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प्रताप. 'प्रताप के निम्नलिखित आशय हो सकते हैं:
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देवीदास ठाकुर. देवीदास ठाकुर (9 दिसम्बर 1929 - 3 फरवरी 2007) एक राजनीतिज्ञ तथा असम के राज्यपाल थे। वे जम्मू और कश्मीर के उप मुख्यमंत्री तथा वित्त मंत्री भी रह चुके थे। यह जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी रहे है।
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नगेन्द्र सिंह. डॉ॰ नगेन्द्र सिंह डूंगरपुर (18 मार्च 1914-11 दिसम्बर 1988) पूर्व अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय के अध्यक्ष थे। वे भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त रह चुके थे। नगेंद्र सिंह का जन्म भारत के डूंगरपुर राज्य में राजपूत सिसोदिया राजपरिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम महाराजा श्री सर विजय सिंह और उनकी माता का नाम महारानी देवेन्द्र कुंवर साहिबा था। सेंट जॉन्स कॉलेज, कैम्ब्रिज में शिक्षा प्राप्ति के पश्चात सिविल सेवा में शामिल हुए। वर्ष 1966 और 1972 के बीच भारत के राष्ट्रपति के सचिव थे। 01 अक्टूबर 1972 से 06 फरवरी 1973 तक भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त भी रहे थे। 1966, 1969 और 1975 में, उन्हें संयुक्त राष्ट्र विधानसभा में भारत के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया था और वर्ष 1967 से 1972 तक अंशकालिक आधार पर संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय कानून आयोग में कार्यरत थे। 1973 में वह इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के न्यायाधीश बनने के लिए हेग में चले गए और फरवरी 1985 से फरवरी 1988 तक वह इसके अध्यक्ष रहे। डॉ. नगेन्द्र सिंह को वर्ष 1938 में ‘कामा पुरुस्कार’ से सम्मानित किया गया था। भारत सरकार द्वारा साल 1973 में उन्हें ‘पद्मविभूषण’ सम्मान प्राप्त हुआ था। सेवानिवृत्त होकर वे हेग में ही रहे और दिसम्बर 1988 में उनकी मृत्यु हो गई।
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रिंगटोन (फ़िल्म). रिंगटोन एक भारतीय मलयालम फ़िल्म है, जिसका निर्देशन अज्मल ने और निर्माण स्वामीनाथन, प्रभुकुमार व के॰ डी॰ श्रीकुमार ने किया है। जिसमें सुरेश गोपी, बाला और मेघा नैयर ने अभिनय किया है। पटकथा. कृष्णा (बाला) अपनी माँ को को लाठी चार्ज से बचाने के लिए पुलिस से भाग रहा है। वो एक ट्रक में यात्रा कर रहा है और वहाँ मीरा (मेगना नैयर) से मिलता है। ट्रक दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है और वो ट्रक मालिक (राजन पी॰ देव) के अतिथि के रूप में रुकते हैं। निनान कोशी (सुरेश गोपी) इस मामले की जाँच के लिए पूछता है।
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राष्ट्रीय चम्बल अभयारण्य. राष्ट्रीय चम्बल अभयारण्य (National Chambal Sanctuary), जिसे राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल वन्यजीव अभयारण्य (National Chambal Gharial Wildlife Sanctuary), भारत का एक संरक्षित क्षेत्र है, जो गंभीर रूप से विलुप्तप्राय घड़ियाल, लालमुकुट कछुआ और विलुप्तप्राय गंगा सूंस की रक्षा के लिए बनाया गया है। यह चम्बल नदी पर राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के त्रिबिन्दु क्षेत्र पर सन् 1978 में स्थापित हुआ और 5,400 वर्ग किमी (2,100 वर्ग मील) पर विस्तारित है। अभयारण्य के भीतर चम्बल नदी अपने मूल प्राकृतिक रूप में बीहड़ खाईयों और पहाड़ियों से गुज़रती है और उसपर कई रेतीले किनारों पर वन्यजीव पनपते हैं। प्रशासनिक विस्तार व इतिहास. चंबल अभयारण्य सवाई माधोपुर , कोटा, बूँदी, धौलपुर एवं करौली जिलों के अंतर्गत आता है। इसका क्षेत्रफल २८० वर्ग किमी है। इसे राजस्थान राज्य सरकार ने 1983 ईस्वी में वन्य जीव अभयारण्य घोषित किया था। यह घड़ियालों के लिए मुख्य रूप से जाना जाता है। इसका राजस्थान का मुख्यालय सवाईमाधोपुर से संचालित होता है। इसकी प्रसाशन व्यवस्था तीन राज्य [[उत्तरप्रदेश[], [[मध्य प्रदेश|मध्यप्रदेश]] और [[राजस्थान]] के हाथों में है। १९७९ में स्थापित इस अभयारण्य के कोर क्षेत्र में ४०० किमी लंबी चंबल नदी आती है। सन्दर्भ. [[श्रेणी:चम्बल नदी]] [[श्रेणी:धौलपुर ज़िला]] [[श्रेणी:राजस्थान के वन्य अभयारण्य]] [[श्रेणी:मध्य प्रदेश के वन्य अभयारण्य]] [[श्रेणी:उत्तर प्रदेश के वन्य अभयारण्य]]
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कैला देवी वन्य जीव अभयारण्य. कैला देवी वन्य जीव अभयारण्य भारत देश में राजस्थान राज्य में सवाई माधोपुर एवं करौली जिले के अंतर्गत ३७६ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में स्थित है। इसे ईस्वी सन १९८३ में वन्य जीव अभयारण्य का दर्जा दिया गया था। इसमें मुख्य रूप से बघेरा,गोश, रीछ, सुअर, चिंकारा, सांभर, चीतल एवं लोमड़ी आदि वन्य जीव पाये जाते हैं। अभयारण्य राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा को जोड़ता है। अभयारण्य के पश्चिमी किनारे पर बनास नदी और दक्षिण-पूर्व दिशा में चम्बल नदी का प्रवाह है। कैला देवी वन्यजीव अभयारण्य का नाम कैला देवी मंदिर के नाम से पड़ा है। VISHAL SINGH YADAV
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खारिया. खारिया भारत के वृहद जन-जातीय समुदायों मे से एक है सामुदायिक वर्गीकरण. खारिया समुदाय तीन वर्गों में विभाजित है। दूध खारिया, ढेलकी खारिया व हिल खारिया। प्रथम दो जातियाँ औस्ट्रो-एसियाटिक खारिया भाषा बोलती है तथा हिल खारिया लोगो ने अपनी भाषा इंडो-आर्यन खारिया थार मे परिवर्तित कर दी है। दूध खारिया व ढेलकी खारिया सम्मिलित रूप से एक जन जाति हैं। इनके पूर्वज रूईदास पटना के निवासी थे। एक अहीर राजा द्वारा खारिया लोगों पर आक्रमण के फलस्वरूप वे भाग कर छोटा नागपुर में आ बसे थे। हिल खारिया भारत में अलग अलग राज्यों में पाये जाते हैं। उड़ीसा मे वे मयूरभंज जिले के जसीपुर व करंजिया भागों मे पाये जाते हैं। झारखंड मे वे पूर्वी सिंघभूम,गुमला, सिंदेगा जिलों में केन्द्रित है, जहाँ वे मुसबानी, दुमरिया व चकुलिया भागों मे बहुतायत में हैं। पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर, बांकुरा व पुरुलिया में उनका निवास है। पुरुलिया में वे बहुसंख्यक हैं।
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भंवरी देवी. भंवरी देवी (बवरी देवी) के नाम से भी जानी जाती हैं। भंवरी देवी भारत के राजस्थान राज्य के भटेरी गांव की निवासी और एक दलित सामाजिक कार्यकर्ता थीं। देवी ने १९९२ में बाल विवाह पर रोक लगाने की कोशिश की थी लेकिन कुछ पैसे वाले लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म किया था।
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रामबन. रामबन () भारत के जम्मू और कश्मीर प्रदेश का एक नगर है। यह रामबन ज़िले का मुख्यालय है और चनाब नदी के किनारे बसा हुआ है। अवागमन. राष्ट्रीय राजमार्ग 44 से सड़क द्वारा कई अन्य स्थानों से जोड़ता है।
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सवाई मानसिंह अभयारण्य. सवाई मानसिंह अभयारण्य राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित एक प्रमुख अभयारण्य है। यह अभयारण्य सवाई माधोपुर जिले के अंतर्गत लगभग 113 वर्गकिलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। राजस्थान सरकार ने इस अभयारण्य को 1984 ईस्वी में वन्य जीव अभयारण्य घोषित किया। सवाई माधोपुर जिले के रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान से सटा हुआ यह वन्य जीव अभयारण्य मुख्य रूप से बघेरा, जंगली खरगोश, जंगली रीछ व भालू, जंगली सुअर, चिंकारा, सांभर, चीतल आदि वन्य जीवों के लिए प्रसिद्ध है। कँवालजी आखेट निषिद्द क्षेत्र. कँवालजी आखेट निषिद्द क्षेत्र भारत के राजस्थान प्रान्त में सवाई माधोपुर के सवाई मानसिंह अभयारण्य से सटा हुआ है, यहाँ पर शिकार करना प्रतिबंधित है। इस क्षेत्र के अंतर्गत भगवान शिव का पवित्र मंदिर स्थित है जो कि 'कमलेश्वर' या कँवालजी के नाम से जाना जाता है। कँवालजी आखेट निषिद्ध क्षेत्र का वानिक मुख्यालय सवाई माधोपुर जिले के रणथम्भौर नेशनल पार्क से संचालित होता है।
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जिनसेन. जिनसेन आचार्य दिगम्बर परम्परा के एक प्रमुख आचार्य थे। वह महापुराण के रचयता है। उन्होंने धवला टीका पूरी की थी। जैन ग्रंथ हरिवंश-पुराण के रचियता अन्य जिनसेन थे यह नहीं। जीवनी. जिनसेन आचार्य, आचार्य वीरसेन के शिष्य थे। उन्होंने अपने गुरु द्वारा लिखी गयी कषायप्रभ्रिता की प्रख्यात टीका "धवला" को पूरा किया था। महापुराण के दो भाग उत्तरपुराण और आदिपुराण है। उनके शिष्य गुणभद्र ने उनके इस कार्य को पूरा किया था।
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चेरुशेरी नम्बूतिरी. चेरुशेरी नम्बूतिरी (१३७५-१४७५) कृष्ण गाथा के लेखक है। इस महाकाव्य को मलयालम महीने के दौरान कृष्ण की पूजा के एक अधिनियम के रूप में भारत में किया जाता है। चेरुशेरी नम्बूतिरी १३७५ और १४७५ ए.डी के बीच रहता करते है। चेरुशेरी उनका पैतृक इल्लम का नाम है।। उनका जन्म कन्नूर जिले उत्तर मलबार के कोलत्तुनाडु के कानत्तूर ग्राम में हुआ। अनेक विद्वानों की राय यह है की वो पूनत्तिल नम्बूतिरी के अलावा अन्य कोई नही है। वह एक अदालत कवी और कोलत्तुनाडु की उदयवर्मा राजा के आश्रित थे। प्रमुख साहित्यिक कृतियों. चेरुशेरी का सबसे बड़ा कृति " कृष्ण गाधा " एक महाकव्य है। यह मलयालम के पहले महाकाव्य है। राजा " वीरस्रिम्कला" और अन्य सम्मान के साथ उसे उपहार में दिया। कुछ विद्वानों का सोच है उन्होनें "चेरुशेरी भारतम" भी लिखा है। चेरुशेरी मलयालम में कविता लेखन के गाधा शैली के प्रवर्तक है। कृष्ण गाथा " भागवत पुराण " के दसवें सर्ग के आधार पर भगवान कृष्ण के बचपन शरारतों की कहानी है। यह कहा जाता है कि चेरुशेरी ने एक माँ अपने बच्छे को सोया करने के लिये गाया लोरी से प्रेरित थे। उन्होनें अपनी रचना के लिये इस छंद पद्ध्ति का इस्तेमाल किया। कृष्ण गाथा में, हम एक बोलने का ढंग देख सकते है, जो वर्तमान काल के समान है। विषय प्रभु श्री कृष्ण की कहानी से संबंधित है। इस कृति " एरुत्तच्छन " के "आध्यात्म रामायण " के समान केरल के लोगों द्वारा सम्मानित किया गया है।" एरुत्तच्छन आधुनिक मलयालम साहित्य के पिता के रूप में जाना जाता है "। यह माना जाता है की चेरुशेरी उत्तर केरल के कुम्ब्रनातु तालुक के पूनम में मलयालम कैलेंडर में वर्ष ६५० के आसपास रहते थे। इस कवी के जीवन के बारे में इतिहास में दर्ज कोई ज्यादा विवरण नही है। लेकिन अगर हम कृष्ण गाथा को ध्यान से अध्ययन करे पता चलता चेरुशेरी एक गहरी सौंदर्य बोध के कवि थे। कृष्ण गाथा "मंजरी" के रूप में जाना जाता एक मधुर छंद में लिखा है। इस कविता भर विशेषण के भव्य उपयोग के साथ लंबा सुंदर वर्णन भी है जो इस रचना काफी रोचक और मनोरंजक बना देता है। जुनून, भक्ति, हास्य और गर्मजोशी की भावनाओं सभी इस कविता में एक वरिष्ठ स्तर में खोज कर रहे है। भागवत पुराण के आधार पर भगवान श्री कृष्ण स्वर्ग की प्राप्त सहित के पूरे जीवन इस रचना में इतने भक्ती के साथ चर्चा की है कि कैसे अच्छी तरह से करने के लिये के रूप में अकथनीय है। समापन. भाषा में साहस के साथ नहीं लेकिन भाषा में नम्रता के साथ चेरुशेरी केरलवासियों का दिल जीत लिया और केरल का गौरव बन गया। श्री चिराक्कल बालकृष्णन नायर चेरुशेरी नंबूतिरी और अपने कृतियों के बारे में अनुसंधान कार्यों में बहुमूल्य योगदान दिया था। चिराक्कल बालकृष्णन नायर चेरुशेरी पर अध्ययन में एक आधिकारिक स्रोत के रूप में माना जाता है। चिराक्कल के लेख केरल साहित्य अकादमी, त्रिशूर द्वारा प्रकाशित किया है। चेरुशेरी केरल में रह चुके सभी महानतम कवियों में एक है। उनके ग्रंथों ने केरल राज्य की आबादी के लिये खुशी और गर्व लाया है।
1,351
जैन ग्रंथ. जैन साहित्य बहुत विशाल है। अधिकांश में वह धार्मिक साहित्य ही है। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में यह साहित्य लिखा गया है। भगवान महावीरस्वामी की प्रवृत्तियों का केंद्र मगध रहा है, इसलिये उन्होंने यहाँ की लोकभाषा अर्धमागधी में अपना उपदेश दिया जो उपलब्ध जैन आगमों में सुरक्षित है। ये आगम ४५ हैं। आगे चलकर अपभ्रंश तथा अपभ्रंश की उत्तरकालीन लोक-भाषाओं में जैन पंडितों ने अपनी रचनाएँ लिखकर भाषा साहित्य को समृद्ध बनाया। आदिकालीन साहित्य में जैन साहित्य के ग्रन्थ सर्वाधिक संख्या में और सबसे प्रामाणिक रूप में मिलते हैं। जैन रचनाकारों ने पुराण काव्य, चरित काव्य, कथा काव्य, रास काव्य आदि विविध प्रकार के ग्रंथ रचे। आचार्य हेेमचंद्रजी, सोमप्रभ सूरीजी आदि मुख्य जैन कवि हैं। इन्होंने हिंदुओं में प्रचलित लोक कथाओं को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाया और परंपरा से अलग उसकी परिणति अपने मतानुसार दिखाई। आगम-साहित्य की प्राचीनता. जैन-साहित्य का प्राचीनतम भाग ‘आगम’ के नाम से कहा जाता है। ये आगम ४६ हैं- आगम ग्रन्थ काफी प्राचीन है, तथा जो स्थान वैदिक साहित्य क्षेत्र में वेद का और बौद्ध साहित्य में त्रिपिटक का है, वही स्थान जैन साहित्य में आगमों का है। आगम ग्रन्थों में महावीर स्वामी के उपदेशों तथा जैन संस्कृति से सम्बन्ध रखने वाली अनेक कथा-कहानियों का संकलन तथा जीवन उपयोगी सूत्र और बोहुत कुछ है। जैन श्रमण पाटलिपुत्र (पटना) में एकत्रित हुए और यहाँ खण्ड-खण्ड करके ग्यारह अंगों का संकलन किया गया, बारहवाँ अंग किसी को स्मरण नहीं था, इसलिए उसका संकलन न किया जा सका। इस सम्मेलन को 'पाटलिपुत्र-वाचना' के नाम से जाना जाता है। कुछ समय पश्चात जब आगम साहित्य का फिर विच्छेद होने लगा तो महावीर स्वामी निर्वाण के 827 या 840 वर्ष बाद (ईसवी सन् के 300-313 में) जैन साधुओं के दूसरे सम्मेलन हुए। एक आर्यस्कन्दिल की अध्यक्षता में मथुरा में तथा दूसरा नागार्जुन सूरि की अध्यक्षता में वलभी में। ओडिशा की उदयगिरी और खंडगिरी स्थान पर भी जैन राजा खारबेल के समय उनकी अध्यक्षता मे जैन ग्रंथो का संकलन किया गया। मथुरा के सम्मेलन को 'माथुरी-वाचना' की संज्ञा दी गयी है। तत्पश्चात लगभग 150 वर्ष बाद, महावीर स्वामी निर्वाण के 980 या 993 वर्ष बाद ( ईसवी सन् 453-466 में) वल्लभी में देवर्धिगणि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में साधुओं का चौथा सम्मेलन हुआ, जिसमें सुव्यवस्थित रूप से आगमों का अन्तिम बार संकलन किया गया। यह सम्मेलन 'वलभी-वाचना' के नाम से जाना जाता है। वर्तमान आगम साहित्य इसी संकलना का रूप है। जैन आगमों की उक्त तीन संकलनाओं के इतिहास से पता लगता है कि समय-समय पर आगम साहित्य को काफी क्षति उठानी पड़ी, और यह साहित्य अपने मौलिक रूप में सुरक्षित नहीं रह सका। महत्व. ईसा के पूर्व लगभग चौथी शताब्दी से लगाकर ईसवी सन् पाँचवी शताब्दी तक की भारतवर्ष की आर्थिक तथा सामाजिक दशा का चित्रण करने वाला यह साहित्य अनेक दृष्टियों से महत्त्व का है। आचारांग, सूयगडं, उत्तराध्ययन सूूत्र, दसवैकालिक आदि ग्रन्थों में जो जैन श्रमण के आचार-चर्या का विस्तृत वर्णन है, और डॉ. विण्टरनीज आदि के कथानानुसार वह श्रमण-काव्य (Ascetic poetry) का प्रतीक है। भाषा और विषय आदि की दृष्टि से जैन आगमों का यह भाग सबसे प्राचीन मालूम होता है। भगवती कल्पसूत्र, ओवाइय, ठाणांग, निरयावलि आदि ग्रन्थों में श्रमण भगवान महावीर, उनकी चर्या, उनके उपदेशों तथा तत्कालीन राजा, राजकुमार और उनके युद्ध आदि का विस्तृत वर्णन है, जिससे जैन इतिहास की लुप्तप्राय अनेक अनुश्रुतियों का पता लगता है। नायाधम्मकहा, उवासगदसा, अन्तगडदसा, अनुत्तरोववाइयदसा, विवागसुय आदि ग्रन्थों में महावीर स्वामीजी द्वारा कही हुई अनेक कथा-कहानियाँ तथा उनकी शिष्य-शिष्याओं का वर्णन है, जिसमें जैन परम्परा सम्बन्धी अनेक बातों का परिचय मिलता है। रायपणेसिय, जीवाभिगम, पन्नवणा आदि ग्रन्थों में वास्तुशास्त्र, संगीत, वनस्पति आदि सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण विषयों का वर्णन है जो प्रायः अन्यत्र उपलब्ध नहीं होता है। छेदसूत्रों में साधुओं के आहार-विहार तथा प्रायश्चित आदि का विस्तृत वर्णन है, जिसकी तुलना बौद्धों के विनयपिटक से की सकती है। वृहत्कल्पसूत्र (1-50) में बताया गया है कि जब भगवान महावीर साकेत (अयोध्या) सुभुमिभाग नामक उद्यान में विहार करते थे तो उस समय उन्होंने अपने भिक्षु-भिक्षुणियों को साकेत के पूर्व में अंग-मगध तक दक्षइ के कौशाम्बी तक, तथा उत्तर में कुणाला (उत्तरोसल) तक विहार करने की अनुमति दी। इससे पता लगता है कि आरम्भ में जैन धर्म का प्रचार सीमित था, तथा जैन श्रमण मगध और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों को छोड़कर अन्यत्र नहीं जा सकते थे। निस्सन्देह छेदसूत्रों का यह भाग उतना ही प्राचीन है जितने स्वयं महावीर। तत्पश्चात राजा कनिष्क के समकालीन मथुरा के जैन शिलालेखों में भिन्न-भिन्न गण, कुल और शाखाओं का उल्लेख है, वह भद्रवाहु स्वामी के कल्पसूत्र में वर्णित गण, कुल और शाखाओं के साथ प्रायः मेल खाता है। इससे भी जैन आगम ग्रन्थों की प्रामाणिकता का पता चलता है। वस्तुतः इस समय तक जैन परम्परा में श्वेताम्बर और दिगम्बर का भेद नहीं मालूम होता। जैन आगमों के विषय, भाषा आदि में जो पालि वह भी इस साहित्य की प्राचीनता को द्योतित करती है। पालि-सूत्रों की अट्टकथाओं की तरह आगमों की भी अनेक टीका-टिप्पणियाँ, दीपिका, निवृत्ति, विवरण, अवचूरि आदि लिखी गयी हैं। इस साहित्य को सामान्यता निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीका-इन चार विभागों में विभक्त किया जा सकता है। आगम को मिलाकर इसे पंचांगी' के नाम से भी जानते हैं। आगम साहित्य की तरह यह साहित्य भी बहुत महत्त्व का है। इसमें आगमों के विषय का विस्तार से प्रतिपादन किया गया है। इस साहित्य में अनेक अनुश्रुतियाँ सुरक्षित हैं, जो ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। वृहत्कल्पभाष्य, व्यवहारभाष्य, निशीथचूर्णि, आवश्यकचूर्णि, आवश्यकटीका, उत्तराध्ययन टीका आदि टीका-ग्रन्थों में पुरातत्व सम्बन्धी विविध सामग्री भरी पड़ी है, जिससे भारत के रीति-रिवाज, मेले त्यौहार, साधु-सम्प्रदाय, दुष्काल, बाढ़, चोर-लुटेरे, सार्थवाह, व्यापार के मार्ग, शिल्प, कला, भोजन-शास्त्र, मकान, आभूषण, आदि विविध विषयों पर बहुत प्रकाश पड़ता है। लोक-कथा और भाषा शास्त्र की दृष्टि से भी यह साहित्य बहुत महत्त्व का है। डॉ० विण्टरनीज के शब्दों में- चूर्णि-साहित्य में प्राकृत मिश्रित संस्कृत का उपयोग किया गया है, जो भाषाशास्त्र की दृष्टि से विशेष महत्त्व का है, और साथ यह उस महत्त्वपूर्ण काल का द्योतक है जब जैन विद्वान प्राकृत का आश्रय छोड़कर संस्कृत भाषा की ओर बढ़ रहे थे। == जैन ग्रन्थों की बृहद सूची = तत्त्वार्थसूत्र -- आचार्य उमास्वाती कल्पसूत्र (जैन)
