका गये। इस यात्रा के समय पौराणिक विद्वान पं0 माधवाचार्य ने आपको शास्त्रार्थ के लिये आमंत्रित किया जिसमें वह पंडित चमूपति जी को अपमानित कर सकें और अपने शिष्यों पर अपना प्रभाव जमा सकें। अनेक लोगों की उपस्थिति में शास्त्रार्थ आरम्भ हुआ। शास्त्रार्थ में प्रसंगवश पंडित चमूपति जी ने शालीनतापूर्वक कहा कि पं0 माधवाचार्य की पत्नी को पुत्री मानने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं, अपितु प्रसन्नता है। निराली शैली में कहे गए इन शब्दों का लोगों पर इच्छा प्रभाव पड़ा। शास्त्रार्थ उनके इन्हीं शब्दों पर समाप्त हो गया। पं0 माधवाचार्य की पं0 चमूपति जी का अपमान करने की योजना विफल हो गई।
एक बार पं0 चमूपति वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून आये थे। एक दिन जब उन्होंने तपोवन के निकट सरोवर में एक हिन्दू को मछलियां पकड़ते हुए देखा तो उनके मुख से निकला "देखो यह इस्लामी हिन्दू धर्म है"। अपने एक व्याख्यान में एक बार पंडित जी ने मुसलमानों की हज की रीति एवं व्यवहार का उल्लेख कर भावपूर्ण शब्दों में कहा, "हज करते समय कोई मोमिन सिर की जूं तक नहीं मार सकता, सिला हुआ वस्त्र भी नहीं पहन सकता। यह है वैदिक इस्लाम"। इस्लाम के इस अहिंसक रूप के पंडित चमूपति जी समर्थक थे।
सत्यार्थप्रकाश की भूमिका में स्वामी दयानन्द ने लिखा है कि सत्य को मानना एवं मनवाना तथा असत्य को छोड़ना और छुड़वाना उन्हें अभीष्ट है। इसी को वह मनुष्य जीवन का लक्ष्य स्वीकार करते थे। पं0 चमूपति जी ने ऋषि दयानन्द जी के विचारों को सर्वात्मा अपनाया व उनका अपने उपदेशों व रचनाओं के द्वारा प्रचार किया। दिनांक 15 जून सन् 1937 को 44 वर्ष की आयु में लाहौर में आपका निधन हुआ।
आर्यसमाज के वयोवृद्ध विद्वान प्रा0 राजेन्द्र जिज्ञासु जी ने आपकी जीवनी लिखी है। जिज्ञासु जी ने पं0 चमूपति जी के लेखों व लघु पुस्तकों का दो खण्डों में एक संग्रह सम्पादित किया था जो वर्षों पूर्व हिण्डोन सिटी से आर्य साहित्य के यशस्वी प्रकाशक श्री प्रभाकरदेव आर्य जी ने ‘‘विचार वाटिका” के नाम से प्रकाशित किया था। अब यह ग्रन्थ अनुपलब्ध है। प्रा. जिज्ञासु जी ने पं. चमूपति जी की उर्दू पुस्तक ‘‘दयानन्द आनन्द सागर” का हिन्दी अनुवाद कर उसे भी प्रकाशित कराया है। इस पुस्तक के कारण ही चमूपति जी को मुस्लिम रियासत बहावलपुर से अपने निवास गृह से निर्वासित किया गया था। कितना बड़ा त्याग उन्होंने किया था इसका शायद हम अनुमान नहीं कर सकते। पं0 चमूपति जी की अनेक उर्दू पुस्तकों के अनुवाद भी सुलभ हैं।
कृतियाँ.
पं0 चमूपति संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, अरबी आदि भाषाओं के उच्चकोटि के विद्वान, लेखक, कवि एवं वक्ता थे। उन्होने अपने जीवन में देश, धर्म एवं संस्कृति के लिये जो कार्य किये और इन पर हिन्दी, अंग्रेजी एवं उर्दू में जो उच्च कोटि की रचनायें दी हैं।
सोम-सरोवर बहुत उच्च कोटि की रचना है। उन्होंने इस पुस्तक में सामवेद के मन्त्रों की भावपूर्ण व्याख्या की है। गद्य में होने पर भी इस पुस्तक को पढ़कर पद्य का सा आनन्द आता है। एक बार श्री वीरेन्द्र जी, सम्पादक, आर्यमर्यादा, जालन्धर ने सम्पादकीय में लिखा था कि इस पुस्तक पर उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया जा सकता था परन्तु पुरस्कार देने में पक्षपात के कारण वह इस पुस्तक पर पुरस्कार प्राप्त नहीं कर सके।
दयानन्द की प्रशंसा और गुणगान.
पं. चमूपति जी की ऋषि दयानन्द के बारे में कहते हैं-
उनके विचार कितने सधे हुए हैं, देखिए-
दयानन्द-आनन्द-सागर के पद्य देखिए-
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लाखांदूर. लाखांदूर यह महाराष्ट्र के भंडारा जिला का एक तहसील है| यहा उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए यशवंतराव चव्हाण प्रबंध महाविद्यालय, लाखांदूर एक अच्छा विकल्प है |
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पवनी. पवनी (Pauni), जिसे स्थानीय उच्चारण में पौनी (Pauni) कहा जाता है, भारत के महाराष्ट्र राज्य के भंडारा ज़िले में स्थित एक शहर है।
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मिनिमली इनवेसिव स्ट्रैबिस्मस सर्जरी. मिनिमली इनवेसिव स्ट्रैबिस्मस सर्जरी (MISS) भेंगेपन की शल्यचिकित्सा की एक तकनीक है जिसमें बीमारी की दशा को ठीक करने के लिए पारंपरिक शल्यचिकित्सा की तुलना में छोटे चीरे लगाये जाते हैं, और इस प्रकार ऊतकों को कम नुकसान पहुँचता है। मूल रूप से स्विस नेत्र रोग विशेषज्ञ डैनियल मोजोन द्वारा 2007 के आसपास तकनीक की शुरुआत की गई थी, बेल्जियम के नेत्र रोग विशेषज्ञ मार्क गोबिन ने 1994 में एक फ्रांसीसी-भाषा की पाठ्यपुस्तक में इस विचार का वर्णन किया था।
लक्षण.
MISS एक ऐसी तकनीक है, जिसे ऋजु-पेशी निकासियों, उच्छेदानों, प्रवलन, पुनारुपचार, प्रतिस्थापन, अलम्बवत मांसपेशीय निकासी, या प्रवलन, और समायोज्य टांकों जैसी सभी प्रमुख प्रकार की भेंगेपन की शल्यचिकित्सा में उपयोग किया जा सकता है, यहाँ तक कि सीमित गतिशीलता की स्थिति में भी। छोटे खुलाव और कम दर्दनाक प्रक्रिया को सामान्य रूप से शल्यक्रिया पश्चात मरीज को तीव्रतर स्वास्थ्यलाभ और कम सूजन व असुविधा से जोड़ कर देखा जाता है। यह माना जाता है कि इस तकनीक को कई रोगियों (मुख्य रूप से वयस्कों) में एक बाहरी-रोगी क्रिया के रूप में किया जा सकता है जो अन्यथा अस्पताल में भर्ती होते। 2017 में प्रकाशित एक अध्ययन बतलाता है कि पारंपरिक स्ट्रैबिस्मस सर्जरी कराने वाले समूह और MISS विधि से शल्यचिकित्सा कराने वाले दो समूहों के बीच दीर्घावधि परिणाम समान रहे, लेकिन MISS के बाद शल्यक्रिया पश्चात नेत्रश्लेष्मलाशोथ और पलकों में सूजन की शिकायत व जटिलताएं कम पायी गयी। एक अन्य लाभ यह है कि MISS तकनीक से कुछ रोगियों में अग्र भाग इस्केमिया (रक्त/ऑक्सीजन की कमी) का खतरा कम हो सकता है, विशेष रूप से ग्रेव्स नेत्र रोग से पीड़ित रोगियों के मामले में।
सिद्धांत.