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गेरू. गेरू या गैरिक (ochre) हल्की पीली से लेकर गहरी लाल, भूरी या बैंगनी रंग की मिट्टी है जो लोह आक्साइड से ढँकी रहती है। यह दो प्रकार की होती है। एक का आधार चिकनी मिट्टी होती है तथा दूसरे का खड़िया मिश्रित मिट्टी। दोनों जातियों में से प्रथम का रंग अधिक शुद्ध तथा दर्शनीय होता है। कुछ प्रकार के गेरू पीस लेने पर ही काम में लाने योग्य हो जाते हें, किंतु अन्य को निस्तापित करना (calcine) पड़ता है, जिससे उनके रंगों में परिवर्तन हो जाता है और तब वे काम के होते हैं। 'रोमन मृत्तिका' (Roman earth या Terra do siena) नामक प्रसिद्ध गेरू प्राकृतिक अवस्था में धूमिल रंग का होता है, किंतु निस्तापित करने पर यह कलाकारों को प्रिय, सुंदर भूरे रंग का हो जाता है। जिस गेरू में कार्बनिक पदार्थ अधिक होता है उसे निस्तापित करके वार्निश या तेल में मिलाने पर, शीघ्र सूखने का गुण बढ़ जाता है। बहुत सा गेरू कृत्रिम रीति से भी तैयार किया जाता है। गेरू का उपयोग सोने के आभूषणों पर ओप या चमक लाने तथा कपड़ा रँगने के विविध प्रकार के रंगों और तैलरंग तैयार करने में होता है।
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परतदार पत्थर. स्लेट (Slate) महीन कणों वाला रूपान्तरित शैल है। यह बेलबूटेदार (foliated) और समांगी (homogeneous) होती है। इसका उत्पादन देश में केवल मध्यप्रदेश (मन्दसौर) में होता है । भारत में स्लेट के मुख्य निक्षेप (भण्डार ) राजस्थान हरियाणा हिमाचल प्रदेश और मध्यप्रदेश है। राजस्थान में बड़े निक्षेप है जैसे से - अलवर,अजमेर,भरतपुर, टोंक,सवाई मधोपुर, पाली,उदयपुर,चुरू, चितौड़गढ़।
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इवान अलेक्सँद्रोविच गोंचारोब. इवान अलेक्सँद्रोविच गोंचारोब (रूसी: Ива́н Алекса́ндрович Гончаро́в, Ivan Aleksandrovich Goncharov; 18 जून 1812 – 27 सितम्बर 1891) प्रसिद्ध रूसी उपन्यासकार एवं लेखक थे। उनके 'अ कॉमन स्टोरी' (A Common Story (1847)) और ओब्लोमोव (1859) बहुत प्रसिद्ध हैं। इवान गोंचारोब का जन्म सिंबिर्स्क में तथा मृत्यु पेतेर्बुर्ग में हुई। उन्होने मॉस्को विश्वविद्यालय के सहित्य विभाग में शिक्षा प्राप्त की। साहित्यिक कार्य का आरंभ १८३५ में हुआ। समुद्री जहाज से भ्रमण करने पर गोंचारोव ने 'जहाज पल्लादा' नामक यात्रा साहित्य की प्रसिद्ध कृति लिखी। गोंचारोव ने तीन विख्यात उपन्यास लिखे - 'मामूली कहानी' (१८४७), "ओब्लोमोव" (१८५९) और 'खड़ी चट्टान' (१८६९)। इन कृतियों में तत्कालीन रूस के वर्णन हैं: समाज के दो पहलुओं के प्रतिनिधियों आलसी राजदरबारी जमींदारों और सक्रिय पूँजीवादियों के प्रतिबिंब हैं। उपन्यासों के नारी पात्रों में तत्कालीन रूसी समाज के प्रगतिशील विचारों का सजीव चित्रण मिलता है। गोंचारोव ने अनेक आलोचनात्मक कृतियाँ भी लिखीं जो ग्रिबोएदोव, बेलिंस्की आदि रूसी लेखकों से संबंधित हैं।
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मास्को राज्य विश्वविद्यालय. लोमोनोसोव मास्को राज्य विश्वविद्यालय (रूसी : Московский государственный университет имени М. В. Ломоносова ; Lomonosov Moscow State University (MSU; ) रूस के मास्को नगर में स्थित एक सार्वजनिक अनुसंधान विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना मिखाइल लोमोनोसोव ने 25 जनवरी , 1755 को की थी। इसका वर्तमान नाम १९४० में इसके संस्थापक के नाम पर रखा गया। बाहरी कड़ियाँ. मास्को विश्व विद्यालय का जालस्थल
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गोनन्द. भारत के इतिहास में गोनन्द नाम के तीन राजा हुए जो प्राचीन काश्मीर के शासक थे। उन्हीं के लिये इस नाम का विशेष प्रयोग हुआ और कल्हण ने अपने काश्मीर के इतिहास राजतरंगिणी में उनका यथास्थान काफी वर्णन किया है। प्रथम गोनन्द तो प्रागैतिहासिक युग का राजा प्रतीत होता है और कल्हण ने उसे कलियुग के प्रारंभ होने के पूर्व का एक प्रतापी शासक माना है। उसके राज्य का विस्तार गंगा के उद्गमस्थान कैलाश पर्वत तक बताया गया है ("काश्मीरेंद्र से गोनदो वेल्लगंगादुकूलया। दिशा कैलासहासिन्या प्रतापी पर्य्युपासत" - राजतरंगिणी, १.५७)। यह गोनंद मगध के राजा जरासंध का संबंधी (भाई) था ओर वृष्णियों के विरुद्ध मथुरानगरी के पश्चिमी द्वार पर अवरोध किया था ताकि कृष्ण आदि उधर से भाग न निकलें। परंतु अंत में वह बलराम के हाथों संभवत: युद्ध करते मारा गया। द्वितीय गोनन्द उसके थोड़े दिन बाद शासक हुआ और कल्हण का कथन है कि उसी के समय महाभारत का युद्ध लड़ा गया। किंतु उस समय वह अभी बालक ही था और कौरवों पांडवों में किसी ने भी उससे महाभारत युद्ध में भाग लेने को नहीं कहा। उसकी माता का नाम यशोमति था, जिसकी कल्हण ने प्रशंसापूर्ण चर्चा की है। तृतीय गोनन्द काश्मीर के ऐतिहासिक युग का राजा प्रतीत होता है, परंतु उसका ठीक ठीक समय निश्चित कर सकना कठिन कार्य है। इतना निश्चित है कि व मौर्यवंशी अशोक और जालौक के बाद हुआ था। (अशोक और जालौक दोनों ही काश्मीर पर अधिकार बनाए रखने में सफल रहे थे।) वह परंपरागत वैदिक धर्म का माननेवाला था, क्योंकि उसके द्वारा बौद्धधर्मावलंबियों की कुरीतियों की समाप्ति, वैदिक आचरों की पुन: प्रतिष्ठा और दुष्ट (?) बौद्धों के अत्याचारों की समाप्ति की बात राजतंरगिणी में कल्हण ने कही है। यह भी वर्णन मिलता है कि उसके राज्य में सुखशांति की कमी नहीं थी और प्रजा धनधान्य से पूर्ण थी। स्पष्ट है कि वह शक्तिशाली और सुशासक था और प्रजा के हित की चिंता करता था। राजतंरगिणी के अनुसार उसने ३५ वर्षों तक राज्य किया। इतिहास की आधुनिक कृतियों में गोनंद नामधारी राजाओं की काश्मीर में बहुतायत के कारण उस प्रदेश के विशिष्ट राजवंश का नाम ही गोनंद वंश से अभिहित होता है। अन्य. गोनंद कार्तिकेय के एक गण का नाम था। गोनंद अथवा गोनर्द सारस पक्षी को भी कहते हैं जो अपने ही शब्दों से प्रसन्न होता है और पानी में रहकर ही आनंद प्राप्त करता है। गोनंद को कभी कभी गोनदं देश से भी मिलाया जाता है, जिसे हेमचंद्र ने पतंजलि मुनि (पातंजलि 'योगसूत्र' और 'महाभाष्य' के रचयिता) का निवासस्थान बताया है। 'गोनर्द', उत्तर प्रदेश के गोंडा का प्राचीन नाम है।
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बर्दिश चग्गर. बर्दिश चग्गर (जन्म: 6 अप्रैल , 1980), एक भारतीय मूल की कनाडाई राजनीतिज्ञ हैं तथा वर्तमान में कनाड़ा सरकार में लघु उद्योग एवं पर्यटन मंत्री है। 19 अगस्त, 2016 को वे कनाडा के ‘हाउस ऑफ कामन्स’ में नई सरकार की सदन की नेता नामित हुईं। वे इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला हैं जो कि अल्पसंख्यक सिख समुदाय की सदस्य हैं। चग्गर ने सदन के नेता डोमिनिक लेब्लांक का स्थान लिया है। वे 19 भारतीयों में से एक हैं जिन्होंने गतवर्ष कनाडा में चुनाव जीते थे। वॉटरलू क्षेत्र में जन्मी और पली-बढ़ीं चग्गर ने युनिवर्सिटी ऑफ वॉटरलू से शिक्षा हासिल की है, जहां वह यंग लिबरल्स की अध्यक्ष भी रही थीं। उन्होने 2013 में टड्रो के चुनाव अभियान में स्वयंसेवक के रूप में भी काम किया था।
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नवदीप बैंस. नवदीप बैंस एक कनाड़ाई राजनीतिज्ञ तथा वर्तमान में कनाड़ा सरकार में सांईस एवं इकॉनोमिक्स मंत्री है। वे भारतीय मूल के है।
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अमरजीत सोही. अमरजीत सोही (जन्म ८ मार्च , १९६४) एक कनाड़ाई राजनीतिज्ञ तथा वर्तमान कनाड़ा सरकार में इन्फ्राटस्कर एवं कम्यूनीकल मंत्री है। वे भारतीय मूल के है। १९६४ में उनका जन्म भारत के पंजाब में हुआ था। उनके ज्येष्ठ भ्राता के कहने पर १९८१ में कनाड़ा गये थे।
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चार्ली के चक्कर में. चार्ली के चक्कर में एक हिन्दी फिल्म है। यह फिल्म 6 नवम्बर 2015 को भारतीय सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई। फिल्मिंग. इस फिल्म की शूटिंग अधिकतर मुम्बई में हुई। क्लायमैक्स द्रश्य के लिए मेकर्स के लिए कोई समुचित स्थान नहीं मिल रहा था इसलिए नसीरुद्दीन शाह ने अपना खुद का फार्महाउस आफर किया लिहाजा शूटिंग वहां पर भी हुई अतः आप इस फिल्म के क्लयमैक्स द्रश्य में फेमस अभिनेता नसीरुद्दीन शाह का फार्महाउस भी देख सकेंगे। प्रदर्शन. इस फिल्म का प्रदर्शन भारतीय सिनेमाघरों में ६ नवम्बर २०१५ को हुआ।
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जॉर्ज एनसोन. जॉर्ज अनसन (अंग्रेजी :George Anson) (१३ अक्टूबर १७९७ – २७ मई १८५७) एक ब्रिटिश सेना के ऑफिसर थे तथा राजनीतिज्ञ भी थे।
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लिंग (व्याकरण). व्याकरण के सन्दर्भ में लिंग से तात्पर्य भाषा के ऐसे प्रावधानों से है जो वाक्य के कर्ता के स्त्री/पुरुष/निर्जीव होने के अनुसार बदल जाते हैं। विश्व की लगभग एक चौथाई भाषाओं में किसी न किसी प्रकार की लिंग व्यवस्था है। हिन्दी में दो लिंग होते हैं (पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग) जबकि संस्कृत में तीन लिंग होते हैं- पुल्लिंग, स्त्रीलिंग तथा नपुंसक लिंग। फ़ारसी जैसे भाषाओं में लिंग होता नहीं, और भी अंग्रेज़ी में लिंग सिर्फ़ सर्वनाम में होता है। अपवाद: अरावली, श्रीलंका, स्त्री लिंग शब्द है! परिभाषा. लिंग शब्द का शाब्दिक अर्थ है-'चिह्न'। अतः जिस शब्द से संज्ञा या सर्वनाम की स्त्री या पुरुषजाति का बोध होता है, उसे लिंग कहा जाता है। जैसे-बालक:, चटका (चिड़िया), फलम्। संस्कृत का लिंङ्गभेद. संस्कृत में लिङ्ग तीन प्रकार के होते हैं। पुल्लिङ्ग. वे संज्ञा या सर्वनाम शब्द जो हमें पुरुष जाति का बोध कराते हैं, पुँल्लिंग कहे जाते हैं। जैसे-बालकः, गज: मयूर:, अश्व:, काक: आदि। पुल्लिंग की पहचान करने के कुछ नियम इस प्रकार हैं:- स्त्रीलिङ्ग. वे संज्ञा या सर्वनाम शब्द जो स्त्री जाति का बोध कराते हैं, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं। जैसे-शिक्षिका, बालिका, अजा आदि। नियम-स्त्रीलिंग ज्ञात करने के कुछ नियम इस प्रकार हैं:- नपुंसकलिङ्ग. वे संज्ञा या सर्वनाम शब्द जो न तो पुरुष जाति का बोध कराते हैं और न ही स्त्री जाति का बोध कराते हैं, वे नपुंसकलिंग शब्द कहलाते हैं। जैसे-फलम्, पत्रम्, पुस्तकम्। नियम-नपुंसकलिङ्ग ज्ञात करने के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं-
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झूम कृषि. झूम कृषि (slash-and-burn farming) एक आदिम प्रकार की कृषि है जिसमें पहले वृक्षों तथा वनस्पतियों को काटकर उन्हें जला दिया जाता है और साफ की गई भूमि को पुराने उपकरणों (लकड़ी के हलों आदि) से जुताई करके बीज बो दिये जाते हैं। कुछ वर्षों तक (प्रायः दो या तीन वर्ष तक) जब तक मिट्टी में उर्वरता विद्यमान रहती है इस भूमि पर खेती की जाती है। इसके पश्चात् इस भूमि को छोड़ दिया जाता है जिस पर पुनः पेड़-पौधें उग आते हैं। अब अन्यत्र जंगली भूमि को साफ करके कृषि के लिए नई भूमि प्राप्त की जाती है और उस पर भी कुछ ही वर्ष तक खेती की जाती है। इस प्रकार यह एक स्थानानंतरणशील कृषि (shifting cultivation) है जिसमें थोड़े-थोड़े समय के अंतर पर खेत बदलते रहते हैं। भारत की पूर्वोत्तर पहाड़ियों में आदिम जातियों द्वारा की जाने वाली इस प्रकार की कृषि को झूम कृषि कहते हैं। इस प्रकार की स्थानांतरणशील कृषि को श्रीलंका में चेना, हिन्देसिया में लदांग और रोडेशिया में मिल्पा कहते हैं।अक्सर यह दावा किया जाता रहा है कि झूम के कारण क्षेत्र के बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान हुआ है। यह खेती मुख्यतः उष्णकटिबंधीय वन प्रदेशों में की जाती है।
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नियमगिरि. नियमगिरि (Niyamgiri) भारत के ओड़िशा राज्य के दक्षिणपश्चिम भाग में कलाहांडी ज़िले और रायगड़ा ज़िले में स्थित एक पर्वतशृंखला है। इन पहाड़ियों पर भारत के सबसे पुराने वन अवस्थित हैं। इस क्षेत्र में डोंगरिया कोंध नामक आदिवासी समुदाय रहता हैं। इसकी पश्चिमोत्तरी सीमा कर्लापाट वन्य अभयारण्य और पूर्वोत्तरी सीमा कोटगढ़ वन्य अभयारण्य द्वारा निर्धारित है।
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कोंध. कोंध भारत के ओड़िशा राज्य का निवासी एक आदिवासी समूह है। ओड़िशा के रायगढ़ा, काशीपुर, कल्याणसिंहपुर, बिषम कटक और मुनिगुडा में इनकी संख्या अधिक है।
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सीएसए चेक एयरलाइंस. सीएसए चेक एयरलाइंस ऐ.एस (चेक: सीएसए ससके ऐरोलिनी, ऐ.एस) चेक गणराज्य की राष्ट्रीय ध्वजवाहक हैं। इसका मुख्यालय वक्लाव हवेल एयरपोर्ट प्राग रुजीने, प्राग में हैं। सीएसए विश्व की दूसरी एयरलाइन थी जिसने 1957 में जेट लाइनर सर्विसेज प्रांरभ किया था। वर्तमान में 48 देशों 92 गंतव्यों की उड़ान भरती हैं। जिसमे यूरोप के महत्वपूर्ण शहर एवं मध्य पूर्व एवं एशिया सम्मिलत है। यह चार्टर एवं कार्गो सेवाएं भी उपलब्ध कराती है। इस एयरलाइन्स के "फ्रीक्वेंट फ्लायर" कार्यक्रम का नाम "ओके प्लस " है। यह स्काई टीम समूह का एक सदस्य है। चेक एयरलाइन्स चेक एरोहोल्डिंगिस की एक सहायक कंपनी हैं जो एक कंपनियों का समूह है एवं हवाई यातायात एवं इससे जमीनी सेवाओं में सलंग्न हैं। चेक एरोहोल्डिंग की अन्य सहायक कंपनियों में प्राग एयरपोर्ट,चेक एयरलाइन्स टेक्निक्स एवं चेक एयरलाइन्स हैंडलिंग हैं। इतिहास. सीएसए की स्थापना 6 अक्टूबर 1923 को चेकोस्लोवाक सरकार के द्वारा क्स केसकोस्लोवेंस्की स्टाटनी ऐरोलिनी (चेकोस्लोवाक स्टेट एयरलाइन्स) के तौर पर की गयी थी। स्थापना के 23 दिनों के बाद इसने अपनी पहली परिवहन उड़ान प्राग एवं ब्राटिस्लावा के बीच भरकर की। शुरूआती दौर में ये सिर्फ घरेलु उड़ान भरी थी इसने अपनी पहली अन्तर्राष्ट्रीय उड़ान 1930 में प्राग से ब्राटिस्लावा एवं ज़ाग्रेब तक भरकर की। 1930 में जब चेकोस्लोवाकिया का विभाजन 3 हिस्सों में हो गया तब इस एयरलाइन्स को समाप्त कर दिया गया। 1950 में सीएसए के 3 विमानों का अपहरण कर लिया गया था, यह विश्व की पहली ऐसी घटना थी। यह उन दिनों चल रहे शीत युद्ध का परिणाम था। जिसने सारे विश्व को अपने जकड़ में ले रखा था। इस प्रकरण पर एक फिल्म भी बनाई गयी थी जिसका नाम "किडनैप टू एर्डिंग ” था। इसमे वो लोग जो अपहरण के बाद वापस लौटे थे और पूंजीवादी संस्कृति को ठुकराया था उन्हें हीरो के तौर पर दिखाया गया था, जिन्होंने। 1957 में जेट लाइनर का उपयोग करने वाली यह पहली विमानन कंपनी बन गयी। 1960 से 1990. 1960 के आखरी दशकों में यूरोप और अंतर महाद्वीपीय सेवाओं के लिए इसने सोवियत निर्मित विमानो एवं उनके परिस्कृत संस्करण का उपयोग किया। उस समय यह कुल 50 अन्तराष्टिय एवं 15 घरेलु उड़ाने भरता था। 1990 एवं 2000. चेकोस्लोवाक संघ के टूटने के बाद इस एयरलाइन ने मई 1995 में अपने वर्तमान नाम को अपनाया।1990 के आखिरी दशकों में ज्यादातर सोवियत विमान या तो बेच दिए गए थे या उन्हें हटा दिया गया था (बहुत विमानों को सुरक्षित भी रखा गया हैं )। इनके बदले बोइंग 737 एवं एयरबस ए 310, ए 320 एवं कम दूरी वाले ए.टी.ऱ.एयरक्राफ्ट को पश्चिमी दुनिया से ख़रीदा गया। 18 अक्टूबर 2000 को यह स्काई टीम एयरलाइन्स का पूर्णकालिक सदस्य बना। मार्च 2007 तक इस एयरलाइन्स में चेक मिनिस्ट्री ऑफ़ फाइनेंस का 59.62% चेक कंसोलिडेशन एजेंसी का 34.59% एवं बाकी अन्य कज़ह समूहों का स्वामित्व था। इसके कर्मचारियों की संख्या 5400 हैं। गंतव्य. वर्तमान में चेक एयरलाइन 45 देशों के 89 गंतव्यों की उड़ान भरता हैं। इसमें ये प्राग हवाईअड्डे से 32 मोनोपोली मार्गों पर उड़ान भरता हैं, जो इसके कुल उड़ान का 40% है। कोड शेयर समझौते. चेक एयरलाइंस (जुलाई 2014) ने निम्नलिखित एयरलाइनों के साथ कोड शेयर करार किया गया है। बेड़े. चेक एयरलाइंस के बेड़े में (जुलाई 2015) तक निम्नलिखित विमान थे: मुख्य कार्यालय. चेक एयरलाइंस ने अपने प्रधान कार्यालय एपीसी का निर्माण वाक्लाव हैवेल हवाई अड्डा प्राग, रजाईनएयरपोर्ट, प्राग जमीन पर किया है. ३० दिसंबर २००९ को सीएसए ने हवाई अड्डे के लिए अपने प्रधान कार्यालय को सीज़ेके ६०७,०००,००० बेचने की घोषणा की। सन्दर्भ. अज़रबैजान एयरलाइंस की उड़ान 8243
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जेम्स जॉर्ज स्मिथ नील. जेम्स जॉर्ज स्मिथ नील (अंग्रेजी :James George Smith Neill) (२७ मई १८१० – २५ सितम्बर १८५७) स्कॉटलैंड के मूल निवासी व ब्रिटिश भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सैन्य अधिकारी थे। इन्होंने १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कार्य किया था। .
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मादकता. मादक पदार्थों के सेवन से उत्पन्न स्थिति को दव्य मादकता (Substance intoxication) कहते हैं। व्यसन शब्द अंग्रेजी के ‘एडिक्ट‘ शब्द का रूपान्तरण है जिससे शारीरिक निर्भरता की स्थिति प्रकट होती है। व्यसन का अभिप्राय शरीर संचालन के लिए मादक पदार्थ का नियमित प्रयोग करना है अन्यथा शरीर के संचालन में बाधा उत्पन्न होती है। व्यसन न केवल एक विचलित व्यवहार है अपितु एक गम्भीर सामाजिक समस्या भी है। तनावों, विशदों, चिन्ताओं एवं कुण्ठाओं से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति कई बार असामाजिक मार्ग अपनाकर नशों की और बढ़ने लगता है, जो कि उसे मात्र कुछ समय के लिए उसे आराम देते हैं। किसी प्रकार का व्यसन (नशा) न केवल व्यक्ति की कार्यक्षमता को कम करता है अपितु यह समाज और राष्ट्र दोनों के लिए हानिकारक है। नशीले पदार्थो की प्राप्ति हेतु व्यक्ति, घर, मित्र और पड़ोस तकमें चोरी एवं अपराधी क्रियाओं को अंजाम देने लगता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाए तो व्यसन विभिन्न बिमारियों को आमंत्रण देता है। राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह तस्करी, आतंकवाद एवं देशद्रोही गतिविधियों को बढ़ावा देता है। सामाजिक दृष्टि से जुआ, वेश्यावृति, आतंकवाद, डकैती, मारपीट, दंगे अनुशासनहीनता जैसी सामाजिक समस्याएँ व्यसन से ही संबंधित हैं। व्यसनी व्यक्ति दीर्घकालीन नशों की स्थिति में उन्मत्त रहता है तथा नशीले पदार्थ पर व्यक्ति मानसिक एवं शारीरिक तौर पर पूर्णतया आश्रित हो जाता है, जिसके हानिकारक प्रभाव केवल व्यक्ति ही नहीं अपितु उसके परिवार और समाज पर भी पड़ते हैं। प्रकार. मुख्य रूप से ६ प्रकार की मादक द्रव्य उपयोग किये जाते हैं- शराब. शराब का सेवन यदि कम या सीमित मात्रा में किया जाए तो इसे कई देशों में सामाजिक रूप से ठीक माना जाता है सामान्यतया इसका सेवन सुख, एक समाजिक क्रिया, प्रेरणा या उत्तेजना के रूप में किया जाता है। शराब के सेवन के पीछे कई सामाजिक, सांस्कृतिक कारक भी उत्तरदायी होते हैं जैसे उच्च वर्गों में सामाजिक रूप से इसके सेवन को मान्यता दी जाती है। बेरोजगारी, बचपन में माता पिता की मृत्यु, पति-पत्नी का कामकाजी होना, मित्रों का दबाव, फैशन, विज्ञापन आदि ऐसे कारक हैं जिससे व्यक्ति में शराब या मदिरापान की आदत विकसित होती है। व्यसन वर्तमान समाज की एक गंभीर समस्या है इसकी गम्भीरता को दो आधारों पर देखा जा सकता है : इसके सेवन का एक बड़ा कारण चिन्ताओं और तनावों से क्षणिक मुक्ति प्राप्त करना है। धीरे-धीरे यह उसे व्यसनी बना देती है। यह एक शान्तिकर पदार्थ है यद्यपि यह नसों को शान्त करते हुए तनाव को कम करती है। परन्तु साथ ही इसके अधिक सेवन से निर्णय क्षमता मन्द होने लगती है। शामक/अवसादक/शान्तिकर पदार्थ. व्यसन के इस प्रकार में शान्तिदायक या पीड़ाशामक मादक पदार्थ आते हैं। शामक या अवसादक पदार्थ केन्द्रीय नाड़ीमण्डल को अशक्त करते हुए नींद उत्पन्न करते हैं। अतः इसका प्रभाव शान्तिकारक होता है। इस श्रेणी में ट्रैक्विलाइजर (शांति प्रदान करने वाले द्रव्य) और बार्बिट्युरेट आते हैं। सामान्यतया इन द्रव्यों का प्रयोग शल्य चिकित्सा के पूर्व और बाद में रोगियों के आराम और शिथिलीकरण के लिए किया जाता है। इसी प्रकार से चिकित्सीय दृष्टि से उच्च रक्तचाप, अनिद्रा और मिरगी के रोगी को उपचार देने के लिए भी शमक द्रव्यों का उपयोग किया जाता है। कम मात्रा में लेने पर व्यक्ति को शिथिलता का अनुभव कराते हुए ये द्रव्य सांस की गति व दिल की धड़कन को धीमा कर व्यक्ति को आराम पहुँचाते हैं, लेकिन अधिक मात्रा में इन पदार्थों का प्रयोग व्यक्ति को चिड़चिड़ा, आलसी और निश्क्रीय बना देता है। शामक द्रव्यों का निर्धारित मात्रा से अधिक खुराक के रूप में प्रयोग व्यसनी के सोचने, काम करने, ध्यान देने की शक्ति को कम करते हुए भयावह स्थिति को उत्पन्न करता है। उत्तेजक पदार्थ. उत्तेजक द्रव्य अधिकांशतः मुख से लिए जाते हैं लेकिन कुछ पदार्थ जैसे मेथेड्रीन इंजेक्शान द्वारा भी लिए जाते हैं। इन पदार्थो का व्यसन करने वाले व्यक्तियों में शारीरिक निर्भरता की तुलना में मानसिक निर्भरता अधिक होती है अतः अचानक बन्द कर दिए जाने पर ये मानसिक अवसाद उत्पन्न करते है और व्यक्ति की स्थिति भयावह हो जाती है। उत्तेजक मादक पदार्थों का सेवन निद्रा और उदासी को दूर करते हुए व्यक्ति का चुस्त, सक्रिय और फुर्तीला बनाता है। डॅाक्टर द्वारा ऐम्फेटामाइन की मध्यम डोज थकान को नियंत्रित करती है इनमें कैफीन और कोकीन भी सम्मिलित है परन्तु ऐम्फेटामाइन का दीर्घकालिक भारी उपयोग बौद्धिक, भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक विकारों को उत्पन्न करता है। अपराध जगत में ऐम्फेटाइन ‘अपर्स' या 'पेपपिल्स ड्रग' के नाम से मशाहूर है। इन उत्तेजक पदार्थों को अचानक बन्द कर देने से मानसिक बिमारियां व आत्महत्या जन्य अवसाद उत्पन्न होते हैं। नार्कोटिक/स्वापक/तन्द्राकर पदार्थ. अफीम के विभिन्न रूप में उपलब्ध चरस, गांजा, भांग, हैरोइन (स्मैक, ब्राउन शुगर मारफीन, पैथेडीन) आदि व्यसन की नार्कोटिक श्रेणी में सम्मिलित हैं और प्रायः पौधों से प्राप्त होते हैं। व्यक्ति इन पदार्थों का व्यसनी चिन्ता, उदासी, और विवाद को दूर करने के प्रयास के कारण हो जाता हैं। तन्द्राकर पदार्थ शामक पदार्थों के समान ही नाड़ीमण्डल पर अवसादक प्रभाव उत्पन्न कर व्यसनी व्यक्ति में आनन्द, सामर्थ्य, हिम्मत, जैसी भावनाओं को उत्पन्न करते हैं। हैरोइन मार्फीन, पेथेडीन और कोकीन या तो कश के रूप में लिए जाते है या फिर तरल पदार्थ के रूप में इंजेक्शन द्वारा अफीम, गांजा, चरस आदि को व्यक्ति या तो नाक से खींचता है या चिलम का सहारा लेता है लेकिन इन सभी पदार्थों का अत्यधिक प्रयोग व्यक्ति की भूख कम करता है। नार्कोटिक पदार्थों का सेवन बन्द कर देने से अन्तिम डोज लेने के 8 से 12 घण्टे बाद कम्पन्न, पसीना आना, दस्त मिचलाहट पेट व टांगों में ऐंठन, मानसिक वेदना जैसे लक्षण प्रकट होने लगते हैं। इन सब अवस्थाओं से गुजरने पर व्यक्ति महसूस करता है कि जैसे वह जीते जी नरक भोगकर आया है। गांजे की अधिक मात्रा लती व्यक्ति को आनन्द की अपेक्षा आतंक महसूस कराता है तथा इसका सेवन बन्द कर देने पर व्यक्ति अचानक हिंसक हो उठता है या पागलों के समान सड़को पर दौड़ने लगता है। इस श्रेणी के सभी उत्पाद कोशिका की सारी कार्यवाही को अस्त-व्यस्त कर देते हैं। मस्तिष्क की कोशिकाओं के साथ ऐसा होने पर असाधारण संवेदनायें उभरने लगती हैं। विभ्रामात्मक पदार्थ / भ्रामोत्पादक / भ्रान्तिजनक पदार्थ. इन पदार्थों में सर्वाधिक व्यसन एल.एस.डी. (LSD) का किया जाता है। यह एक कृत्रिम रासायनिक पदार्थ है। यह नशीला पदार्थ इतना शक्तिशाली है कि इसकी एक तोले से ही तीन लाख डोज बनाये जाते हैं। नमक के दाने से भी कम इसकी मात्रा मनुष्य में कई मनोरोगमय प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करता है। इस पदार्थ के सेवन के 8-10 घण्टे तक नींद आना लगभग असम्भव है। एल.एस.डी. लेने के पश्चात गांजे के समान ही फ्लैशबैक की घटना प्रारम्भ हो जाती है, व्यक्ति हिंसक होकर अपराध भी कर बैठता है तथा यह पूर्ण भ्रम की स्थिति उत्पन्न करते हैं। चिकित्सकों के द्वारा इन पदार्थों के सेवन की सलाह कभी नहीं दी जाती, ऐसे पदार्थों का सेवन बन्द कर देने पर अतिभय, अवसाद, स्थायी मानसिक असंयम पैदा हो जाता है। ताम्रकूटी / निकोटीन पदार्थ. ताम्रकूटी पदार्थों में सिगरेट, बीड़ी, सिगार, चुरूट, नास (Snuff) तम्बाकू सम्मिलित हैं। तम्बाकू की खेती की जाती है जिसके पत्ते चौड़े और कड़वे होते हैं। ताम्रकूटी पदार्थों का कोई चिकित्कीय उपयोग नहीं होता परन्तु शारीरिक निर्भरता का जोखिम रहता हैं। यह व्यसनी में शिथिलन पैदा कर केन्द्रीय नाड़ीमण्डल को उत्तेजित करती है तथा उबाऊपन को दूर करती है। तम्बाकू का अधिक सेवन दिल की बीमारी, फैंफड़े के कैंसर, श्वास नली जैसे रोग उत्पन्न करता है। इसका सेवन तीन प्रकार से किया जाता है :- परन्तु लोग इसे नशा नहीं मानते क्योंकि इस पदार्थ को छोड़ने के कोई अपनयन लक्षण नहीं होने व अपराध का कारण नहीं बनने के कारण कानून भी इसे नशो की श्रेणी में नहीं रखता। विभिन्न शहरों में द्रव्य व्यसन की दर 17 से 25 प्रतिशत के बीच मिलती है। जिनमें तम्बाकू एवं शराब के लगभग 65 प्रतिशात से अधिक व्यसनी मिल जाते हैं। रोकथाम के उपाय. नशा विश्वभर की एक गम्भीर समस्या है अतः इस समस्या के लिए संयुक्त आक्रमण की आवश्यकता है जिसमें व्यसनियों का उपचार, सामाजिक उपाय, शिक्षा आदि सम्मिलित है। आधुनिक समाज में जनसंख्या की संरचना में होने वाले परिवर्तन एवं सामाजिक विकास से समाज के विभिन्न क्षेत्रों में प्रतियोगी प्रक्रियाऐं काफी तीव्र हो गई हैं जिसका स्पष्ट प्रभाव विभिन्न सामाजिक संस्थाओं पर दिखाई देता है। लोगों का अलगाव, तनाव और अवसाद से मानसिक संतुलन गड़बड़ाने लगा है, यही कारण है कि मादक पदार्थो के सेवन का प्रतिशत गांव, नगर, विद्यालय एवं महाविद्यालय और महिलाओं में बढ़ता जा रहा है। अतः सामाजिक विद्यटन को रोकने के लिए व्यसन की इस अनियंत्रित स्थिति पर नियंत्रण आवशयक है। समाजशास्त्रीय दृष्टि से व्यसन की रोकथाम के लिए किये जाने वाले उपायों को मोटे तौर पर चार श्रेणियों में विभाजन किया जा सकता है - (1) शैक्षणिक उपाय (2) प्रवर्तक उपाय (मनाने वाले) (3) सुविधाजनक उपाय और (4) दण्डात्मक उपाय। इन उपायों में से अधिकांशतः शौक्षणिक उपायों में नशे के शारीर और मन पर पड़ने वाले प्रभाव के सम्बन्ध में ज्ञान प्रदान कर जागरूकता लाने का प्रयास किया जाता है ताकि नशीले पदार्थ के सेवन के प्रति भय उत्पन्न हो जाए। जबकि दण्डात्मक उपाय में नशा करने वालों का अलगाव या विसंबंधन किया जाता है। व्यसन की रोकथाम के लिए किए जाने वाले प्रमुख उपायों में निम्न बातों को ध्यान रखा जाना चाहिये। शौक्षणिक उपाय. शौक्षणिक उपायों को अपनाते समय यह व्यक्ति को जो तथ्य, संकेत या निशान दिये जाते है वे भारतीय संस्कृति के सन्दर्भ में होने चाहिए। भारत में साक्षरता की दर कम होने के कारण लिखित जानकारी की अपेक्षा नुक्कड़ नाटक, पोस्टर, चलचित्रों एवं टीवी आदि के माध्यम से इससे होने वाले बुरे प्रभाव को प्रदर्शित किया जाना चाहिए, साथ ही नशा करने वाले व्यक्तियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, लिंग, धार्मिक विश्वास, उपसंस्कृति एवं पारिवारिक समस्याओं को ध्यान में रखते हुए इन उपायों को अपनाया जाना चाहिये। शिक्षा देने के लक्षित समूहों में कॉलेज, विश्वविद्यालयों के युवा छात्रों, छात्रावासों में रहने वाले छात्रों, कच्ची बस्तियों में रहने वाले लोगों, औद्यौगिक श्रमिकों, ट्रक चालकों एवं रिक्शा चालकों को अधिक सम्मिलित किया जाना चाहिए। वैधानिक उपाय. मादक पदार्थों के सेवन की रोकथम का एक महत्वपूर्ण उपाय वैधानिकप्रयास है। ब्रिटिशकाल में 1893 सर्वप्रथम रायल आयोग का गठन कर मादक पदार्थो के सेवन की समस्या की रोकथाम का कदम उठाया गया। सरकार द्वारा 1985 में मादक पदार्थो की तस्करी की रोकथम के लिए ‘द नारकोटिक, ड्रग्स व साइकोट्रापिक सब्सटसिज एक्ट’ बनाकर 14 नवम्बर 1985 से लागू किया गया। जिसके उलंघन पर कठोर कारावास एवं जुर्माना दोनों को निर्धारित किया गया है। इस कानून की सफलता के लिए नियमों का कठोरता से पालन करने के साथ मादक पदार्थों का व्यापार करने वाले व्यक्तियों तस्करों एवं षड़यंकारियों को पकड़नेमें जनता का सहयोग भी लिया जा सकता है। इस अंतर्राष्ट्रीय समस्या को बढ़ने से रोकने के लिए स्थानीय निकायों को मजबूत बनाना होगा एवं इसके क्रय विक्रय को पूर्ण रूप से रोकना अनिवार्य करना होगा। चिकित्सकीय उपाय. व्यसन को रोकने में चिकित्सकों की अहम् भूमिका होती है। बाजार में मिलने वाली नींद की दवाइयों, अवसाद विरोधी दवाइयों, दर्दनाक दवाइयों और खांसी की दवाइयों में पाये जाने वाले पदार्थ कुछ समय तक नियमित सेवन से व्यक्ति को लती बना देते है। अतः द्रव्यों के औशध निर्देश देने सम्बन्धी अभिवृतियाँ सकारात्मक होनी चाहिये, अर्थात् चिकित्सक को यह स्पष्ट रूप बताना चाहिये कि रोगी द्रव्यों के अतिरिक्त प्रभावों की अवहेलना नहीं करे एवं बिना चिकित्सकीय परामर्शा के दवा लेने में सतर्कता बरते। सामाजिक उपाय. शिक्षा और चिकित्सा के समान व्यसन की रोकथाम में विभिन्न सामाजिक समूहों के सहयोग की अवहेलना नहीं की जा सकती। सामाजिक उपायों में परिवार नातेदार, मित्र और स्वैच्छिक संगठन सम्मिलित हैं। इस अध्याय में आपने जाना कि परिवार और मित्र समूह व्यक्ति के जीवन को इस दिशा में प्रभावित करने वाले प्राथमिक तत्व हैं। माता-पिता की उपेक्षा, अधिक विरोध व वैवाहिक असामंजस्य व्यक्ति को व्यसन की ओर ले जानेवाले प्रमुख कारण हैं। अतः माता-पिता को चाहिये कि वे पारिवारिक पर्यावर ण को अधिक सामंजस्यपूर्ण बनाए रखने का प्रयास करें जिससे कम से कम बच्चे घर के बाहर रहकर मादक पदार्थों के सेवन के लिए प्रेरित नहीं होंगे। माता-पिता को बच्चे के असामाजिक व्यवहार तथा विपथगामी व्यवहार जैसे अध्ययन व अभिरूचियों आदि क्रियाओं में कम रूचि, गैर जिम्मेदार व्यवहार, चिड़चिड़ापन, आवेगी व्यवहार, व्यग्रता, घबराहट की मुखाकृति आदि को देखकर कारणों का पता लगाना चाहिये। यदि माता-पिता सामाजिक और नैतिक प्रतिमानों की पालना करें तो बच्चा भी अवश्य करेगा। अतः सामाजिक सुरक्षा, परिवार के निर्णयों में शामिलकर सामाजिक पर्यावरण को स्नेहपूर्ण बनाकर भी व्यसन की स्थिति को रोका जा सकता है। उपचार. मादक व्यसनी का पता लगाना ही अपने आप में एक कठिन कार्य नहीं है अपितु, व्यसनीयों का उपचार करना भी अत्यधिक कठिन है। व्यक्तिगत रूप से यह कार्य और भी ज्यादा मुश्किल है अर्थात ऐसे लोगों के उपचार में मादक द्रव्यों के सेवन पर पूर्ण नियंत्रण की आवश्यकता होती है, जो घर की अपेक्षा चिकित्सालय में अधिक सम्भव है। व्यसन एक मानसिक रोग है जिसका उपचार मनोचिकित्सकों एवं औषधियों से संभव है। इन व्यक्तियों का उपचार विभिन्न चिकित्सा केन्द्रों, मेडिकल कॉलेजों एवं नशा मुक्ति केन्द्रों पर निःशुल्क भी किया जाता है। व्यसन के उपचार के दौरान इन्हें लम्बे समय तक परामर्श की आवश्यकता होती है।
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होटल पेंसिल्वेनिया. होटल पेन्सिलवेनिया, मैनहट्टन में 401 7 वीं एवेन्यू (15 पेन प्लाजा) पर स्थित एक होटल है जो न्यूयॉर्क शहर में पेन्सिलवेनिया स्टेशन और मैडिसन स्क्वायर गार्डन से सड़क पार स्थित हैं। इतिहास. प्रारंभिक वर्ष. होटल पेन्सिलवेनिया, पेन्सिलवेनिया रेलरोड द्वारा बनाया गया था और एल्सवर्थ स्टाटलेर द्वारा संचालित किया गया था। यह 25 जनवरी 1919 को इसका उद्घाटन किया गया था। इसकी डिजाइनिंग मक्किम, मीड एंड व्हाइट फर्म के विलियम सीमस रिचर्डसन द्वारा की गयी थी। इनके ही द्वारा सड़क पार स्थित मूल पेन्सिलवेनिया स्टेशन भी डिज़ाइन किया गया था। (1963 में मैडिसन स्क्वायर गार्डन के लिए जगह बनाने के लिए पुराने पेन्सिलवेनिया स्टेशन को ढहा दिया गया था। स्टाटलेर होटल जिसने पेन्सिलवेनिया निर्माण के बाद से इसका प्रबनधन किया था। इसने 1948 में संपत्ति का संपूर्ण अधिग्रहण कर लिया और इसका नाम होटल स्टाटलेर कर दिया। 1954 में स्टाटलेर ग्रुप के सभी 17 स्टाटलेर होटल की बिक्री, कॉनराड हिल्टन को करने के बाद इसका नाम होटल स्टाटलेर हिल्टन हो गया। 1980 के दशक तक यह इसी नाम से संचालित होता रहा जबतक हिल्टन होटल ने इसने नहीं बेचा। बहुत थोड़े समय के लिए इसका नाम न्यूयॉर्क स्टाटलेर नाम था और यह डंफय होटल द्वारा संचालित किया गया था, जो एर लिंगस की एक शाखा थी। प्रस्तावित तोड़-फोड़. इस होटल के टूटने का भय 1997 में पहली बार उत्पन्न हुआ जब वोर्नाडो रियल्टी ट्रस्ट द्वारा यह होटल खरीदा गया था। वोर्नाडो होटल ने 2007 में घोषणा की यह एक नया कार्यालय भवन के बनाने के लिए इस होटल को ध्वस्त करेगी। पेन्सिलवेनिया 6-500. इस होटल के फ़ोन नंबर को न्यूयॉर्क में किसी एक जगह तक के सबसे लम्बे समय तक का फ़ोन नंबर रहने की विशिष्टता प्राप्त हैं। नंबर पेंसिल्वेनिया 6-500 (२१२-७३६-५०००) को जेरी ग्रे ने अपने एक गाने का नाम रखा है (बाद में कार्ल सिग्मं ने इसमें कुछ पंक्तिया और जोड़ी थी)। इस गाने की सबसे प्रसिद्ध संस्करण को एंड्रू सिस्टर्स ने ग्लेन मिलर के साथ गाया था। इस होटल के डाइनिंग रूम में कई बड़े बड़े बैंड्स ने अपना परफॉरमेंस दिया हैं जिसमे शामिल हैं, कैफ़े रोगे, डोरेसी ब्रदर्स। नवंबर १९३९ की एक रात को इसी होटल में परफॉर्म करते हुए कैफ़े रोगे के बंद लीडर. आर्ति शॉ ने बीच परफॉरमेंस के दौरान बंद छोड़ने की घोषणा की थी। इस समाचार को न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने संपादकीय में जगह दी थी। १९४०-४२ के दौरान ग्लेन मिलर अपने बैंड के साथ यहाँ लगातार परफॉर्म करते रहे. मिलर ने इसी समय अपनी टीम में गैरे को सम्मिलित किया जिसने कभी न भूलने वाली धुन लिखी। इसी गाने ने इस होटल के टेलीफोन नंबर को अमर कर दिया। कई दशकों तक जब भी कोई इस होटल में फ़ोन करता था, तब ऑपरेटर के उठाने से पहले उसे यह धुन सुनाई पड़ती थी। लेकिन २०१२ में इसको बंद कर दिया गया। फिल्म इतिहास. 1986 की मूवी मैनहटन प्रोजेक्ट में इस होटल को दिखाया गया था। सामान्य ज्ञान. किसी भी होटल में हम सामान्यता हम 13थ फ्लोर नहीं पाते हैं लेकिन प्रचलित विचारधारा के विपरीत इस होटल में फ्लोर नंबर 13 हैं।
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ग्राम काशीपुरम्. काशीपुरम् काशी परिक्षेत्र के डोभी ब्लाक में गंगा गोमती नदी के तट पर बसा गाँव है। जिसका नाम विगत वर्षों में अहिरौली हुआ करता था।
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अतीतावलोकन (मनोविज्ञान). अतीतावलोकन (flashback या involuntary recurrent memory) एक मनोवैज्ञानिक परिघटना है जिसमें व्यक्ति अचानक अपने अतीत के अनुभवों को पुन्ः महशूश करने लगता है।