MISS में शल्यचिकित्सक द्वारा आवर्धक लेंस के बजाय ऑपरेटिंग माइक्रोस्कोप का उपयोग किया जाना चाहिए। भेंगेपन की पारंपरिक शल्यचिकित्सा में नेत्रश्लेष्मला में बड़ा चीरा लगाया जाता है, वहीँ इस क्रिया में जहाँ मुख्य शल्य क्रिया, आमतौर पर टाँके, करनी होती है वहाँ कई छोटे-छोटे चीरे लगाये जाते हैं। शल्यक्रिया पश्चात् असुविधा को यथासंभव कम करने के लिए खुलवाट/चीरे को कॉर्नियल लिंबस से यथासंभव दूर रखा जाता है। इन दो चीरों के बीच, जिन्हें कीहोल ओपनिंग कहा जाता है, एक "सुरंग मार्ग" होता है जिसका उपयोग शल्यचिकित्सक द्वारा आँखों की मांसपेशियों के उपचार के लिए उपकरण डालने के लिए किया जाता है। ऑपरेशन के अंत में, कीहोल चीरों को घुल जाने वाले टांकों से बंद कर दिया जाता है। इन छोटे चीरों को शल्यक्रिया पश्चात् पलकों द्वारा ढँक दिया जाता है। MISS के चीरे कॉर्नियल जटिलताओं की आवृत्ति और गंभीरता को उल्लेखनीय रूप से कम कर देते हैं, उदाहरण के लिए, ड्राई आई सिंड्रोम और डलेन गठन, साथ ही आँख के लेंस भी जल्दी पहने जा सकते हैं। नेत्रश्लेष्मला की लाली की वृद्धि और पेरिमस्कुलर ऊतक के घाव में कमी जिससे दीर्घावधि लाभ मिलते हैं, जो पुनः शल्यक्रिया में मददगार साबित हो सकते हैं - यदि आवश्यक हो।
नैदानिक परिणाम.
शल्यक्रिया पश्चात नेत्र संबंधी संरेखण के बारे में MISS के बाद के परिणाम पारंपरिक शल्यक्रिया के बराबर ही हैं हालाँकि अभी तक इस सम्बन्ध में सीमित साहित्य ही उपलब्ध है। यह दस्तावेज दर्ज किया गया था, उदाहरण के लिए, 40 बच्चों पर अध्ययन किया गया था; जिन बच्चों पर मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया की गयी थी, उनमें शल्यक्रिया के बाद कंजंक्टिवा और पलकों की सूजन कम पायी गयी थी। MISS के मुख्य लाभों में जटिलताओं की कम दर और शीघ्रतर स्वास्थ्यलाभ को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। रेक्टस मांसपेशियों और साथ ही अलम्बवत मांसपेशियों की शल्यक्रिया में भी इस तकनीक की प्रभावकारिता देखी गयी है। भारत के एक समूह ने ग्रेव्स ऑर्बिटोपैथी के रोगियों में MISS के सफल कार्यप्रदर्शन के बारे में सूचित किया था।
नुकसान और संभावित जटिलतायें.
MISS में पारंपरिक शल्यचिकित्सा की तुलना में अधिक समय लगता है। सुरंग मार्ग के माध्यम से मांसपेशियों की शल्यक्रिया चिकित्सक के लिए अधिक श्रमसाध्य कार्य होता है। वयोवृद्ध मरीजों में कीहोल चीरे फट/खुल सकते हैं। यदि टेनॉन कैप्सूल में फटाव हो, तो परिणामस्वरुप निशान बना रह सकता है। रोके न जा सकने वाले अत्यधिक रक्तस्राव की स्थिति में वेसल/नाड़ी को दागने के लिए चीरे को बड़ा करने की जरुरत पड़ सकती है। आमतौर पर, जैसा कि पारंपरिक स्ट्रैबिस्मस सर्जरी में होता है, लिम्बल चीरे से बचा जा सकता है। हालांकि, कुछ रिपोर्टें हैं, जिनमें उन जटिलताओं का उल्लेख है जो ख़ास कर MISS के मामले में होती हैं।
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डेनियल मोजोन. डैनियल मोजोन (29 जुलाई 1963 को बर्न, स्विटज़रलैंड में जन्म) एक स्विस नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं, जिन्हें न्यूनतम चीरफाड़ वाली भेंगापन शल्यक्रिया (मिनिमली इनवेसिव स्ट्रैबिस्मस सर्जरी-MISS) का आविष्कारक माना जाता है।
वैज्ञानिक कार्य.
कला इतिहासकार ल्यूक मोजोन के पुत्र, डैनियल मोजोन ने बर्न विश्वविद्यालय और न्यूयॉर्क, अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय से चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन किया था। उन्होंने बर्न में विश्वविद्यालय नेत्र चिकित्सालय और सेंट गैलेन के कैंटोनल अस्पताल में नेत्र विज्ञान विभाग में वरिष्ठ पदों पर कार्य किया है। बर्न विश्वविद्यालय अस्पताल (इनसेलस्पिटल) में, वे स्ट्रैबिस्मोलॉजी (भेंगापन विज्ञान) और न्यूरोऑप्थैल्मोलॉजी (न्यूरो नेत्र विज्ञान) विभाग के मुख्य चिकित्सक थे, साथ ही मोतियाबिंद बाह्य रोगी चिकित्सालय के प्रमुख भी थे। सेंट गैलन के कैंटोनल अस्पताल के नेत्र विज्ञान क्लिनिक में उन्होंने प्रायोगिक ऑकुलोग्राफी के लिए प्रयोगशालाओं का नेतृत्व किया था। सन् 2000 में बर्न में विश्वविद्यालय नेत्र चिकित्सालय में उन्होंने पोस्टडॉक्टरल व्याख्यान योग्यता अर्जित की। तत्पश्चात वे बर्न विश्वविद्यालय में पढ़ाते रहे हैं, जहाँ वे 2007 में मानद प्रोफेसर बने; मोजोन जोहान्स केपलर यूनिवर्सिटी लिंज़ के नेत्र चिकित्सालय में सलाहकार भी हैं। खुद को निजी शोध और अभ्यास के लिए समर्पित कर सकने हेतु 2012 में उन्होंने सेंट गैलन के कैंटोनल अस्पताल में अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया। मोजोन का विवाह स्वास्थ्य अर्थशास्त्री स्टेफनिया मोजोन-अज़ी से हुआ है।
वैज्ञानिक कार्य.