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एमजीएम ग्रांड लास वेगास. पता:. 3799 लॉस वेगास बुलेवार्ड साउथ लॉस वेगास, नेवाडा 89109 उद्घाटन की तारीख: 18 दिसंबर 1993 विषय:. मनोरंजन कमरे की संख्या:. 6852 प्रमुख रेस्त्स्रां:. ल'अटेलिएर दे जोएल रोबूचों हक्कासँ एमेरील'स माइकल मीन'स पब 1842 क्राफ्ट्सटाक वोल्फ़गांग पक फिअम्मा पर्ल शिबुया नवीनीकृत:. 1996, 2005, 2012 वेबसाइट:. www.mgmgrand.कॉम एमजीएम ग्रांड लास वेगस, एक कैसिनो होटल हैं जो लास वेगास, नेवाडा के पैराडाइस एरिया में स्थित हैं। कमरों की संख्या के आधार पर यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा एवं संयुक्त राज्य अमेरिका का सबसे बड़ा होटल रिसोर्ट है। इसके बाद ही “द विनीशियन” का नंबर आता हैं। 1993 में जब इस होटल का उद्घाटन किया था तब यह होटल दुनिया की सबसे बड़ी होटल थी। एमजीएम रिसॉर्ट्स इंटरनेशनल द्वारा खरीदी गयी एवं संचालित इस होटल में ३० फ्लोर हैं एवं यह २९३ फ़ीट (८९ मीटर) ऊंचा हैं इस होटल में 5 आउटडोर पूल, नदिया, झरने हैं एवं यह ६.६ एकड़ में फैला हुआ हैं। ३८०,००० वर्गमीटर का एक कन्वेंशन सेंटर, एमजीएम ग्रैंड गार्डन एरीना और ग्रैंड स्पा है। यह होटल लॉस वेगास के कैसिनो की दुनिया में एक अपना अलग ही स्थान रखता है। मरीना होटल. 3805 लॉस वेगास बुलेवार्ड में स्थित 714 कमरे वाले मरीना होटल और कैसीनो को 1975 में खोला गया। 1989 में, किर्क केरकोरियन ने मरीना होटल और ट्रॉपिकाना कंट्री क्लब खरीदा जो बाद में एमजीएम ग्रांड का प्रारंभिक साइट बना। उस समय के दौरान यह एमजीएम-मरीना होटल के रूप में जाना जाता था। नई होटल कैसिनो काम्प्लेक्स की जगह बनाने के लिए इस होटल को 30 नवंबर 1990 को बंद कर दिया गया मरीना होटल की इमारत अभी भी मुख्य होटल की इमारत के पश्चिमी छोर के रूप में मौजूद हैं। इतिहास. जब वर्तमान एमजीएम ग्रैंड का उद्घाटन १९९३ में किया गया था तब यह एमजीएम ग्रैंड इंक स्वामित्व में था। उस समय यह विज़ार्ड ऑफ़ ओज़े की विषयवस्तु पर आधारित था।इस कैसिनो में घुसते समय यह लगता था की आप ऑस्ट्रेलिया में हैं। डोरोथी, स्कैर क्रो, तीन मन एवं भयभीत शेर इसके प्रमुख आकर्षण थे। जब १९९६ में इस होटल ने अपना नवीनीकरण प्रक्रिया प्रारम्भ किया तब इसने एमराल्ड सिटी को पूर्ण रूप से तोड़ दिया एवं इसको नए शॉपिंग सेंटर में स्थान्तरित कर दिया गया। 2000 में, ज्यादा "परिपक्व" ग्राहकों को आकर्षित करने की कोशिश में, होटल ने अपना पूर्ण नवीकरण किया एवं आस्ट्रेलिया से सम्बंधित सभी विषयवस्तु को हटा दिया। अब इसका विषय क्लासिक हॉलीवुड हैं एवं यह होटल अपने आप को सिटी ऑफ़ एंटरटेनमेंट के तौर पर प्रस्तुत करता हैं। हाल के दिनों में यह “मैक्सिमम वेगास” शब्द का प्रयोग करती हैं जो एमजीएम ग्रैंड की साड़ी मनोरंजक गतिविधियों को प्रस्तुत करता हैं। जिन्हे इसके आगन्तक आनंद उठा सकते है। 26 अप्रैल 2000 को एमजीएम ने मैककार्रण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक नए सैटलाइट पंजीकरण / होटल चेक-इन सेंटर खोला। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के हवाई अड्डे पर किसी भी होटल कंपनी द्वारा खोला गया पहला काउंटर था। हालांकि, इस हवाई अड्डे चेक-इन केंद्र 2013 के अंत में बंद कर दिया गया।
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अंग्रेज शासकों की सूची. इंग्लैण्ड रियासत में राजतंत्र की शुरुवात अल्फ्रेड महान और समाप्ति महारानी ऐन, ग्रेट ब्रिटेन की महारानी से हुई जब वो १७०७ में इंग्लैंड की राजशाही के स्कॉटलैंड की राजशाही से विलय के बाद बने ग्रेट ब्रिटेन राजशाही की महारानी बनीं। महारानी ऐन के बाद के शासकों के लिये देखें ब्रिटेन के शासक। हालांकि कुछ इतिहासकारा कुछ अन्य राजाओं को भी इंग्लैंड का पहला राजा मानने का तर्क देते हैं जो आंग्ल-सैक्सनों के राज्यों पर नियंत्रण रखने का माद्दा व चाहत रखते थे। उदाहरण के तौर पर, ओफ्फा, मर्सिया का राजा और वेसेक्स का राजा एग्बर्ट को कभी-२ प्रसिध लेखकों द्वारा इंग्लैंड के राजा के रूप में निरूपित किया जाता है। लेकिन हर इतिहासकार इससे सहमत भी नहीं हैं। आठवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में ओफ़्फा ने दक्षिणी इंग्लैंड पर आधिपत्य हासिल कर अलिया था लेकिन ये राज ७९६ ई॰ में उसकी मृत्यु के पहले ही खत्म हो गया।८२९ ई॰ में एग्बर्ट ने मर्सिया पर अधिकार कर लिया लेकिन जल्द ही इसे गँवा भी दिया। नवीं शताब्दी के अंत तक वेसेक्स सबसे प्रभावशाली आंग्ल-सैक्सन अधिराज्य था। इसका राजा अल्फ्रेड महान पश्चिमी मर्सिया का एक शक्तिशाली सामंत था। वह अपने लिये आंग्ल और सैक्सनों का राजा की उपाधि का प्रयोग करता था लेकिन उसने कभी भी पूर्वी और उत्तरी इंग्लैंड पर शासन नहीं किया। उसके बेटे एडवर्ड द एल्डर ने पूर्वी डेनलॉ पर विजय हासिल की लेकिन एडवर्ड का बेटे ऍथेल्स्तन ९२७ ई में नॉर्थम्ब्रिया पर विजय हासिल करके पूरे इंग्लैंड पर शासन करने वाला पहला राजा बना। आधुनिक इतिहासकारों ऍथेल्स्तन को ही इंग्लैंड का पहला राजा मानते हैं। वेल्स की रियासत का इंग्लैंड के साम्राज्य में रुडलैन का स्टैचुएट के अंतर्गत १२८४ में विलय कर दिया गया और १३०१ में राजा एडवर्ड प्रथम ने अपने ज्येष्ठ पुत्र, भविष्य के राजा एडवर्ड द्वितीय को वेल्स का राजकुमार के तौर पर प्रतिष्ठित किया। तभी से एडवर्ड तृतीय के अलावा अंग्रेज अधीराटों के सभी बड़े बेटों ने यह पद हासिल किया है। १६०३ ई में एलिज़ाबेथ प्रथम की निसंतान मृत्यु के बाद इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के सिंहासनों का स्कॉटलैंड का जेम्स ६ के शासन में एक निजी एकीकरण कर दिया गया। शाही ऐलान के साथ जेम्स ने स्वयं को "ग्रेट ब्रिटेन का राजा" घोषित कर दिया लेकिन ग्रेट ब्रिटेन जैसे किसी भी साम्राज्य का कानूनी तौर पर निर्माण १७०७ तक नहीं हुआ था। महारानी ऐन के शासन काल में १७०७ में हुए विलय के अधिनियमों के बाद इंग्लैंड कानूनी तौर पर स्कॉटलैंड के साथ जुड़ गया और इस तरह ग्रेट ब्रिटेन राजशाही का गठन हुआ। १८०१ में विलय के अधिनियम के तहत आयरलैंड राजशाही जो हेनरी द्वि॰ के समय से अंग्रेजी शासन के अधीन था "ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड का यूनाइटेड किंगडम" में शामिल हो गया और १९२२ में आयरिश मुक्त राज्य के बनने तक इसका हिस्सा रहा। चूंकि उत्तरी आयरलैंड यूके के साथ रहा इसलिये इसके बाद से इस अधिराज्य को यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड नॉर्दर्न आयरलैंड के नाम से जानते हैं। वेसेक्स राजघराना. विवादित दावेदार कुछ सबूत ९२४ ई॰ में अपने पिता और भाई ऍथेल्स्तन के शासन के बीच चार हफ्तों तक वेसेक्स के ऍल्फवीयर्ड ( के राजा होने की तरफ इशारा करते हैं। हालाँकि उसका राज्याभिषेक नहीं हुआ था। वैसे सभी इतिहासकार इसे नहीं मानते हैं। यह भी विवादित है कि ऍल्फ्वियर्ड को पूरे इंग्लैंड का राजा घोषित किया गया था या सिर्फ वेसेक्स का: सबूतों के अनुसार जब अल्फ्रेड की मृत्यु हो गई तब ऍल्फवीयर्ड को वेसेक्स में और ऍथेल्स्तन को मर्सिया में राजा घोषित किया गया था। डेनमार्क राजघराना. ऍथलरेड द अनरेडी के शासन के बाद इंग्लैंड डैनिश राजाओं के शासन में आ गया। वेसेक्स राजघराना (पहली बार पुन:स्थापित). स्वेय्न फोर्कबीयर्ड की मृत्यु के बाद ऍथलरेड द अनरेडी एकांतवास से वापस आ गया और उसे एक बार फिर 3 फरवरी 1014 को राजा घोषित कर दिया गया। आंग्ल-सैक्सनों के शासन को एक बार उखाड़ फेंकने की डैनिश राजाओं की तमाम कोशिशों के बावजूद लंदन के नागरिकों के द्वारा चुने जाने पर उसके बेटे ने उसका उत्तराधिकार संभाला। डेनमार्क राजघराना (पुन:स्थापित). असुन्दन के निर्णायक युद्ध के बाद 18 अक्टूबर 1016 को एडमंड आइरनसाइड ने कैनुट से एक संधि पर हस्ताक्षर किये जिसमें वेसेक्स को छोड़कर पूरा इंग्लैंड कैनुट के द्वारा शासित होना था। एडमंड की 30 नवम्बर को मृत्यु के बाद कैनुट ने पूरे साम्राज्य पर शासन किया। वेसेक्स राजघराना (पुन:स्थापित, दूसरी बार). हार्थैक्नट के बाद 1042 और 1066 के बीच एक क्षणिक सैक्सन पुनरुत्थान आया था: नॉर्मैंडी राजघराना. सन् १०६६ में रोल्लो के वंशज, नॉर्मैंडी के ड्यूक और नॉर्मैंडी राजघराने के संस्थापक, फ्रांस के राजा के अधीन जागीदार और पापमोचक गुरु एडवर्ड के संबंधी विलियम प्रथम ने इंग्लैंड पर धावा बोला और जीत लिया और निवर्तमान राजधानी विन्चेस्टर से हटाकर लंदन में कर दी। राजा हैरॉल्ड द्वितीय की मृत्यु के बाद हुए एक निर्णायक हैस्टिंग युद्ध ने 14 अक्टूबर को आंग्ल-सैक्सन विट्नैगेमोट ने हैरॉल्ड के स्थान पर एड्गर द एथलिंग को राजा चुना लेकिन एडगर कभी भी शासन की रक्षा नहीं कर पाया और उसका राज्याभिषेक भी नहीं हुआ। १०६६ में क्रिसमस के दिन वेस्टमिंस्टर ऐबी में विलियम का इंग्लैंड के राजा विलियम प्रथम के रूप में राज्याभिषेक किया गया। विलियम को आज के युग में "विलियम द कॉनकरर" यानि "विजयी विलियम" या विलियम प्रथम या "विलियम द बास्टर्ड" यानि "विलियम हरामी" के नाम से भी जाना जाता है। ब्लोइस राजघराना. विवादित दावेदार साम्राज्ञी मटिल्डा को उनके भाई व्हाइट शिप की मृत्यु के बाद अपने पिता हेनरी प्रथम द्वारा अपना उत्तराधिकारी घोषित किया गया। हालांकि हेनरी की मृत्यु के बाद सिहांसन पर मटिल्डा के चचेरे भाई, ब्लोइस के स्टीफन ने कब्ज़ा कर लिया। परिणामस्वरूप देश में अराजकता फैल गई और ११४१ में कुछ महीनों के लिये मटिल्डा ही देश की वास्तविक और पहली महिला शासक रहीं लेकिन चूंकि कभी भी उनका राज्याभिषेक नहीं हो पाया इसलिये उन्हें इंग्लैंड के सम्राटों में नहीं गिना जाता है। बोलोग्न का काउंट युस्टेस चतुर्थ (c. 1130 – 17 अगस्त 1153) को पिता स्टीफन द्वारा ६ अप्रैल ११५२ को इंग्लैंड का सह-राजा नियुक्त किया गया। स्टीफन इंग्लैंड पर युस्टेस का उत्तराधिकार सुनिश्चित करना चाहता था। हालांकि पोप और गिरिजाघर इससे एकमत नहीं थे और युस्टेस का राज्याभिषेक नहीं हुआ। युस्टेस अपने पिता के शासनकाल के दौरान ही २२ वर्ष की उम्र में ही मर गया और कभी भी इंग्लैंड का राजा नहीं बन पाया। ऐंजो राजघराना. वैलिंगफोर्ड की संधि से स्टीफन ने नवम्बर 1153 में मटिल्डा के साथ एक करार किय जिसमें उसने मटिल्डा के पुत्र हेनरी २, इंग्लैंड का राजा। को अपने अगस्त में दिवंगत हुए अपने पुत्र के स्थान पर सिंहासन का उत्तराधिकारी स्वीकार कर लिया। ऐंगेवियनों ने ऐंगेवियन साम्राज्य पर बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी में राज किया था। यह साम्राज्य पाइरेनीज़ से आयरलैंड तक फैला हुआ था। इंग्लैंड के राजा जॉन के हाथों अपनी अधिकतर महाद्वीपीय जमीनी ताकत गंवाने से पहले तक ऐंगेवियाई इंग्लैंड को अपना प्राथमिक आवास नहीं मानते थे। ऐंगेवियाई राजवंश ज्यादा दिनों तक तो नहीं चला लेकिन हालांकि इनके पुरुष वंशजों में प्लैन्टैगेनेट का राजघराना, लंकास्टर और यॉर्क राजघराने शामिल थे। एंग्वियाईयों ने इंग्लैंड के उस शाही कुल-चिह्न की आधारशिला रखी जिनमें इनके या इनके वंशजों द्वारा विजित या दावेदारी किये हुए साम्राज्यों (आयरलैंड के अलावा) के चिह्न शामिल होते थे। एडवर्ड तृतीय के अपनाए जाने के बाद से "देउ ए मों द्वा" ("Dieu et mon droit") अंग्रेज शासकों का ध्येय वाक्य होता था, लेकिन इसे पहली बार रिचर्ड प्रथम ११९८ ई. में सिंहनाद के रूप में गिसोर्स के युद्ध में तब इस्तेमाल किया गया था जब उसने फिलिप २ की सेनाओं को हरा दिया। इसके बाद से उसने इसे अपना ध्येय वाक्य बना लिया। विवादित दावेदार फ्राँस के लुईस अष्टम ने इंग्लैंड पर 1216 से 1217 तक राजा जॉन के खिलाफ़ लड़े गये बैरों के प्रथम युद्ध के बाद कुछ समय तक शासन किया। लंदन की ओर जाते हुए उसका विद्रोही अंग्रेज बैरों और नागरिकों द्वारा स्वागत किया गया और सेंट पॉल कैथेड्रल में राजा घोषित किया गया। हालांकि उसका राज्याभिषेक नहीं हुआ था। कई कुलीन लोग जिनमें स्कॉटलैंड के राजा एलेक्ज़ेंडर द्वितीय भी थे ने सिंहासन पर काबिज होने के इस समारोह में उसे आदर देने के लिये उपस्थित थे। हालांकि १२७७ ई॰ में लैम्बेथ की संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद उसने यह मान लिया की वो कभी भी इंग्लैंड का जायज़ राजा नहीं था। प्लैन्टागेनेट का राजघराना. प्लैन्टागेनेट का राजघराने की शुरुवात इंग्लैंड के हेनरी द्वितीय के शासनकाल से हुई थी। हालांकि कुछ इतिहासकार प्लैन्टागेनेटों को हेनरी तृतीय के समय से मानते हैं जब इन शासकों के व्यवहार में और अंग्रेजियत आ गई थी। लकांस्टर और यॉर्क के राजघराने इसी की शाखाएँ हैं। लंकास्टर राजघराना. यह राजघराना एडवर्ड तृतीय के बचे हुए पुत्र गांट का जॉन, लंकास्टर का पहला ड्यूक से शुरु होता है। हेनरी चतुर्थ ने रिचर्ड द्वितीय से सत्ता छीन ली और उत्तराधिकार की पंक्ति में अगले एडमंड मोर्तीमर (उम्र ७) जो एडवर्ड तृतीय के दूसरे पुत्र एंटवर्प के लियोनेल का वंशज था को हटा दिया। यॉर्क राजघराना. यॉर्क राजघराने ने अपना नाम एडवर्ड तृतीय के जीवित बचे हुए पुत्र लैंग्ले का एडमंड, यॉर्क का पहला ड्यूक से लिया था, लेकिन उसे सिंहासन पर उत्तराधिकार एडवर्ड तृतीय के दूसरे जीवित बचे हुए पुत्र लॉयनेल से मिला। गुलाबों के युद्ध (1455–1485) से सिंहासन लंकास्टर और यॉर्क राजघरानों के बीचा आता जाता रहा। ट्यूडर राजवंश. ट्यूडर वंश, माँ के घर की ओर से जॉन बेउफोर्ट के वंशज थे जो कि एडवर्ड तृतीय के तीसरे बचे हुए बेटे गौंट के जॉन की एक नाजायज़ संतान था। उसकी माँ कैथरीन स्विनफोर्ड, गौंट की लंबे समय तक सेविका रही थीं। सामान्यत: अंग्रेज शासकों या उत्तराधिकारियों की नाजायज़ संतानों के वंशजों का अंग्रेजी सिंहासन पर कोई दावा नहीं हो सकता था। लेकिन यह परिस्थिति तब विकट हो गई जब गौंट और कैथरीन ने जॉन बेउफोर्ट के जन्म के पच्चीस साल बाद १३९६ ई॰ में शादी कर ली। इस विवाह के मद्देनज़र शीर्ष गिरिजाघर ने बेउफोर्ट को जायज़ घोषित कर दिया। उस समय गौंट के जॉन के जायज़ बेटे और उत्तराधिकारी राजा हेनरी चतुर्थ ने भी बेउफोर्ट को जायज़ स्वीकार कर लिया, लेकिन उसे या उसके वंशजों को सिंहासन पर उत्तराधिकार से वंचित घोषित किया। इस के बावजूद, बेउफोर्ट और उसके वंशज गौंट के अन्य वंशजों यानि शाही लंकास्टरों के करीबी रहे। जॉन बेउफोर्ट की पोती लेडी मार्गरेट बेउफोर्ट का विवाह एडमंड ट्यूडर से हुआ। ट्यूडर वेल्स दरबारी ओवैन ट्यूडर और लंकास्ट्रियाई राजा हेनरी पंचम की विधवा वैलोईस की कैथरीन का बेटा था। एडमंड ट्यूडर या तो नाज़ायज थे या तो फिर किसी गुप्त विवाह के परिणामस्वरूप उतपन्न हुए थे। उनका भाग्य उनके जायज सौतेले भाई इंग्लैंड के राजा हेनरी षष्टम के उनके प्रति व्यवहार पर निर्भर था। जब लंकास्टर राजघराना सत्ता से बाहर हो गया तो ट्यूडरों ने सिंहासन संभाल लिया। पंद्रहवीं सदी के अंत तक लंकास्टर समर्थकों के लिये ट्यूडर अंतिम उम्मीद थे। गुलाबों के युद्ध का १४८५ ई॰ अंत करते हुए बोस्वोर्थ फील्ड के युद्ध में रिचर्ड तृतीय को हराने के बाद एडमंड ट्यूडर का बेटा हेनरी सप्तम इंग्लैंड का राजा बना। नए राजा, हेनरी ने एडवर्ड चतुर्थ की बेटी यॉर्क की एलिज़ाबेथ से विवाह कर के लंकास्टरों और यॉर्कों के वंशवृक्ष को मिला दिया और ट्यूडर राजवंश की नींव पड़ी। हेनरी अष्टम के रोमन कैथोलिक गिरिजाघर से अलगाव के बाद इंग्लैंड और आयरलैंड के संप्रभु और इंग्लैंड की कलीसिया के सर्वोच्च प्रमुख हो गए। एलिज़ाबेथ प्रथम के समय से इस पद को "चर्च ऑफ़ इंग्लैंड का सुप्रीम गवर्नर" कहा जाने लगा। विवादित दावेदार संसद द्वारा पारित तीसरा उत्तराधिकार कानून अमान्य करते हुए एडवर्ड षष्ठ ने लेडी जेन ग्रे को अपना प्रकल्पित उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। उसने संसद द्वारा पारित तीसरा उत्तराधिकार अधिनियम अमान्य कर दिया। एडवर्ड की मृत्यु के चार दिन बाद 6 जुलाई 1553 को जेन को रानी घोषित कर दिया गया लेकिन इस घोषणा के नौ दिन बाद ही, 19 जुलाई को परामर्श समिति ने अपनी वफादारी बदलते हुए एडवर्ड की सौतेली बहन कैथोलिक विचारधारा वाली मैरी को रानी घोषित कर दिया। जेन को १६ वर्ष की उम्र में ही सन् १५५४ में मृत्युदंड दे दिया गया। कई इतिहासकार उसे इंग्लैंड की जायज़ रानी या शासक नहीं मानते हैं। नेपल्स के फ़िलिप प्रथम (15 जनवरी 1556 से फ्रांस के फ़िलिप द्वितीय) और रानी मैरी प्रथम की विवाह संधि के अनुसार जब तक दोनों विवाहित रहते, फ़िलिप को रानी की सभी उपाधियाँ साझा रूप से मिलनी थीं। संसद के कानूनों सहित सभी शाही दस्तावेज उन दोनों के नाम के साथ लिखे व हस्ताक्षरित होने थे। साथ ही संसद पर दोनों का एकसमान अधिकार होना था। संसद में पारित एक कानून ने उसे राजा की उपाधि दी और उसे साम्राज्य में रानी के साथ-साथ सह-शासन करने की अनुमति दी। चूंकि इंग्लैंड के नए राजा अंग्रेजी नहीं पढ़ सकते थे इसलिये सभी आधिकारिक दस्तावेजों की एक लैटिन या फ्रेंच प्रति बनाने की व्यवस्था की गई। राजमुद्रा के सिक्कों पर मैरी और फिलिप दोनों के सिर मुद्रित किये गये और दोनों का सह-शासन प्रदर्षित करने के लिये इंग्लैंड के कुल चिह्न पर दाहिनी तरफ फ़िलिप का कुल चिह्न मुद्रित किया गया। इंग्लैंड और आयरलैंड में फ़िलिप के शाही अधिकारों को चुनौती देने वाले किसी भी कार्य को उच्चतम देशद्रोह का दर्ज़ा देने वाला कानून पारित कर दिया गया। 1555 में, पोप पॉल चतुर्थ ने एक पैपल बुल (विज्ञप्ति) जारी करके फिलिप और मैरी को इंग्लैंड व आयरलैंड का जायज़ शासक घोषित कर दिया। स्टुअर्ट राजघराना. १६०३ में एलिज़ाबेथ प्रथम के नि:संतान मृत्यु होने के बाद उनके रिश्ते के भाई व स्कॉटों के राजा जेम्स ६ ने मुकुटों की संधि के उपरान्त "इंग्लैंड के जेम्स प्रथम" ले रूप में अंग्रेजी सिंहासन की कमान संभाली। जेम्स ट्यूडरों के वंशज थे। हेनरी ८ की बड़ी बहन मार्गरेट ट्यूडर उनकी पर-नानी (नानी की सास) थीं। १६०४ में उन्होंने ["King of Great Britain"] "ग्रेट ब्रिटेन का राजा" नामक उपाधि धारण कर ली। हालांकि १७०७ में विलय का कानून पारित होने तक दोनों संसदें अलग -अलग कार्य करती रहीं। कॉमनवेल्थ. चार्ल्स १ की 1649 में हत्या के बाद से 1660 में चार्ल्स २ के पुनर्स्थापन तक इंग्लैंड पर किसी ने शासन नहीं किया। 1653 से निम्नलिखित लोगों ने "लॉर्ड प्रोटेक्टर" संरक्षक शासक की उपाधि के अंतर्गत राजकाज संभाला। इस काल को "द प्रोटेक्टोरेट" कहते हैं। स्टुअर्ट राजघराना (वापसी). हालांकि शासन 1660 में ही स्थापित हो गया था १६८८ के गौरवशाली क्रांति (ग्लोरियस रिवोल्युशन) से पहले तक स्थिरिता नहीं आ पायी जब संसद ने रोमन कैथोलिकों के सत्ता ग्रहण करने पर प्रतिबंध लगा दिया। विलय का अधिनियम. विलय के अधिनियमों १७०६-०७ में इंग्लैंड की संसद और स्कॉटलैंड की संसद द्वारा पारित हुए संसदीय अधिनियम का युगल या मिश्रण थे। इनके तहत 22 जुलाई 1706 से एकीकरण की संधि के प्रभावी होने को मान्यता दी गई थी। इन अहिनीयमों ने अंग्रेजी और स्कॉटियाई राजशाहियों, जो कि पहले अलग-अलग स्वतंत्र राज्य थे को अलग संसदीय व्यवस्था के साथ साथ एक ही शासक के अंतर्गत ग्रेट ब्रिटेन राजशाही के अंतर्गत ला दिया। १६०३ में हुए मुकुटों के एकीकरण जिसमें राजा जेम्स षष्ठ् ने एलिज़ाबेथ प्रथम के बाद अंग्रेजी व आयरिश शासन अपने नियंत्रण में ले लिया था, के बाद से इंग्लैंड, स्कॉटलैंड व आयरलैंड का १०० से भी ज्यादा वर्षों से एक ही शासक होता था। वैसे तो इसका नाम मुकुटों का एकीकरण था, लेकिन वास्तव में इंग्लैंड व स्कॉटलैंड दोनों के दो मुकुट होते थे जो एक ही शासक राजा पहनता था। १७०७ के बाद जा कर यह एक राज्य और एक मुकुट हुआ। इसके पहले स्कॉटलैंड व इंग्लैंड को एक करने के असफल प्रयास १६०६, १६६७, और १६८९ में संसदीय कानूनों के तहत हो चुके थे लेकिन ये सफल १७०७ में ही हुए जब दोनों ही संसदों ने सैद्धांतिक रूप में इसे अपनी मंजूरी दे दी। १७०७ के बाद के शासकों के लिये देखें, ब्रिटेन के शासक। उपाधियाँ. ऍथेल्स्तन से लेकर राजा जॉन तक सभी अंग्रेज शासकों की पुकार शैली "" ("किंग ऑफ़ द इंग्लिश") थी। इसके अलावा कई अन्य नॉर्मन पूर्व राजाओं की अन्य उपाधियाँ व शैलियाँ भी थीं। जैसे की: नॉर्मन युग में ' "रेक्स ऐंग्लोरम" मानक था और ' ("किंग ऑफ़ इंग्लैंड") को कभी-२ प्रयोग किया जाता था। साम्राज्ञी मटिल्डा ने स्वयं को "" ("लेडी ऑफ़ द इंग्लिश") की उपाधि दे रखी थी। राजा जॉन के बाद से ' या ' के साथ अन्य उपाधियाँ भी जुड़ीं। १६०४ में जेम्स प्रथम, जो पिछले साल ही अंग्रेजी सिंहासन पर आसीन हुआ था ने "किंग ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन" यानी ग्रेट ब्रिटेन का राजा की उपाधि धारण की। हांलाकि अंग्रेज व स्कॉटिश संसदों ने महारानी ऐन के अंतर्गत १७०७ के एकीकरण के कानून के अम्ल में आने से पहले तक इस उपाधि को मान्यता नहीं दी।
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संक्षीर. संक्षीर या लैटेक्स (latex), जलीय माध्यम में बहुलकी सूक्ष्मकणों का पायस (इमल्शन) है। वैसे तो संक्षीर मूलतः प्राकृतिक पदार्थ है किन्तु अब कृत्रिम लैटेक्स भी बनाये जाने लगे हैं।
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पिलोदा. पिलोदा अथवा पिलौदा भारतीय राज्य राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले की गंगापुर सिटी तहसील का एक गाँव है। यह गाँव जिले के बड़े गाँवों में से एक है। गाँव की कुल जनसंख्या  6,038 से अधिक है जिसमें अधिकतर जनजातियाँ हैं। गाँव में  2,000 से अधिक घर हैं। यह गाँव भी राजस्थान के अन्य आदिवासी गाँवों के समान है। यह गाँव सड़क मार्ग एवं रेलमार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इस गाँव का ब्रोडगेज रेलवे स्टेशन श्री महावीरजी और गंगापुर रेलवे स्टेशन के मध्य स्थित है। गाँव श्री लहकोड़ देवी के तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध है। इसके पास का पवित्र तालाब, मुख्यतः अप्रैल माह में दुर्गाष्टमी और श्री राम नवमी के दिन श्रद्धालुओं की भीड़ के साथ देखा जा सकता है। इस दिन यहाँ स्थानीय मेला लगता है, जिसमें विशाल कुश्ती दंगल का आयोजन किया जाता हैं, जिसमें दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के महिला एवं पुरुष पहलवान भाग लेते हैं। इस मेले में कुश्ती दंगल के साथ-ही-साथ अन्य प्रतियोगिताओं का भी आयोजन ग्रामीणों द्वारा करवाया जाता हैं, जैसे - रेस्लिंग, कुश्ती, ऊँट दौड़, घुड़ दौड़, बैल दौड़, तैराकी और साइकलिंग के रूप में किया जाता है।
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विट्ठल रामजी शिंदे. महर्षि विट्ठल रामजी शिन्दे ( 23 अप्रैल, 1873 – 2 जनवरी, 1944) महाराष्ट्र के सबसे बड़े समाजसुधारकों में से थे। उनका सबसे बड़ा योगदान अस्पृश्यता को मिटाना तथा दलित वर्ग को बराबरी पर लाना था। विट्ठल रामजी शिंदे का जन्म 23अप्रैल सन 1873को जामखंडी (कर्नाटक) में हुआ था। उनके पितारामजी शिन्दे, जामखंडी स्टेट में नौकरी किया करते थे। विट्ठल रामजी का ब्याह 9वर्ष की उम्र में हुआ था। तब उनकी पत्नी की उम्र मुश्किल से 1वर्ष रही होगी। मेट्रिक उतीर्ण करने के बाद विट्ठल रामजी शिंदे ने पूना आकर फर्ग्युशन कालेज से बी। ए। और सन 1898में एल। एल। बी किया। इस दौरान उन्हें पूना के प्रसिद्धवकील गंगाराम भाऊ म्हस्के और बडौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ से आर्थिक सहायता मिली थी। शुरू में विट्ठल रामजी शिंदेप्रार्थना समाजके सम्पर्क में आये थे। प्रार्थना समाज द्वारा प्राप्त आर्थिक सहायता से वे उच्च अध्ययन हेतु इंग्लैण्ड, इस शर्त के साथ कि वापस आकर वे संस्था का काम करेंगे। इंग्लैण्ड स्थित आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के मानचेस्टर कालेज में शिंदे ने विभिन्न धर्मों, खास कर बौद्ध धर्म और पालि भाषा का गहन अध्ययन किया। सन 1903मेंइंग्लैण्ड से लौटने के बाद मुम्बई में उन्होंने 'यंगथीस्टयूनियन' ( Young Theist Union) नामक संस्था स्थापित की। संस्था के सदस्यों के लिए उन्होंने शर्तें रखी थी कि वे मूर्तिपूजा और जाति-पांति की घृणा में विश्वास कभी नहीं करेंगे। वे सन1913तक प्रार्थना समाज में रहे। यद्यपि, बाद के दिनों में उनके कार्यों का उन्हीं के लोग विरोध करने लगे थे। विट्ठल रामजी शिंदे ने वर्ष 1905 में पूना के मिठनगंज पेठ में अछूतों के लिए रात्रि-स्कूल खोला। इसी प्रकार14मार्च 1907को अछूत जातियों के सामाजिक-धार्मिक सुधार के निमित्त'सोमवंशीय मित्र समाज' की स्थापना की। प्रार्थना समाजकी ओर से 18अक्टूबरा 1906को 'डिप्रेस्ड क्लासेस मिशन' की स्थापना की गयी थी। विट्ठल रामजी शिंदे इसके महासचिव थे। सन 1912तक डिप्रेस्ड क्लासेस मिशन के पास विभिन्न4राज्यों में करीब 23स्कूलऔर 5छात्रावास थे। विट्ठल रामजी शिंदे ने कई रचनात्मक कार्य किये। मुम्बई और सेन्ट्रल प्रोविन्स बरार में उन्होंने अस्पृश्यों के लिए कई आश्रम, स्कूल और पुस्तकालय खोले। सन 1917को उन्होंने अखिल भारतीय निराश्रित अस्पृश्यता निवारक संघकी स्थापना की। बाद के दिनों में विट्ठल रामजी शिंदे ने पूना को अपना कार्य क्षेत्र बनाया। यहाँपर स्थानीय प्रशासन द्वारा उन्हें7एकड़ जमीन दी गयी थी जो कभी ज्योतिबा फुले और उनके 'सत्य-शोधक समाज' को दी गयी थी। अस्पृश्यता जैसे सामाजिक सुधार के आधारभूत प्रश्न उठाने से विट्ठल रामजी शिंदे के उनके अपने ही लोगों से मतभेद बढ़ते जा रहे थे। मतभेद बढ़ते गए और अंतत:सन 1910में उन्होंने प्रार्थना समाज को पूरी तरह छोड़ दिया। सन 1917में मान्तेगु-चेम्स फोर्ड के चुनाव सुधार की घोषणा के साथ ही देश की राजनैतिक परिस्थितियां तेजी से बदल रही थी। सीटों के रिजर्वेशन के कारण पिछड़ी जातियों का ध्रुवीकरण हो रहा था। स्थिति को भांपते हुए विट्ठल रामजी शिंदेने 'मराठा राष्ट्रीय संघ' की स्थापना की और नवम्बर 1917में एक विशाल अधिवेशन कर सन 1916के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 'लखनऊ पेक्ट' को भारी समर्थन दिया। अस्पृश्यता के प्रश्न को अखिल भारतीय स्तर पर उठाने के लिए विट्ठल रामजी शिंदेलगातार प्रयास कर रहे थे। उन दिनों जहाँ कांग्रेस की सभा होती थी, शिंदे वहीँ 'डिप्रेस्ड क्लास मिशन' का अधिवेशन आयोजित करते थे। अंततः शिंदे के प्रयासों से सन 1917में कलकत्ता के अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार अस्पृश्यता के विरुद्ध प्रस्ताव रखा था। वह भी शायद, इसलिए संभव हो पाया था। उस अधिवेशन की अध्यक्षताएनी बेसेन्ट कर रहीं थीं। 23मार्च सन 1918 विट्ठल रामजी शिंदे नेको मुम्बई में बडौदा के महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ की अध्यक्षता में एक अधिवेशन आयोजित किया। विट्ठल रामजी शिंदे पृथक चुनाव प्रणाली के विरुद्ध थे। वे उसे देश के लिए विभाजनकारी मानते थे। पूना मेंमराठों के लिए आरक्षित सीट से उन्होंने लड़ने से मना कर दिया था। शुरू में कोल्हापुर के साहू महाराज,शिंदे के साथ थे किन्तु ब्राह्मणों से तंग आ कर जब उन्होंने क्षत्रियों के धार्मिक संस्कार किये जाने के लिएक्षत्रिय जगतगुरु के नियुक्त किये जाने का आदेश निकाला तो शिंदे द्वारा उसकी आलोचना किये जाने से वेउनसे नाराज हो गए थे। शिंदे से उनके अपने 'डिप्रेस्ड क्लासेस मिशन' के लोग भी नाराज थे। बाध्य हो कर पूना में संस्थाका नेतृत्व शिंदे को ऐसे ही एक नाराज साथी को सौपना पड़ा। रचनात्मक कार्यों के साथ शिंदे लेखन विधा से भी अपने विचारों का आदान-प्रदान करते थे। 'उपासना' और 'सुबोध चन्द्रिका' जैसी मासिक/साप्ताहिक पत्रिकाओं में सामाजिक सुधार के मुद्दों पर उनके लेख प्रकाशित होते रहते थे। सन 1933में उनके द्वारा प्रकाशित 'बहिष्कृत भारत' और 'भातीय अस्पृश्यताचे प्रश्न' अस्पृश्यता के प्रश्न पर ही केन्द्रित पत्रिकाओं के अंक थे। हालैण्ड के विश्व धर्म सम्मेलन में उनका पढ़ा गया एक लेख ' हिन्दुस्तानातिल उदार धर्म' (हिन्दुस्तान का उदार धर्म) काफी प्रसिद्ध हुआ था। शिंदे ने'आठवणी आणि अनुभव ' नाम से अपनी आत्मकथालिखी थी। सती प्रथा के उन्मूलन के लिए विट्ठल रामजी शिंदे ने जबरदस्त काम किया था। इसके विरुद्ध जनचेतना जगाने के लिए महाराष्ट्र में एक सर्व धर्मी संस्था बनायी गयी थी , जिसके शिंदे सचिव थे। सन 1924के दौर में शिंदे ने केरल के वैकम मन्दिर प्रवेश आन्दोलन में भाग लिया था। परन्तु उनका यह कार्य उनके 'ब्राह्म समाज' के लोगों को पसंद नहीं आया। निराश हो कर शिंदे पूना लौट आये। शिंदे का ध्यान अब बौद्ध धर्म की तरफ गया। उन्होंने 'धम्मपद' आदि ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। इसी अध्ययन के सिलसिले में सन 1927 में उन्होंने बर्मा की यात्रा की थी। विट्ठल शिंदे का अन्तिम समय निराशापूर्ण था। समाज सुधार के प्रति उनके मन में जो पीड़ा थी और जिसके लिए वे ता-उम्र अपने लोगों से संघर्ष करते रहे थे, को न तो दलित जातियों का समर्थन मिला और न ही उनके अपने लोगों का। इसी संत्रास में वे 2 जनवरी 1944 को उनका निधन हो गया।
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खंडा. "खंडा" शब्द का बोध इनमें से किसी भी विशयों से हो सकता है। अन्य समान वर्तनी वाले शब्द
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वरदान (फ़िल्म). वरदान एक भारतीय हिन्दी फिल्म है, जिसका निर्देशन अरुण भट्ट ने किया था। इसमें मुख्य किरदार में विनोद मेहरा, रीना रॉय और महमूद ने अभिनय किया था। यह फ़िल्म 1975 में सिनेमाघरों में प्रदर्शित किया गया था।
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सुसनाह मुशट जॉन्स. सुस्नाह् मुशट जोन्स (1899-2016) (जन्म ०६ जुलाई १८९९)) एक अमेरिकी महिला थीँ जिन्हें वर्तमान में सबसे अधिक वर्ष तक जीने वाला व्यक्ति माना जाता है।
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बिहार संपर्क क्रांति एक्स्प्रेस. बिहार संपर्क क्रांति सुपरफास्ट एक्सप्रेस दरभंगा जंक्शन से नई दिल्ली के बीच चलने वाले भारतीय रेलवे के दो सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन से एक है। यह बिहार से नई दिल्ली जाने वाली महत्वपूर्ण गाड़ियों में से एक है। यह कई लोगों की जीवन रेखा का काम करती है। वास्तव में यह उतरी बिहार एवं नई दिल्ली को जोड़ती है एवं इसमें आरक्षण मिलना एक टेडी खीर साबित होती है। बिहार के सबसे महत्वपूर्ण पर्व छठ में इसमें आरक्षण मिलना स्वर्ण पदक जितने जैसा होता है। यह ट्रेन नंबर 12565 के रूप में दरभंगा जंक्शन से नई दिल्ली के लिए और विपरीत दिशा में ट्रेन नंबर 12566 के रूप में चल रही है। यह दिल्ली के लिए वैशाली एक्सप्रेस,लिच्छवि एक्सप्रेस के साथ उत्तर बिहार में सबसे महत्वपूर्ण ट्रेन है।इस ट्रेन का एक नया स्टॉप देवरिया सदर को बनाया गया है।जिसका स्टेशन कोड DEOS है। कोच. 12565/12566 बिहार संपर्क क्रांति सुपरफास्ट एक्सप्रेस वर्तमान में 2 एसी फर्स्ट क्लास सह एसी 2 टियर, एक एसी 2 टियर, 2 एसी 3 टियर, 12 स्लीपर क्लास, 6 सामान्य अनारक्षित कोच एवं एक पैंट्री कार हैं। जैसा की भारत में सबसे ट्रेन सेवाओं के साथ होता हैं कोच की सरंचना में परिवर्तन भारतीय रेल के विवेक पर किया जा सकता है और यह मांग के आधार पर निर्धारित होता है। सेवा. 12565 बिहार संपर्क क्रांति सुपरफास्ट एक्सप्रेस 1174 किलोमीटर की दूरी 21 घंटे में (56.13 किमी/घंटा) एवं 12566 बिहार संपर्क क्रांति सुपरफास्ट एक्सप्रेस 1172 किलोमीटर की दूरी को 21 घंटे 10 मिनट में पूरा करती है। इस ट्रेन की औसत गति 55 किमी/घंटा से अधिक है, अत इसके किराये में सुपरफास्ट सरचार्ज भी शामिल है। समय सारिणी. 12565 बिहार संपर्क क्रांति सुपरफास्ट एक्सप्रेस हर दिन दरभंगा जंक्शन से हर दिन सबेरे 8.35 में खुलती हैं एवं अगले दिन सुबह के 05.35 मिनट पर नई दिल्ली पहुंचती है। 12566 बिहार संपर्क क्रांति सुपरफास्ट एक्सप्रेस हर दिन नई दिल्ली से 14.15 मिनट पर खुलती हैं एवं अगले दिन 11.25 मिनट पर दरभंगा जंक्शन पहुंचती है।
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उत्तर प्रदेश में पंचायती राज्य. उत्तर प्रदेश में पंचायती राज्य व्यवस्था वर्ष १९५२ से लागू है। उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले में त्रि -स्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू है। जिला पंचायत. उत्तर प्रदेश 75 जिलों में विभाजित है और प्रत्येक जिले में जिला पंचायत का प्राविधान है। इसके मुख्य अंग हैं : मुख्य विकास अधिकारी. यह राज्य सरकार का राजपत्रित अधिकारी है जो जिला पंचायत का पदेन सचिव होता है। सदस्य. यह सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष मतदान से निर्वाचित होते हैं। क्षेत्र पंचायत (ब्लॉक ). प्रत्येक जिला क्षेत्र पंचायतों में विभक्त है। उत्तर प्रदेश में वर्तमान में 828 ब्लॉकों में विभक्त है। इसके मुख्य अंग हैं : ब्लॉक प्रमुख. प्रत्यक्ष मतदान द्वारा निर्वाचित ब्लॉक के सदस्यों में बहुमत प्राप्त दल के नेता को ब्लॉक प्रमुख पद के लिए मनोनीत किया जाता है। खंड विकास अधिकारी. यह राज पत्रित अधिकारी सरकारी प्रतिनिधि है जो क्षेत्र पंचायत का सचिव होता है। सदस्य. यह जनता द्वारा प्रत्यक्ष मतदान से निर्वाचित होते हैं। इन्हें बी डी सी सदस्य भी कहते हैं। ग्राम पंचायत. प्रत्येक ब्लॉक ग्राम पंचायतों में विभक्त है. उत्तर प्रदेश में 58115 ग्राम पंचायतें हैं। पंचायतों में नागरिक चार्टर निर्धारित है। इसके मुख्य अंग हैं : Up m gram Pradhan ka chunav gram se safso dwara direct election se hota ग्राम पंचायत विकास अधिकारी. यह अराजपत्रित सरकारी कर्मचारी है जो ग्राम पंचायत का सचिव होता है। इसे पहले पंचायत सेवक कहते थे। बाद में सरकार ने पंचायत सेवक के नाम को बदल कर ग्राम पंचायत अधिकारी कर दिया। ग्राम पंचायत सहायक उत्तर प्रदेश की ग्राम पं. में पं सहायक, शासन द्वारा लायी गई योजनाओ को लोगों तक सही ढंग से समझना हैं, यह पं. स्तर पर एक कर्मचारी हैं! यह सरकार द्वारा चुना जाता है सदस्य. एक ग्राम वार्डों में विभक्त होता है जिसमें प्रत्यक्ष मतदान द्वारा एक सदस्य निर्वाचित होता है। मतदान में वार्ड के सदस्य ही भाग लेते हैं।
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निर्गुन्डी. निर्गुन्डी (वानस्पतिक नाम : Vitex negundo) एक औषधीय गुणों वाली क्षुप (झाड़ी) है। हिन्दी में इसे संभालू/सम्मालू, शिवारी, निसिन्दा शेफाली, तथा संस्कृत में इसे सिन्दुवार के नाम से जाना जाता है। इसके क्षुप १० फीट तक ऊंचे पाए जाते हैं। संस्कृत में इसे इन्द्राणी, नीलपुष्पा, श्वेत सुरसा, सुबाहा भी कहते हैं। राजस्थान में यह निनगंड नाम से जाना जाता है। इसकी पत्तियों के काढ़े का उपयोग जुकाम, सिरदर्द, आमवात विकारों तथा जोड़ों की सूजन में किया जाता है। यह बुद्धिप्रद, पचने में हल्का, केशों के लिए हितकर, नेत्र ज्योति बढ़ाने वाला तो होता ही है, साथ ही शूल, सूजन, आंव, वायु, पेट के कीड़े नष्ट करने, कोढ़, अरुचि व ज्वर आदि रोगाें की चिकित्सा में भी काम आता है। इसके पत्ते में रक्तशोधन का भी विशेष गुण होता है। निर्गुंडी बैक पेन स्लिप डिस्क की एकल औषधि है ढाई सौ ग्राम इसके पत्तों को डेढ़ किलो पानी के अंदर उबालें उस पानी मैं से सौ एम एल पानी के साथ हलवा तैयार करके सुबह खाली पेट एक बार खाएं ऐसा कम से कम 15 रोज करें इससे बैक पेन साइटिका का रोग हमेशा के लिए निर्मल हो जाता है निर्गुंडी के फूल जॉइंट पेन एंड घुटनो के दर्द का रामबान उपाय निर्गुंडी के फूल 50 ग्राम लोंग 50 ग्राम इन दोनों को किसी खरल में अच्छी तरह पीस लें कम से कम 3 घंटे की पिसाई के बाद इसकी मूंग की दाल के बराबर गोली बना ले दो से तीन गोली सुबह शाम हल्के गर्म दूध के साथ ले। ध्यान रखें जब तक यह दवाई खानी है तब तक ठंडी चीजों का इस्तेमाल बंद कर दें नहाना भी गरम पानी के साथ करें और पीने में भी गर्म जल ही इस्तेमाल करें फ्रिज में रखा हुआ खाना और पानी हरगिज़ ना ले। बस 15 दिन के अंदर अंदर आप के जॉइंट पेन की और घुटनों के दर्द की समस्या पूर्ण रूप से खत्म हो जाएगी।जिनको को ब्लड प्रेशर की समस्या है या फिर पित का प्रकोप बढ़ा हुआ है वह अपने वैद्य की सलाह के बिना ना लें Thyroid curing herb: निर्गुण्डी के पत्तों का रस 14 से 28 मिलीलीटर दिन में 3 बार सेवन करें या निर्गुण्डी के 21 पत्ते लेकर उसका रस निकाल कर उस रस को 3 बराबर भागो में बांट कर दिन में 3 बार ले यह प्रयोग 21 दिन करने से थाइराइड से निजात मिलती है। निर्गुण्डी की जड़ों को पीसकर इसका रस नाक में डालना चाहिए इससे भी फायदा मिलता है। यह थाइराइड से बने गले मे घेंघा या गोइटर बनने पर भी काम करता है। (Dr. H. C. Singh, C. S. Azad University of Ag and Technology, Kanpur.) बाहरी कड़ियाँ. From Facebook by Viny Rajput.