भेंगापन के मनोसामाजिक पहलू उनके वैज्ञानिक शोध का मुख्य केंद्र हैं। कई अध्ययनों में, मोजोन ने प्रदर्शित किया है कि भेंगापन के रोगी किस हद तक प्रतिकूलता झेलते हैं और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अपमानित हैं। 1990 के दशक से भेंगेपन के इलाज में विशेषज्ञता प्राप्त मोजोन ने न्यूनतम चीरफाड़ वाली भेंगापन शल्यक्रिया (मिनिमली इनवेसिव स्ट्रैबिस्मस सर्जरी-MISS) भी विकसित की है, जिसमें हार्म्स की लिम्बल ओपनिंग की पारंपरिक तकनीक या पार्क्स द्वारा विकसित फोर्निक्स तकनीक के विपरीत कंजाक्तिवा / नेत्रश्लेष्मला को मात्र दो से तीन मिलीमीटर के बहुत छोटे चीरों के माध्यम से खोला जाता है। इस पद्धति के आगमन के दस साल बाद, इस पद्धति की सुरक्षा और इस तरह के ऑपरेशन के बाद तीव्र गति से स्वास्थ्यलाभ को व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है; हालांकि, शल्य-चिकित्सक के लिए पारंपरिक भेगापन शल्यक्रिया की तुलना में इसे सीखना और करना अधिक कठिन है क्योंकि पारंपरिक पद्धतियों में आमतौर पर एक सेंटीमीटर से अधिक बड़े चीरे लगाने होते हैं।
मोजोन ने नेत्र शल्य चिकित्सा की अन्य न्यूनतम चीरफाड़ वाली शल्य क्रिया तकनीकें भी पेश कीं: मोतियाबिंद की शल्यक्रिया की तथाकथित वीआईपी तकनीक (विस्कोलेस्टिक एंड इरीगेशन प्रेशराइज्ड टेकनीक) और ग्लूकोमा के शल्य उपचार के लिए डीप स्क्लेरोकेराटोडिसेक्शन। ग्लूकोमा मोजोन के शोध का एक और केंद्रीय विषय है। अपने शोध समूह के साथ, उन्होंने अन्य चीजों के अलावा, स्लीप एपनिया सिंड्रोम और इस आम नेत्र रोग के बीच नजदीकी संबंध दिखाया है।
2016 में, मोजोन ने कई स्विस नेत्र रोग विशेषज्ञों (डाइटमर थुम्म, अल्बर्ट फ्रेचेज़केत्ती और कार्ल हर्बोर्ट सहित) के साथ मिलकर स्विस एकेडमी ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी की स्थापना की। फाउंडेशन का उद्देश्य व्यावहारिक नेत्र विज्ञान में गुणवत्ता का भरोसा, अनुसंधान और सतत शिक्षा को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना है। सितंबर 2018 में मोजोन DOG (जर्मन ऑप्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी) सम्मेलन में न्यूनतम इनवेसिव नेत्र शल्य चिकित्सा के विषय पर मुख्य व्याख्यान देने वाले पहले स्विस नेत्र रोग विशेषज्ञ थे। शल्य नेत्र विज्ञान के क्षेत्र में उनके अभिनव योगदान के लिए और विशेष रूप से MISS के आविष्कार के लिए, अप्रैल 2019 में, मोजोन को टोरंटो विश्वविद्यालय के जैक क्रॉफर्ड दिवस पर मानद व्याख्यान से सम्मानित किया गया। नवंबर 2020 में अमेरिकन एकेडमी ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी (AAO) ने उन्हें 'अनसंग हीरो' के रूप में सम्मानित किया, आधुनिक नेत्र शल्य चिकित्सा जगत का एक ऐसा नवप्रर्वतक जिसे अभी तक वो पहचान नहीं मिली जिसका वो हकदार है। मोजोन मोतियाबिंद शल्य चिकित्सकों के एक अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन के संस्थापक हैं, जिसे पहली बार अक्टूबर 2023 में ज्यूरिख में आयोजित किया गया था।
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कौशिकी चक्रवर्ती. विदुषी कौशिकी चक्रवर्ती (; जन्म 24 अक्टूबर 1980) एक भारतीय शास्त्रीय गायिका है और अजॉय चक्रबर्ती की बेटी हैं। वह पटियाला घराने से आती है। उसके गायन की सूची में ख्यालों और ठुमरियाँ को शामिल किया गया है, जो'अर्ध-शास्त्रीय' या 'हल्की शास्त्रीय' शैली में आता है। वह कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों की प्राप्तकर्ता रही हैं, जैसे कि 2005 में एशिया / प्रशांत श्रेणी में विश्व संगीत के लिए बीबीसी रेडियो 3 अवार्ड्स, और कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समारोहों और सम्मेलनों में प्रदर्शन किया है। उन्होंने अपने पति पार्थसारथी देसिकन के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रदर्शन किया है। 2020 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कौशिकी चक्रबर्ती को नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया।
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ध्यान सम्प्रदाय. ध्यान सम्प्रदाय की खोज और जानकारी अतिआवश्यक इन मायनों में हो जाती है की बोधिधर्म के द्वारा इसका सूत्रपात किया गया जिसका अनुपालन उनके शिष्य हुतेई के द्वारा आगे जीवित रखा गया ये मौन की वो उच्चतम और आंतरिक अवस्था है जिसमें साधक प्रकृति के साथ गहनतम लयबद्धता विकसित कर लेते है और वो इसमे इतने पारंगत हो जाते है कि अपने पंचतत्व की प्रकृति का शक्तियों की तरह उपयोग करने की कला को भी जी सकते हैं। सम्मोहन की विशिष्ट विद्या को भी इससे जोड़ कर शायद देखा जाना उचित होगा। ध्यान गुरु ओशो के द्वारा भी अपनी कई जेन प्रवचनो में इस तरह की कई विधाओं की ओर प्रकाश डाला गया है। जिसमे धनुर्विद्या में जेन गुरु द्वारा पर्वत की बारीक चोटी पर खड़े होकर आँखों के एक दृष्टि मात्र से ही उड़ते हुए बगूलों के झुंड को मार गिराया गया। ये सारी विधाएं भारतवर्ष से जीवित और विकसित हो सर्व जीव कल्याण हेतु अन्य देशों में भी प्रसारित की गई पर दुर्भाग्य से समय के साथ ये सारी कलाएं अन्य देशों द्वारा ना केवल छुपा ली गई बल्कि क्रूरतापूर्ण ढंग से इनके उदगम में जा कर इन्हें नष्ट करने के प्रयास भी लोभी शासको द्वारा भारत मे किये गए।
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राष्ट्रीय लोक समता पार्टी. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (लघु नाम रालोसपा) उपेन्द्र कुशवाहा के नेतृत्व वाला राजनैतिक दल था। इसकी शुरुआत ३ मार्च २०१३ को हुई थी जो बिहार आधारित पार्टी थी।
फरवरी 2014 को राष्ट्रीय लोक समता पार्टी राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में शामिल हो गई. 2014 के आम चुनाव में रालोसपा ने बिहार से तीन सीटों सीतामढ़ी, काराकट और जहानाबाद पर चुनाव लड़ा.रालोसपा ने इस चुनाव में तीनों सीटों पर जीत हासिल की.
गठन और प्रारंभिक वर्ष.
उपेंद्र कुशवाहा को 2007 में जनता दल (यूनाइटेड) से बर्खास्त कर दिया गया था। कुशवाहा ने फरवरी 2009 में राष्ट्रीय समता पार्टी की स्थापना की। बिहार में नीतीश कुमार सरकार द्वारा कोइरी जाति के कथित हाशिए और निरंकुश शासन की पृष्ठभूमि में पार्टी का गठन किया गया था। पार्टी के गठन का समर्थन महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री छगन भुजबल ने किया था। नवंबर 2009 में, पार्टी को कुशवाहा और कुमार के बीच संबंधों के मेल के साथ जनता दल (यूनाइटेड) में मिला दिया गया।
4 जनवरी 2013 को, उपेंद्र कुशवाहा, जो उस समय राज्यसभा सदस्य थे, ने जनता दल (यूनाइटेड) से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने आरोप लगाया कि नीतीश मॉडल विफल हो गया और कानून-व्यवस्था की स्थिति उतनी ही खराब होती जा रही है जितनी 7 साल पहले थी। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि नीतीश कुमार अपनी सरकार को निरंकुश तरीकों से चलाते हैं और उन्होंने जनता दल (युनाइटेड) को अपने "पॉकेट संगठन" में बदल दिया है।".
कुशवाहा ने 3 मार्च 2013 को पटना के गांधी मैदान में एक रैली में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का गठन किया। गठन के समय, कुशवाहा ने कहा था कि पार्टी बिहार राज्य में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को उखाड़ फेंकने का प्रयास करेगी। हालांकि, गठबंधन से जनता दल (यूनाइटेड) के प्रस्थान के बाद, पार्टी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हो गई। बाद के 2014 के भारतीय आम चुनाव में, इसने गठबंधन के हिस्से के रूप में बिहार (सीतामढ़ी, काराकाट और जहानाबाद) में 3 संसदीय सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी को जीत लिया। उपेंद्र कुशवाहा को काराकाट निर्वाचन क्षेत्र से चुना गया था और उन्हें मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था। अगले 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में, पार्टी ने गठबंधन के हिस्से के रूप में 243 सीटों में से 23 पर चुनाव लड़ा, लेकिन वह केवल दो सीटों से अपने प्रतिनिधि का चुनाव कर पाई।
गुटबाजी.
2015 के अंत से, पार्टी दो गुटों में विभाजित थी; एक उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व में और दूसरा अरुण कुमार के नेतृत्व में, जहानाबाद निर्वाचन क्षेत्र से संसद का सदस्य। 2016 में, अरुण कुमार के धड़े ने एक बैठक की, जिसमें पार्टी के नेता के रूप में अरुण कुमार के साथ कुशवाहा को बदलने की घोषणा की गई। बैठक में बिहार विधानसभा के सदस्य ललन पासवान भी शामिल हुए थे। कुमार ने दावा किया कि उनका गुट पार्टी के असली प्रतिनिधि थे। और उन्होंने कुशवाहा पर पार्टी चलाने के निरंकुश साधनों को अपनाने का आरोप लगाते हुए पार्टी के नाम और प्रतीक के लिए चुनाव आयोग के पास जाने का फैसला किया। प्रतिशोध में, पार्टी की अनुशासनात्मक समिति का गठन करने वाले कुशवाहा गुट ने अरुण कुमार और ललन पासवान दोनों को "अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधी गतिविधियों" के लिए निलंबित करने की सिफारिश की। अनुशासन समिति का नेतृत्व पार्टी के संसद सदस्य राम कुमार शर्मा कर रहे थे।
जून 2018 में, पार्टी ने अरुण कुमार के धड़े के साथ औपचारिक रूप से राष्ट्रीय जनता पार्टी (सेकुलर) का गठन किया। उसी वर्ष, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन छोड़ दिया। पार्टी ने जनता दल (युनाइटेड) पर निशाना साधते हुए आगामी आम चुनाव के लिए सीट बंटवारे की व्यवस्था पर गठबंधन के साथ एक तर्क दिया था, जिसने गठबंधन को फिर से जोड़ दिया। इसके कारण पार्टी के सभी तीन राज्य विधायकों से बगावत हो गई, जिन्होंने घोषणा की कि उन्होंने असली पार्टी का प्रतिनिधित्व किया, आपत्ति जताई कि उनका गठबंधन में बने रहने का इरादा है। विधायक उस समय बिहार के मंत्रिपरिषद में सुधांशु शेखर को शामिल करने का प्रयास कर रहे थे, जिसका नेतृत्व नीतीश कुमार कर रहे थे। शेखर बिहार में राज्य पार्टी के विधायकों में से एक थे।हालाँकि 20 दिसंबर 2018 को, उपेंद्र कुशवाहा ने घोषणा की कि पार्टी विपक्ष संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में शामिल हो गई थी। इससे पहले 2017 में, नागमणि के नेतृत्व वाले समरस समाज पार्टी का राष्ट्रीय लोक समता पार्टी में विलय कर दिया गया था। नागमणि को बाद में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बना दिया गया। फरवरी 2019 में, उन्हें कथित "पार्टी विरोधी" गतिविधियों के लिए पद से बर्खास्त कर दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने पार्टी से इस आधार पर इस्तीफा दे दिया कि उपेंद्र कुशवाहा कथित तौर पर आगामी चुनाव के लिए पार्टी के टिकट बेच रहे थे।
2019 के भारतीय आम चुनाव में, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने 5 संसदीय सीटों पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के हिस्से के रूप में उपेंद्र कुशवाहा ने दो सीटों से चुनाव लड़ा। हालांकि पार्टी एक भी सीट पर जीतने में असमर्थ रही, जबकि गठबंधन ने बिहार में सिर्फ एक सीट जीती। चुनाव के बाद, पार्टी के सभी तीन पूर्व असंतुष्ट राज्य विधायक जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल हो गए।
विलय.
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में करारी हार के बाद पार्टी के अधिकांश बागी नेताओं ने राष्ट्रीय जनता दल का दामन थाम लिया जिसके बाद उपेन्द्र कुशवाहा ने पार्टी का विलय जनता दल यूनाइटेड में कर दिया जिसके बाद उन्हें जद(यू) कोटे से बिहार विधान परिषद का सदस्य (एमएलसी) बनाया गया था।
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सैयद अब्दुल हादी. सैयद अब्दुल हादी (जन्म 1940 जुलाई 1) बांग्लादेश के एक प्रसिद्ध संगीत कलाकार हैं। उन्हें पांच बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। संगीत में उनके योगदान के लिए उन्हें बांग्लादेश में दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान एकुशी पदक मिला।
प्रारंभिक जीवन.
हादी का जन्म तत्कालीन ब्रिटिश भारत के कस्बा ब्राह्मणबरिया के शाहपुर गाँव में हुआ था। वह अपने नाना के घर, अगरतला में पले-बढ़े, जो अगरतला अदालत के वकील थे। उन्होंने ढाका कॉलेज और ढाका विश्वविद्यालय से स्नातक किया।
कैरियर.
हादी ने फिल्म 'ये भी एक कहानी' के लिए एक गायक के रूप में शुरुआत की (1964)
वर्क्स.
सोलो एल्बम
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मैनुअल टरीज़ो. मैनुअल टरीज़ो ज़पाटा ( Montería, कोलम्बिया, अप्रैल 12, 2000), MTZ के रूप में जाना जाता है, एक है कोलम्बियाई शहरी शैली के गायक।
लोकप्रिय रूप से जूलियन के भाई के रूप में जाना जाता है जिसने उन्हें लैटिन अमेरिका और स्पेन जैसे यूरोपीय देशों में अपने करियर का विस्तार किया। जून 2017 तक, गीत का आधिकारिक वीडियो YouTube पर एक बिलियन विचारों तक पहुंच गया । 23 अगस्त, 2019 को, उन्होंने Zion y Lennox, Noriel, Ozuna, Nicky Jam, Sech और Anuel AA के सहयोग के साथ अपना पहला एल्बम ADN जारी किया, ADN बिलबोर्ड हॉट लैटिन में आठवें स्थान पर पहुंच गया।
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शिलांग लॉ कालेज. शिलांग लॉ कॉलेज (या शिलांग विधि महाविद्यालय) नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी से संबद्ध एक अंडर ग्रेजुएट विधि महाविद्यालय ("लॉ कॉलेज)" है। यह कॉलेज माल्की, शिलांग में मेघालय राज्य में स्थित है। इस कॉलेज ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI), नई दिल्ली का अनुमोदन प्राप्त कर लिया है। यह तीन साल का विधि स्नातक पाठ्यक्रम ( "एलएलबी") प्रदान करता है।
इतिहास.
मेघालय राज्य बनने से पहले ही 1964 में शिलांग लॉ कॉलेज की स्थापना की गई थी। वर्तमान में यह उत्तर पूर्व भारत में कानूनी शिक्षा के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक है।
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विलियम कैरे विश्वविद्यालय, मेघालय.
विलियम कैरी विश्वविद्यालय मेघालय, भारत में शिलांग में स्थित है। इसका नाम विख्यात बैपटिस्ट मिशनरी विलियम कैरी के नाम पर रखा गया है। विलियम कैरी विश्वविद्यालय एक संस्था है जो मुख्य रूप से उच्च शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध है जहां अकादमी लोगों और उनके संदर्भों के बारे में कुल परिवर्तन लाने के लिए सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय वास्तविकताओं के साथ एकीकृत करती है। विश्वविद्यालय समुदाय के लिए समग्र विकास के साथ-साथ एक रणनीतिक संस्थान बनने के लिए सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय, सांस्कृतिक और शैक्षणिक गतिविधियों को एक साथ लाएगा।
पूर्वोत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों के अनूठे संदर्भ में अध्ययन कार्यक्रमों और अनुसंधान की एक अभिनव श्रेणी का आयोजन किया जाएगा, जहां सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ-साथ स्वदेशी संस्कृति और प्राकृतिक वातावरण कायम रहेगा। भोजन, पानी और ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा और दुनिया भर के साझेदार डब्ल्यूसीयू के साथ भाग लेंगे।
संदर्भ.