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क्षार (आयुर्वेद). क्षार एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसका वर्णन कई आयुर्वेदिक ग्रन्थों में मिलता है। यह विभिन्न रोगों की चिकित्सा में प्रयुक्त किया जाता है। 'क्षार' शब्द 'क्षर्' से व्युत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है- पिघलना या गलना (क्षर् स्यन्दने)। आचार्य सुश्रुत ने इसे दोषों को नष्ट करने वाले पदार्थ के रूप में परिभाषित किया है।
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भैषज्य रत्नावली. भैषज्य रत्नावली, आयुर्वेद का एक ग्रन्थ है। इसके रचयिता गोविन्ददास हैं। इसकी रचना कब और कहाँ हुई, यह ठीक-ठीक पता नहीं है। किन्तु इसका सबसे पहला यान्त्रिक प्रकाशन कोलकाता से १८७७ में हुआ। उनके वंशज विनोद लाल सेन ने इसका प्रकाशन कराया। यह भारत के उत्तरी भागों ((विशेषकर बंगाल) में प्रचलित है।
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अवक्षेपण. अवक्षेपण (Precipitation) का अर्थ है - किसी ठोस पदार्थ का बनना। किसी द्रव विलयन में रासायनिक अभिक्रिया होने पर यदि कोई ठोस उत्पाद बनता है तो उसे ही 'अवक्षेप' (precipitate) कहते हैं। यदि पोटैशियम क्लोराइड के जलीय विलयन में सोडियम नाइट्रेट (AgNO3) का जलीय विलयन मिलाया जाता है तो देखा जाता है कि सफेद रंग के एक ठोस पदार्थ का अवक्षेपण हो रहा है। यह सफेद रंगीय पदार्थ वास्तव में सिल्वर क्लोराइड (AgCl) है। अवक्षेपों के रंग. बहुत से यौगिक जिनमें धातु आयन होते हैं, एक विशिष्ट रंग का अवक्षेप उत्पन्न करते हैं। नीचे की तालिका में विभिन्न धातुओं के अवक्षेपों के रंग दिखाए गए हैं। लेकिन कभी-कभी ये ऐसे रंग का अवक्षेप भी देते हैं जो सूची में दिए रंग से बिलकुल अलग होता है। अन्य यौगिक प्रायः सफेद रंग के अवक्षेप उत्पन्न करते हैं। उपयोग. अवक्षेपण अभिक्रियाओं का उपयोग वर्णक (pigments) बनाने, जल के उपचार के लिए उसमें से लवण निकालने, तथा परम्परागत गुणात्मक अकार्बनिक विश्लेषण में किया जाता है। अवक्षेपण का उपयोग किसी अभिक्रिया के दौरान अभिक्रिया के उत्पादों को अलग करने के लिए भी किया जाता है। आदर्श रूप में, अभिक्रिया का उत्पाद, अभिक्रिया के विलायक में अघुलनशील (insoluble) होता है। इस कारण जैसे ही इसका निर्माण होता है, वह अवक्षेपित हो जाता है।
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भैषज्य कल्पना. आयुर्वेद में भैषज्य कल्पना (संस्कृत : भैषज्यकल्पना) का अर्थ है औषधि के निर्माण की डिजाइन (योजना)। आयुर्वेद में रसशास्त्र का अर्थ 'औषध (भेषज) निर्माण' है और यह मुख्यतः खनिज मूल के औषधियों से सम्बन्धित है। रसशास्त्र और भैषज्यकल्पना मिलकर आयुर्वेद का महत्वपूर्ण अंग बनाते हैं। भैषज्यकल्पना कितनी महत्वपूर्ण है, यह निम्नलिखित श्लोक से स्पष्ट है- संस्कार. स्वाभाविक (प्रकृतिसिद्ध ) गुणों से युक्त द्रव्यों का जो संस्कार (Processing ) किया जाता है उसे 'करण' कहते है l द्रव्यों मे किन्ही विशेष गुणों का लाना संस्कार कहलाता है l हम जो द्रव्य आहार औषधि के लिए उपयोग मे लाते हैं वे अनेक संस्कारो से संस्कारित हुए रहते हैंl उसमे कुछ नैसर्गिक हैं और कुछ कृत्रिम l ये संस्कार उत्तरोत्तर लघु हैंl प्रायः ये संस्कार अपूप याने आटा (जवार, गेहूं, चावल आदि ) को लाटकर या थापकर बनाये गये विविध पदार्थ, रोटी, भाकरी, घिरडे, बिट्टी, पानगा, बाटी आदि बनाने मे उपयोग मे लाया जाता हैl अंगारतप्त अपूप लघुत्तम हैl अग्निसंस्कार से चावल का भात या धान का लावा या अन्य भर्जित अन्न गुरुता छोड़ लघु हो जाते हैं। इसी प्रकार औषधों की अनेक प्रकार की कल्पनायें करना, शोधन करना, भावना देना, अभिमंत्रित करना, धान्यराशि में, धूप में या शीत मे रखना आदि अन्य प्रक्रियाएँ भी गुणान्तरधान के लिये की जाती हैंl
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सुल्तान कोसेन. सुल्तान कोसेन Sultan Kösen (; जन्म १० दिसम्बर १९८२) एक तुर्किश किसान है ये गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के अनुसार जीवित सबसे लम्बे आदमी है। इनकी लम्बाई है। .. अक्टूबर २०१३ में सुल्तान मर्व डिबो से विवाह किया था।
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खंडा (सिख चिन्ह). खंडा चिह्न () एक सिख धार्मिक, सांस्कृतिक, एवं ऐतिहासिक चिह्न है जो कई सिख, धर्म एव वष्वदर्षण, सिद्धांतों को ज़ाहिर रूप से दर्शाता है। यह "देगो-तेगो-फ़तेह" के सिद्धान्त का प्रतीक है एवं इसे चिन्हात्मक रूप में पेश करता है। यह सिखों का फ़ौजी निशान भी है, विशिष्ट रूप से, इसे निशान साहब(सिखों का धार्मिक ध्वज) के केंद्र में देखा जा सकता है। इसमें चार शस्त्र अंकित होते हैं: एक खंडा, दो किर्पन और एक चक्र। खंडा की एक वेशेष पहचान यह भी है कि वह धार्मिक सिद्धांतों के साथ-साथ शक्ती एवं सैन्य-ताक़त का भी प्रतीक है। इसी लिये इसे खाल्सा, सिख मिस्लें एवं सिख साम्राज्य के सैन्यध्वजों में भी इसे प्रदर्षित किया जाता था। एक दोधारी खंडे (तलवार) को निशान साहब ध्वज में ध्वजडंड के कलश (ध्वजकलश) की तरह भी इस्तमाल किया जाता है। परिचय. खंडा निशान तीन चिह्नों का संयोजन है: प्रदर्शन. इस चिह्न को अकसर व्यक्तिगत वाहनों पर, कपड़ों पर और अन्य व्यक्तिगत वस्तुओं पर अंकित किया जाता है, एवं इसे प्रचलित रूप से पेंडन्ट के रूप में भी पहना जाता है। खंडा चिह्न को अक्सर लोग ईरान के ध्वज पर बने निशान से उलझा देते हैं, जबकी इन चिह्नों का आपस् में कोई मेल नहीं है। यूनिकोड लीप्यावली में स्थानांक U+262C(☬) पर खंडा चिह्न मौजूद है। इन्हें भी देखें. =संदर्भ==
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रोल्ड डाहल. रोल्ड डाहल, दक्षिण वेल्स के कार्डिफ शहर में १३ सितंबर १९१६ को नॉरवे से आए एक परिवार में पैदा हुए थे। डाहल तीन साल के थे, जब उनकी सात साल की बहन की मृत्यु हो गयी। और कुछ सप्ताह के बाद उनके पिता भी चल बसे। इस हादसे के बाद, उनकी माँ डाहल को अंग्रेजी स्कूलों में दाखिला दिलाकर अपने मृत पति की इच्छा का पालन किया। डाहल को लांडाल्फ नामक एक स्कूल में भरती करने के बाद वहाँ वे ज़्यादा दिन नहीं रहे, इसलिए कि वे वहाँ जाना पसन्द नहीं करते थे। तो, फिर से और कई बार स्कूल बदलते गए। रेपटन नामक जगह से अपनी शिक्षा पूरी की। डाहल ने दूसरे विश्व युद्ध में अपनी हवाई जहाज़ उड़ानें की प्रतिभा दिखाकर, विंग कमांडर के पद को हासिल किया। उनको १९४० में एक लेखक के रूप में दुनिया ने देखा। डाहल ज़्यादातर बच्चों की कहनियाँ लिखते थे, लेकिन अपने जीवनकाल में उन्होने बच्चों से लेकर बड़ों तक के आयु वर्गों के लिए किताबें लिखी हैं। उनको बीसवीं सदी के सबसे बड़े लेखकों में से एक माना जाता है। साहित्य में उनके योगदान के लिए अन्य पुरस्कारों में १९८३ में 'वोर्ल्ड फ़ैन्टसी अवॉर्ड फ़ॉर लाइफ़्टाइम अचीवमेंट' पुरस्कार प्राप्त हुआ, और १९९० में, ब्रिटिश बुक अवार्डस में, उनको उस वर्ष के सबसे उत्तम लेखक बताया गया। डाहल की लघु कहानियाँ उनकी अप्रत्याशित और अभावुक अंत के लिए जानी जाती हैं, और अक्सर अपनी पुस्तकों में हास्य रस का ज़्यादा उपयोग करके पाठकों का ध्यान बहलाए रखने के लिए जाने जाते है। उनकी प्रसिद्ध लेखनाओं में 'जेम्स आंड द जाइंट पीच', 'मटिल्डा', 'चार्ली आंड द चोक्लेट फाक्टरी', 'द विचस', 'मै अंकल आस्वाल्ड' शामिल हैं। युध सैनिक. अगस्त १९३९, दूसरा विश्वयुद्ध का वक्त था, जब एक फाइटर पैलेट की ज़िम्मेदारी लेकर , दार-ए-सलाम पर कब्ज़ा किये हुए जर्मनी के सिपाहियों को, रोल्ड डाहल ने रोका। डाहल 'अस्कारिस' की एक पलटन और, 'अफ्रीकी राइफल्स' के लेफ्टिनेंट बनाये गये थे। नवम्बर १९३९ में, रोलड डाहल को रॉयल एर में काम मिला। छः महिनों की ट्रेनिंग, हॉकर हॉट्स में करने के बाद, उनको पैलट अफसर बनाया गया। डाहल को इस बीच, अपने काम में कीन्या के वन्य जीवन को देख कर, प्रेरना मिली। एक हादसे में वे बहुत घायल हो गये और उनको अस्पताल में भरती किया गया, जहाँ उनहोने अपने उस हादसे की कहानी लिखने का इरादा किया। लेकिन उनको वहाँ के तीव्र काम की वजह से अकसर तब्यत खराब होने लगी। इसलिये, उनको एक ट्रेनिंग कैंप में अफसर बनाकर भेज दिया गया। युध के अंत के बाद, १९५३ में उन्होने फिल्म अभिनेत्रि, पट्रीसिया नील से विवाह किया। नवम्बर, १९६२ में उनकी बेटी ओलिविया डाहल का देहांत हो गया। अपने जीवन में मौत को देखना, उनको निराशाजनक था। १९८२ की उनकी किताब "बी एफ जी" को अपनी बेटी को समर्पित किया। यहाँ से उन्होने धार्मिक बातों की ठोस आलोचना की। उनको इज़राइल देश की स्रुष्टि की वजह से देशों में बढती हुई अशांति की नपसंदगी व्यक्त की और, इज़राइल के निर्माण को उस वक्त की समस्याओं का मूल मानते थे। वैद्यकीय अनुसंधान का प्रोत्साहन करने के लिये, वे दान करते थे, और अनाथालयों में सुविधाओं का इंतज़ाम करवाते थे। शास्त्र समूह. डाहल के कई कहानियों में, आमतौर पर एक बच्चे की दृष्टि से लेखन किया गया है। उनकी कविताओं में, डाहल प्रसिद्ध नर्सरी गानों की एक विनोदी व्याख्या देते हैं। उनकी सबसे पहली किताब १९४२ में 'षाट ओवर लिब्या' नाम से प्रकाशित की गयी, जिसमे, उनकी युध के दिनों की कहानी है। उनकी पहली बाल साहित्य किताब, 'द ग्रेम्लिन्स' थी। उस के बाद उन्होने 'मटिल्डा', 'चार्ली आंड द चोक्लेट फाक्टरी', जैसी प्रसिध किताबों की रचना की। उनकी इन किताबों में कहानी का खलनायक, एक बच्चों के प्रति गुस्सा करनेवाला चरित्र है। 'द स्मोकर' किताब वयस्क दर्शकों के लिये लिखी, जिस पर कई चलचित्र बने हैं। उनको अपने साहित्य के योगदान के लिये, 'द मिस्ट्री राइटर्स ऑफ अमेरिका' संघटन से तीन एडगर अवार्ड दिये गये। उनका ये लिखने का अंदाज़ अपने बचपन के दिनों से मिला था, जब वे वीरों और महावीरों की कहानियाँ पढते थे। अपनी माँ की प्रशंसा करते हुए, उनको एक उत्तम बयान करने वाली बुलाया। रुड्यार्ड किप्लिंग, चार्ल्स डिकेन्स, विलियम ठाकेरे आदि महान लेखकों से प्रभाव लेते हैं। मृत्यु और उत्तर दान. २३ नवम्बर, १९९० में रोल्ड डाहल कि एक रक्त रोग की वजह से मृत्यु हो गई। सेंट पाल चर्च, जो आज इंग्लैण्ड के बकिंगहाम्पशैर में है, वहाँ उनकी समाधि है। उनको चॉकलेट, पेनसिलों, के साथ दफनाया गया। कार्डिफ शहर में, उनके नाम से, वहाँ के मशहूर ओवल प्लाज़ा का नाम बदला गया। २००५, मिस्डन शहर में, उनके नाम का संग्रहालय बनाया गया। २००६ रॉयल सोसाइटी की सूची में, मशहूर लेखिका जे. के. रोलिंग 'चार्ली आंड द चोक्लेट फाक्टरी' को उनकी सबसे पसंदीदा किताब बताती हैं। हास्य किताबें लिखने वाले लेखकों को उनके नाम का प्रसिध पुरस्कार दिया जाता है। रोल्ड डाहल की किताबें इस सदी में भी बच्चे बडी उत्सुकता से पढते हैं।
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वैश्लेषिक तुला. वैश्लेषिक तुला या रासायनिक तुला (") ऐसा तुला है जो १ मिलीग्राम से भी कम द्रव्यमान को माप सकता है। अतः इस तुला की संरचना में ऐसे विशेष उपाय किये गये होते हैं कि द्रव्यमान के मापन में अन्य किसी कारक (जैसे वायु की गति) का कोई प्रभाव न पड़े। उदाहरण के लिये, इसका मापने वाला पलड़ा (पैन) एक पारदर्शी दीवारों वाले कक्ष में होता है और दरवाजा बन्द करने की व्यवस्था होती है।
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केम्पे गौडा प्रथम. केम्पेगोडा कुर्मी प्रथम विजयनगर साम्राज्य के एक सामन्त तथा बंगलुरू के संस्थापक थे। v
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बलबीर सिंह "रंग". बलबीर सिंह "रंग" एक भारतीय हिंदी कवि थे। वे अधिकतर कवितायेँ किसानों की स्थिति पर लिखा करते थे। उन्होंने अपनी कविताओं में भारतीय किसानो की स्थिति का सही वर्णन किया है। प्रारंभिक जीवन. बलबीर सिंह रंग का प्रारंभिक जीवन उनके खुद के छोटे से गाँव नगला कटीला में व्यतीत हुआ। बलबीर सिंह रंग बचपन से ही कवितायेँ लिखने के शौकीन थे। वे अपने गाँव के जमींदार भी थे।
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भारत के एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय विकेटकीपरों की सूची. यह सूची भारतीय वनडे क्रिकेट टीम के अबतक के विकेटकीपरों की सूची है। इनमें सबसे पहला विकेटकीपर फारुख इंजीनियर थे तथा सबसे ज्यादा कैच और स्टम्पिंग का रिकॉर्ड महेंद्र सिंह धोनी के नाम है। सूची. 24 रिष्भ पन्त 2018-
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बोलोना विश्वविद्यालय. बोलोना विश्वविद्यालय (इतालवी : Università di Bologna, UNIBO), इटली के बोलोना (Bologna) में स्थित एक विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना १०८८ ई में हुई थी और आधुनिक अर्थ में यह विश्व का सबसे पुराना विश्वविद्यालय है। यह पहला शिक्षा संस्थान था जिसने अपने लिये 'यूनिवर्सितास' (universitas) शब्द का प्रयोग किया।
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अलादीन. अलादीन एक मध्य पूर्वी एक सची गटना हे (अ"लादीन" की कई गटना में से एक है व सबसे अधिक विख्यात है हालाँकि इसे संग्रह में १८वी शताब्दी में अंटोनी गलांड नामक एक फ़्रांसीसी ने समाविष्ट किया था। कहानी की समीक्षा मशहूर कथा हे एक जो टीवी सीरियलो मे दिखाई जाती हे राजस्थान मे अलादीन कि दास्तान. अलादीन बगदाद शहर में रहने वाला एक आम गरीब लड़का था । एक दिन मगरेब से आया एक जादूगर स्वयं को उसके गुजरे हुए पिता मुस्तफ़ा दर्ज़ी का भाई बता कर अपना साथ नियुक्त कर लेता है जिस कारण उसकी माँ को यह प्रतीत होता है कि वह आगे चलकर एक बहुत अमीर व्यापारी बनेगा। परन्तु जादूगर का असली मकसद अलादीन को बहला-फुसलाकर उससे जादुई चिराग हासिल करना है जो एक जादुई गुफा में मौजूद है। जादूगर अलादीन को धोखा देने की कोशिश करता है जिससे अलादीन गुफा में फंस जाता है। अच्छी किस्मत के चलते उसके पास उस समय एक जादुई अंगूठी होती है जो उसे जादूगर ने सुरक्षा क लिए दी थी। जब हताश होकर अलादीन अपने हाथ घिसता है तब अंजाने में उससे अंगूठी भी घिस जाती है और एक जिन्न प्रकट होता है जो उसे अपनी माँ के पास घर पहुंचा देता है। जब अलादीन की माँ बेटे ने लाया हुआ चिराग साफ करने की कोशिश करती है तब एक दूसरा शक्तिशाली जिन्न प्रकट होता है जो उस चिराग के मालिक का गुलाम होता है। चिराग से निकले जिन्न की सहायता से अलादीन बेहद आमिर व शक्तिशाली बन जाता है और राजकुमारी बद्र-उल-बुदूर से निकाह कर लेता है। हिंदी में बद्र-उल-बुदूर का अर्थ है, पूनम की चाँदों की पूनम. जिन्न अलादीन के लिए एक महल का निर्माण करता है जो शहंशाह के महल से भी कई गुना ज़्यादा भव्य होता है। एक दिन जादूगर पुराने चिरागों के बदले नए चिराग देने के बहाने अलादीन की बीवी (जिसे जादुई चिराग के बारे में कुछ नहीं पता) से जादुई चिराग हासिल कर लेता है। वह जिन को हुक्म देता है कि महल को उसके सरे साजो सामन सहत अपने घर मगरेब पहुंचा दे। किस्मत से अलादीन के पास तब भी जादुई अंगूठी होती है जिससे वह छोटे जिन्न को बुला लेता है। हालाँकि छोटा जिन्न चिराग के जिन्न द्वारा किया गया जादू उलट नहीं सकता पर वह अलादीन को मगरेब पहुंचा देता है जहाँ अलादीन लड़ाई में जादूगर को मार कर चिराग को पुनः हासिल कर लेता है व महल और राजकुमारी को पुनः अपनी जगह ले आता है। जादूगर का शक्तिशाली छोटा भाई अलादीन को मार कर अपने भाई का बदला लेने की कोशिश करता है और एक बूढी औरत का वेश धर लेता है जो अपनी रहस्यमई जादुई शक्तियों के लिए विख्यात है। बद्र-उल-बुदूर उसके इस झांसे में फंस जाती है अय्यार बुढिया को महल में रहने की अनुमति दे देती है। चिराग का जिन्न अलादीन को इस बारे में आगाह कर देता है और अलादीन बहरूपिये को मार देता है। सभी लोग आगे चलकर एक खुशहाल ज़िन्दगी जीते है और भविष्य में अलादीन शहंशाह बन जाता है। रूपांतरण. सभी रूपांतरण असली कहानी से कहीं न कहीं मेल खाते है. चीनी घटनाओं को अधिकांश समय अरेबियाई पृष्ठभूमि में बदल दिया जाता है
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उच्च पारक फिल्टर. उच्च पार्क फ़िल्टर अथवा हाई पास फ़िल्टर एक इलेक्ट्रानिक फ़िल्टर है जो एक निश्चित कटऑफ़ से अधिक की फ़्रीक्वेंसी के संकेतों को निर्गमित होने देता है और इस कटऑफ़ से कम फ़्रीक्वेंसी के संकेतों को रोक लेता है। आमतौर पर इसे लो-कट फ़िल्टर अथवा बेस-कट फ़िल्टर भी कहा जाता है। बिम्ब कान्ति वर्धन. बिम्ब कान्तिवर्धन (Image enhancement) की तकनीक के रूप में इसका प्रयोग किसी अंकीय बिम्ब में किनारों वाले तत्वों (edge features) को अधिक स्पष्ट रूप से दिखाने के लिये किया जाता है।
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शिक्षा का माध्यम. किसी शिक्षण संस्थान में जो भाषा शिक्षण के लिये प्रयोग की जाती है, उसे उस संस्थान की शिक्षा का माध्यम ( medium of instruction) कहते हैं। अधिकांश विकसित देशों में मातृभाषा ही प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक का माध्यम है। किन्तु ब्रिटेन और फ्रांस के उपनिवेश रहे देशों में अभी भी मातृभाषा के बजाय अंग्रेजी या फ्रेंच शिक्षा के माध्यम हैं।
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मोमबत्ती. मोमबत्ती एक बत्ती मोम में है। वह रोशनी या ऊष्मा बनती है। शब्द व्युत्पत्ति. हिन्दी भाषा में इस शब्द की व्युत्पत्ति इसके लिए उपयोग में लाये जाने वाले पदार्थ मोम और बत्ती से हुई। इसके निर्माण में केवल यही दो वस्तुओं की आवश्यकता होने के कारण इन्हें मिला कर मोमबत्ती शब्द बनाया गया। इस शब्द की व्युत्पत्ति लेटिन भाषा में केंडेला शब्द (जिसका अर्थ रोशनी से है।) से हुई। जिसका उपयोग अंग्रेज़ी और एंग्लो नॉर्मन भाषा में केंडल के नाम से किया जाता है। इतिहास. मोमबत्ती का पहली बार निर्माण और उपयोग चीन में हुआ। तब इसका निर्माण व्हेल के चर्बी से किया जाता था। उसके बाद यूरोप में प्राकृतिक वसा, तेल, और मोम से इसका निर्माण किया जाने लगा। रोम में मोम की अत्यधिक लागत के कारण तेल से इसका निर्माण होता था। बाहरी कड़ियाँ. Ruusysurit8s6s6pfusuf
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साइरस पलोनजी मिस्त्री. साइरस पलोनजी मिस्त्री (4 जुलाई 1968 – 4 सितंबर 2022) एक व्यापारी थे जो 28 दिसंबर 2012 को टाटा समूह ( एक भारतीय व्यापार संगठन) के अध्यक्ष बने थे जिसके बाद टाटा ग्रुप ने 24 अक्टूबर 2016 को साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया था | वह समूह के छठे अध्यक्ष हैं और दोराबजी टाटा के बाद, "टाटा  "नाम नहीं पड़ने तक दूसरे हैं। "दि इकॉनॉमिस्ट" ने भारत और ब्रिटेन दोनों में "सबसे महत्वपूर्ण उद्योगपति" के रूप में उन्हें वर्णित किया गया था। वह भारतीय निर्माण थैलीशाह पालोनजी मिस्त्री के सबसे छोटे बेटे थे। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा. मिस्त्री ने मुंबई में कैथेड्रल एवं एंड जॉन कॉनन स्कूल में अध्ययन किया। उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग में बी एस के साथ इंपीरियल कॉलेज, लंदन से स्नातक की उपाधि और लंदन बिजनेस स्कूल से प्रबंधन में विज्ञान में एक मास्टर डिग्री रखते थे। वह सिविल इंजीनियर संस्थान के एक सदस्य थे। व्यवसाय. मिस्त्री शापूरजी पालोनजी एंड कंपनी के प्रबंध निदेशक का काम किया, जो शापूरजी पालोनजी समूह का हिस्सा है। अपने पिता के सेवानिवृत्त होने से १ साल पहले, वह 1 सितंबर 2006 को टाटा संस के बोर्ड में शामिल हुए।  व्यक्तिगत जीवन. साइरस मिस्त्री पालोनजी मिस्त्री, एक शक्तिशाली उद्योगपति; और पैट्सी पेरिन दुबाश के सबसे छोटे बेटे है। मिस्त्री ने, वकील इकबाल छागला की बेटी और प्रसिद्ध विधिवेत्ता एम.सी. छागला की पोती, रोहिका छागला से शादी की। मिस्त्री और उनकी पत्नी के साथ में उनके दो बेटे हैं। मिस्त्री एक आयरिश नागरिक, और भारत के एक स्थायी निवासी है। एक आयरिश अखबार, The Independent, में एक खबर के मुताबिक, मिस्त्री खुद को एक वैश्विक नागरिक के रूप में देखते है और अपने पासपोर्ट के रंग को महत्वहीन सोचते है। 4 सितंबर 2022 को पालघर, महाराष्ट्र में एक दुर्घटना में इनकी मृत्यु हो गई।