यूजीसी के अनुसार विश्वविद्यालय संपर्क सूची
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टेक्नो ग्लोबल विश्वविद्यालय. टेक्नो ग्लोबल यूनिवर्सिटी मध्य प्रदेश "टेक्नो ग्लोबल यूनिवर्सिटी एक्ट, २०१३ के" माध्यम से स्थापित एक निजी विश्वविद्यालय है
टेक्नो ग्लोबल यूनिवर्सिटी विभिन्न शैक्षणिक विषयों जैसे कला, मानविकी, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, वाणिज्य, शिक्षा, इंजीनियरिंग, प्रबंधन, कंप्यूटर अनुप्रयोग, फार्मेसी, संबद्ध स्वास्थ्य विज्ञान, पत्रकारिता और जन संचार, पुस्तकालय और सूचना विज्ञान, वास्तुकला और नगर नियोजन, होटल प्रबंधन और खानपान प्रौद्योगिकी, नर्सिंग, कृषि और डेयरी प्रौद्योगिकी, कानून और अन्य प्रासंगिक विषय में एम.फिल और पीएचडी कार्यक्रमों सहित स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रदान करता है ।
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शिलांग के शैक्षणिक संस्थानों की सूची. यह भारत के पूर्वोत्तर राज्य मेघालय की राजधानी, शिलांग में स्थित शैक्षणिक संस्थानों की सूची है:
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नीलम शर्मा. नीलम शर्मा (1969 - 17 अगस्त 2019) एक भारतीय एंकर और पत्रकार थीं, जिन्हें दूरदर्शन के संस्थापक एंकरों में से एक के रूप में जाना जाता था और वे भारत में महिला के लिए सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार नारी शक्ति सम्मान प्राप्त करने वाली थीं। अपने शो तेजस्विनी के माध्यम से, नीलम ने भारत की महिलाओं की उपलब्धि पर ध्यान केंद्रित किया।वह एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता भी थीं, जिनके नाम पर 60 से अधिक फिल्में थीं। उन्होंने 1995 में दूरदर्शन से अपने करियर की शुरुआत की और 20 वर्षों से चैनल के साथ जुड़ी रहीं। कैंसर के कारण 50 वर्ष की आयु में 17 अगस्त 2019 को उनका निधन हो गया।
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बांग्लादेश अर्थनीति समिति. बांग्लादेश अर्थनीति समिति () बांग्लादेश के पेशेवर अर्थशास्त्रियों का एक संघ है। इस संघ में 4000 से अधिक सदस्य हैं।
इतिहास.
बांग्लादेश अर्थनीति समिति ने फरवरी 2012 में ढाका स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की स्थापना की।
2017 में, प्रोफेसर डॉ अबुल बरकत को एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया और डॉ। जमालुद्दीन अहमद को इसका महासचिव चुना गया। यह अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संघ का सदस्य है.
सन्दर्भ.
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जिञटरा फूणलाप. जिञटरा फूणलाप (, जन्म 6 मार्च 1969) एक थाईलैंड गायिका, नर्तिका, मॉडल और अभिनेत्री है।
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पहलवान (लघु फ़िल्म). पहलवान अथवा द रेसलर भारत का प्रथम लघु चलचित्र (फ़िल्म) है, जो 1899 में प्रदशित हुआ। इसके निर्माता एवं निर्देशक हरिश्चंद्र सखाराम भाटवडेकर थे, जिन्हें सावे दादा के नाम से भी जाना जाता है।
बम्बई में इनकी पहली फिल्म हैंगिंग गार्डन में शुट की गई थी, जिसे भारतीय सिनेमा के इतिहास में ‘द रेसलर’ के नाम से जाना जाता है। यह एक कुश्ती मैच की सरल रिकॉर्डिंग थी, जिसे 1899 में आम जनमानस के लिए प्रदर्शित किया गया था और इसे ही भारतीय सिनेमा के इतिहास में पहला चलचित्र माना जाता है।
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खाङ शुलगि. खाङ शुलगि (, जन्म 20 फ़रवरी 1994) एक दक्षिण कोरिया गायिका, नर्तिका, मॉडल और अभिनेत्री है।
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मोंटेवीडियो सिटी टॉर्क. मोंटेवीडियो सिटी टॉर्क एक उरुग्वे फुटबॉल क्लब मोंटेवीडियो में स्थित है। यह 2007 में स्थापित किया गया था और वर्तमान में उरुग्वे प्राइमेरा डिविज़न में खेलता है, जो उरुग्वे लीग प्रणाली का पहला टीयर है।
6 अप्रैल 2017 को क्लब का पब्लिक लिमिटेड कंपनी में रूपांतरण और सिटी फुटबॉल समूह द्वारा खरीद की पुष्टि की गई।
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कम्प्यूटर-साधित अभिकल्प. कम्प्यूटर का उपयोग करके किसी डिजाइन का सृजन, परिवर्तन/परिवर्धन, विश्लेषण या इष्टतमीकरण करना कम्प्यूटर-साधित अभिकल्प (Computer-aided design या CAD / कैड) कहलाता है। वर्तमान समय में कम्प्यूटर-साधित अभिकल्पन के लिए अनेकों प्रकार के सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं जिन्हें 'कैड सॉफ्टवेयर' कहा जाता है। इनका उपयोग करके डिजाइन करने वाले व्यक्ति की उत्पादकता बढ़ायी जा सकती है, या डिजाइन की गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है, या अच्छे दस्तावेज निर्मित कर प्रभावी विचार-विनिमय किया जा सकता है, या विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) के लिए डेटाबेस बनाया जा सकता है। कैड का आउटपुट प्रायः इलेक्ट्रॉनिक फाइलों के रूप में होता है या प्रिन्ट-आउट के रूप में होता है। कभी-कभी CADD शब्द का उपयोग किया जाता है, जिसका अर्थ है 'कम्प्यूटर-साधित अभिकल्प एवं ड्राफ्टिंग' (Computer Aided Design and Drafting).
जो सॉफ्टवेयर इलेक्ट्रॉनिक तंत्र के डिजाइन के लिए उपयोग किए जाते हैं उन्हें इलेक्ट्रॉनिक डिजाइन स्वचालन (electronic design automation) या EDA) कहते हैं। यांत्रिक अभिकल्प के लिए जो सॉफ्टवेयर प्रयुक्त होते हैं उन्हें 'यांत्रिक डिजाइन स्वचाल्न' (mechanical design automation या MDA या कम्प्यूटर-साधित ड्राफ्टिंग (computer-aided drafting / CAD) कहते हैं।
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बीना देवी. बीना देवी मशरूम की खेती के मास्टर ट्रेनर हैं। मशरूम की खेती को लोकप्रिय बनाने के लिए 'मशरूम महिला' के रूप में लोकप्रिय, बीना देवी पांच साल के लिए टेटियाबंबर ब्लॉक के धौरी पंचायत की सरपंच थीं। उन्होंने मशरूम और जैविक खेती, वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन और जैविक कीटनाशक तैयार करने के लिए किसानों को प्रशिक्षित किया है।
व्यवसाय.