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पियर ट्रूडो. जोसेफ फ़िलिप पियरे येव्स एलियट ट्रूडो, (; ; अक्टूबर 18, 1919 – सितम्बर 28, 2000), को सामान्यत: पियरे ट्रूडो या पियरे एलियट ट्रूडो, अप्रैल २०, १९६८ से ४ जून १९७९ तक और फिर ३ मार्च १९८० से ३० जून १९८४ तक कनाडा के 15वें प्रधानमंत्री थे। टूडो ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुवात अधिवक्ता, बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता के तौर पर क़्युबेक की राजनीति में शुरुवात की। १९६० में वो कनाडा की लिबरल पार्टी के जरिये राष्ट्रीय राजनीति में शामिल हुए। उन्हें लेस्टर बी. पियरसन के संसदीय सचिव चुना गया और बाद में न्याय मंत्री चुने गये। ट्रूडो १९६८ में लिबरलों के नेता चुने गये। फिर १९६० से मध्य १९८० तक वो कनाडा की राजनीति में छाये रहे। आवेश से पहले तर्क ( "Reason before passion") उनका व्यक्तिगत ध्येय था। उन्होंने १९८४ में राजनीति से सन्यास ले लिया और उनके बाद जॉन टर्नर कनाडा के प्रधानमंत्री बने। उनके ज्येष्ठ पुत्र जस्टिन ट्रूडो वर्तमान में कनाडा के तेइसवें प्रधानमंत्री हैं। बुद्धिजीवी उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व, बुद्धिमत्ता और राजनैतिक नेतृत्व क्षमता को क़्युबेक स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रीय एकता को बचाए रखने, अक्टूबर समस्या (हिंसक विद्रोहों) का दमन करने, एक अखिल कनाडियाई पहचान को बढावा देने व कानूनी बहुभाषावाद को अनुमति दिलाने के लिये उन्हें सलाम करते हैं। आलोचक उन्हें घमंड, आर्थिक कुप्रबंध और क़्युबेक संस्कृति और कनाडियाई प्रेयरीओं की आर्थिक क्षमताओं को कुचलने के लिये कनाडा की निर्णय लेने की समिति को गैरकानूनी रूप से केंद्रीकृत करने के लिये उनकी आलोचना करते हैं। वैसे जनता के बीच तो उनकी प्रसिद्धि बंटी हुई है लेकिन शिक्षाविद व इतिहास के स्कॉलर उन्हें कनाडा के महानतम प्रधानमंत्रियों में गिनते हैं और उन्हें आधुनिक कनाडा का पितामह मानते हैं।
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कनाडा के लिये रानी की परामर्श समिति. कनाडा के लिये रानी की परामर्श समिति (Queen's Privy Council for Canada) (QPC) ( (CPR)), जिसे कभी कभार "हर मैजेस्टीज़ प्रीवि काउन्सिल फॉर कनाडा" या लघु रूप में प्रीवी काउंसिल, भी कहा जाता है, कनाडा के सम्राट के परामर्शकर्ता व्यक्तियों की समिति या समूह होता है। यह समिति सम्राट या साम्राज्ञी को कनाडा के राजनीतिक और संवैधानिक मसलों पर अपनी विशेषज्ञ राय देती है। हांलांकि एक जिम्मेदार सरकार में, वायसरॉय को इस समिति के एक अंश काबीना मंत्रिमंडल जिसमें संसद के चुने हुए सदस्य होते हैं की दी हुई राय को ही मानना होता है। QPC में शामिल लोगों को गवरनर जनरल जीवन भर के लिये कनाडा के प्रधानमंत्री की अनुशंशा पर नियुक्त करते हैं। इस तरह से इस समिति में वर्तमान के अलावा पूर्व सांसद, मंत्री और प्रमुख व्यक्ति भी होते हैं। समिति के सदस्यों के लिये सम्मानजनक उपाधि व नाम शैली और पोस्ट-नोमिनल अक्षरों से नवाजा जाता है।
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यूसुफ जुलेखा. यूसुफ जुलेखा (يوسف زلیخا) यूसुफ और जुलेखा (बाइबल में  पोतीपर की पत्नी के रूप में जाना जाता है और जिसका नाम वहां नहीं दिया गया है) की कुरान में दी गई कहानी है। इसे मुसलमानों द्वारा बोली जाने वाली कई भाषाओं, विशेष रूप से फारसी और उर्दू में अनगिनत बार दोहराया जा चुका है। इसका सबसे प्रसिद्ध संस्करण फारसी में जामी (1414-1492), की रचना हफ्त औरंग ("सात सिंहासन") में  था। कहानी तो कई विस्तारण है, और एक सूफी व्याख्या करना भी सक्षम हैैैै I कहानी के अन्य संस्करण.  यह कहानी तमाम कवियों की रचना का हिस्सा बनी है। संभवतः इसे सर्वप्रथम व्यवस्थित रूप में फारसी कवि नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी (1414-1492 ई.) ने अपनी रचना हफ्त अवरंग में रचा. महमूद गामी (1750-1855 ई.) ने कश्मीरी में इस कथा को निबद्ध किया है। हाफिज बरखुरदार (1658–1707) ने पंजाबी में इनकी गाथा को निबद्ध किया है. शेख निसार ने अवधी में इस पर काव्य रचा है, जिसमें माना जाता है कि उन्होंने 1790 ई. में 57 वर्ष की आयु में केवल सात दिनों में इसकी रचना की थी. इन्हीं की कहानी पर हिंदी में कवि नसीर ने 1917-18 ई. में प्रेमदर्पण की रचना की. शाह मुहम्मद सगीर ने चौदहवीं सदी में बांग्ला में इस कथा को रचा. फिरदौसी, अमीर खुसरो, फरीद से लेकर बुल्लेशाह तक ने अपनी कविताओं में इन्हें याद किया है.
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पैसिफ़िक रिम. पैसिफ़िक रिम (अथवा प्रशान्त घेरा) प्रशांत महासागर के चारों तरफ का भूमि का घेरा है।  "प्रशान्त घाटी" में प्रशान्त घेरे और प्रशान्त महासागर के द्वीप शामिल हैं। प्रशान्त अग्नि वृत्त की भौगोलिक स्थिति और प्रशान्त घेरा एक दूसरे पर अतिव्याप्त हैं। प्रशान्त रिम में देशों की सूची. यह सूची उन देशों की है जो प्रशान्त घेरे में गिने जाते हैं और प्रशान्त महासागर में हैं। व्यापार. प्रशान्त विदेशी व्यापार का एक बहुत बड़ा केन्द्र है। दुबई के जेबेल अली बन्दरगाह (९वें) को छोड़कर सबसे १० व्यस्ततम बन्दरगाह घेरे देशों में स्थित हैं। विश्व के ५० सबसे व्यस्ततम बन्दरगाह: संगठन. विभिन्न अन्तरसरकारी और गैर सरकारी संगठन प्रशान्त घेरे पर केन्द्रित हैं जिनमें एशिया - प्रशांत महासागरीय आर्थिक सहयोग, द ईस्ट-वेस्ट सेंटर, सस्टेनेबल पैसिफिक रिम सिटीज और द इंस्टिट्यूट ऑफ़ एसियन रिसर्च शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, रिम ऑफ़ द पैसिफिक एक्सरसाइज नवल एस्करसाइज़ यूनाइटेड स्टेट्स पैसिफ़िक कमाण्ड द्वारा समन्वित हैं।
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तुलुव राजवंश. तुलुव विजयनगर साम्राज्य का तीसरा राजवंश था। इतिहास. तुलुव राजवंश एक भारतीय राजवंश था तथा यह भारत का तीसरा राजवंश था इनके सम्राटों ने विजयनगर साम्राज्य पर राज किया था। तुलुव राजवंश की स्थापना मूल रूप से तटीय कर्नाटक के दक्षिणी भागों पर शासन करने वाले मुखिया बंटों द्वारा की गयी थी। इनको तुलु नाडू के नाम से भी बुलाया जाता है। कुछ लोगों का मानना ​​है कि वे तुलु नाडू के तुलु भाषी क्षेत्र के थे और इनकी मातृभाषा प्राचीन तुलु भाषा थी क्योंकि वंश का नाम "'तुलुव'" प्राप्त हुआ है। नरसा नायक जो कृष्णदेवराय के पिता थे और साथ ही आंध्रप्रदेश के चंद्रगिरि के राज्यपाल भी थे। राजा कृष्णदेवराय ने अपनी एक लोकप्रिय पुस्तक अमुक्तमल्यदा में लिखा है कि यह एक तेलुगुदेश है और यहां शक्ति सुलुव राजवंश के बाद आई है। तुलुव राजवंश दक्षिण भारत के विजयनगर साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली राजवंश नागराज एक पौराणिक कथाओं के अनुसार सांप थे। इतिहास के अनुसार तुलुव राजवंश का सबसे शक्तिसाली और लोकप्रिय राजा कृष्णदेवराय थे जिन्होंने इस वंश का बहुत विकास किया था। कुछ लोगों का मानना है कि यह काल अर्थात राजवंश तेलुगु साहित्य का सुनहरा काल माना जाता है। इन पर कई तेलुगु संस्कृत ,कन्नड़ तथा तमिल कवियों ने रचनाएं की हैं। नायक. पांच तुलुव सम्राट और उनका राज्य काल।
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नवंबर 2015 पैरिस हमले. 13 नवंबर 2015 की शाम को फ्रांस की राजधानी पेरिस और उसके उत्तरीय उपनगरीय इलाके सेंट डेनिस में आतंकी हमलों की एक श्रृंखला को अंजाम दिया गया जिसमें बड़े पैमाने पर गोलीबारी, आत्मघाती बम विस्फोट, और लोगों को बंधक बनाया गया। हमलों की शुरुआत 21:20 सीईटी (सेंट्रल यूरोपियन टाइम) में स्टेड डी फ्रांस के बाहर तीन आत्मघाती हमलों, बड़े पैमाने पर शूटिंग और मध्य पेरिस के पास चार स्थानों पर एक और आत्मघाती बम विस्फोट के साथ हुई। सबसे घातक हमला 14 नवंबर को 00:58 सीईट पर बाटाक्लेन थिएटर में हुआ जहाँ हमलावरों ने पुलिस के साथ उलझने से पहले लोगों को बंधक बनाया। हमलों में 129 लोग, मारे गए जिनमे से 89 की मृत्यु जिनमें से बाटाक्लेन थिएटर में ही हुई। 352 लोगों में से 80 गंभीर रूप से घायल होने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया। पीड़ितों के अलावा, सात हमलावरों की भी मृत्यु हो गई, और अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर अभी भी अन्य साथियों की खोज करने के लिए जारी रखा है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद फ्रांस पर यह सबसे घातक हमला था। फ्रांस में जनवरी 2015 के हमलों के बाद से हाई अलर्ट घोषित किया गया था उस हमले में नागरिकों और पुलिस अधिकारियों सहित 17 लोग मारे गए थे। जवाब में, 2005 के दंगों के बाद पहली बार आपातकाल घोषित किया गया और अस्थायी नियंत्रण देश की सीमाओं पर रखा गया है। लोगों और संगठनों ने अपनी एकजुटता को सोशल मीडिया के माध्यम से व्यक्त किया। 15 नवंबर को, फ्रांस के हमलों के प्रतिशोध में, अल-रक्का में आई एस आई एल के ठिकानों को लक्ष्य बनाकर आपरेशन चामल (Chammal), चलाया गया जो अभी तक का सबसे बड़ा हवाई हमला है। 18 नवंबर को, हमलों के मास्टरमाइंड संदिग्ध , बेल्जियम के अब्देल हामिद, को फ्रांसीसी पुलिस ने एक छापे में मार गिराया। पृष्ठभूमि. जनवरी 2015 में हुए चार्ली हेबदो पर हमलें के बाद से ही फ्रांस में हाई अलर्ट लगा हुआ था और 2015 में 30 नवंबर से 11 दिसंबर तक होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन पर हमले की आशंका से और भी सुरक्षा बढ़ा दी गयी थी। तुर्की, इराक, और इजरायल की खुफिया एजेंसियों ने हमलों से महीनों पहले ही फ्रेंच मिट्टी पर हमले की चेतावनी दी थी, लेकिन फ्रांस के अधिकारियों से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। हमले. अपराधी. 14 नवम्बर को राष्ट्रपति फ्रांसिस होलांद ने बताया कि इन हमलों को आईएसआईएल ने फ्रांस में रह रहे लोगों की मदद से अंजाम दिया था। हमलावरों की लाशों के पास से सीरियाई और मिस्री पासपोर्ट मिले, लेकिन मिस्र के अधिकारियों ने इसे एक पीड़ित अलीद अब्दल-रज़्ज़ाक का बताया जो कि हमलावर नहीं था। 16 नवम्बर को बेल्जियम और फ्रांस के जांच अधिकारी अब्दलहमीद अबाउद की तलाश करने लगे थे जो एक कट्टरपंथी जिहादी था और जिसके इस हमले की साजिश रचने का अनुमान लगाया गया। बेल्जियम और फ्रांस में हुए अन्य हमलों में शक के घेरे में आने के बाद अबाउद जो कि एक मोरोक्को मूल का बेल्जियमवासी है सीरीया भाग गया। माना जाता है कि अबाउद ने इब्राहिम और सालाह अब्देस्लाम सहित कई जिहादियों को इन हमलों कि अंजाम देने के लिये भर्ती कर रखा था। वरिष्ठ यूरोपीय अधिकारियों ने "द वाशिंग्टन पोस्ट" को बताया कि अबाउद 18 नवम्बर को फ्रेंच पुलिस द्वारा उत्तरी पेरिस में डाले गई एक छापे में मारा गया; हालांकि फ्रांसिस मोलिन्स ने अबाउद की मृत्यु की पुष्टि नहीं की है। पहचान. पेरिस के अभियोक्ता के अनुसार हमलावरों की तीन टोलियों ने इन हमलों को अंजाम दिया। उन्होंने अपने बदन पर बम बांध रखे थे। इनमें से एक आत्मघाती हमलावर को पहले ८ बार गिरफ्तार किया जा चुका था, लेकिन उसे आतंकी की श्रेणी में कभी भी नहीं रखा गया। सात हमलावर घटनास्थल पर ही मारे गये। एक अभियुक्त को सीरीयाई पासपोर्ट के साथ पाया गया। पासपोर्ट धारक के बारे में फ्रेंच पुलिस को पहले से कोई सूचना नहीं थी। 15 नवम्बर को पेरिस के अभियोक्ता फ्रांसिस मोलिन्स ने तीन में से दो हमलावरों को इब्राहिम अब्देसलाम और एक २० वर्षीय युवक के तौर पर बताया। हमले के तरीके. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय आतंकनिरोधी केंद्र के डायरेक्टर माइकल लीटर ने कहा की ये हमले जिस सुनियोजित ढंग से किये गये वैसा २००८ के मुंबई हमलों के बाद देखने में नहीं आया था। मुम्बई और पेरिस के हमलों में कई समानताएँ देखने को मिलीं। मुंबई पुलिस के संयुक्त कमिश्नर (कानून व्यवस्था) देवेन भारती ने इनमें बहुत सी समानताओं का जिक्र किया है जैसे, एक ही बार में एक ही साथ विभिन्न टोलियों में कई जगह हमले करना, ऐसी जगहों को चुनना जहाँ ज्यादा लोग एकत्रित होते हैं, आईईडी व घातक राइफलों का प्रयोग करके ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारना व आत्मघाती हमले करना। भारती के अनुसार सिर्फ एक यही विभिन्नता थी कि मुंबई हमलों की तरह यहाँ हमलावरों ने हमलों को जारी नहीं रखा और पकड़े जाने का अंदेशा होते ही खुद को उड़ा लिया। आईएस ने ली जिम्मेदारी. आईएसआईएस ने इन आतंकी हमलों की जिम्मेदारी 14 नवम्बर को अपने उपर ले ली। हमलों के २४ घंटो के अंदर ही इसके मीडिया समूह अल-हयात मीडिया समूह ने डार्क वेब पर एक वेबसाइट शुरु की और इसकी प्रशंसा करते हुए अपने समर्थकों से कूट संदेश सेवा टेलीग्राम का उपयोग करने की सलाह दी। इसने हमले की वजह पेरिस के प्रति अपने वैचारिक विरोध और पेरिस के " घृणा और विकृतिकरण" की राजधानी होना बताया। आईएस ने इसे रक्का में आईएस के ठिकानों पर नाटो के नेतृत्व में फ्राँस के हमलों और विश्वव्यापी मुस्लिमों के प्रति फ्रांस सरकार की विदेश नीति का जवाब भी बताया। शिकार. हमलावरों में 129 पीड़ितों की मौत हो गई और 352-368 घायल हुए हैं, जिनमे से 80 को गंभीर रूप से घायल होने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया। इन हमलों में लगभग 26 देशों के लोग हताहत हुए।
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हसन नासिर. हसन नासिर (1928 - 13 नवंबर 1960) पाकिस्तानी सर्वहारा वर्ग के नेता, पाकिस्तान के प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीपी) के महासचिव  और राष्ट्रीय अवामी पार्टी में कार्यालय सचिव था। हसन नासिर हैदराबाद (दक्कन) के थे और तेलंगाना सशस्त्र संघर्ष में, मखदूम मोहिउद्दीन और अन्य लोगों के साथ लड़े था। वह नवाब मोहसिन-उल-मुल्क का दोह्त्र था। 1947 में पाकिस्तान की आजादी के बाद वह पाकिस्तान चले गए और जल्द ही देश के नए शासक वर्ग के लिए, पाकिस्तान में सबसे खूंखार कम्युनिस्टों में से एक बन गए। इस प्रकार, हैदराबाद, दक्कन के एक कुलीन परिवार का वंशज होने के उन्होंने  बावजूद उत्पीड़ित लोगों के मुद्दे को उठाया था।  उन्हें 1960 में गिरफ्तार किया गया लाहौर किले में एक सेल में डाल दिया और तब तक बेरहमी से अत्याचार किया वह मर गया।
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लक्ष्मीबाई नगर. लक्ष्मी बाई नगर नई दिल्ली, भारत में एक आवासीय सरकारी कॉलोनी है।
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हिन्दवी स्वराज. <ns>0</ns> <revision> <parentid>6370013</parentid> <timestamp>2025-02-28T05:02:49Z</timestamp> <contributor> <ip>2409:40F0:DA:CAA8:1C6E:5030:A7CB:AD64</ip> </contributor> <comment>/* सन्दर्भ */ लिंक मौजुद नहीं</comment> <origin>6370014</origin> <model>wikitext</model> <format>text/x-wiki</format> हिंदवी स्वराज्य का शाब्दिक अर्थ 'हिन्दुओं का अपना राज्य'। 'हिन्दवी स्वराज्य' एक सामाजिक एवं राजनयिक शब्द है जिसकी मूल विचारधारा भारतवर्ष को विधर्मी विदेशी सैन्य व राजनैतिक प्रभाव से मुक्त करना था जो भारतवर्ष में हिन्दूत्व के विनाश पर तुले थे। इस शब्द के प्रणेता छत्रपति शिवाजी महाराज हैं। शिवाजी महाराज ने रायरेश्वर (भगवान शिव) के मंदिर में अपनी उंगली काट कर अपने खून से शिवलिंग पर रक्ताभिषेक कर 'हिन्दवी स्वराज्य की शपथ' ली थी। उन्होंने (श्रीं) ईश्वर की इच्छा से स्थापित हिन्दूओं के राज्य की संकल्पना को जन्म दिया। इसी विचार को नारा बना कर उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष को एकत्रित करने के लिये अफ़ग़ानों, मुग़लों, पुर्तगालियों और अन्य विधर्मी विदेशी मूल के शासकों के विरुद्ध सफल अभियान चलाया। उनकी मुख्य लक्ष्य भारत को विदेशी आक्रमणकारियो के प्रभाव से मुक्त करना था क्योंकि वे भारतीय जनता (विशेषतः हिन्दुओं) पर अत्याचार करते थे, उनके धर्माक्षेत्रों को नष्ट किया करते थे और उनको आतंकित करके धर्मपरिवर्तन किया करते थे। स्वतंत्रता संग्राम के समय इसी विचारधारा को बालगंगाधर टिळक जी ने ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ पुनर्जीवित किया था।"पूर्णतः भारतीय स्वराज" अर्थात हिंदवी स्वराज्य।
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चीन में हिन्दी. चीन की विभिन्न संस्थाओं में लगभग 80 विदेशी भाषाएँ पढ़ाई जा रही हैं। इनमें हाल के कुछ वर्षों में हिन्दी यहाँ की एक लोकप्रिय भाषा बनकर उभरी है। हिन्दी की शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाएँ. प्रारम्भिक रूप से चीन में पेकिंग विश्वविद्यालय (अंग्रेजी:Peking University), बेजिंग विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय (अंग्रेजी: Beijing Foreign Studies University) और चीन के विभिन्न कॉलेजों में पढ़ाई जाती है। शिक्षकों के अनुसार हिन्दी की लोकप्रियता का एक मुख्य कारण इस भाषा से एक व्यवसाय के अवसर का जुड़ना है। भारतीय दूतावास के प्रयासों के कारण चीन में पाँच संस्थाओं भारतीय संस्कृति के विभिन अध्ययन क्षेत्रों के विभाग बने हैं जिनमें विभिन्न क्षेत्रों में जिनान विश्वविद्यालय (अंग्रेजी: Jinan University), शेनज़ेन विश्वविद्यालय (अंग्रेजी: Shenzhen University) और युन्नान विश्वविद्यालय (अंग्रेजी: Yunnan University) शामिल हैं। पेकिंग विश्वविद्यालय में भारतीय संस्कृति के विभिन का उद्घाटन. चीन की कुछ अन्य संस्थाओं की तरह पेकिंग विश्वविद्यालय में भी भारतीय संस्कृति के विभिन्न विभागों की स्थापना 2003 में भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों हुई थी। यहाँ मुख्य रूप से केन्द्र के बिन्दु हिन्दी शिक्षा के साथ-साथ संस्कृत, उर्दू और बंगाली भाषा के अध्ययन तथा भारत के सम्बंध में धर्म, इतिहास और संस्कृति से जुड़े कोर्स का पढ़ाना भी शामिल है। 2006 तक यहाँ 50 पूर्णकलिक के छात्र और छः पी एच डी छात्र पंजीकृत हो चुके थे। भारतीय ऐतिहासिक ग्रन्थों का अध्ययन. चीन में हिन्दी शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र अपनी पढ़ाई के दौरान ऐतिहासिक भारतीय ग्रन्थ जैसे कि रामायण का भी अध्ययन करते हैं। भारत में हिन्दी का अध्ययन. हिन्दी भाषा का अध्ययन करने वाले छात्र अपनी शिक्षा को पूर्ण करने के लिए कुछ समय भारत में बिताते हैं। इसके अतिरिक्त प्रति वर्ष कई छात्र महात्मा गान्धी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, भारत में प्रवेश पाते हैं। यह लोग डिप्लोमा से लेकर पी-एच डी० तक के कोर्स यहाँ पर पूरे करते हैं। इसके अतिरिक्त, यह लोग साधारण रूप से अपनी पहचान भी भारतीय नामों से करवाते हैं। रेडियो चाइना इण्टरनेशनल. चीन से प्रसारित होने वाले रेडियो चाइना इण्टरनेशनल के कार्यक्रम भारत में काफ़ी लोकप्रिय हो चुके हैं। कुछ जगहों पर भारतीय श्रोताओं के क्लब भी बन चुके हैं। इस कारण से यह रेडियो सेवा कई चीनी लोगों को रोजगार का एक नया अवसर प्रदान करती है। चीन में हिन्दी के प्रचार के लिए आकाशवाणी की विदेश सेवा. आकाशवाणी ने 15 अगस्त 2015 से चीन की जनता में हिन्दी भाषा सीखने की रुचि को देखते हुए हर रविवार को बीस मिनट का एक कार्यक्रम शुरू किया है जिसका नाम Xue Xi Yindiyu Jie Mu या "आओ हिन्दी सीखें" है। इसके अंतर्गत एक चीनी परिवार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक शिक्षक के समक्ष हिन्दी भाषा सीखते हुए सुनाई देता है। चीन में हिन्दी दिवस. चीन के विश्वविद्यालयों और शिक्षा केन्द्रों में हिन्दी दिवस धूम-धाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर प्रतियोगिताएँ भी आयोजित होती है। इन समारोहों का एक मुख्य केन्द्र भारतीय दूतावास भी है। हिन्दी सीखने वाले छात्रों की शिकायत. हिन्दी सीखकर भारत व्यापार, व्यवसाय या केवल यात्रा पर आने वाले चीनी छात्र आश्चर्य में पड़ जाते हैं कि आधिकारिक मामलों में भारत में हिन्दी की तुलना में अंग्रेजी का प्रयोग अधिक है। इसके विपरीत चीन में लगभग सभी कार्य चीनी भाषा में ही सम्पन्न होते हैं।
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ओहायो राज्य विश्वविद्यालय. ओहायो राज्य विश्वविद्यालय अमरीका के ओहायो राज्य के कोलंबस शहर में स्थित एक सरकारी अनुसन्धान विश्वविद्यालय है।
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मैनचेस्टर विश्वविद्यालय (इण्डियाना). मैनचेस्टर विश्वविद्यालय (भूतपूर्व में मैनचेस्टर कॉलेज) अमरीका के इण्डियाना राज्य में स्थित एक लिबरल आर्ट्स विश्वविद्यालय है।
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ड्यूपॉन्ट एक्सपेरिमेंटल स्टेशन. ड्यूपॉन्ट एक्सपेरिमेंटल स्टेशन ड्यूपॉन्ट कंपनी का सबसे बड़ा अनुसंधान एवं विकास संस्थान है। इस संस्थान में आधुनिक रासायनिक उद्योग की कुछ सबसे बड़ी खोजें हुई हैं।
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कॉर्नेल विश्वविद्यालय. कॉर्नैल विश्वविद्यालय अमरीका के नया यॉर्क राज्य में स्थित एक निजी आइवी लीग अनुसन्धान विश्वविद्यालय है। इतिहास. इस विवि की स्थापना 27 अप्रैल 1865 को हुई थी। एजरा कॉर्नैल ने इसके लिए इथका, न्यू यॉर्क में एक जगह और पाँच लाख डॉलर की रकम भी दी। एंडरिव डिकसन इसके पहले अध्यक्ष रहने के लिए राजी हो गए। इसके तीन वर्षों के दौरान दो नए इमारत बनाए गए। एज्रा कॉर्नैल के उद्धरण के आधार पर कॉर्नैल की स्थापना की गई थी "मुझे एक ऐसी संस्था मिलेगी जहां कोई भी किसी भी अध्ययन में निर्देश पा सकता है।"
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नेशनल मेडल ऑफ सांइस. नेशनल मेडल ऑफ सांइस अमरीका में एक वैज्ञानिक पुरस्कार है।
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सुलुव राजवंश. यदुवंशी सुलुव/शाल्व राजवंश इस राजवंश के निर्माता "सुलुवास" है इस राजवंश के राजाओं ने भारत के कर्नाटक राज्य के कल्याणी क्षेत्र में राज किया था। सुलुव ("Saluva") शब्द का प्रयोग बाज का शिकार करने में किया जाता है वे बाद में शायद प्रवास से या 14 वीं सदी के दौरान विजयनगर साम्राज्य में फैल गए थे सलुवा नरसिंह सुलुव राजवंश के पहले राजा थे जिन्होंने १४८६ से १४९१ तक शासन किया। ये  वंश के सत्तारूढ़ राजा थे। नरसिंह राय ने उड़ीसा के राजा के अतिक्रमण को रोकने का प्रयास किया था।
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डार्ट (प्रोग्रामिंग भाषा). डार्ट (Dart) गूगल द्वारा शुरु की गई एक प्रोग्रामिंग भाषा (आदेशों क लिखने के नियमों का संग्रह) है जो २०११ में डेनमार्क में शुरु हुआ। इसको वेब उपयोगों में बहुत प्रयोग किया जाता है जो पीएचपी की जगह ले सकता है। इसमें फ़ंक्शनल प्रोग्रामिंग तरीका और Object Oriented Programming तरीका दोनो का आधार लिया गया है।
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फ़्रिसियन. फ़्रिसियन भाषा नीदरलैण्ड और जर्मनी के तटों पर रहने वाले लगभग पांच लाख फ़्रिसियन लोगों द्वारा बोली जाती है।
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अराविदु राजवंश. यदुवंशी अराविदु राजवंश हिन्दू धर्म का अंतिम राजवंश था जिन्होंने दक्षिण भारत के विजयनगर पर राज किया था। इस राजवंश स्थापक त्रिमूल देव राय थे ,जो कि राम राय के भाई थे। राम राय जो कि पिछले राजवंश के अंतिम शासक थे। इनकी मृत्यु राक्षसी तांगड़ी में हुई थी। अराविदु राजवंश के परिवार के लोग अपना उपनाम अत्रेया रखते थे। . शासक. यदुवंशी अराविदु राजवंश के शासकों की सूची।
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अमृतपुर (धारी). अमृतपुर () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसील में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। अमृतपुर गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पे शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
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मऊ एक्सप्रेस. मऊ एक्सप्रेस () भारतीय रेलवे के पूर्वोत्तर रेलवे जोन वाराणसी प्रभाग की एक ट्रेन है। इसे 2013 के रेल बजट में पेश किया गया था और फिर नवंबर 2013 से इसने अपनी यात्रा शुरू की। यह द्वि-साप्ताहिक चलती है और मऊ जंक्शन से आनंद विहार टर्मिनल के लिए 833 किलोमीटर (518 मील) की दूरी को तय करती है। मऊ एक्सप्रेस के पूरे 17 कोचों में से एक एसी द्वितीय (AC-II) कोच, दो एसी तृतीय (AC-III) डिब्बे, छह शयनयान श्रेणी (Sleeper Class) के डिब्बों, 6 सामान्य (अनारक्षित) कोच और दो एसएलआर शामिल हैं। समय सारिणी. मऊ जंक्शन (मंगलवार और रविवार) से आनंद विहार टर्मिनल के लिए यह गाड़ी संख्या 15025 के साथ शुरू होता है और समय तालिका के निम्न रूप से है: आनंद विहार टर्मिनल (सोमवार और शुक्रवार) से मऊ जंक्शन के लिए यह गाड़ी संख्या 15026 के साथ शुरू होता है और समय तालिका निम्न रूप से है: आरक्षण. लोग सामान्य वर्ग को छोड़कर ट्रेन में यात्रा करने के लिए एक उन्नत (advance) आरक्षण टिकट ले सकते हैं। इस ट्रेन में तत्काल टिकट की सुविधा भी उपलब्ध। कोच रचना. 15025 ट्रेन के कोच रचना है: यात्रा. यह 50 किलोमीटर प्रति घंटा (31 मील प्रति घंटे) के एक औसत गति के साथ 833 किलोमीटर (518 मील) की अपनी यात्रा को पूरा करने के लिए लगभग 19 घंटे लगाता हैं।
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आंबरडी (धारी). आंबरडी () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसील में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। आंबरडी गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पे शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
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चेक गणराज्य में हिन्दी. "चेक गणराज्य" के प्रग स्कूल ऑफ़ लैंग्वेजेज़ (अंग्रेज़ी: Prague School of Languages) के शाम के समय पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम में हिन्दी भाषा भी पढ़ाई जाती है। हिन्दी भाषा पढने इस देश के युवकों का उत्साह छात्रों की अच्छी-खासी संख्या से लगाया जा सकता है। चेक गणराज्य में हिन्दी शिक्षा का इतिहास. दूसरे विश्व युद्ध के समय प्राग स्कूल ऑफ़ कामर्स ("अंग्रेज़ी": Prague School of Commerce) की एक शाखा इन्स्टिट्यूट ऑफ़ दि हिन्दुस्तानी लैंग्वेज ("अंग्रेज़ी": Institute of the Hindustani Language) थी। उस समय लगभग सौ विद्यार्थी वहाँ पढ़ रहे थे। प्रोफ़ेसर ओकतार पेरतोल्द जो किसी समय चेकोस्लोवाकिया के मुम्बई में महावाणिज्यदूत रह चुके थे, ने हिन्दुस्तानी भाषा के लिए के सफल पाठ्य पुस्तक लिखी थी जिसमें देवनागरी और नस्तालिक दोनो लिपियाँ छात्रों को पढ़ाई जाती थी। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात हिन्दी भाषा की शिक्षा चेकोस्लोवाकिया में मुख्य केंद्र रही, जबकि उर्दू इसके साथ एक अतिरिक्त ऐच्छिक विषय के तौर पर पढ़ाई जाने लगी। 1980 के दशक में उर्दू शिक्षा को हिन्दी के पाठ्यक्रम से अलग किया गया था। भारत सरकार द्वारा समर्थन. चेक गणराज्य के चार्ल्स विश्वविद्यालय ("अंग्रेज़ी": Charles University) के उस विभाग में जहाँ हिन्दी पढ़ाई जा रही है, भारतीय दूतावास का समर्थन प्राप्त है। इस विभाग को समय-समय पर हिन्दी पुस्तक और पत्रिकाएँ पहुँचाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त दूतावास समय-समय पर हिन्दी भाषा सीखने के इच्छुक छात्रों के भारत भेजने का प्रबंध करता है। 2015 में परदुबित्से विश्वविद्यालय ("अंग्रेज़ी": Pardubice University) की एक छात्रा ने दूतावास के सौजन्य से केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा में अवेदान भेज चुकी हैं। संस्थान की ओर से इस छात्रा का वहाँ पर एक वर्ष के कोर्स के लिए चयन किया गया था। यह छात्रा पहले से कुछ हिन्दी जानती है, पर वह भारत में रहकर और सीखने की इच्छुक थी।
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करेण (धारी). करेण () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसील में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। करेण गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पे शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
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इंगोराळा (धारी). इंगोराळा () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसीलों में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। इंगोराळा गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेत-मजदूरी, पशुपालन और रत्नकला-कारीगरी है। यहाँ पर गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पर शेर और तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
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कथीरवदर (धारी). कथीरवदर () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसील में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। कथीरवदर गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पे शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
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कमी (धारी). कमी () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसील में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। कमी गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पे शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
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करमदड़ी (धारी). करमदड़ी () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसील में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। करमदड़ी गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पे शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
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ब्रह्मा मन्दिर, पुष्कर. ब्रह्मा मन्दिर (अंग्रेजी :Brahma Mandir) एक भारतीय हिन्दू मन्दिर है जो भारत के राजस्थान राज्य के अजमेर ज़िले में पवित्र स्थल पुष्कर में स्थित है। इस मन्दिर में जगत पिता ब्रह्माजी की मूर्ति स्थापित है। इस मन्दिर का निर्माण लगभग १४वीं शताब्दी में हुआ था पारीक ब्राह्मण समाज के व्यक्तियों ने मंदिर का निर्माण करवाया था जो कि लगभग ७०० वर्ष पुराना है। यह मन्दिर मुख्य रूप से संगमरमर के पत्थरों से निर्मित है।कार्तिक पूर्णिमा त्योहार के दौरान यहां मन्दिर में हज़ारों की संख्या में भक्तजन आते रहते हैं। श्री ब्रह्मा मंदिर को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग द्वारा 4 मार्च 2005 को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया। सन्दर्भ. पंकज सोनी प्रयागराज। मूल निवास फतेहपुर ग्राम शाहपुर,तहसील खागा। सबसे पहले इस सृष्टि में केवल ब्रह्म आए, और इस ब्रह्माण्ड में ब्रम्ह केवल एक है इसलिए पूरे पृथ्वी पर ब्रह्मा का मंदिर केवल एक है। गिनती पहले ० से शुरू होती है अर्थात पहले इस पृथ्वी पर शून्य था और उस शून्य से एक अंश बाहर निकला (कोख से एक बच्चा निकला) और वो थे ब्रम्ह अर्थात वह ज्ञान जो सर्वोच्च है, पहली गिनती शून्य से इसीलिए प्रारंभ होती है कि जब शून्य था इस ब्रह्माण्ड पर तब कुछ नहीं था।अब शून्य से एक अंश बाहर निकला और वो थे ब्रम्ह इसलिए पहली गिनती बनी १॥ फिर ब्रम्ह ने अपने से एक अंश को बाहर किया वो थे महादेव,इनकी ये गिनती थी २। महादेव से एक अंश बाहर निकला वो थे हरि और संख्या बनी ३। ऐसे ही सबके अंश से एक-एक चीजे निकलती गई और संख्या बनती गई। एक और सत्य ब्रह्माण्ड इसीलिए फैल रहा है कि चीजे अभी पृथ्वी पर बन रही है हर दिन जितनी जीवात्मा जन्म ले रही है वह सब ब्रम्ह ही दे रहे हैं। एक और सत्य इस देश का वास्तविक नाम भरत ही था क्योंकि तब त्रेतायुग आया तो राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न आए। १४ वर्ष के वनवास के बारे में कभी सोचना कि राम का जितने दिन वनवास था उतने दिन भरत भी महल को त्याग दिए कि जब तक भैया नहीं आएंगे हम महल नहीं जाएंगे। भरत का यह त्याग था इसीलिए इस देश का नाम भरत पड़ा।इस ब्रह्माण्ड में देवताओं ने 14 लोक बनाए है,हिन्दू कैलेंडर चन्द्र कैलेंडर के आधार पर आधारित है,चन्द्र वहां भी 14 के बाद या तो पूर्णिमा होगी या आमावस्या,14 दिन बाद सब पूर्ण हो जाएगा। गिनती बस ऐसे ही बनती गई और वह आज भी जारी है।जितने भी लोग आज हमसे जुड़े है यह सभी बोलते है कि कितने लोग जुड़े हैं तुमसे। इसलिए बोलते है ब्रम्ह ही सत्य है। प्रथम युग सतयुग इसीलिए बोलते हैं कि वह ब्रम्ह का युग था अर्थात सत्य का युग था। राम सत्य थे,और सत्य सिर्फ क्या है,केवल ब्रम्ह।। जय श्री कृष्णा।
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काथरोटा (धारी). काथरोटा () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसील में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। काथरोटा गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पे शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
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कुबडा (धारी). कुबडा () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसील में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। कुबडा गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पे शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
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केराला (धारी). केराला () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसील में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। केराला गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पे शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
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कोटडा (धारी). कोटडा () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसील में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। कोटडा गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पे शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
260
कोठा पिपरीया (धारी). कोठा पिपरीया () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसील में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। कोठा पिपरीया गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पे शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
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कांगसा (धारी). कांगसा () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसील में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। कांगसा गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पे शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
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खंभालिया (धारी). खंभालिया () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसील में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। खंभालिया गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पे शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
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खिचा (धारी). खिचा () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसील में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। खिचा गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पे शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
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खीसरी (धारी). खीसरी () भारत देश में गुजरात राज्य के सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ प्रान्त में अमरेली ज़िले के ११ तहसील में से एक धारी तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। खीसरी गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूंगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादि की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नज़दीकी शहर अमरेली है। यहाँ पे शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं।
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हेज़ल कीच. गुरबसन्त कौर (जन्म हेज़ल कीच के नाम से ) एक भारतीय मूल की ब्रिटिश मॉडल है जो भारतीय धारावाहिकों व फिल्मो में कार्य कर चुकी है. वह "बॉडीगार्ड" फिल्म में अपने कार्य के लिए जानी जाती है। व्यक्तिगत जीवन. 12 नवंबर 2015 को, हेज़ल कीच का भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह से सगाई हुई थी। उनका विवाह 30 नवंबर 2016 को हुआ था। विवाह के बाद, हेज़ल ने "गुरबसंत कौर" नाम अपनाया, जिसे शादी समारोह के दौरान संत बलविंदर सिंह ने उन्हें दिया था। करियर. हेज़ल कीच टेलीविजन, फिल्म और मंच में शामिल हो गई। उन्होंने ब्रिटिश कार्यक्रम अगाथा क्रिस्टी में नृत्य किया। बीबीसी वृत्तचित्र शो कॉल द शॉट्स ने उन्हें हिंदी फिल्मों में काम को दिखाया। वह 2002 में अपने लंदन दौरे के लिए बॉलीवुड संगीत बॉम्बे ड्रीम्स की टीम में शामिल हो गईं । उन्होंने कुछ हैरी पॉटर फिल्मों में सहायक अभिनेत्री के रूप में कार्य किया है। 18 वर्ष की उम्र में, मुंबई में छुट्टियों के दौरान, उन्हें काम के प्रस्ताव मिलते थे और भारत में रूकने और मॉडलिंग व अभिनय करने का फैसला किया। कीच तब विभिन्न संगीत वीडियो में "कहीं पे निगाहें" के साथ-साथ कई टीवी विज्ञापनों जैसे कि विवेल द्, आईटीसी और स्प्राइट यूनिवर्सिटी ऑफ फ्रेशोलॉजी में दिखाई दी। कीच 2007 की तमिल फिल्म बिल्ला में दिखाई दी, जहां उन्होंने "सेई इथवथू" गीत में एक आइटम नंबर किया। 2011 में, उन्होंने अतुल अग्निहोत्री द्वारा निर्मित और सिद्दीकी द्वारा निर्देशित हिंदी फिल्म बॉडीगार्ड में एक सहायक भूमिका निभाई। उन्होंने फिल्म मैक्सिमम में "आ एंटे अमलापुरम" नामक एक आइटम नंबर भी किया। उन्होंने कृष्णम वंदे जगद्गुरुम (2012) में एक गीत "चल चला चल" किया।
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