बीना देवी ने ग्रामीण महिलाओं के बीच स्वरोजगार पैदा किया और डेयरी फार्मिंग और बकरी पालन भी किया। उन्होंने बिहार के मुंगेर जिले में पांच ब्लॉकों और 105 पड़ोसी गांवों में मशरूम उत्पादन को लोकप्रिय बनाया है, 1,500 महिलाओं को प्रभावित कर उन्हें मशरूम की खेती को अपनाया है।
वह डिजिटल साक्षरता फैलाने में शामिल रही हैं और उन्हें टाटा ट्रस्ट द्वारा मोबाइल का उपयोग करने के लिए 700 महिलाओं को प्रशिक्षित करने के लिए सम्मानित किया गया। उन्होंने 2,500 किसानों को SRI मेथड क्रॉप फार्मिंग का प्रशिक्षण दिया और स्वयं सहायता समूह का समर्थन तैयार किया। 9 मार्च, 2020 को उन्हें राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा नारी शक्ति सम्मान से बीना देवी को सम्मानित किया गया।
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मूल आवेश. एक प्रोटॉन के ऊपर जितना विद्युत आवेश पाया जाता है, उसे मूल आवेश कहते हैं। इसे e द्वारा दर्शाया जाता है और कभी-कभी e द्वारा दर्शाया जाता है। इसका मान होता है। 'मूल आवेश' एक मूलभूत भौतिक नियतांक है।
चूँकि इलेक्ट्रॉन पर भी उतना ही आवेश होता है जितना प्रोटॉन पर, इसलिए एक इलेक्ट्रॉन के आवेश का मान (बिना चिह्न के) भी मूल आवेश के बराबर ही होता है। ध्यातव्य है कि "e" संकेत का अन्य स्थानों पर भी उपयोग होता है। उदाहरण के लिए कभी कभी इलेक्त्रॉन के आवेश को (चिह्न सहित) भी "e" से दर्शाते हैं। अर्थात कहीं पर e का मान 1.602176634×10−19 C है तो कहीं -1.602176634×10−19 C . इसी प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका में प्राकृतिक लघुगणक के आधार (base) को भी प्रायः "e" (italicized) से दर्शाया जाता है, जबकि यूके और अन्य यूरोपीय देशों में इसे e (roman type) में दर्शाते हैं।
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अनुराग सारंगी. अनुराग सारंगी (जन्म 17 दिसंबर 1992) एक भारतीय क्रिकेटर हैं जो ओडिशा के लिए खेलते हैं। सारंगी ने 2014 में महाराष्ट्र के खिलाफ प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया।
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गोविंदा पोद्दार. गोविंदा भक्तिरंजन पोद्दार (जन्म 9 सितंबर 1991) एक भारतीय क्रिकेटर हैं।
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डीआरआईईएमएस ग्राउंड. धनेश्वर रथ इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट साइंसेज ग्राउंड, भारत के ओडिशा के कटक शहर में स्थित है।
वर्तमान में इसका उपयोग भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और ओडिशा क्रिकेट एसोसिएशन फॉर वूमेन वनडे इंटरनेशनल और फर्स्ट क्लास मैचों में किया जाता है। स्टेडियम वर्तमान में भारत की राष्ट्रीय महिला क्रिकेट टीम और दो भारतीय घरेलू क्रिकेट टीम, ओडिशा और पूर्वी क्षेत्र के लिए घरेलू मैदान के रूप में उपयोग किया जाता है। धनेश्वर रथ इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट साइंसेज ग्राउंड ने 2013 महिला क्रिकेट विश्व कप की मेजबान टीम इंडिया के साथ 3 एकदिवसीय मैचों की मेजबानी की है।
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मूलराज राजदा. मूलराज राजदा एक भारतीय लेखक, अभिनेता और निर्देशक थे। उन्होंने हिंदी / गुजराती फिल्म्स और टीवी शो में काम किया। उन्होंने अपना अधिकांश करियर गुजराती सिनेमा और थिएटर में काम करने में बिताया। उन्हें रामानंद सागर की टेलीविजन श्रृंखला रामायण में महाराज जनक का रोल के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है। इससे पहले उन्होंने रामानंद सागर की अन्य रचनाओं में भी विभिन्न भूमिकाएँ निभाईं, जिनमें विक्रम और बेताल भी शामिल हैं। उन्होंने टेलीविजन श्रृंखला विश्वामित्र में भी वशिष्ठ का रोल चित्रित किया है। वह साथी अभिनेता और रामायण के सह-कलाकार समीर राजदा के पिता हैं। उन्होंने 1993 में दूरदर्शन द्वारा प्रसारित ब्योमकेश बक्शी (टीवी श्रृंखला) के एपिसोड भूत में कैलाश चंद्र की भूमिका भी निभाई।
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विक्रम और बेताल. विक्रम और बेताल रामानंद सागर द्वारा निर्मित एक भारतीय टेलीविजन श्रृंखला है जो डीडी नेशनल पर प्रसारित की गई थी। इस श्रृंखला में भारतीय पौराणिक कथाओं की कहानियाँ थीं। कार्यक्रम की अवधारणा बैताल पचीसी नामक किताब पर आधारित थी, जो पौराणिक राजा विक्रम (विक्रमादित्य) और वेताल, जो पश्चिमी साहित्य में एक पिशाच के समान एक आत्मा है, के बारे में कहानियों का एक संग्रह है। रविवार को शाम 4:30 बजे शो का प्रसारण किया जाता था।
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रजित कपूर. रजित कपूर एक भारतीय फिल्म और थिएटर अभिनेता और निर्देशक हैं। उन्हें 1996 की फिल्म, द मेकिंग ऑफ द महात्मा में महात्मा गांधी के किरदार के लिए जाना जाता है। अन्य उल्लेखनीय भूमिकाएँ मलयालम फिल्म अग्निसाक्षी में नायक उन्नी के रूप में हैं, और काल्पनिक टेलीविजन ब्योमकेश बक्शी [तीसरे पक्ष के स्रोत की जरूरत] नाम की टेलीविज़न श्रृंखला में, जिसे बासित चटर्जी द्वारा निर्देशित और दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया है। उनकी पहली फिल्म सूरज का सातवाँ घोड़ा (1992) थी, जिसका निर्देशन श्याम बेनेगल ने किया था।
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रिलायंस डिजिटल. रिलायंस डिजिटल, रिलायंस रिटेल की उपभोक्ता स्थिर तथा सूचना प्रौद्योगिकी की अवधारणा है | यह रिलायंस रिटेल की सहायक कंपनी है, जो रिलायंस इंडस्ट्रीज की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है |
रिलायंस डिजिटल भारत में एक उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी है | पहला रिलायंस डिजिटल स्टोर 24 अप्रैल 2007 को दिल्ली में खोला गया था । वर्तमान में भारत में लगभग 600 शहरों में लगभग 2,000 स्टोर हैं ।
ये स्टोर मुंबई, अहमदाबाद, दिल्ली, कोलकाता, हावड़ा, दुर्गापुर, बैंगलोर, मैसूर, कोच्चि, चेन्नई, हैदराबाद में फैले हुए हैं।
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एस रंगस्वामी अय्यंगार. श्रीनिवास राघवैयंगार रंगस्वामी अय्यंगार (6 जनवरी 1887 – 23 अक्टूबर 1926) भारत के एक अधिवक्ता एवं पत्रकार थे जो १९२३ से १९२६ तक द हिन्दू के सम्पादक रहे। वे एस श्रीनिवास राघवैयंगार के पुत्र तथा एस कस्तूरी रंग अय्यंगार के भतीजे थे।
प्रथम विश्वयुद्ध की घटनाओं के वर्णन के कारण एस रंगस्वामी अय्यंगार को बहुत प्रसिद्धि प्राप्त हुई थी। १९१० के दशक के अन्तिम काल में वे बहुत आक्रामक हो गए थे और ब्रितानी प्रशासक तथा उसके समर्थक उनके निशाने पर रहे। वी एस श्रीनिवास शास्त्री की उन्होने विशेष आलोचना की और उन्हें "ब्रितानी सरकार का पालतू मेमना" कहा। इसी तरह उन्होने महात्मा गांधी की भी कटु आलोचना की।
जब १९२३ में कस्तूरी रंग अय्यंगार का देहान्त हो गया तब रंगस्वामी अय्यंगार 'द हिन्दू' के सम्पादक बने और १९२६ में अपनी अपनी मृत्यु तक सम्पादन कार्य किया। २३ अक्टूबर १९२६ को किसी अज्ञात रोग के कारण उनका निधन हो गया।
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परोपकारिणी सभा. परोपकारिणी सभा आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा स्थापित एक सभा (सोसायटी) है। यह स्वामी दयानन्द सरस्वती की उत्तराधिकारिणी सभा है। इसका निर्माण इस उद्देश्य से किया गया था कि आर्यसमाज के ग्रन्थों का मुद्रण एवं प्रकाशन निर्बाध गति से चले तथा देश-देशान्तर एवं द्वीप-द्वीपान्तर में धर्म-प्रचार, अनाथ रक्षण, अबला उद्धार आदि के लोकोपकारी कार्य पूरे होते रहें। इसका मुख्यालय अजमेर में है।
वर्तमान समय में यह सभा, गुरुकुल, गौशाला, पुस्तकालय, संग्रहालय, वैदिक यन्त्रालय, वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम आदि चलाती है तथा 'परोपकारी' नामक एक पाक्षिक पत्रिका का प्रकाशित करती है। इसके अलावा यह सभा सद्साहित्य का निःशुल्क वितरण, वेद-गोष्ठियों का आयोजन, वेद कण्ठस्थीकरण प्रतियोगिता का आयोजन, विद्वत् सम्मान, ऋषि मेले का आयोजन, वेद-प्रचार यात्राओं का आयोजन, ध्यान-साधना शिविरों का आयोजन, आर्यवीर एवं आर्यवीरांगना दल शिविर का आयोजन, पाण्डुलिपि संरक्षण आदि कार्य भी करती है।
इतिहास.
स्वामी दयानन्द ने परोपकारिणी सभा की प्रथम स्थापना मेरठ में की। तदर्थ १६ अगस्त १८८० ई. को एक स्वीकार पत्र लिखा तथा उसी दिन मेरठ के सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में उसे पंजीकृत कराया गया। इस स्वीकार पत्र में लाहौर निवासी लाला मूलराज को प्रधान तथा आर्यसमाज मेरठ के उपप्रधान लाला रामशरणदास को मन्त्री नियुक्त किया गया था। सभासदों की संख्या 18 थी और स्वामी जी ने इस सभा को अपने वस्त्र, धन, पुस्तक एवं यन्त्रालय आदि के स्वत्व प्रदान किये थे। अन्य प्रतिष्ठित आर्य पुरुषों के अतिरिक्त थियोसोफिकल सोसाइटी के संस्थापक-द्वय कर्नल एच. एस. ऑलकाट तथा मैडम एच.सी. ब्लावट्स्की भी इस सभा के सदस्य नियत किये गये।
कालान्तर में जब स्वामी दयानन्द १८८३ ई. के आरम्भ में उदयपुर आये तो उन्होंने एक अन्य स्वीकार पत्र लिखकर परोपकारिणी सभा का न केवल पुनर्गठन ही किया अपितु उसे उदयपुर राज्य की सर्वोच्च प्रशासिका महद्राज सभा के द्वारा फाल्गुन कृष्णा पञ्चमी १८२९ वि. (२७ फरवरी १८८३ ई.) को पञ्जीकृत भी करवाया। 1883 ई. में जब परोपकारीणी सभा का निर्माण किया गया तब अधिकांश व्यक्ति मेवाड़ के ही थे। इस सभा का मंत्री कविराज श्यामलदास को बनाया गया एवं प्रधान मेवाड़ के महाराणा को नियुक्त किया गया।
किन्तु परोपकारिणी सभा का वास्तविक कार्य तो स्वामी दयानन्द के देहावसान के पश्चात् ही प्रारम्भ हुआ।
उद्देश्य.
स्वीकार पत्र में स्वामीजी ने परोपकारिणी सभा के सम्मुख निम्न लक्ष्य पूर्ति हेतु रखे थे-
ऋषि उद्यान आश्रम.
अजमेर में आनासागर सुरम्य तट पर स्थित ऋषि उद्यान आश्रम अत्यन्त रमणीय है। यह आश्रम परोपकारिणी सभा द्वारा संचालित है। इस आश्रम में ही परोकारिणी सभा की अधिकांश गतिविधियाँ संपन्न होती हैं। जिस भूमि पर यह आश्रम है, वह शाहपुरा नरेश सर नाहरसिंह ने परोपकारिणी सभा को प्रदान की थी। कहा जाता है कि महर्षि के अन्त्येष्टि संस्कार के पश्चात् उनकी राख को इस उद्यान में बिखेरा गया था और उनकी अस्थियों को एक स्थान पर गाड़ दिया गया था, उसी स्थान पर ऋषि उद्यान की केन्द्ररूप यज्ञशाला स्थित है।
इस पूरे परिसर के बीचों-बीच सुन्दर बृहद यज्ञशाला है, जिसमें प्रतिदिन प्रातः सायं दोनों समय यज्ञ-सत्संग का आयोजन किया जाता है। हरी घास वाला विस्तृत उद्यान इस आश्रम की शोभा को और अधिक रमणीय बना देता है।
आश्रम के परिसर में ऊँची अट्टालिकाओं से युक्त 7 भवन हैं-
परोपकारी पत्रिका.
'परोपकारी पत्रिका' परोपकारिणी सभा का मुखपत्र है। यह पाक्षिक पत्रिका है। इसमें वैदिक सिद्धान्तों पर आर्य विद्वानों के शोधपरक लेखों का प्रकाशन होता है। सम्पादकीय लेख में समाज की सामयिक घटनाओं आर्यसमाज का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाता है।
परोपकारी पत्रिका का इतिहास - परोपकारिणी सभा के द्वितीय अधिवेशन में सभा की ओर से सभा का मुखपत्र निकलने का निर्णय लिया गया, जिसका नाम 'परोपकारी' रखा गया। पत्र को छः मासिक एवं हिंदी भाषा में रखा गया। इसका प्रथम अंक कार्तिक शुक्ला १ संवत १९४६ विक्रमी (सन 1889 ई०) में प्रकाशित हुआ, जिसका वार्षिक मूल्य १ रुपया निर्धारित हुआ। इसका दूसरा अंक भी प्रकाशित हुआ, परन्तु उसके बाद इसका प्रकाशन रुक गया। १९०६ ई. के अधिवेशन में इसे मासिक रूप से पुनः प्रकाशित करने का निश्चय हुआ। प्रथम वर्ष में संपादन कार्य सभा के उपमंत्री श्री भक्तराम ने किया। द्वितीय वर्ष के प्रथम अंक से परोपकारी का संपादन कार्य हिंदी के लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार पण्डित पद्मसिंह शर्मा ने स्वीकार किया। शर्मा जी के संपादन काल में पत्र की अभूतपूर्व उन्नति हुई। शर्मा जी के संपादन में इस पत्र के आठ अंक ही निकल सके। संपादन कार्य का भार पुनः श्री भक्तराम के पास आया। नवम्बर १९०९ के अधिवेशन में पत्र का प्रकाशन बंद कर दिया गया। लगभग अर्धशताब्दी के बाद नवम्बर १९५९ ई. (कार्तिक २०१६ वि.) में यह पत्र पुनः प्रारम्भ किया गया। तब से अब तक यह पत्र निरन्तर समाज व सिद्धान्तों की सेवा कर रहा है।
महर्षि दयानन्द बलिदान शताब्दी समारोह १९८३ में डॉ. धर्मवीर परोपकारिणी सभा से जुड़े। उन्होंने परोपकारी पत्रिका के सम्पादन का कार्य संभाला और इसे आर्यजगत की सर्वोच्च पत्रिका बना दिया। उनके सम्पादन काल में परोपकारी ने पाँच सौ से पन्द्रह हजार सदस्यों की यात्रा की। अक्टूबर २०१६ में इहलोक की लीला समाप्त कर स्वयं को अमर कर गए। उनकी मृत्यु के पश्चात् सभा के संयुक्त मंत्री डॉ. दिनेशचंद्र शर्मा को सम्पादक नियुक्त किया गया, जो कि वर्तमान में भी पत्रिका के सम्पादक का कार्यभार संभाल रहे हैं।
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दामोदर मवलंकर. दामोदर मवलंकर (जन्म : सितम्बर 1857 अहमदाबाद - १८८५ में हिमालय की ओर निकल गए थे) भारत के एक थियोसोफी दर्शन से प्रभावित एक व्यक्ति थे।
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हेनरी स्टील ऑलकाट. कर्नल हेनरी स्टील ऑलकाट (Henry Steel Olcott ; 2 अगस्त 1832 – 17 फरवरी 1907) एक अमेरिकी सैन्य अधिकारी, पत्रकार, अधिवक्ता, तथा थियोसोफिकल सोसायटी के सह-संस्थापक एवं प्रथम अध्यक्ष थे। ईसाई धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने वाले वे प्रथम प्रसिद्ध अमेरिकी हैं। थियोसोफिकल सोसायटी के अध्यक्ष के रूप में उनके क्रियाकलापों से बौद्ध धर्म को के पुनरुत्थान में बड़ी सहायता मिली। श्री लंका में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित करने में उनका भारी योगदान है और अपने इस महान योगदान के लिए वे श्रीलंका में बड़े सम्मानित हैं। श्री लंका के लोग उन्हें अपने स्वतंत्रता संग्राम का एक नायक भी मानते हैं।
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कृष्णमूर्ति सिद्धार्थ. कृष्णमूर्ति सिद्धार्थ (जन्म 22 नवंबर 1992) एक भारतीय क्रिकेटर हैं।
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शुभम खजूरिया. शुभम प्रदीप खजूरिया (जन्म 13 सितंबर 1995) एक भारतीय क्रिकेटर हैं जो जम्मू और कश्मीर क्रिकेट टीम के लिए खेलते हैं।
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शुभम पुंडीर. शुभम पुंडीर (जन्म 16 अक्टूबर 1998) एक भारतीय क्रिकेटर हैं। उन्होंने 2017-18 की विजय हजारे ट्रॉफी में 8 फरवरी 2018 को जम्मू और कश्मीर के लिए अपनी लिस्ट ए की शुरुआत की।
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आबिद मुश्ताक. आबिद मुश्ताक (जन्म 17 जनवरी 1997) एक भारतीय क्रिकेटर हैं।
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गांधी मेमोरियल साइंस कॉलेज ग्राउंड. गांधी मेमोरियल साइंस कॉलेज, जिसे आमतौर पर जी.जी.एम. साइंस कॉलेज, पूर्व में वेल्स कॉलेज के प्रिंस, 1905 में स्थापित एक NAAC मान्यता प्राप्त "ए" ग्रेड कॉलेज है जो जम्मू और कश्मीर, भारत के जम्मू शहर में स्थित है। कॉलेज का स्नातक कार्यक्रम विभिन्न विषय संयोजनों में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री प्रदान करता है, जो तीन साल के कार्यक्रम हैं। स्कूल अंग्रेजी और भूविज्ञान में स्नातकोत्तर शिक्षा की डिग्री, कंप्यूटर एप्लीकेशन के स्नातक और कंप्यूटर अनुप्रयोगों, वेब डिजाइनिंग और औद्योगिक इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्रों में प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम भी प्रदान करता है।
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उल्हास गान्धे. उल्हास गान्धे (जन्म 5 अक्टूबर 1974) एक भारतीय पूर्व प्रथम श्रेणी क्रिकेटर हैं। वह अब अंपायर हैं और 2015-16 की रणजी ट्रॉफी में मैचों में खड़े हुए हैं।
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पश्चिम पाठक. पश्चिम गिरीश पाठक (जन्म 17 नवंबर 1976) एक भारतीय क्रिकेट अंपायर हैं।
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चिराग जानी. चिराग सुरेशभाई जानी (जन्म 9 नवंबर 1989) एक भारतीय क्रिकेटर हैं, जो घरेलू क्रिकेट में सौराष्ट्र के लिए खेलते हैं। वह दाएं हाथ के बल्लेबाज और दाएं हाथ के मध्यम गति के गेंदबाज हैं।
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चेंगलपेट ज्ञानेश्वर. चेंगलपेट ज्ञानेश्वर (जन्म 15 अक्टूबर 1997) एक भारतीय क्रिकेटर हैं।
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पृथ्वी राज (क्रिकेटर). पृथ्वी राज (जन्म 20 फरवरी 1998) एक भारतीय क्रिकेटर हैं।
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प्रेरक मांकड़. प्रेरक मांकड़ (जन्म 23 मार्च 1994) एक भारतीय क्रिकेटर हैं जो सौराष्ट्र के लिए खेलते हैं।
प्रेरक मांकड़ एक भारतीय क्रिकेटर हैं जो घरेलू क्रिकेट में सौराष्ट्र और इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में लखनऊ सुपर जायंट्स के लिए खेलते हैं। वह दाएं हाथ के बल्लेबाज और दाएं हाथ के मध्यम तेज गेंदबाज हैं।
मांकड़ का जन्म 23 अप्रैल, 1994 को सिरोही, गुजरात में हुआ था। उन्होंने 2015-16 रणजी ट्रॉफी में सौराष्ट्र के लिए प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया था। तब से उन्होंने 35 प्रथम श्रेणी मैच खेले हैं, 35.00 की औसत से 1,400 रन बनाए हैं और 33.00 की औसत से 50 विकेट लिए हैं।
प्रेरक मांकड़ का जन्म 23 अप्रैल 1994 को राजकोट, गुजरात में एक मध्यमवर्गीय हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम नीलेशकुमा है। प्रेरक को क्रिकेट की शुरुआत में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। जैसे ही उन्होंने प्रथम श्रेणी टूर्नामेंट में खेलना शुरू किया, उनका एकमात्र सपना भारतीय टीम के लिए खेलना था। प्रेरक क्रिकेट खेलते समय तेज गेंदबाजी पर विकेट लेना और लंबे शॉट मारना पसंद करते हैं।
प्रेरक मांकड़ के करियर की कुछ झलकियाँ
2017-18 रणजी ट्रॉफी में 600 रन बनाए, जिसमें दो शतक शामिल हैं।
2017-18 रणजी ट्रॉफी में 20 विकेट लिए।
2017-18 विजय हजारे ट्रॉफी में 200 रन बनाए।
2017-18 विजय हजारे ट्रॉफी में 10 विकेट लिए।
2022 सीजन में पंजाब किंग्स के लिए आईपीएल में डेब्यू किया।
2023 की आईपीएल नीलामी में लखनऊ सुपरजाइंट्स ने खरीदा था। उन्होंने 2 अप्रैल, 2023 को बेंगलुरु के एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम में आयोजित रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर और लखनऊ सुपर जायंट्स के बीच एक मैच में अपना आईपीएल डेब्यू किया। अपने डेब्यू मैच के दौरान उनके बल्ले से 21 रन निकले थे।.
एक क्रिकेटर के रूप में प्रेरक मांकड़ की कुछ ताकत और कमजोरियां इस प्रकार हैं:
प्रेरक मांकड़ के करियर की ताकत:
बल्लेबाजी: मांकड़ एक हार्ड हिटिंग बल्लेबाज है जो तेजी से रन बना सकता है। वह एक अच्छे क्षेत्ररक्षक भी हैं।
गेंदबाजी: मांकड़ एक उपयोगी गेंदबाज है जो पारी के शुरुआती और बाद के दोनों चरणों में विकेट ले सकता है।
कमजोरियां:
मांकड़ अभी भी अपने खेल का विकास कर रहा है और कई बार असंगत हो सकता है।
उन्हें अपनी गेंदबाजी इकॉनमी रेट पर काम करने की जरूरत है।
कुल मिलाकर, प्रेरक मांकड़ एक प्रतिभाशाली ऑलराउंडर है, जो आने वाले वर्षों में सौराष्ट्र और लखनऊ सुपर जायंट्स के लिए एक प्रमुख खिलाड़ी बनने की क्षमता रखता है।
* स्रोत
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ज्योति कृष्णा (क्रिकेटर). ज्योति कृष्णा (जन्म 13 जून 1990) एक भारतीय क्रिकेटर हैं जो आंध्र प्रदेश के लिए खेलते हैं। उन्होंने अपना पहला प्रथम प्रदर्शन 7 नवंबर 2015 को 2015-16 के रणजी ट्रॉफी में किया।
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सीएसआर शर्मा कॉलेज ग्राउंड. सीएसआर शर्मा कॉलेज ग्राउंड, आंध्र प्रदेश के ओंगोल में एक क्रिकेट ग्राउंड है। यह सीएसआर शर्मा कॉलेज के साथ-साथ प्रकाशम जिला क्रिकेट एसोसिएशन के स्वामित्व में है और 2012 में स्थापित किया गया था। वहां खेला जाने वाला पहला प्रथम श्रेणी 2015 रणजी ट्रॉफी में आया था जब आंध्र क्रिकेट टीम ने त्रिपुरा क्रिकेट टीम खेली थी। अब तक ग्राउंड ने 2015 सत्र में दो और प्रथम श्रेणी मैचों की मेजबानी की है। मैदान ने कुछ अंडर-19 राज्य मैचों की मेजबानी की।
मैदान में तीन बुर्ज विकेट और सभी आधुनिक सुविधाओं के साथ 1000 की बैठने की क्षमता वाला मंडप है।
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